सोमवार, 14 दिसंबर 2009

जी हाँ ! मुझे शर्म आयी।

जी हाँ ! मुझे शर्म आयी।

शासकीय कर्मचारी होने के नाते मुझे एल.टी.सी. पर पूर्वोत्तर राज्यों में भ्रमण करने का अवसर प्राप्त हुआ। पूर्वोत्तर राज्यों का भ्रमण मेरे लिए कुछ नया नहीं था क्योंकि मेरी ससुराल असम के बंगाईगाँव में ही है। मेरी पत्नी व उसके परिजन उसी स्थान पर 6 दशक से रहते आए हैं। मैं पहले भी पूर्वोत्तर जा चुका था किन्तु इस बार पूर्वोत्तर जाना मेरी विवश्ता थी। दरअसल मुझे मेरी पत्नी के छोटे भाई के विवाह मे शामिल होना था जिसे मैं कतई टाल नहीं सकता था।

अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार मैं असम पहुँचा तथा विवाह समारोह में शामिल हुआ । इस दौरान मैं कई स्थानों पर घुमने भी गया और पता ही नहीं चला की कब मेरी 21 दिनों की छुट्टी समाप्त हो गई। घर में लौटने की तैयारियाँ होने लगी । अगले दिन अर्थात 30/11/2009 को मुझे गुवाहाटी से फ्लाइट पकड़नी थी । अत: मेरे साले ने सुबह 05:00 बजे कार द्वारा गुवाहाटी एयरपोर्ट तक ले जाने की तैयारी कर ली किन्तु इसी बीच हमें खबर मिली की दिनांक 30/11/2009 को एक राजनीतिक पार्टी ने असम बंद का आह्वान किया गया है। हमारी वापसी की योजना धरी की धरी रह गई। बंद की स्थिति में असम में हिंसा होना आम बात होती है। ऐसी स्थिति में मुझे मजबूरन सपरिवार 29/11/2009 की रात 12:00 बजे ट्रेन से गोवहाटी के लिए निकलना पड़ा। दिनांक 30/11/2009 को प्रात: 4:30 बजे हम स्टेशन पर पहुँचे। हम रात भर सो नहीं पाए और थकान हम पर हावी हो रही थी परन्तु स्टेशन पर रूक कर हम कोई जोखिम नहीं ऊठाना चाहते थे, पता नहीं कब बंदी हो जाती । इसलिए हमने तत्काल एयरपोर्ट के लिए वाहन लिया और एयरपोर्ट पहुँच गए।

एयरपोर्ट पहुँचने के पश्चात हमने पाया कि ऐसे यात्री जिनकी फ्लाईट शाम 05:00 बजे की थी वे भी अलसुबह ही एयरपोर्ट पहुँच गए थे। हमारी फ्लाइट पूर्वा.11:40 की थी और हम लोग 06:30 बजे को ही गुवाहाटी के गोपीनाथ बोरदलोई एयरपोर्ट पहुँच गए थे। किसी तरह हमने 09:00 बजे तक का समय काटा और तत्‌पश्चात चैक-इन संबंधी औपचारिकताएं पूर्ण कर सिक्योरिटी चेक एरिया के पास यात्रियों के बैठने की कुर्सी पर जम गए । हमारे सामने बड़े आकार का रंगीन टेलिविजन रखा हुआ था जिसपर जी न्यूज का चैनल चल रहा था। मैंने आसपास के दृश्य का मुआयना किया और देखा कि प्रथम पंक्ति में दो सज्जन बैठे हुए थे जो कि पहनावे एवं बोलचाल से सरकारी विभाग के उच्चाधिकारी लग रहे थे। द्वितीय पंक्ति की दाँयी ओर एक युवा मणिपुरी युवती मेखला चादर पहने बैठी हुई थी । मेखला चादर असम राज्य का पारंपरिक वस्त्र है। मैंने अपनी बगल में देखा तो पाया की मेरी पत्नी और बच्चे को नींद ने अपनी आगोश में ले लिया था । मैं भी थका हुआ था किन्तु जगे रहने का प्रयास कर रहा था । इस बीच प्रथम पंक्ति में बैठे व्यक्तियों की बातचीत से मुझे ज्ञात हुआ कि उनमें से एक ब्रिगेडियर है तथा दिल्ली में तैनात है और दूसरा सांस्कृतिक विभाग में आई.ए.एस. अफसर।

मैं उक्ता रहा था तथा समय काटने के लिए मैं टेलिविजन देखने के अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। उस समय टेलिविजन पर मुम्बई पर हुए 26/11 आतंकी घटना की याद में जी टी.वी. द्वारा आयोजित समारोह की विडियो रिकार्डिंग दिखाई जा रही थी। एकाएक मैंने आगे बैठे ब्रिगेडियर साहब की आवाज सूनी "आई वाज देयर इन दिस फन्‍कशन ! इट वाज रियली नाइस !" अब आई.ए.एस. की बारी थी उसने कहा "माय डिपार्टमेंन्ट गेव सपोर्ट टू दैम !" इस बीच टेलिविजन पर "राष्ट्रगान" का प्रसारण हुआ और मैंने देखा कि युवा मणिपुरी युवती तत्काल अपनी कुर्सी से खड़ी हो सावधान की मुद्रा में आ गई। मैं अब भी अपनी कुर्सी पर टिका हुआ था। ब्रिगेडियर और आई.ए.एस. अब भी अपनी-अपनी हाँके जा रहे थे। मेरी नजर पत्नी पर गई वह इस सब से बेखबर सो रही थी। मुझे अपने आप पर शर्म आई, जी हाँ ! मुझे अपने आप पर शर्म आई । मैं स्वयं खड़ा हो गया तथा पत्नी से खड़े होने को कहा। उसने वैसा ही किया। राष्ट्रगान समाप्त हो चुका था किन्तु मेरी राष्ट्रभक्ति को जगा गया था। उस मणिपूरी युवती की राष्ट्रभक्ति के आगे मैं स्वयं को, ब्रिगेडियर तथा आई.ए.एस. को बहुत बौना पाता हूँ। उसकी राष्ट्रभक्ति के आगे पूर्वोत्तर के उस मंत्री के बयान को भी बौना पाता हूँ कि "भारत में पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों के साथ भेदभाव होता है। उन्हें भारतीय नहीं समझा जाता है।"

उस युवती ने समझा दिया कि राष्ट्रभक्ति किसी पद अथवा शासकीय सेवा की मोहताज नहीं वह तो हर आमोखास भारतीय नागरिक में निहित है।

जय हिन्द !! जय भारत !!