मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

पिता का पत्र पुत्र के नाम


पिता का पत्र पुत्र के नाम

                                                        श्री शैलेंद्र नाथ
                                                        अपर महाप्रबंधक

(यह लेख श्री शैलेंद्र नाथ जी द्वारा लिखित है। यह लेख एक पुत्र से पिता की अपेक्षा तो व्यक्‍त करता ही है साथ ही जीवन पय्रन्‍त पुत्र हेतु मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में कार्य करता रहेगा। यह लेख पाठकों पर अपनी अमिट छाप डालता है।)


मेरे प्‍यारे बेटे,

     हॉं, मैं तुम्‍हें अब भी "मेरे प्‍यारे बेटे" कह कर सम्‍बोधित कर रहा हूँ यद्यपि अब तुम किशोर हो चुके हो। ऐसा इसलिए क्‍योंकि पिता के लिए एक बच्‍चा बच्‍चा ही रहता है, इस बात का ध्‍यान किए बिना कि वह बच्‍चा कितना और कितना दूर तक वि‍कसित हो चुका है।
    
     क्‍योंकि हर इंसान में कहीं न कहीं एक बच्‍चा छुपा होता है। पिशेषत: तुममें अभी भी काफी बाल-सुलभ सरलता, निष्‍कपटता और गुण बचे हैं, यद्यपि अब तुम उम्र में बड़े हो गए हो। सच पूछा जाए तो मेरी इच्‍छा है कि जब तक तुम इस पृथ्‍वी पर हो, तब तक ये गुण तुममें विद्यमान रहें।

      इसलिए कि आप एक बच्‍चे से आदमी को निकाल सकते हैं लेकिन एक आदमी से बच्‍चा या बचपना नहीं निकाल सकते। इसलिए कि, जैसा कि विलियम वर्डस्‍वर्थ ने कहा है, "बच्‍चा ही मुनष्‍य का पिता होता है।यद्यपि मैं तुम्‍हारा पिता हूँ, तम्‍हारे में पितृत्‍व के बीज हैं। तुममें अभी भी वो तत्‍व हैं जिन्‍हें जीवन और वर्षों ने मुझसे छीन लिया है और इस प्रकार तुम मेरे पिता हो।
     
      इसलिए जब मैं तुमकों प्‍यारे बेटेकह कर सम्‍बोधित करता हूँ तो तुम अपने को कमज़ोर मत समझो बल्कि तुम अनन्‍त संभावनाओं,सकारात्‍मकता, कोमलता एवं आंतरिक शक्ति से युक्‍त एक प्राणी हो।
     
      बहरलाल, अब जवकि तुम व्‍यस्‍क होने के सिरे पर खड़े हो और अपने व्‍यावसायिक जीवन और पारिवारिक जीवन के संसार में डूबकी लगाने वाले हो, मुझे लगा कि मैं तुम्‍हारे साथ कुछ विचार शेयर करूँ जो इस समय मेरे ऊपर हावी हैं।
      
      मेरे बेटे, जब तुम आदमियों के साथ एक आदमी की तरह डील करोगे तब तुम दुनियादार रहो, पर ज़रूरत से अधिक सांसारिक नहीं। संसार में रहो, पर संसार को अपने अंदर मत रहने दो। जीवन से  सिर्फ गुज़रो तब,जीवन के माध्‍यम से अपना विकास करो।
     
      मेरे प्‍यारे बच्‍चे, मैं तुम्‍हें सांसारिक सुखों से विमुख होने के लिए नहीं कह रहा हूँ पर तुम उनके पीछे भागों नहीं और उनमें लिप्‍त न रहो।
     
      अलग रहो परन्‍तु अलग दिखो मत। दूसरों से अलग दिखने का नाटक मत करो। अपने आपको किसी भी प्रकार अलग हट करमत दिखाओ। जीवन में तुम्‍हें कितनी ही चिजों से कितने रूप में जुड़ना पड़ेगा। किन्‍तु साथ ही साथ तुम्‍हें चीजों से विलग रहने की क्षमता और साहस रखना पड़ेगा। 

      तुम जो भी काम करो या न करो, या जो भी कदम उठाओ, उसका परिकलन करो, पर जीवन में कभी भी बहुत हिसाबी-किताबी न बनो। धीरे-धीरे आगे बढ़ो, पर प्रच्‍छन्‍न रूप में नहीं । इसी प्रकार पीछे हटो- परिस्थितियों से, संबंधों से पर धीरे-धीरे और ऐसे कि पता न चले। तम्‍हारे काम या व्‍यवहार में आकस्मिकता, आघात या आश्‍चर्य का पुट नहीं होना चाहिए।

      जीवन में अविकल,सम्‍पूर्ण, अखण्‍ड, समबुद्धि, विरक्‍त, निर्लिप्‍त और वितरागी बनो। मेरा मतलब है कि जो तुम वास्‍तव में हो और जैसा तुम दिखते हो उसमें पूर्ण एकाकार होना खहिए। कोई भी विरोधाभास नहीं , कोई भी विसंगति नहीं। एक सफल, मिथ्‍याचारी वंचक होने से अच्‍छा है कि तुम एक ईमानदार बेवकूफ व्‍यक्ति बनो। इसलिए हमेशा उच्‍चतम नैतिक आदर्शों का पालन करो।  

     स्‍वाग्रही रहो, पर हठी नहीं और आक्रामक तो कभी नहीं।

लोगों के प्रति अच्‍छे रहो, पर किसी के भी प्रति दास्‍य वृत्ति मत रखो। कभी यह हो सकता है कि लोग यह सोंचे कि चूँकि तुम अच्‍छे हो इसलिए तुम कमज़ोर हो। परेशान मत होओ, तुम हर हाल में हर हालत में अच्‍छे रहो।

हमेशा और हर परिस्थिति में पारदर्शी रहो। याद रखो कि जो भी तुम दूसरो में देखते हो वह तुम्‍हारे अंदर है।

लोगों के पीठ-पीछे ऐसे बात करो मानों वे तुम्‍हारी बात सुन रहे हों। बल्कि एक कदम और आगे जाओ। उनके बारे में सोचते समय भी यह सोचो मानों वे तुम्‍हारे विचारों से अवगत हों। याद रखों कि किसी के पीठ के पीछे सबसे अच्‍छा काम उस पीठ को सहलाना है।

याद रखो कि तुम्‍हें लोगों को सहन करने का अधिकार नहीं है, चाहे तुम उन्‍हें पसंद न भी करते हो। दूसरो को सहन करना एक प्रकार का अनुग्रह है जिसके हम तुच्‍छ मानव योग्‍य नहीं हैं।

हमेशा अपना अंत और अंत समय मन में रखो। किसी भी घटना या परिस्थिति पर प्रितिक्रिया करते समय हमेशा याद रखो यह भी गुज़र जाएगा। यह मंत्र तुम्‍हारे हर निर्णय का आधार होना चाहिए।

सम्‍प्रेष्‍णशील बनो और रहो। अपने संबंधों को कभी Taken for granted मत लो। वास्‍तव में, सम्‍प्रेषण की गहनता संबंधों की गहनता के समतुल्‍य होनी चाहिए। लेकिन यह समझे रहो कि सम्‍प्रेषण मात्र वाक्-पटुता, वाचलता या डींग हॉंकना नहीं है।

गहरे बनो, ध्यान परायण बनो और चिंतनशील बनो। साथ ही कर्मजीवी और चिंतनशील बनो। अपने मन को कभी-कभी विचार शून्‍यता की स्थिति में भी लाने का प्रयत्‍न करो। यह मानसिक अवस्‍था धुंधली नहीं बल्कि दिवय होनी चाहिए।

बदले की भावना कभी भी न रखो। बदला कायरतापूर्ण कार्य है। अपने प्रतिद्वंदियों का मुकाबला अपने स्‍तर पर करो। उनसे बराबरी के लिए उनके स्‍तर पर न उतरो। इसी प्रकार अपने विरोधियों के प्रति वैमनस्‍य, शत्रुता या श्रेष्‍ठता की भावना मत रखो।

याद रखो कि जो तुम्‍हारे साथ होता है वह नहीं बल्कि उस पर तुम कैसी प्रतिक्रिया करते हो- यह प्रदर्शित करता है कि तुम वास्‍तव में क्‍या हो।

गुप्‍त व्‍यवहार मत करो और संगोपनशील मत बनो। फिर भी उन लोगों के वैध हितों का रक्षण करो जो तुम्‍हारे साथ अपने व्‍यक्तिगत  और व्‍यावसायिक जीवन की गोपनीय बातें शेयर करते हैं।

कभी भी विनोद और हास का भाव मत छोड़ो। अपने ऊपर हँसने के लिए बहुत साहस चाहिए। यह बेहतर है कि लोग तुम्‍हें गलत समझे बजाय अपने आदर्शों को छोड़ने के। यह गेहतर है कि तुम जैसे हो उसके लिए लोग तुम्‍हें नापसंद करें, बजाय इसके कि लोग तुम्‍हें पसंद करें तुम जैसे नहीं हो उसके लिए।

मैं तुम्‍हारा आकलन करूँगा तुम्‍हारे व्‍यवहार से उनके प्रति जो तुम्‍हारे लिए महत्‍व रखते हैं, पर उनके प्रति जिनका सामाजिक स्‍तर में तथा-कथित निम्‍न स्‍थान है- ड्रायवर,वेटर्स, नौकर-चाकर, लिफ्टमैन, यह लिस्‍ट बहुत लम्‍बी है।

याद रखो कि अपनी सरलता और नम्रता से तुम कोई भी परिस्थिति जीत सकते हो। मैं तुम्‍हे किसी भी प्रकार की राजनीति या जालबाजी से भी बचने की सलाह दूँगा। हमेशा जवाहरलाल नेहरू का सिद्धांत याद रखो- सरल और सीधा सत्‍य सबसे बड़ी कूटनीति है।

नम्र बनो, पर शलथ और शिशिल नहीं। दूसरों का ख्‍याल करनेवाला बनो, पर अवांछित सेवा अर्पित करनेवाला या व्‍यग्र याचक नहीं।

हर चीज़ के प्रति, यहॉं तक निर्जीव वस्‍तुओं को भी, एक वैयक्तिक और मानवीय स्‍पर्श देने की कोशिश करो। शीघ्र ही तुम पाओगे कि तुम में पारस का गुण है।

मेरी सलाह है कि अपने अनुचार में तुम आनुपातिक, संतुलित और संयमी बनो। कभी भी अपनी भावनाओं या प्रतिक्रियाओं को इकट्ठा मत होने दो। नहीं तो वे किसी दिन अचानक फट पड़ेंगे और सारा खेल ख़त्‍म हो जायेगा।
      
तुमको किसी भी संबंध से बहुत आशा नहीं रखनी चाहिए। फिर भी अपने संबंधों के बारे में बहुत स्‍पष्‍ट रहो। संबंध बनाने में कभी जल्‍दीबाज़ी मत करो। यदि तुम बहुत जलदी किसी के बहुत करीब आते हो तो तुम्‍हें उससे और भी तेजी से बहुत दूर जाना पड़ सकता है।

किसी भी मामले पर बहुत देर तक सोचो नहीं और लटको नहीं, बस उस पर ध्‍यान लागाओ। यहॉं ध्‍यान लगाने से मेरा तात्‍पर्य किसी निर्जन स्‍थान पर कोई यौगिक साधना नहीं है। बस किसी मामले पर गहराई से विचार करो, मन ही मन उस मामले के हर पहलू, हर चरण से गुज़रो, एक निर्णय लो और फिर उस मामले के परे चले जाओ। किसी भी मामले को अपने ऊपर हावी मत होने दो।

हर पार्टी (समारोह) का पार्टी (सदस्‍य) बनो पर अपनी ऐकांतिकता बनाए रखो। मैं निश्‍चयात्‍मक स्‍वर में कह सकता हँ कि भीड़ में भी अकेले रहना नितांत संभव है । ओर यह आनंदप्रद भी है। पर, मैं फिर कह रहा हूँ कि तुम जो कुछ करो या न करो उससे तुम्‍हें अलग नहीं दिखना है । तुम्‍हें अलग बनना है। अलग दिखने की प्रवृत्ति ख़तरनाक हो सकती है।

कोशिश करो कि तुम स्‍वयं को ऐसी परिस्थिति में मत डालो जहॉं तुम्‍हें लागों को माफ करना पड़े। चीज़े या अवसर छोटे हो सकते हैं, पर लोग कभी नहीं।

कहावत है कि फरिश्‍ते उड़ते हैं क्‍योंकि वे अपने-आप को हल्‍के ढंग से लेते हैं। इसलिए चीज़ों को हल्‍के ढंग से लो लेकिन चीज़ों को हल्‍का बनाओं मत और स्‍वयं को किसी के द्वारा हल्‍के में मत लिए जाने दो। बंधन और स्‍वतंत्रता तो मन के हैं।

अब कुछ बातें ऋण और भुगतान की । शेक्‍सपीयर का कथन न तो लेनदार बनो और न देनदार बनो आज भी युक्ति संगत है। फिर भी आज के प्‍लास्टिक मुद्रा युग में यह पूर्णत: व्‍यावहारिक नहीं है। तथापि यह सुनिश्चित करो कि तुम अपना देय अदा करने में तत्‍पर हो, विशेषत: उनका जो तुम्‍हारी सेवा करते है या तुम्‍हें कोई सर्विस देते हैं। यह तुम्‍हारे लिए शर्म की बात होगी यदि उन्‍हें तुमसे भुगतान मॉंगना पड़े।

जहॉं तक ऋण की बात है, पहले उनका उधार अदा करो जिन्‍होंने तुम्‍हारे लिए प्यार और सरोकार के चलते, तुम्‍हें ब्‍याज रहित उधार दिया है- तुम्‍हारे मित्र और रिश्‍तेदार। उसके बाद तुम ब्‍याज वाले ऋण लौटाओ। आखिरकार, तुम्‍हारे और लेनदार के बीच इंटरेस्‍ट सिर्फ इंटरेस्‍ट का है। और पारस्‍परिक प्‍यार एवं सरोकार इंटरेस्‍ट (ब्‍याज़) से अधिक कीमती होता है।

अपनी जीवन यात्रा में तुम निश्चित रूप से ण्‍क जीवनसाथी चुनोगे। मेरी कमाना है कि वह तुम्‍हारी आत्‍म-संगिनी हो। यह अपेक्षा मत रखो कि वह तुम्‍हारी प्रतिबिम्‍ब होगी। ऐसा जीवन साथी पाना न तो संभव हे न काम्‍य। सबसे अच्‍छा होगा कि एक स्‍वस्‍थ्‍य विरोध के साथ तुम दोनों एक दूसरे के पूरक रहो। अनगिनत छोटे-छोटे मामलो में मतभेद  ओर कुछ थेड़े से किन्‍तु ठोस मामलों में पूर्ण मतैक्‍य तथा सुसंगति। न तो पूर्ण संघर्ष न ही निरी मृदुलता से काम चेलगा। मित्रों एवं कार्य-रूथल की भॉंति वही जीवन साथी पाते हैं जिसके आप योग्‍य हैं।

कभी भी आत्‍म दण्‍ड मत दो। कभी भी अपने को दीन या भाग्‍य हीन मत समझो। हमेशा आत्‍म-सम्‍मान, संवेदनशीलता, संवेदनग्राहिता ओर आत्‍म संतुलन की भावना से ओत-प्रोत रहो। कोई बात नहीं यदि तुममें विदूषकता का भी कुछ अंश हो । हमेशा यह याद रखो कि इस दुनिया में सर्फि एक व्‍यक्ति तुमको श्रेष्‍ठता या हीनता की भावना से ग्रसित कर सकता है और वह स्‍वयं तुम हो।

कभी भी संदिग्‍ध, संदेहास्‍पद या अनेकार्थक शब्‍दों के जाल मेंमत पड़ो। यदि तुम कभी पारिस्थितिक दुविधा में हो तो बस चुप रहो। अपनी बातचीत या मौन से हमेशा मौन को समृद्ध करो।

तुम अपना सरकारी/ व्‍यावसायिक कार्य इस प्रकार करो जैसे वह तुम्‍हारा अपना व्‍यक्तिगत कार्य हो। साथ ही, किसी काम का वैयक्तिकरण मत करो।

पूर्णता या श्रेष्‍ठता को पाने की कोशिश करो पर पूर्णतावादी बनने की चाह मत रखो । याद रखो कि दुनिया में कोई चीज़ ऐसा नहीं है जो अपने आप में पूर्ण हो, सिवाय आत्‍म-पूर्णता के और सर्वोच्‍च शक्ति की पूर्णता के।

छिछले लोग दिखावे को लेकर परेशान रहते है। सत्‍व वाले व्‍यक्ति अन्‍तरात्‍मा या अंतर्विवेक चाहते हैं। जो दिखता है वो प्रवंचना हो सकती है, पर अंतरात्‍मा स्‍पष्‍ट होनी चाहिए। और अगर तुम्‍हारी अन्‍तरात्‍मा साफ़ है तो तुम्‍हें लागों या चीज़ों के बारे में नहीं सोचना चाहिए। लेकिन तुम सिर्फ इसलिए दर्पवान मत हो जाओ कि तुम्‍हारी अंतरात्‍मा साफ़ है। एक दृढ़ और स्‍पष्‍ट अंतराम्‍ता के साथ तुम्‍हें नम्रता भी जोड़नी चाहिए।

धर्म, विश्‍वास और आस्‍था पर तुम्‍होरे विचार मैं तुम्‍होर ऊपर छोड़ता हूँ। तथापि मेरी इतनी सलाह है कि तुम मताग्रही या हठधर्मी कभी तक बनना। अगर तुम नास्तिक भी होना चाहते हो तो इसे भी अपना हठधर्म मत बनाओ। यदि तुम किसी भी व्‍यक्ति को किसी भी प्रकार उसे अपने धर्म पालन में सहायता देते हो तो तुमने अपने धर्म का निर्वाह कर लिया।

यहॉं पर मैं अपने आपको दार्शनिकता और आध्‍यात्मिकता की बात करने से रोक नहीं पा रहा हूँ। मुझे आशा है कि यह भी तुम्‍हारी मददगार साबित होगी।

धर्म न तो एक शब्‍दमात्र है, न सिद्धांत-मात्र। यह कर्म है। धर्म है-होना ओर हो जाना। यह आत्‍मा का उसमें परिणत हो जाना है जिसमें आत्‍मा विश्‍वास करती है । धर्म यही और बस यही है। धर्म  पर तुम्‍होर विचार पूर्ण रूप से व्‍यक्तिक होने चाहिए। अपने गुणों को लेकर नम्र और अपनी बुरी आदतों को लेकर शर्मसार बनो।

हम चीज़ों को वैसा नहीं देखते जैसे वे वास्‍तव में हैं। हम चीज़ों को उस रूप में देखते है जैसे हम हैं। इसलिए चीज़ों को देखने का, उन्‍हें महसूस करने का प्रसत्‍न करो। निर्णयात्‍मक मत होओ। जो व्‍यक्ति चीज़ों को उनके सही परिप्रेक्ष्‍य में देखता है वह दृष्‍टा हो जाता है। सरल, कपट-रहित, और शुद्ध चित्‍त-वृत्ति के बनो।

अपने मस्तिष्‍क को सभी प्रकार के विच्‍छेदक अहंवाद से मुक्‍त रखो और उसे विनेयता की ऐसी अवस्‍था में ले जाओ जो वैरागी- तपस्‍वी की शुद्धता के अतिरिक्‍त और कुछ नहीं है।

तुम्हारा जीवन प्रेम और सुंदरता की एक अनंत यात्रा होनी चाहिए। स्‍पष्‍ट है कि मैं यहॉं दैहिक या बाह्य सुंदरता की बात नहीं कर रहा हूँ। नैतिक सौदर्य के उन्‍नयन द्वारा तुम्‍हारी आत्‍मा निरपेक्ष सौंदर्य की अवस्‍था को प्राप्‍त होगी जो अपने आप में सौन्‍दर्य है।

तुम्हें स्‍वयं में पाश्‍चात्‍य की अवलोकन-शीलता और प्राच्‍य की चिन्‍तन-शीलता का समन्‍वयन रखना चाहिए।  

अपने धार्मिक अनुभवों और भावनाओं से स्‍वतंत्र तुम किसी एक आदर्श में निष्‍ठा रखो। मुधुमक्‍खी की तरह सभी फूलों का रस चखो और इस मामले में कोई पक्षपात या भेदभाव न करो।

जीवन में अगर तुम एक उच्‍चतर आध्‍यात्मिक स्‍तर पर हो तो तुम किसी के भी साथ तदनुभूति रख सकते हो। तुम किसी के भी साथ फील कर सकते हो।

तुम्‍हारे लिए जानना और करना पर्यायवाची होना चाहिए। तुम्‍हारा उद्देश्‍य एक ऐसा सम्‍पूर्ण पुरूष बनना होना चाहिए जिसके जीवन में असीम आदर्शवाद के साथ व्‍यावहारिक बुद्धि का श्रेष्‍ठ सम्मिश्रण हो।

तुम्‍हें दिल, दिमाग और हाथ के त्रयी को बराबर का सम्‍मान देना चाहिए। तुम्‍हारे अंदर प्रज्ञा और अच्‍छाई की जो सुंदर सुसंगति है उसे तुम्‍हें असहिष्‍णुता और विद्वेष के किसी शब्‍द या व्‍यर्थ और कटु खण्‍डन-मंडन से प्रभावित नहीं होने देना चाहिए।

दैवी प्रेम, जो अकथनीय ऐक्‍य का सहज प्रवाह हे, को तुम्‍हें हमेशा आप्लावित करना चाहिए। सार्वभौमिक अच्‍छाई में विश्‍वास रखो। सब कुछ अच्‍छाई का और अच्‍छाई के द्वारा है जो स्‍वयं में परा- उत्‍कृष्‍ट एकत्‍व है। पर कभी भी बुराई से घृणा मत करो। बुराई कुछ नहीं बल्कि एक कमतर अच्‍छाई ही है। दोनों एक ही खान से निकलते हैं।

लाक्षणिकता और रहस्‍यात्‍मकता का आसव तुम तलछट तक छंको। तुम्‍हारे साथ विशुद्ध चरमानंद का अविचल प्रवाह होना चाहिए। जो तुम्‍हारे संपर्क में आते हैं उन्‍हें तुम्‍हारी उपस्थिति में उत्‍थान का अनुभव करना चाहिए। नि:स्‍वार्थ भाव ओर आत्‍म-नियंत्रण सबसे महान मूल्‍य हैं। सबसे बड़ी अच्‍छाई एक शांत मन है और नम्रता सबसे बड़ा धैर्य है। तुम्‍हें सबसे पहले वह आचरण करना चाहिए जिसका मुण्‍डन करते हो। उदाहरण उपदेश से हमेशा अच्‍छे होते हैं।

तुम्‍हारे जीवन में कुछ मित्र और ज्‍यादा परिचित होने चाहिए इसका उल्‍टा नहीं। जीवन अनुकंपा और भावावेश का मध्‍यम मार्ग है। अनुकंपा की एक अंजुली और भावावेश की एक चुटकी ही जीवन का नमक-मिर्च है।
हर चीज़ में मिताचार ओर संयमन तुम्‍हारे जीवन का सिद्धांत होना चाहिए। और मैं दुहरा रहा हूँ, हर चीज़ में मिताचार- खाने में, पीने में, यहॉं तक कि जीने में भी। मेरी इच्‍छा है कि स्‍वर्णिम सिद्धांत तुम्‍हारे जीवन को नियंत्रित करे।

यह याद रखो कि खान और पान तुम्‍हारे शरीर और आत्‍मा को साथ रखने के लिए बनाए गए हैं, न इससे कम, न इससे ज़्यादा। यह भी याद रखो कि इस संसार में अनाहार के मुकाबले ज़्यादा खाने से अधिक लोगों की मौत होती है।

जीवन में कभी अंधाधुंध मत भागो। पर कोई चीज़ टालो मत ओर विलंबित मत करो। तुम्‍हें अपने आप खुद सफल होना है, सापेक्ष रूप में नहीं। इसलिए दूसरों के सापेक्ष अपनी सफलता कभी मत आंको। मैं तो यह सलाह दूँगा कि तुम अपनी सफलता को आंको ही नहीं।

यह बहुत संभव है कि कभी-कभी तुम ग़लत समझे या निर्णित किए जाओ, वह भी उन लोगों द्वारा जिन्‍हें तुम प्‍यार करते हो या जिनके प्रति तुम्‍हारे मन में सम्‍मान है। इससे तुम परेशान मत होओ। समय सबसे बड़ा समतावादी है। समय ही सत्‍य है और सत्‍य ही दैवीय है इसलिए कभी भी अपना पक्ष रखने या सफाई देने के लिए उतावले मत रहो। समय के साथ चीज़ें अपने आप व्‍यवस्थित हो जाती हैं और अपने आप को सिद्ध कर देती हैं। तो एक समान्‍य, स्‍वाभाविक प्रक्रिया में जल्‍दीबाज़ी से क्‍या फायदा ? तुम गलत समझे जा सकते हो, तुम्‍हारा मज़ाक उड़ाया जा सकता है, लोग तुमसे दूर हो सकते हैं, तुम्‍हें समाज-बहिष्‍कृत कर सकते हैं। पर यह सब कुछ तुम्‍हें विचलित नहीं करने चाहिए। साथ ही, तुम्‍हें सिर्फ इसलिए दूसरों को नापंसद करने या घृणा करने का अधिकार नहीं है क्‍योंकि उन्‍होंने तुम्‍हें ग़लत समझा या नापसंद किया।

मेरे बच्‍चे, तुम ईमानदार, सच्‍चे और ऊर्ध्‍वाधर बनो, पर कटु, क्षतिकर या दाहक नहीं। तुम्‍हारा सत्‍यवान होना तुम्‍हें अपने आपको दूसरों से श्रेष्‍ठ मानने का अधिकार नहीं देता। परिस्थिति चाहे जैसी हो, तुम हमेशा शांत, सुस्थिर और प्रकृतिस्‍थ बने रहो। परिस्थिति से मुकाबला करने और उसे सुलझाना सीखो, उससे बच निकलना नहीं। किसी भी परिस्थिति को अपने ऊपर हावी मत होने दो।

याद रखो कि तुम ही अपने जीवन के शासक और अपने भाग्‍य के विधाता हो। हमेशा ए कबादशाह की तरह सोचो और एक कंगाल की तरह व्‍यवहार करो। जीवन में सबसे बड़ा संघर्ष अपनी मौलिकता बनाए रखना है। जहॉं भी संभव हो, दयावान रहो ओर यह जगह, हर स्थिति में संभव है।

अपने व्‍यक्तिगत और व्‍यावसायिक जीवन में तुम्‍हें बहुत संवाद करना पड़ेगा। अलग-अलग समय पर तुम अलग मानसिक दशा में होगे। फिर भी इस बात का ख्‍याल रखना कि तुम्‍हारी मानसिक दशा तुम्‍हारे शब्‍दों का चुनाव न करे। तुम्‍हारी मानसिक दशा तो कुछ समय बाद बदल जाएगी पर तुम बोले हुए शब्‍द कभी वापस नहीं ले पाओगे। किसी से बातचीत करते समय तुम्‍हारा उद्देश्‍य अभिव्‍यक्ति होना चाहिए, भाव या प्रभाव प्रदर्शन नहीं। ये पॉंच हमेशा तुम्‍हारे पथ-प्रदर्शक होने चाहिए- उत्‍सुकता (Curiosity), साहस (Courage), आत्‍मविश्‍वास (Self-Confidence), अविचलता (Constancy) और दृढ़ विश्‍वास (Conviction)। जीवन में तुम्‍हारे पास बहुत सम्‍पत्ति हो या न हो, तुममें बहुत उत्‍कंठा होनी चाहिए।

तुम्‍हारे विचार, शब्‍द, कार्य आदतें, प्रकृति और नियति एक चक्र में चलते हैं और तुम्‍हारा कर्म निर्धारित करते हैं।

मैं स्‍वयं अपने जीवन में इन गुणों का अनुपालन नहीं कर पाया, कई विसंगतियों ओर कमज़ोरियों के कारण। इसलिए मैं अत्‍यन्‍त उत्‍सुक हूँ कि तुम इनका परिष्‍कार और परिपालन करो। मैं जानता हूँ कि इस पत्र में कई स्‍थान पर विरोधाभास और पुनरूक्तियॉं होंगी। लेकिन तुम यह सोचो कि आखिरकार जिंदगी भी क्‍या है। जिन्‍दगी और कुछ नहीं बस विसंगतियों, विरोधाभासों और खोखली , घिसी-पिटी पुररिक्तियों में संतुलन बिठाने का नाम है। मैं दुहरा रहा हूँ कि संयमन और स्‍वर्णिम ओसत तुम्‍हारे जीवन के प्रकाश पथ होने चाहिए।

मेरे बेटे, मुझे लगता है कि ऊपर व्‍यक्‍त की गई मेरी भावनाएं तुम्‍हारी जिन्‍दगी को, अगर जीवन-यापन को नहीं, सफल बनाएंगी। और यही महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि, मेरे बेटे, यह भी गुज़र जाएगा।

मैं अपना सारा प्‍यार और आर्शिवाद तुम्‍हारे ऊपर उड़ेलता हूँ, मेरे प्‍यारे बच्‍चे!

तुम्‍हारा पिता


शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

INDIAN POWS IN OMAN JAIL


 
Heaven-Sent Sukhdev Singh, who found Sepoy Jaspal on Masirah island pakistan: PoWs  Prisoners Of War, And Fate A carpenter’s discovery of a ’71 PoW off Oman nails Pakistan’s constant denial 
Chander Suta Dogra 

The Lie Of The Land
Evidence of PoWs in Pakistan has been surfacing now and then, in the form of stray letters, testimonies of spies, discovery of urns of ’71 PoW ashes and now the discovery of a PoW inmate in Oman
India’s time and again presented Pakistan with a list of 54 PoWs
But it has consistently denied the presence of any PoWs
During the Agra summit in 2001, President Musharraf denied any PoWs, but Kargil PoWs were in their custody, and released in 2004.
***

Truth finds ingenious ways to manifest itself. And time, it has often been seen, is of no consequence in its pursuit. For long, 41 years to be precise, Pakistan has been denying it has any prisoners of war (PoWs) in its custody. Now, for the first time, there’s evidence to suggest that when Pakistani leaders say “No PoWs in our jails”, they are speaking only half the truth. What they don’t tell you is that many who were taken prisoner in the 1971 war could have been shifted to remote areas in friendly countries to escape detection. Following a most fortuitous series of circumstances, evidence of the presence of one such soldier—Sepoy Jaspal Singh of 15 Punjab Regiment and a PoW of the ’71 war—has come from Masirah island, 15 kilometres off the coast of Oman, which houses a military base.
The news of Jaspal Singh’s incarceration in what is called Purana Jail in Masirah was brought by Sukhdev Singh, a poor carpenter from Dugri village of Ropar district in Punjab. Sukhdev had gone to Oman in 2010 for work, as part of which he was sent to Masirah for some repair work at Purana Jail. Jaspal Singh, now around 70 years of age, approached him on seeing a turbaned Sikh. “He asked me which village I was from. When I told him, Dugri, he said it was his in-laws’ village,” Sukhdev told Outlook. “He would be serving tea and doing odd jobs for officials there. Though he looked like a Muslim with a skullcap and long beard, he spoke to me in Punjabi and told me the names of several people from my village. Over the next few days, very slowly, meeting me for not more than five minutes at a time to escape notice from his minders, Jaspal told me about the December 3 operation near Hussainiwala in which he was captured, his regiment’s name and details about his family.” He also told Sukhdev that four more soldiers had been captured along with him in the course of the operation, when a bridge near Ferozepur collapsed, leaving two companies of his battalion stranded on the other side of the river. All five PoWs were kept in Pakistan jails for five or six years and three shifted subsequently to Masirah jail. Jaspal does not know the whereabouts of the others.

Hope Lives Jaspal Singh’s wife Baljit Kaur, living a widow’s life all these years. (Photograph by Ekta Sharma)
When he returned in July this year, Sukhdev immediately contacted Jaspal’s family, comprising his wife Baljit Kaur (who has been living a widow’s life all these years) and two sons. After several futile visits to the district sainik board office, the family got in touch with Lt Col S.S. Sohi (retd), who runs an NGO for ex-servicemen in Mohali. Sohi first contacted 15 Punjab regiment as well as the battalion’s commanding officer during the war, Lt Col A.S. Cheema (retd). Cheema confirmed the enemy attack on the evening of December 3, 1971, wherein they suffered the loss of three officers and many others. Jaspal had been reported missing and presumed dead since then. Sohi then informed CoAS Gen Bikram Singh, and although the latter has not responded so far, the matter was brought to the notice of the Indian embassy in Oman through some retired officers working for the repatriation of Indian PoWs. Capt Arjun Nair, the Indian defence attache in Muscat, has affirmed that the embassy has issued a note verbale to the Omani government requesting details of personnel incarcerated in Masirah island, and consular access. The ambassador has also informed the Omani foreign minister and sought assistance in locating the missing persons.
   
“Though he looked a Muslim with skullcap and beard, he spoke to me in Punjabi and knew people from my village.”
   

Evidence about the presence of Indian PoWs in Pakistan has been surfacing off and on, either in the form of an odd letter smuggled out of prison, debriefing of intelligence agents returning after serving sentences in Pakistan jails, and in 2005, when a human rights activist reported seeing 30 urns of ashes of 1971 PoWs lying in the Kot Lakhpat jail of Lahore. Based on these fragments, the government had compiled a list of 54 PoWs which it repeatedly presents to Pakistan but whose government steadfastly refuses to acknowledge PoW presence. As G.S. Gill, brother of Wg Cdr H.S. Gill whose plane was shot down over Badin in Dec ’71, says, “It is up to our government to do something more than accept their word.” Many of the PoWs would have died, which is why many in the government, and sadly in the defence establishment too, see it as a fruitless exercise, not worth pursuing actively any more. What hasn’t died, however, is hope in the hearts of the PoW’s next-of-kin, who haven’t given up on some definitive information on their loved ones. Sukhdev’s story has reignited this hope.
It shows up in the words of Simi Waraich, daughter of Maj S.P.S. Waraich, also from 15 Punjab, who went missing in the same Hussainiwala attack and whose name is on the government list of 54 PoWs, “This is the first-ever solid evidence we have after so many years, and its significance has still to hit government functionaries. If the government acts decisively, it can nail Pakistan’s lie once and for all, because now we have definitive proof that our PoWs had been shifted elsewhere.”
Simi and a handful of people from the Missing Defence Personnel Relatives Association (MDPRA) have met every single spy returning from Pakistani jails, and had in 2007 (see Outlook story), on the invitation of President Pervez Musharraf, visited several Pakistani jails to search for their kin. “Pakistan’s lies have been proved time and again,” says Simi. “During the 2001 Agra summit, President Musharraf said they did not have any Indian PoWs, but events proved that Sepoys Jagseer Singh and Mohammed Arif, captured in the Kargil war, were in their jails; they were released in 2004. Why should we then believe their bland negation? It is also sad that while our government is facilitating the US army to trace remains of their ww-ii casualties, and Bangladesh to retrieve DNA samples of their ’71 war dead, it does little to follow up leads like this which can help us find our still alive PoWs.”
In fact, on the insistence of the MDPRA, the government formed a tri-service committee for missing defence personnel headed by a vice-admiral a little over a year ago. However, as Simi points out, “It has almost no teeth, hardly ever meets and has not been provided the means to investigate leads like this one. It has not made any effort to get in touch with the next-of-kin like us, who have collected evidence over the years. Even now, it is we who have on our own informed them about Sepoy Jaspal Singh. They do not even have the report compiled by us after our 2007 visit to Pakistan.”
Sukhdev, meanwhile, goes about earning his living, oblivious to the import of his testimony. Jas Uppal, a US-based human rights lawyer, who has taken up the case of Sarabjit Singh, the Indian spy on death row in Pakistan, and shot off letters to the United Nations, Amnesty International and Human Rights Watch about the existence of Jaspal, said of Sukhdev, “He is an international witness, whose safety is the duty of the Indian government. He has brought evidence of a war crime and needs to be protected.” Is anyone listening?


गुरुवार, 16 अगस्त 2012

एक था टाइगर बनाम ‘’ब्‍लैक टाइगर’’


एक था टाइगर बनाम ‘’ब्‍लैक टाइगर’’ 


रविन्‍द्र कौशिक (1952-2001)  ‘’ब्‍लैक टाइगर’’ पूर्व रॉ एजेन्‍ट



वर्ष 11952  में श्री गंगानगर में रविन्‍द्र कौशिक का जन्‍म हुआ था। वे उम्‍दा कलाकार थे । राष्‍ट्रीय स्‍तर के नाट्य प्रतियोगिता में वे भारत की खुफिया एजेंसी के संपर्क में आए । उन्‍होंने 23 वर्ष की आयु में स्‍नातक की शिक्षा पूर्ण की। तदुपरान्‍त वे भारतीय खुफिया एजेंसी से जुड़  गए । 

वर्ष 1983 में वे पकड़ लिए गए तथा उन्‍हें मृत्‍यु दंड की सजा सुनाई गई किन्‍तु बाद में उसे बदलकर आजीवन कारावास में बदल दिया गया । भारत अपने बचाव में पाकिस्‍तान एवं चीन से युद्ध लड़ चुका था । इस बीच भारतीय एजेंसियों का ज्ञात हुआ कि पाकिस्‍तान भारत के खिलाफ पुन: युद्ध की तैयारी कर रहा है। ऐसे में रविन्‍द्र कौशिक को भारतीय सेना ने रॉ की मदद से जासूस बनाकर पाकिस्‍तान पहुँचा दिया।

वहॉं रविन्‍द्र कौशिक ने लॉ कॉलेज में एडमिशन ले लिया तथा विधि शास्‍त्र में स्‍नातक की शिक्षा पूर्ण करने के उपरान्‍त उर्दू का अध्‍ययन किया । शिक्षा पूर्ण करने के उपरान्‍त वे पाकिस्‍तानी सेना में अफसर के रूप में जुड़ गए और उन्‍हें ‘’मेजर’’ रैंक तक पदोन्‍नति मिली। पाकिस्‍तान में उन्‍हें एक स्‍थानीय लड़की से प्‍यार हुआ और उन्‍होंने उससे शादी कर ली । पाकिस्‍तान में वे ‘’नबी अहमद’’ नाम से जासूसी करते थे। उन्‍हें रॉ में ‘’ब्‍लैक टाइगर’’ के नाम से जाना जाता था। कुछ लोग कहते हैं कि उन्‍हें यह नाम तत्‍कालिन गृह मंत्री एस.बी. चव्‍हान द्वारा दिया गया था जबकि कुछ लोगों का कहना था कि यह सम्‍मान उन्‍हें भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गॉंधी ने दिया था।

वर्ष 1979 से 1983 के दौरान वे पाकिस्‍तानी फौज़ में रहे तथा उपने कार्यकाल के दौरान उन्‍होंने रॉ के द्वारा बहुत सारे महत्‍वपूर्ण खुफिया सूचनाएं पहुँचाई जो कि भारतीय रक्षा एजेंसियों के लिए काफी लाभप्रद रहीं। इस जोखिमपूर्ण कार्य के दौरान दुर्भाग्‍यवश वे पाकिस्‍तानियों द्वारा पकड़ लिए गए । पाकिस्‍तानियों ने उन्‍हें जेल में डालकर बर्बर यातनाएं दी । वर्ष 1985 में उन्‍हें मौत की सजा सुनाई गई जिसे बाद में बदलकर आजिवन कारावास कर दिया गया। कौशिक  को पाकिस्‍तान के कई जेलों में रखा गया जहॉं उन्‍हें अमानवीय यातनाएं दी गई जिसके बारे में उन्‍होंने किसी तरह पत्र भेजकर यहॉं के लोगों बताया। राविन्‍द्र कौशिक ने 18 वर्ष पाकिस्‍तानी जेल में सजा भोगी जहॉं उन्‍हें अस्‍थमा तथा क्षय रोग ने जकड़ लिया । 21 नवम्‍बर, 2001 को  मियावली जेल में उनकी मृत्‍यु हो गई । जेल के पीछे ही उन्‍हें दफना दिया गया।  

प्रतिकूल परिस्थितियों में 30 वर्ष तक पाकिस्‍तान में अपने देश व घर बार  से दूर मात्र अपने राष्‍ट्र अर्थात भारत के लिए रहे। उनकी खुफिया रिपोर्ट के आधार पर बनाए गए रणनीति के आधार पर भारतीय सेना पहलगाम में 50 से अधिक पा‍किस्‍तानी सेना के लोगों को मारने में सफल रहीं ।

वर्तमान में बालीबुड की बहुचर्चित फिल्‍म ‘’ एक था टाइगर’’ रविन्‍द्र कौशिक पर ही आधारित है ऐसा लोगों का कहना है। सत्‍य चाहे जो भी हो किन्‍तु हमें ज्ञात है कि असली टाइगर कोन था । ऐसे भारत माता के वीर सपूत को मेरा शत-शत नमन । रविन्‍द्र एक सच्‍चे देश भक्‍त थे जिन्‍होंने राष्‍ट्र की सेवा के लिए अपने अस्त्तिव को मिटा दिया और गुमनामी के अंधेरे में खो गए।
सादर एवं मेना कोटि –कोटि प्रणाम ।


मंगलवार, 3 जुलाई 2012

स्‍वयं बनाएं डिजिटल डिक्शनरी


स्‍वयं बनाएं डिजिटल डिक्शनरी

भाषा की व्‍यापकता व विकास में शब्‍दकोश के महत्‍व को नकारा नहीं जा सकता है। वर्तमान में डिजिटल शब्‍दकोश का चलन बढ़ाता जा रहा है। इसी क्रम में कई ब्‍लागर समूह, भाषाविद् व प्रोग्रामरों ने मुक्‍त स्रोत के रूप में कई नि:शुल्‍क ऑन लाइन एवं ऑफलाइन शब्‍दकोश इन्‍टरनेट पर अपलोड कर दिए हैं। इस अंक में सिम्पल डिक्शनरी एप्लिकेशन द्वारा शब्‍दकोश बनाने की विधि के संबंध में जानकारी प्रस्‍तुत है।

एस.डी.ए. क्‍या है ?

एस.डी.ए. अर्थात सिम्पल डिक्शनरी एप्लिकेशन (SDA) एक बेहतरीन मुफ्त और मुक्त स्रोत डिक्शनरी प्रोग्राम है। इसका इंटरफेस अत्‍यन्‍त सरल है तथा इसे क्रॉस प्‍लेटफार्म आधार पर तैयार किया गया है जिससे यह विंडोज तथा लिनेक्‍स दोनों ही ऑपरेटिंग सिस्‍टम पर कार्य करने में सक्षम है।

सहायक सॉफ्टवेयर
इस शब्‍दकोश के .exe  एक्‍स्‍टेंशनयुक्‍त फाइल को रन करने हेतु निम्‍नानुसार अपने कम्‍प्‍यूटर में सहायक सॉफ्टवेयर का इन्‍स्‍टॉलेशन सुनिश्चित करें:-

sda_c#.exe एक्‍स्‍टेंशनयुक्‍त फाइल रन करने हेतु  
डॉट नेट फ्रेमवर्क
sda_java.jar एक्‍स्‍टेंशनयुक्‍त फाइल रन करने हेतु  
जावा रनटाइम ऍन्वायरनमेंट
 
इन्‍स्टॉलेशन
किसी भी डिजिटल शब्‍दकोश के 02 भाग होते हैं। प्रथम एप्लिकेशन तथा द्वितीय डेटा फाइल। अत: यूज़र http://epandit.shrish.in/576/simple-dictionary-application-review-and-download/ लिंक से शब्‍दकोश हेतु वॉंछित एप्लिकेशन अर्थात sda.zip फाइल अपने सिस्‍टम में डाउनलोड कर अनजिप कर लें।

अब अनजिप हुए sda फोल्‍डर में .exe एक्‍स्‍टेंशनयुक्‍त क्रमश: sda_c#.exe, sda_delphi.exe तथा sda_java.jar नाम की फाइलें बनी पाएंगे। ऐसा होने के साथ ही आपके कम्‍प्‍यूटर सिस्‍टम में शब्‍दकोश हेतु आवश्‍यक एप्लिकेशन संस्‍थापित हो जाएगा। तत्‍पश्‍चात https://sites.google.com/site/technicalhindi/files/Pustak.org_Hindi_SDA_Dict_v1.0.7z?attredirects=0 लिंक से  Pustak.org_Hindi_SDA_Dict_v1.0.txt तथा https://sites.google.com/site/technicalhindi/files/CSTT_Technical_Glossary_English-Hindi_SDA_Dict_v1.0.7z?attredirects=0 डेटा फाइल डाउनलोड करके sda फोल्‍डर में विद्यमान data फोल्डर में सेव कर दें। इसी प्रकार .txt एक्स्‍टेंशनयुक्‍त अंग्रेजी-फ्रॉंसीसी, अंग्रेजी -पूर्तगाली व अन्‍य शब्‍दकोशों को भी डाउनलोड कर पूर्वोक्‍तानुसार data फोल्डर में सेव कर उनका प्रयोग किया जा सकता है।    

उपयोग विधि
कम्‍प्‍यूटर में इन्‍स्‍टॉल किए गए सहायक सॉफ्टवेयर अनुसार sda_c#.exe अथवा sda_java.jar एक्‍स्‍टेंशनयुक्‍त फाइल को माउस से क्लिक करें। ऐसा होते ही स्‍क्रीन पर सिम्पल डिक्शनरी एप्लिकेशन पॉप-अप विंडो के रूप में ओपन हो जाएगा। अब इस विंडो में Dictionary के सम्‍मुख विद्यमान ड्रॉप डाउन मेन्‍यू को क्लिक कर विविध शब्‍दकोशों की सूची से अपनी पंसद क शब्‍दकोश का चयन कर लें। तदुपरान्‍त दॉंई ओर बने सर्च बॉक्‍स में उस शब्‍द विशेष को टाइप कर सर्च प्रेस बटन को माउस से क्लिक कर दें। ऐसा करते ही शब्‍द विशेष का अर्थ व उससे संबंधित विविध पदबंध एवं उनके अर्थ भी प्रदर्शित हो जाएंगे।

नोट
ध्‍यान देने योग्‍य तथ्‍य है कि sda_delphi.exe एक्स्‍टेंशनयुक्‍त फाइल में केवल अंग्रेजी-फ्रॉंसीसी, अंग्रेजी-पूर्तगाली आदि विदेशी शब्‍दकोश की फाइलें रन होती हैं किन्‍तु sda_c#.exe तथा sda_java.jar एक्स्टेंशनयुक्‍त फाइलों में अंग्रेजी से हिन्‍दी तथा हिन्‍दी से हिन्‍दी शब्‍दकोश सहजता से रन होता है।

स्‍व निर्मित डेटा फाइल जोड़ना

डाउनलोड किए गए .txt एक्स्टेंशनयुक् डेटा फाइल को नोटपैड आदि किसी भी टेक्स्ट एडिटर प्रोग्राम में खोला, देखा, अद्यतन तथा संशोधित किया जा सकता है नवीन शब्‍दकोश तैयार करने के लिए एक्‍सेल शीट के एक कॉलम में शब्‍द तथा उसके समानांतर दूसरे कॉलम में उक्‍त का अर्थ, पदबंध व वाक्‍यांश टाइप कर सेव करें। अब दोनों कॉलमों को सिलेक्‍ट व कॉपी कर नोटपैड में पेस्‍ट कर दें। तदुपरान्‍त नोटपैड के फाइल तथा सेव ऐज मेन्‍यू को माउस से क्लिक करें। ऐसा करते ही सेव ऐज डायलॉग बॉक्‍स ओपन हो जाएगा जिसमें क्रमश: फाइल नेम, सेव ऐज टाइप तथा एन्‍कोडिग कामांड के सम्‍मुख बने ड्रॉप डाउन मेन्‍यू को माउस से क्लिक कर फाइल नेम, .txt एक्स्टेंशन तथा अपेक्षित एन्‍कोडिंग दे दें। आखिरी चरण में फाइल को sda फोल्‍डर के अन्‍दर बने data फोल्‍डर में सेव कर दें। उल्‍लेखनीय है कि यदि टेक्‍स्‍ट फाइल के अन्‍दर विद्यमान डेटा केवल अंग्रेजी में है तो टेक्‍स्‍ट फाइल की एन्‍कोडिंग अनिवार्यत: ANSI देनी होगी। उदाहरण के लिए अंग्रेजी से अंग्रेजी तथा अंग्रेजी से अन्‍य विदेशी भाषाओं के शब्‍दकोश हेतु निर्मित डेटा फाइल। इसके विपरीत यदि अंग्रजी से हिन्‍दी या हिन्‍दी से हिन्‍दी अथवा अन्‍य भारतीय भाषाओं के लिए निर्मित डेटा फाइल हेतु फाइल एन्‍कोडिंग अनिवार्यत: UTF-8 देनी होगी। अब उपरोक्‍त दर्शाए गए प्रयोग विधिनुसार यूज़र स्‍वयं द्वारा बनाए शब्‍दकोश का उपयोग करने में सक्षम हो जाएगा।
 लाभ
इस फाइल को सिम्पल डिक्शनरी एप्लिकेशन के साथ प्रयोग करने के कुछ लाभ निम्‍नानुसार हैं :-  
1) खोज की गति अत्यन्त तेज है। क्लिक करते ही सभी शब्दार्थ प्रदर्शित हो जाते हैं।

2) वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली अयोग की साइट पर 'पूरा शब्द' देना पड़ता है। यहाँ शब्द का कुछ भाग देने से भी अपेक्षित शब्‍दार्थ प्रदर्शित हो जाता है।

3) एक ही सर्च बॉक्‍स में अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी के शब्द सर्च करने की सुविधा है। यह टूल हिन्दी इंडिक आई.एम.ई. सहित अन्‍य आई.एम.ई. के अनुकूल है।

4) वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली अयोग की साइट पर 'हलंत्' युक्त शब्द सही नहीं प्रदर्शित होते हैं। (जैसे  'युद्ध' के बजाय 'युद्  धआता है।) इसमें सभी को सुधार दिया गया है।

5)  इस टेक्स्ट फाइल का उपयोग करके वैज्ञानिक शब्दावली का विभिन्न प्रकार से 'पाठ विश्लेषणकिया जा सकता है जिससे इसे सुधारने आदि के विषय में अन्तर्दृष्टि मिल सकेगी। उदाहरण के लिये इंटरनेट पर अंग्रेजी-जर्मन, फ्रांसीसी-जर्मन, रूसी-जर्मन आदि शब्दावलियाँ उपलब्ध हैं। उनके सापेक्ष हिन्दी शब्दावली में पारिभाषिक शब्द-चयन की तुलना की जा सकती है और सुधार की दृष्टि से कदम उठाये जा सकते हैं।