बुधवार, 14 जुलाई 2010

मुलगी

मुलगी


आज मेरी बेटी एक माह की हो गई है। रूई की फोहों के माफिक नरम , नाजुक .....। ठीक एक माह पूर्व 10 जून, 2010 को मैं अपने कार्यालय में बैचेन बैठा था । काम में मन नहीं लग रहा था, बस नाम के लिए डाक में आयी प्रविष्‍टयॉं देख रहा था कि अचानक फोन की घंटी बज ऊठी। मैंने रिसिवर ऊठाया, दूसरी तरफ मेरी पत्‍नी की बैचेनी भरी आवाज थी ‘’आ, जाइए । अस्‍पताल जाना पड़ सकता है। ’’ अब मेरे लिए एक पल भी ठहरना मुश्‍किल हो रहा था। मैं सीधे अपने समूह अधिकारी के पास गया तथा उनसे आउटपास पर जाने की अनुमति मॉंगी।
जब तक मैं घर पहुँचा पाता तब तक मेरी भाभी व माताजी अपनी बहु को अस्‍पताल में ले आ चुकी थीं। मैं तेजी से अश्विनी अस्‍पताल पहुँचा। चूँकि वहॉं की स्‍त्रीरोग विशेषज्ञ और उनके पति डॉ.महेश्‍वरी हमारे फैमिली डॉक्‍टर हैं अत: मेरी पत्‍नी को तत्‍काल अटेन्‍ड किया । स्‍त्रीरोग विशेषज्ञ ने मेरी पत्‍नी की जॉंच की और मुझसे कहा ‘’ क्‍या चाहिए ? मैं चुप रहा। इस पर उन्‍होंने कहा कि ऐसा लगता है इस बार भी तुम्‍हें लड़का होगा । मैं कुछ कह नहीं पाया, मुझ पर इस कथन का कोई प्रभाव  नहीं हुआ क्‍योंकि मेरी पत्‍नी की स्‍वास्‍थ्‍य की चिंता लगी हुई थी। । 

तब तक मेरे पिताजी और अन्‍य परिजन आ चुके थे। ऑपरेशन संबंधी स्‍वीकृति पत्र पर मेरा हस्‍ताक्षर लिया गया और मेरी पत्‍नी को ऑपरेशन थिएटर ले जाया गया। मेरी बैचेनी बढ़ती जा रही थी पर मैं इसे अपने पर हावी नहीं होने देना चाहता था इसलिए थिएटर के गलियारे में चहलकदमी करने लगा। गलियारे में मेरी नजर एक बुजुर्ग व्‍यक्ति और उसके साथ खड़े मेरे हमउम्र युवक पर गई, वे मराठी भाषा में कुछ बोल रहे थे। मैंने उन्‍हें कई बार देखकर भी  अनदेखा किया।

  इस बीच ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा खुला और नर्स ‘’मुलगी, मुलगी’’  कहते हुए बाहर आयी, बस फिर क्‍या था सभी परिजन उसे देखने के लिए उमड़ पड़े । कोई कहने लगा, ‘’मॉं के ऊपर गई है, कोई कहता भाई पर गई है।‘’ मैंने उसे देखा और खुशी से बोल पड़ा अच्‍छा हुआ मुझ पर नही गई है। इस बीच टेलीफोन के माध्‍यम से बधाई देने का कार्यक्रम शुरू हो गया । लगभग 01:30 घण्‍टे बाद मुझे फुर्सत मिली तो निर्माणी में पंच इन करने की याद आयी । पंच इन करने के लिए मैं अस्‍पताल के गलियारे से निकल ही रहा था कि उस बुजुर्ग ने मुझे आवाज दी, ‘’ ए, काय झाला (ए, तुझे क्‍या हुआ) ? 
    
मैंने हँसते हुए जवाब दिया, ‘’मुलगी (लड़की)’’ । इतना सुनना था कि वह बुर्जुग व्‍यक्ति उसके साथ खड़े नवयुवक से जोर से कहने लगा ‘’बग, त्‍याला पन मुल्‍गी झाली आहे, तो कती खुश आहे (देख, उसके भी लड़की हुई है वह कितना खुश है)।’’ पर वह नवयुवक अब भी अप्रसन्‍न मुद्रा में खड़ा था। मुझसे रहा नहीं गया मैंने पूछ लिया ‘’कौन हैं ये ? इतना सुनना था कि वह व्‍यक्ति बोल पड़ा ‘’ यह , मेरे दामाद है तथा सांगली में पुलिस उप निरीक्षक के रूप में तैनात हैं। मेरी नातू हुई है।

उस उप निरीक्षक के हाव-भाव से मैं समझया था कि वह बेटी के जन्‍म से खुश नहीं है। उस पढ़े लिखे बेवकूफ को दखकर मेरा क्रोध बढ़ता जा रहा था , चूँकि वह हमउम्र ही लग रहा था इसलिए मैंने उसके कंघे पर हाथ रखते हुए अपने साथ आगे ले आया और कहा कि ‘’दोस्‍त, दुनिया में हर आदमी को लड़का या लड़की ही पैदा होता है । कुछ बदनसीबों को बीच वाले पैदा होते हैं, भगवान का शुक्र मना कि तुझे लड़की पैदा हुई, ‘’बीच वाला’’ नहीं , क्‍योंकि यदि ऐसा होता तो तुम्‍हें क्‍या हुआ इस प्रश्‍न का उत्‍तर देने के लिए क्‍या तुम यहॉं ठहर पाते ?

मैं अपना काम कर दिया था । उसे छोड़ कर बिना पीछे मुड़े मैं अपनी निर्माणी की ओर बढ़ चला । 




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