सोमवार, 29 जून 2009

दारू पीते मर्द

दारू पीते मर्द


तन धन इज्‍जत बबार्द करे, जो दारू पीते मर्द ।
बच्‍चों की चिन्‍ता न हो , ना समझे घरवालों का दर्द ।।
घरवालों का दर्द , उसकी रोज पिटाई करता ।
घर में देवे न एक पैसा, पति होने का दम भरता ।।
बाल मेवाती कहे , वह दिल ही दिल में रोती।
दिन भर खटती घर के काम , रात को भूखी सोती।।

देख पिता को दारू पीते, बच्‍चे जाते डर।
अनाप-श्‍नाप बकता फिरे, जो करना है सो कर।।
करना है सो कर, उल्‍टे - सीधे कर्म है करता ।
सुबह होश आने पर, अपनी करनी से मुकरता।।
बाल मेवाती कहे, नित मधुशाला में जाए।
बच्‍चे घर में भूखे सोते,यह दारू में रकम उड़ाए।।

लाखों के घर दोस्‍तों , दारू किए बर्बाद।
इसको गले लगाकर, कौन हुआ आबाद ।।
कौन हुआ आबाद, जब बाप ही गलत कर्म करता ।
बड़ा होकर बेटा भी, उसी राह पर चलता।।
बाल मेवाती कहे, इनको आकर कौन समझाए।
अपनी बर्बादी के खुद मालिक, किसको दोष लगाए।।

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