बुधवार, 1 दिसंबर 2010

बस एक प्रिंस विलियम दे देना..........


बस एक प्रिंस विलियम दे देना..........

मैं रात सो नहीं पाया, इसलिए नहीं कि मेरे दोस्‍त की पत्‍नी को हास्पिटलाइज करना पड़ा बल्कि उस सर्द रात में उस बच्‍चे की ठिठुरन में अपने बच्‍चे कि कल्‍पना से मेरा दिल कॉंप उठा। कल रात भोजन के बाद अपने दोस्‍त के साथ करीबन 11:00 बजे गप्‍पे हॉंक रहा था। उसी वक्‍त मोबाइल का रिंगटोन बजा और दौस्‍त को संदेश मिला कि उसकी भाभी का मिसकैरिज हो गया है और उसे तत्‍काल अस्‍पताल ले जाना होगा।

अगले पल हम दोनों उसके घर की ओर निकल पड़े । घर में अफरातफरी का माहौल था । किसी तरह हम अस्‍पताल पहुँचे। संयोगवश किसी एमरजेन्‍सी केस में सिलसिले में डॉंक्‍टर अब भी अस्‍पताल में ही थी। उसने परीक्षण किया और बतलाया की घबराने की बात नहीं मिसकैरिज नहीं हुआ है किन्‍तु क्‍लोज आवजरवेशन में पेशंट को रखना होगा। हमने चैन की सांस ली और आवश्‍यक व्‍यवस्‍था करके घर की ओर निकल पड़े। अब तक रात के 12:30 बज चुके थे।

ठंड काफी थी। ठंड के मारे मेरे हाथ हैंडल पर जमे प्रतीत हो रहे थे और मैं बस किसी तरह अपने घर पहुँचना चाहता था। मुझे याद नहीं कि इस दौरान हम दोनों ने शायद ही कोई बात की । अब हम लोग अपने घर के करीब आ चके थे, एकाएक मेरी नजर सड़क के किनारे हुई हलचल की ओर गई। मैंने गाड़ी को ब्रेक लगाया और सड़क के किनारे दुकान के आगे खाली जगह पर बिन बिस्‍तर लेटे मॉ-बच्‍चे पर मेरी नजर ठहर गई। ठंड के मारे बच्‍चा ठिठुर रहा था । बच्‍चे की इस दशा से मॉं भी अनभिज्ञ नहीं थी। वह उसे गर्म रखने के लिहाज से अपने पेट से चिपकाए हुए थी।

अब तक उसकी नजर हम लोगों पर पड़ चुकी थी। हमें दखते ही वह घबराते हुए सिकुड़ कर बैठ गई और धीरे-से गिड़गिड़ाते हुए बोल पड़ी ‘’सेठ, मेरेको मालुम है यह आपका दुकान है। मैं कुछ नहीं करूँगी। सुबह को चले जाऊँगी। जाने से पहले यहॉं साफ-सफाई कर दूँगी। बस, मुझे यहॉं सोने देना। आपकी मेहरबानी होगी। हमारा कोई घर नहीं है।, सेठ मेहरबानी करना.........’’ वह बोले जा रही थी। और मुझे हमारे महान नेता कि कुछ दिनों पहले दी गई भाषणों के अंश याद आ रहे थे ‘’हमारा वादा है कि हम गरीबी हटा देंगे और हर गरीब को ............ आवास योजना के तहत एक घर देंगे। बस इस बार हमें अपना बहुमूल्‍य वोट देकर मुझे जीता दीजिए..........।’’ इस बीच मेरी चेतना उस अबोध बालक के रोने की आवाज से टूट गई। शायद उस पर ठंड ने अपना प्रभाव दिखा दिया था। इस सबसे बेखबर वह औरत अब भी गिड़गिड़ा रही थी।

मेरे दोस्‍त दिलिप ने कहा ‘’अरे हम सेठ-वेठ नहीं है, डर मत !’’ दिलिप ने मेरी ओर देखते हुए अपने वैलेट से दो सौ रूपये निकाल कर उसे दिया । मैंने भी सौ रूपए निकाले और उसकी और बढ़ा दिए । पर वह अब भी बोले जा रही थी । ‘’सेठ, मुझे यहॉं से मत हटाओ......मेरा बच्‍चा........ ।’’ हमने उसे रूपए दिए पर वह तो उसे लेने को तैयार नहीं थी । हमने जोर दिया तो पर उसने रूपए नहीं थामे। इस पर मैंने रूपए उसके बच्‍चे पर रख दिया और उसके लिए स्‍वेटर लेने को कहा । वह अब घबराकर रूपये यह कहते हुए लौटाने लगी कि ‘’साहब, मैं पागल हूँ । मुझे कुछ मालुम नहीं, यह पैसा ले लो (शायद हम दानों की उम्र देखकर उसे किसी और डर की आशंका होने लगी थी।) हमारा घर नहीं है इसलिए रात को इस दुकान के आगे आकर रहती हूँ और सुबह काम करने जाती हूँ। मैं कपड़ा कहॉं रखूँ। यहॉं रखती हूँ तो दुकानदार नाले में फेंक देता है। आप अपना पैसा ले लो।‘’ अब तक हम लोग अपनी बाइक आगे बढ़ा चुके थे। बाइक का पहिया आगे बढ़ रहा था पर मेरा दिलो-दिमाग बहुत पहले ‘’नवभारत’’ मे छपी प्रिंस विलियम्‍स के खबर पर जा टिका था। खबर थी कि "प्रिंस विलियम्‍स" ने ब्रिटेन में इसी तरह रात बाहर बिताने वालों की तकलीफों का अनुभव करने तथा उनके लिए कुछ करने के लिए बिना बताए एक रात बाहर बेसहारा लोगों के साथ फुटपाथ पर सो कर गुजारी।

मैं अब भगवान से प्रार्थना करने लगा । हे भगवान ! यदि तू मेरे देश के लिए कुछ करना ही चाहता है तो बस अब मेरे देश को खादी वाले नेता नहीं, बस एक प्रिंस विलियम दे देना..........।