इंडिया 2020
मैं वैसे तो
बहुत ही बातूनी किस्म का आदमी रहा हूँ और लम्बी रेल यात्राओं के दौरान जब 02-02
दिन रेल में बैठे रहने के अलावा मेरे पास कोई काम नहीं रहता है तो मजबूरी में या
यों कहे कि आदतन सह यात्रियों के साथ
वार्ता करना ही पड़ता है। मैं बेतकल्लुफ होकर सह यात्रियों के साथ बातें करता
हूँ। कुछ उनकी सुनता हूँ और बहुत कुछ अपनी बताता हूँ। मेरी इस आदत पर बीवी कुढ़ती
है और मुझे समझाने की लाख कोशिश करती है कि सह यात्रियों के भेष में जहरखुरानी
गिरोह के लोग भी होते है और आप निश्चितं होकर अनजान लोगों से बातें करते हैं उनके
द्वारा दिए गए खाने को खा लेते हैं। मेरी इस हरकत को वह कई बार अपनी सासूजी के
सामने ऊजागर भी कर चूकी है जिससे मेरी कानखिचाई भी हो चुकी है। इस बार पूर्वोत्तर
से लौटते समय बीवी ने ट्रेन में सह यात्रियों से संयमित वार्ता करने संबंधी शर्त मुझ
पर लाद दी ओर मैंने भी शर्त की स्वीकारोक्ति दे दी।
निर्धारित
तिथि को सपरिवार रेलवे स्टेशन पर पहुँच गया। मुझे अपने शर्त पर खरा उतरना था
इसलिए मैंने एक नायाब तरीका निकाल लिया था। अपने आप को व्यस्त रखने के उद्देश्य
से मैने बुक स्टाल से पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. कलाम द्वारा लिखित ‘’इंडिया
2020’’ पुस्तक खरीद ली और सपरिवार अपने बर्थ पर कब्जा जमा लिया।
अपने परिवार को व्यवस्थित कर मैं पुस्तक पढ़ने लगा। इस बीच हमारे सामने वाली
बर्थ पर बैठे युवा दम्पति ने मेरे बच्चों के साथ दोस्ती कर ली, बच्चे उनसे
बातें करने लगे। मेरी श्रीमतीजी भी उनसे बातें करने लगी। औपचारिकतावश मैंने उनसे
एक-दो बातें की और किताब पढ़ने में लग गया क्योंकि मुझे हर हाल में इस बार शर्त
जीतनी जो थी। इस बीच श्रीमती जी और उस दम्पति के बीच बातें होती रहीं तथा मुझे
ज्ञात हुआ कि वे अपने पिताजी को लेकर मुम्बई स्थित टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल
इलाज के लिए जा रहे हैं।
मैंने ‘’इंडिया
2020’’ किताब शर्त जीतने के उद्देश्य से पढ़ना आरंभ किया था किन्तु
अब मैं उस किताब में महामहिम द्वारा लिखित भारत की गौरवपूर्ण उपलब्धियों तथा भविष्य
के ‘’विश्वशक्ति
भारत की योजनाओं’’ में खोने लगा था। अब मुझमें उस किताब की हर पक्ति को पढ़ने की
भूख सवार हो चुकी थी, मैं बस उस किताब को हर हाल में पढ़ना चाहता था। बीच में कई
बार पत्नी ने भोजन करने का आग्रह भी किया। इस पर मैंने उन्हें भोजन कर लेने के
लिए कह दिया। उस किताब ने मुझे उत्साह से इस कदर सराबोर
कर दिया कि मेरी भूख समाप्त हो गई। मैं किताब पढ़े जा रहा था। इस बीच कुछ हो-हल्ला
होने लगा। मैंने उत्सुकतावश परदा हटाया तो ज्ञात हुआ कि पटना स्टेशन आ गया है और
आगे लाइन पर मेन्टनेस कार्य चल रहा है। मैं
चहलकदमी करने के लिए स्टेशन पर उतर गया। मुझे कुछ पीने की इच्छा और मैं कॉफीशॉप
की ओर बढ़ा ही था कि मेरी बर्थ के साथ यात्रा कर रहे महोदय 02 कुल्हड़ के साथ
मुस्कुराते हुए प्रकट हो गए। मैंने भी धन्यवाद देते हुए एक कुल्हड़ धर लिया और फिर
बातचीत शुरू हो गई। इस दौरान स्टेशन पर बहुत सारे लोग बैठे दिखाई दिए। कुछ लोग
अपनी गाड़ी के इंतजार में ऊँघ रहे थे। कुछ लेटे हुए थे। इनमें से कुछ तो यात्री थे
पर कुछ प्लेटफार्म पर ही जिन्दगी बसर करने वाले लग रहे थे।
इस दौरान चाय
की चुस्कियों के साथ हमारी बातचीत बदस्तुर जारी थी। मैंने घड़ी पर नजर दौड़ाई।
रात के 11:45 बज गए थे। इस बीच मैंने एक व्यक्ति को प्लेटफार्म पर टहलते देखा जो
टकटकी लगाए हुए हमे देख रहा था। उसके हावभाव से वह मजदूर लग रहा था। इस बीच सिग्नल डाउन हो गया और हम लोग बोगी के
दरवाजे पर खड़े हो गए। ट्रेन मंथर गति से आगे बढ़ने लगी कि अचानक वह मजदूर हमारे
पास आया और भोजपूरी में कहने लगा ‘’साहब, तीन दिन से खइले नाहीं बाणीं, आप
जउन चाय पियत बाणीं उ थोड़ा छोड़ देई। हम पियब।‘’ (साहब, तीन
दिन से खाना नहीं खाया हूँ। आप जो चाय पी रहे हैं उसे थोड़ा छोड़ दीजिए, मैं पी
लूँगा।) मैं हतप्रभ हो गया। मैंने उसे चाय के लिए पैसे की पेशकश की पर उसने पैसे
लेने से इंकार कर दिया। अंतत: मैंने जबरदस्ती उसे 10 रूपए दिए और बर्थ पर बैठ
गया।
मैने महसूस
किया कि ‘’इंडिया 2020’’ मुझे मुँह चिढ़ा रही है।