सोमवार, 26 जुलाई 2010

ई-मेल से संदेश का प्रेषण

ई-मेल से संदेश का प्रेषण

ई-मेल भेजने की प्रक्रिया बहुत सहज है । सर्वप्रथम माउस से इन्‍टरनेट एक्सप्लोरर ओपन करें तथा वांछित साइट पर लॉग ऑन करें । अब ई-मेल आई.डी. एवं पासवर्ड अपेक्षित स्थान पर टाइप कर ''ओ.के.'' पर सिलेक्‍ट  कर दें। ऐसा करते ही आपका ई-मेल एकाउन्‍ट ओपन हो जाएगा।   
        बहुत संभव है कि आपने जिस फॉन्ट में संदेश टाइप किया है वह उस व्यक्ति के पास न हो जिसे आप संदेश भेजना चाह रहे हों । ऐसी स्थिति में हम उस फॉन्ट जिसमें संदेश टाइप किया गया है को उपयोगकर्ता की सुविधा हेतु मेल द्वारा संदेश सहित भेज सकते हैं । आजकल तो अधिकांश सॉफ्‌टवेयर कम्पनियों ने हिन्दी  ई-मेल भेजने में आसानी हो इसलिए अपने सॉफ्‌टवेयर अर्थात वेब ब्राउज़ में ही यूनिकोड एन्‍कोडिंग में टाइपिंग की सुविधा उपलब्‍ध करवाई है।
 


एटैचमेन्ट प्रक्रिया

ई-मेल में  एटैचमेन्ट  के रूप में  वर्ड, एक्‍सेल, पी.पी.टी. अथावा मीडिया फाइल भी भेजने की व्‍यवस्‍था है।  कई बार हमें पावक अ‍र्थात जिसे ई-मेल संदेश भेज रहे होते हैं को हार्ड डिस्‍क में संचित की हुई बड़ी फाइलें भी भेजनी पड़ सकती हैं। इसे  ई-मेल एटैचमेन्ट  के रूप में सहजता से प्रेषित किया जा सकता है। इसके लिए उपर्युक्त अनुसार कम्पोस या न्‍यू विन्डो में संदेश टाइप कर लेने पर एटैच बटन क्लिक करें। तदुपरान्त एटैचमेन्ट विन्डो ओपन होगा, जिसमें आपके स्क्रिन पर एटैचमेन्ट हेतु विकल्प आएंगे जिसके अनुसार अब आप उस फाइल ,जिसमें आपने हिन्दी में संदेश  टाइप किया है, का पाथ टाइप अथाव ब्राउज बठन क्लिक कर एटैचमेन्‍ट के रूप में भेजे जानेवाले फाइल/फाइल्‍स को सिलेक्‍ट करें । उदाहरणः डीः/डाक्‍यूमेंट एण्‍ड सेटिंग/संतोष.doc । अब ओ.के. बटन सिलेक्‍ट  करें । ऐसा करते ही फाइल ''अपलोडिंग'' प्रक्रिया आरम्भ हो जाएगी । उक्त ''अपलोडिंग प्रक्रिया'' के समर्थन में पुष्टि  संदेश  स्क्रिन पर आने पर ''ओ.के.'' बटन को सिलेक्‍ट  कीजिए । तदुपरान्त ''डन'' बटन को भी सिलेक्‍ट  करें । ऐसा करते ही एटैचमेन्ट विन्डो बन्द हो जाएगा ।  ई - मेल भेजने के आखरी चरण के अन्तर्गत कम्पोस या न्‍यू पेज पर एटैच्ड फाइलों की सूची प्रदर्शित हो जाएगी।   

 अब''सेन्ड बटन सिलेक्‍ट  कर दें । उपर्युक्त विधि के प्रयोग से आप ई-मेल द्वारा संदेश भेज सकते   हैं ।  
        अब ''सेन्ड बटन क्लिक करते ही ई-मेल प्रेषित होने की पुष्टि स्‍वरूप एक नया विन्‍डो स्‍क्रीन पर प्रदर्शित हो जाएगा। 
          ई-मेल एकाउन्‍ट से संदेश भेजने के उपरान्‍त कभी साइन आउट करना नहीं भूलना चाहिए। माउस द्वारा ई-मेल एकाउन्‍ट के ऊपर बने साइन आउट प्रेस बटन को क्लिक कर अपना एकाउन्‍ट क्‍लोज किया जा सकता है।   
              

ई – मेल एकाउन्‍ट कैसे तैयार करें


ई – मेल एकान्‍ट कैसे तैयार करें 
     नित नई वैज्ञानिक प्रगति के कारण रोजाना नए - नए यांत्रिक उपकरणों का आविष्‍कार हो रहा  है । इसका लाभ राजभाषा  के प्रचार - प्रसार के रूप में भी दिखाई दे रहा है । उदाहरण के लिए टाइपराटर मशीन को ही लीजिए। दो दशक पहले तक इसका प्रयोग खुब होता था किन्तु अब इसका स्थान कम्प्यूटर ने ले लिया है इससे लाभ यह हुआ कि अब टंकण तथा अन्य गम्भीर त्रुटियों को सुधारने के लिए हमें पुनः दस्तावेज को टाइप नहीं करना पड़ता है । ऐसा करने के लिए मात्र हमें संचित (सेव ) फाइल में आवश्‍यक  संशोधन करना होता है । इसके अतिरिक्त स्टेंसिल की प्रतियां तैयार करना मैन्यअल टाइपराइटर की अपेक्षा आसान हो गया है। इसके लिए डॉट  मैट्रिक्स प्रिन्टर में साधारण स्टेंसिल लगा कर कम्प्यूटर में उस दस्तावेज के लिए प्रिन्ट का आदेश देते ही प्रिन्टिर प्रिन्टिन्ग कार्य निष्‍पादित  कर देता है । संचार क्रांति के इस युग में अब संदेश  मात्र डाक तार से ही नहीं भेजे जाते हैं बल्कि इन्‍टरनेट,फैक्स मॉडम आदि जैसे अत्याधुनिक उपकरणों का बखुबी से प्रयोग होने लगा है । इस दिशा में केन्द्र सरकार तथा सभी प्रदेशों की राज्य सरकारें ई - गर्वनेन्स को बढ़ावा देने में प्रयासरत रहीं है । इसी क्रम में ई - मेल द्वारा संदेश  भेजने का चलन बढ़ गया है क्योंकि इससे भेजना बहुत सरल है तथा यह संचार के अन्य साधनों की अपेक्षा कम खर्चीला भी है । इसके अतिरिक्त एक अन्य कारण यह है कि इन्‍टरनेट द्वारा प्रेषित  संदेशों की गोपनीयता बरकरार रहती है क्योंकि इसके संचालन हेतु पासवर्ड की जरूरत पड़ती है ।
  


ई.मेल आई.डी बनाना


सर्वप्रथम किसी भी वेब ब्राउज़र अर्थात इन्‍टरनेट एक्‍सप्‍लोरर, औपेरा, मोजिला आदि को माउस से क्लिक कर ओपन करें तथा यू.आर.एल. में अपनी पसंद के अनुसार इन्‍टरनेट कम्‍पनी का साइट एड्रेस टाइप करें। यहॉं उदाहरण के लिए ओपेरा वेब ब्राउज़र को क्लिक कर याहू इन्‍टरनेट साइट में ई-मेल आई.डी. बनाया गया है।  ऐसा करते ही जिस कम्‍पनी के साइट का एड्रेस टाइप किया है उसका साइट ओपन हो जाएगा जिसमें ‘’क्रीएट न्‍यू एकाउन्‍ट’’ प्रेस बटन को माउस द्वारा क्लिक करें। 
 अगले चरण में प्रदर्शित वेबपेज पर क्रमश: नाम, लिंग, जन्‍मतिथि तथा देश आदि रिक्तियों को भर कर ‘’सिलेक्‍ट एन आई.डी. एण्‍ड पास’’ हेडिंग के अन्‍तर्गत अपनी पंसद व रूचि का ई.मेल. आई.डी. एवं पासवर्ड भर दें। यहा उदाहरण के लिए आई.डी. के रूप में freegupta2009 रखा गया है। उल्‍लेखनीय है पासवर्ड गोपनीय होता है तथा इसे किसी स्थिति में बताना नहीं चाहिए। अब ‘’इन केस यू फारगेट  आई.डी. ऑर पासवर्ड’’हेडिंग के अन्‍तर्गत वांछित जानकारियों को सिलेक्‍ट/टाइप कर दें। रजिस्‍ट्रेशन प्रक्रिया के आखिरी चरण में ‘’टाइप दि कोड शोन’’आगे विद्यमान रिक्‍त बॉक्‍स में नीचे प्रदर्शित अक्षरों को हुबहु टाइप कर दें। ध्‍यान रहे कि अक्षरों के कैपिटल एवं स्‍माल अक्षरों के अन्‍तर ई-मेल के पंजीकरण में बाधा उत्‍पन्‍न करते हैं। अत: इसे टाइप करने में पूर्ण सावधानी बरतनी चाहिए। उदाहरण के लिए यहॉं ‘’टाइप दि कोड शोन’’आगे विद्यमान रिक्‍त बॉक्‍स में नीचे प्रदर्शित अक्षरों rscBsBnB को हुबहु टाइप किया गया है। तदुपरान्‍त माउस से ‘’क्रीएट माय एकाउन्‍ट’’ प्रेस बटन को क्लिक कर दें। ऐसा होते ही आपका ई-मेल एकाउन्‍ट तैयार हो जाएगा तथा पुष्टि स्‍वरूप स्‍क्रीन पर नया वेबपेज प्रदर्शित हो जाएगा जिसमें संक्षेप आपके ई-मेल एकाउंट संबंधी जानकरी प्रदर्शित होंगी। अब उक्‍त वेबपेज पर विद्यमान कन्‍टीन्‍यूप्रेस बटन को माउस से क्लिक कर अपने ई-मेल इन-बॉक्‍स में जा सकते हैं।



शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

इन रोम डू ऐज रोमन डू


इन रोम डू ऐज रोमन डू


  बात उन दिनों की है जब मैं एम.ए. की परीक्षा उत्‍तीर्ण कर मैं मुम्‍बई विश्‍वविद्यालय के गरवारे इन्स्ट्टियूट में पत्रकारिता एवं जनसंचार का एक वर्षीय पी.जी डिप्‍लोमा कर रहा था। इस दौरान मैंने आयुध निर्माणी संगठन के मशीनी औजार आदिरूप निर्माणी, अम्‍बरनाथ में कनिष्‍ठ हिन्‍दी अनुवादक पद के लिए परीक्षा दी थी। चँकि मैं लिखित परीक्षा उत्‍तीर्ण हो गया था तथा मेरा साक्षात्‍कार भी बहुत अच्‍छा रहा था अत: मैं अपनी सफलता के प्रति बहुत ही आशान्वित था ।

हर दिन मैं नई उम्‍मीद के साथ सवेरे जागता और मन ही मन चयन पत्र पाने की कामना करता। इस दौरान मैं नियमित रूप से पत्रकारिता के क्‍लास में उपस्थित होता रहा। इसके लिए मुझे अप.04:00 बजे अम्‍बरनाथ से कुर्ला के लिए निकलना पड़ता था और गरवारे इन्स्ट्टियूट में शाम 06:00 बजे से रात 08:30 बजे तक कक्षा अटेंड पड़ता था। अम्‍बरनाथ से कुर्ला स्‍टेशन तक की लोकल यात्रा जितनी आरमदायक थी, वहीं कुर्ला से अम्‍बरनाथ तक की वापसी यात्रा उतनी ही कष्‍टदायी होती थीं क्‍योंकि मुम्‍बई में काम करने वाले अधिकांश लोग उपनगरों में रहते हैं तथा अल सवरे ही लोकल से मुम्‍बई अपनी रोजी-रोटी के जुगाड़ में निकल जाते हैं तथा शाम 05:00 बजे से लोगों का हुजुम लोकल ट्रेनों से उपनगर स्थित अपने घरों की और लौटता है। ऐसे में कुर्ला स्‍टेशन में रात 09:00 बजे लोकल ट्रेन में बैठने के लिए जगह पाना तो दूर घुस पाना भी जंग जीतने की तरह था।

बहरहाल किसी तरह मैंने अपने आप को परिस्थितियों के अनुरूप ढाल लिया और नियमित रूप से कक्षाएं अटेन्‍ड करने लगा । इसी दौरान एक दिन शाम को चिरप्रतीक्षित समाचार प्राप्‍त हुआ । यह समाचार था आयु निर्माणी में मेरी नियुक्ति का । लगभग 15 दिनों में चरित्र सत्‍यापन तथा मेडिकल परीक्षण संबंधी औपचारिकताएं पूर्ण होने के उपरान्‍त मैं शासकीय सेवा में आ गया।   

अब मेरी दिनचर्या बदल गई थी । सुबह 08:00 बजे से शाम 05:00 बजे तक मुझे निर्माणी में अनुवाद तथा राजभाषा कार्यान्‍वयन संबंधित कार्य करना होता था। यहॉं मेरे लिए सीखने के लिए बहुत कुछ था किन्‍तु कार्यालय से निकलतेनिकलते शाम 05:30 बज ही जाते थे। ऐसे में पत्रकारिता की कक्षा में उपस्थित होना नामुनकिन हो जाता था। इसे लेकर मैं बहुत परेशान था। एक दिन मेरी परेशानी को भॉंपते हुए मेरे हिन्‍दी अधिकारी, श्री चन्‍द्रभान मौर्य जी ने इसका कारण पूछा तो मैंने उन्‍हें सारी बातें बता दी। इस पर हिन्‍दी अधिकारी महदोय ने कहा ’’ यह पाठ्यक्रम तो हम राजभाषा कार्मिकों के लिए बहुत लाभप्रद है। इस पाठ्यक्रम को तुम अवश्‍य पूरा करो, मैं तुम्‍हें हरसंभव सहुलियत दूँगा। उनकी सलाह पर मैंने ओपनिंग ड्यूटी ले ली तथा कार्यालय आधे घण्‍टे पहले आने लगा जिससे मुझे शाम 04:30 बजे ही कार्यालय से निकलने की सहुलियत प्राप्‍त हो गई। इसप्रकार मैं अब कार्यालय के साथ-साथ पूर्वोक्‍त कोर्स भी करने लगा।

अब मैं किसी तरह 06:30 तक अपने गरवारे संस्‍थान पहुँच जाता था और क्‍लास अटेन्‍ड कर रात 10:30 बजे तक अम्‍बरनाथ लौट आता था। मैं पहले ही बता चुका हूँ कि शाम को सी.एस.टी.स्‍टेशन से उपनगर की ओर लौटने वाली लोकल ट्रेनों में असहनीय भीड़ होती है तथा कोई नौसिखिया आदमी चाहते हुए भी इन लोकल ट्रेनों में घुस नहीं पाता है। किसी तरह मैं अपनी दिनचर्या में ढलने की कोशिश करने लगा और कुछ दिनों बाद चलती ट्रेन को कुर्ला प्‍लेटफार्म पर रूकने से पूर्व ही पकड़ने के जोखिमपूर्ण कला में मुझे माहरत हासिल हो गयी। अब क्‍लासेस समाप्‍त करके लोकल ट्रेन में यात्रियों की भीड़ से जद्दोजहद करते हुए घर आना मेरे लिए कोई कठिन काम नहीं रहा।

इसी तरह एक दिन मैं क्‍लास अटेन्‍ड कर कुर्ला स्‍टेशन पर अम्‍बरनाथ लोकल ट्रेन आने का इंतजार कर रहा था। इस बीच मैंने स्‍टेशन पर सफेद कुर्तापयजामा पहने लगभग 40 वर्षीय नेत्रहीन व्‍यक्ति को देखा जो डंडा पकड़े हुए प्‍लेटफार्म पर मुझसे कुछ फासले पर खड़ा था। उसके बाल करीने से कटे हुए थे तथा वह किसी अच्‍छे घर का व्‍यक्ति जान पड़ता था। यात्रियों की भीड़ बिना उसकी परवाह किए हुए उसके अगल-बगल से बड़ी तेजी से निकल रही थी। इससे उसे चोट लगने की प्रबल सम्‍भावना थी। उसकी स्थिति पर मुझे दया भी आ रही थी पर इसके पहले मैं उसके लिए मैं कुछ कर पाता की अम्‍बरनाथ के लिए लोकल ट्रेन आ गई । मैं बिना समय गवाए ट्रेन के रूकने से पहले ही उसके साथ भागते हुए एक कम्‍पार्टमेन्‍ट में चढ़ गया और भीड़ के बावजूद सीट पर कब्‍जा जमाने में कामयाब रहा । मैंने देखा की बहुत सारे लोग अब भी ट्रेन में चढ़ने की कोशिश कर रहे थे, पर उनसे मुझे क्‍या ! मैं तो सीट पा गया था । यह फास्‍ट ट्रेन थी इसलिए कुछ सीमित स्‍टेशनों पर ही रूकती थी। कुछ देर में ट्रेन चल पड़ी सभी लोग जैसे-तैसे अपने को टिकाने का प्रयास कर रहे थे इस बीच मुझे वहीं कुर्तापयजामा वाला नेत्रहीन व्‍यक्ति भीड़ में अपनी जगह बनाने के प्रयास में कसमसाता हुआ दिखाई दिया । मुझे लोगों के साथ-साथ अपने पर भी क्रोध आया कि एक नेत्रहीन व्‍यक्ति की तकलीफों की लोग किस तरह उपेक्षा कर रहे हैं और मैं कैसे यह सब बैठे-बैठे देख रहा हूँ। आखिर हमें स्‍कूल, परिवार तथा समाज से कुछ सीख तो मिली है ! समाज के कमजोर वर्गों एवं उपेक्षित व अपंग लोगों के प्रति हमारी कुछ तो जिम्‍मेदारी होनी चाहिए। यह सोचते हुए मैं अपनी सीट से ऊठा और उसे आवा दी ''अरे, यार। यहॉं आओ, मेरी सीट पर बैठ जाओ।'' मेरे अगल-बगल बैठे सज्‍जनों में कुछ लोग मुझे ऐसा करते देख मुस्‍कराने लगे तथा कुछ लोग पहले की भॉंति ऑंखें मुंदे बैठे रहे जैसे कि यदि उन्‍होंने ऑंखें खोली तो कोई उन्‍हें उनकी सीट से ऊठा देगा। कुछ लोग प्रशंसा से मेरी ओर देखने लगे। मैं उन लागों के बीच में एक मात्र दानवीर कर्ण बना रहा। इसका परिणाम यह रहा कि ''मुलंड'' स्‍टेशन पर कई लोगों ने स्‍वयं खड़े होकर मुझे बैठने के लिए अपनी सीट देने की पेशकश की, पर मुझे तो उस दिन दानवीर कर्ण और शक्तिमान बनने का भूत सवार था इसलिए मैंने विनम्रतापूर्वक उनके प्रस्‍ताव को टाल दिया। 
    
इस बीच मुम्‍बई उपनगर का पहला स्‍टेशन ‘’थाणे’’ आ गया । लोगों का हुजुम ट्रेन से उतरा और चढ़ा पर अब ट्रेन में पहले की अपेक्षा भीड़ कुछ कम हई । मुझे बैठने के लिए आरामदायक तो नहीं पर ठीक-ठाक सीट मिल गई, लोग भी फैलफैल कर बैठ गए, अब ट्रेन सीधे 35 मिनट बाद एक अगले स्‍टेशन ‘’डोम्बिवली’’ पर रूकने वाली थी ।

हम सभी जानते है जब तक हम व्‍यक्तिगत रूप से किसी व्‍यक्ति विशेष को नहीं जानते तब तक उसके प्रति हमारा नजरिया बहुत कुछ उसके बाहरी रंग-रूप या यों कहे दिखावट पर निर्भर करता है। शायद यही कारण था कि कॉलेज के दौरान पूर्ण ईमानदारी से रेल पास निकाल कर अम्‍बरनाथ से उल्‍हासनगर तक ट्रेन यात्रा करने पर भी प्राय: हर सप्‍ताह टिकट चेकर मेरा ही पास चेक करता और वहीं मेरे गोर-चिट्टे, सुडौल चेहरे वाले मित्र जिन्‍होंने कॉलेज के दौरान शायद ही कभी रेलवे पास अथवा टिकट निकाला हो को, किसी टिकट चेकर ने टिकट पुछा । कहने का तात्‍पर्य यह है कि कि मैं स्‍वयं को रंग-रूप में ''बिलो-ऐवरेज'' मानता हूँ क्‍योंकि आज से 10 वर्ष पहले मैं काफी दूबलापतला, गहरे काले रंग वाला अनाकर्षक युवक लगता था और बिना शेविंग के तो मैं चरसी या छटा हुआ गुंडा ही दिखाई देता था।   

ट्रेन अब भी चल रही थी, अगले स्‍टेशन ‘’डोम्बिवली’’ के आने में अभी 20 मिनट का समय था। सभी लोग आराम से अपने सीट पर टिके हुए थे कि यकायक कुर्तापयजामा वाला नेत्रहीन युवक अपने सीट से ऊठा और कम्‍पार्टमेंट के आखिरी छोर पर सहजता से चला गया, मेरी नज़रें उस पर जम गई थी। मैं देखना चाहता था वह चलती ट्रेन में क्‍या करना चाहता है। मैंने देखा कि उसने अपने कुर्तें की जेब में हाथ डाला और एक छोटी कटोरी निकालने के साथ ही बेसुरा हिन्‍दी फिल्‍मी गीत गाते हुए लोगों से भीख माँगने लगा। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता वह भीख मॉंगते-मॉंगते हुए मेरी सीट के पास पहुँच गया।

अब तक जिन लोगों की ऑंखों में मैंने कुछ समय पहले अपनी दानवीरता एवं नेकनीयती के लिए प्रशंसा देखी थी उन्‍हीं में हिकारत देख रहा था। मैंने अनुभव किया कि चंद सेकंड पहले मैं अपनी सीट पर संकुचित अवस्‍था में बैठा था पर अब बहुत खुला - खुला महसुस कर रहा था। ऐसा भीड़ कम नहीं होने के बावजूद हो रहा था। अंतत: मैंने देखा जो लोग मेरे अगल-बगल बैठे थे वह अब वहॉं से उठ कर अन्‍यत्र बैठ गए। मैं शर्म के मारे उपनी जगह पर गड़ा जा रहा था। लोगों की घुरती नजरें मुझ पर लगी हुई थी और मैं उनसे ऑखें नहीं मिला पा रहा था, मैं गर्दन झुकाए ''डोम्बिवली'' स्‍टेशन के आने का इंतजार करने लगा। जैसे ही ट्रेन ने ''डोम्बिवली'' स्‍टेशन के प्‍लेटफार्म को छूआ, मैं अपनी कम्‍पार्टमेंट से कूद पड़ा और सबसे नज़र बचाते हुए आखिरी कम्‍पार्टमेन्‍ट में जा चढा । 

अब तक मैं समझ चुका था कि क्‍यों आज भी ‘’ इन रोम डू ऐज रोमन डू’’ कहावत प्रासंगिक हैं।     


बुधवार, 14 जुलाई 2010

मुलगी

मुलगी


आज मेरी बेटी एक माह की हो गई है। रूई की फोहों के माफिक नरम , नाजुक .....। ठीक एक माह पूर्व 10 जून, 2010 को मैं अपने कार्यालय में बैचेन बैठा था । काम में मन नहीं लग रहा था, बस नाम के लिए डाक में आयी प्रविष्‍टयॉं देख रहा था कि अचानक फोन की घंटी बज ऊठी। मैंने रिसिवर ऊठाया, दूसरी तरफ मेरी पत्‍नी की बैचेनी भरी आवाज थी ‘’आ, जाइए । अस्‍पताल जाना पड़ सकता है। ’’ अब मेरे लिए एक पल भी ठहरना मुश्‍किल हो रहा था। मैं सीधे अपने समूह अधिकारी के पास गया तथा उनसे आउटपास पर जाने की अनुमति मॉंगी।
जब तक मैं घर पहुँचा पाता तब तक मेरी भाभी व माताजी अपनी बहु को अस्‍पताल में ले आ चुकी थीं। मैं तेजी से अश्विनी अस्‍पताल पहुँचा। चूँकि वहॉं की स्‍त्रीरोग विशेषज्ञ और उनके पति डॉ.महेश्‍वरी हमारे फैमिली डॉक्‍टर हैं अत: मेरी पत्‍नी को तत्‍काल अटेन्‍ड किया । स्‍त्रीरोग विशेषज्ञ ने मेरी पत्‍नी की जॉंच की और मुझसे कहा ‘’ क्‍या चाहिए ? मैं चुप रहा। इस पर उन्‍होंने कहा कि ऐसा लगता है इस बार भी तुम्‍हें लड़का होगा । मैं कुछ कह नहीं पाया, मुझ पर इस कथन का कोई प्रभाव  नहीं हुआ क्‍योंकि मेरी पत्‍नी की स्‍वास्‍थ्‍य की चिंता लगी हुई थी। । 

तब तक मेरे पिताजी और अन्‍य परिजन आ चुके थे। ऑपरेशन संबंधी स्‍वीकृति पत्र पर मेरा हस्‍ताक्षर लिया गया और मेरी पत्‍नी को ऑपरेशन थिएटर ले जाया गया। मेरी बैचेनी बढ़ती जा रही थी पर मैं इसे अपने पर हावी नहीं होने देना चाहता था इसलिए थिएटर के गलियारे में चहलकदमी करने लगा। गलियारे में मेरी नजर एक बुजुर्ग व्‍यक्ति और उसके साथ खड़े मेरे हमउम्र युवक पर गई, वे मराठी भाषा में कुछ बोल रहे थे। मैंने उन्‍हें कई बार देखकर भी  अनदेखा किया।

  इस बीच ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा खुला और नर्स ‘’मुलगी, मुलगी’’  कहते हुए बाहर आयी, बस फिर क्‍या था सभी परिजन उसे देखने के लिए उमड़ पड़े । कोई कहने लगा, ‘’मॉं के ऊपर गई है, कोई कहता भाई पर गई है।‘’ मैंने उसे देखा और खुशी से बोल पड़ा अच्‍छा हुआ मुझ पर नही गई है। इस बीच टेलीफोन के माध्‍यम से बधाई देने का कार्यक्रम शुरू हो गया । लगभग 01:30 घण्‍टे बाद मुझे फुर्सत मिली तो निर्माणी में पंच इन करने की याद आयी । पंच इन करने के लिए मैं अस्‍पताल के गलियारे से निकल ही रहा था कि उस बुजुर्ग ने मुझे आवाज दी, ‘’ ए, काय झाला (ए, तुझे क्‍या हुआ) ? 
    
मैंने हँसते हुए जवाब दिया, ‘’मुलगी (लड़की)’’ । इतना सुनना था कि वह बुर्जुग व्‍यक्ति उसके साथ खड़े नवयुवक से जोर से कहने लगा ‘’बग, त्‍याला पन मुल्‍गी झाली आहे, तो कती खुश आहे (देख, उसके भी लड़की हुई है वह कितना खुश है)।’’ पर वह नवयुवक अब भी अप्रसन्‍न मुद्रा में खड़ा था। मुझसे रहा नहीं गया मैंने पूछ लिया ‘’कौन हैं ये ? इतना सुनना था कि वह व्‍यक्ति बोल पड़ा ‘’ यह , मेरे दामाद है तथा सांगली में पुलिस उप निरीक्षक के रूप में तैनात हैं। मेरी नातू हुई है।

उस उप निरीक्षक के हाव-भाव से मैं समझया था कि वह बेटी के जन्‍म से खुश नहीं है। उस पढ़े लिखे बेवकूफ को दखकर मेरा क्रोध बढ़ता जा रहा था , चूँकि वह हमउम्र ही लग रहा था इसलिए मैंने उसके कंघे पर हाथ रखते हुए अपने साथ आगे ले आया और कहा कि ‘’दोस्‍त, दुनिया में हर आदमी को लड़का या लड़की ही पैदा होता है । कुछ बदनसीबों को बीच वाले पैदा होते हैं, भगवान का शुक्र मना कि तुझे लड़की पैदा हुई, ‘’बीच वाला’’ नहीं , क्‍योंकि यदि ऐसा होता तो तुम्‍हें क्‍या हुआ इस प्रश्‍न का उत्‍तर देने के लिए क्‍या तुम यहॉं ठहर पाते ?

मैं अपना काम कर दिया था । उसे छोड़ कर बिना पीछे मुड़े मैं अपनी निर्माणी की ओर बढ़ चला ।