मंगलवार, 6 सितंबर 2011

इंडिया 2020

इंडिया 2020

 
मैं वैसे तो बहुत ही बातूनी किस्‍म का आदमी रहा हूँ और लम्‍बी रेल यात्राओं के दौरान जब 02-02 दिन रेल में बैठे रहने के अलावा मेरे पास कोई काम नहीं रहता है तो मजबूरी में या यों कहे कि आदतन  सह यात्रियों के साथ वार्ता करना ही पड़ता है। मैं बेतकल्‍लुफ होकर सह यात्रियों के साथ बातें करता हूँ। कुछ उनकी सुनता हूँ और बहुत कुछ अपनी बताता हूँ। मेरी इस आदत पर बीवी कुढ़ती है और मुझे समझाने की लाख कोशिश करती है कि सह यात्रियों के भेष में जहरखुरानी गिरोह के लोग भी होते है और आप निश्चितं होकर अनजान लोगों से बातें करते हैं उनके द्वारा दिए गए खाने को खा लेते हैं। मेरी इस हरकत को वह कई बार अपनी सासूजी के सामने ऊजागर भी कर चूकी है जिससे मेरी कानखिचाई भी हो चुकी है। इस बार पूर्वोत्‍तर से लौटते समय बीवी ने ट्रेन में सह यात्रियों से संयमित वार्ता करने संबंधी शर्त मुझ पर लाद दी ओर मैंने भी शर्त की स्‍वीकारोक्ति दे दी।

निर्धारित तिथि को सपरिवार रेलवे स्‍टेशन पर पहुँच गया। मुझे अपने शर्त पर खरा उतरना था इसलिए मैंने एक नायाब तरीका निकाल लिया था। अपने आप को व्यस्त रखने के उद्देश्‍य से मैने बुक स्‍टाल से पूर्व राष्‍ट्रपति ए.पी.जे. कलाम द्वारा लिखित ‘’इंडिया 2020’’ पुस्‍तक खरीद ली और सपरिवार अपने बर्थ पर कब्‍जा जमा लिया। अपने परिवार को व्‍यवस्थित कर मैं पुस्‍तक पढ़ने लगा। इस बीच हमारे सामने वाली बर्थ पर बैठे युवा दम्‍पति ने मेरे बच्‍चों के साथ दोस्‍ती कर ली, बच्‍चे उनसे बातें करने लगे। मेरी श्रीमतीजी भी उनसे बातें करने लगी। औपचारिकतावश मैंने उनसे एक-दो बातें की और किताब पढ़ने में लग गया क्‍योंकि मुझे हर हाल में इस बार शर्त जीतनी जो थी। इस बीच श्रीमती जी और उस दम्‍पति के बीच बातें होती रहीं तथा मुझे ज्ञात हुआ कि वे अपने पिताजी को लेकर मुम्‍बई स्थित टाटा मेमोरियल कैंसर अस्‍पताल इलाज के लिए जा रहे हैं।

मैंने ‘’इंडिया 2020’’ किताब शर्त जीतने के उद्देश्‍य से पढ़ना आरंभ किया था किन्‍तु अब मैं उस किताब में महामहिम द्वारा लिखित भारत की गौरवपूर्ण उपलब्धियों तथा भविष्‍य के ‘’विश्‍वशक्ति भारत की योजनाओं’’ में खोने लगा था। अब मुझमें उस किताब की हर पक्ति को पढ़ने की भूख सवार हो चुकी थी, मैं बस उस किताब को हर हाल में पढ़ना चाहता था। बीच में कई बार पत्‍नी ने भोजन करने का आग्रह भी किया। इस पर मैंने उन्‍‍हें भोजन कर लेने के लिए कह दिया। उस किताब ने मुझे उत्‍साह से इस कदर सराबोर कर दिया कि मेरी भूख समाप्‍त हो गई। मैं किताब पढ़े जा रहा था। इस बीच कुछ हो-हल्‍ला होने लगा। मैंने उत्‍सुकतावश परदा हटाया तो ज्ञात हुआ कि पटना स्‍टेशन आ गया है और आगे लाइन पर मेन्‍टनेस कार्य चल रहा है। मैं चहलकदमी करने के लिए स्‍टेशन पर उतर गया। मुझे कुछ पीने की इच्‍छा और मैं कॉफीशॉप की ओर बढ़ा ही था कि मेरी बर्थ के साथ यात्रा कर रहे महोदय 02 कुल्‍हड़ के साथ मुस्‍कुराते हुए प्रकट हो गए। मैंने भी धन्‍यवाद देते हुए एक कुल्‍हड़ धर लिया और फिर बातचीत शुरू हो गई। इस दौरान स्‍टेशन पर बहुत सारे लोग बैठे दिखाई दिए। कुछ लोग अपनी गाड़ी के इंतजार में ऊँघ रहे थे। कुछ लेटे हुए थे। इनमें से कुछ तो यात्री थे पर कुछ प्‍लेटफार्म पर ही जिन्‍दगी बसर करने वाले लग रहे थे।

इस दौरान चाय की चुस्कियों के साथ हमारी बातचीत बदस्‍तुर जारी थी। मैंने घड़ी पर नजर दौड़ाई। रात के 11:45 बज गए थे। इस बीच मैंने एक व्‍यक्ति को प्‍लेटफार्म पर टहलते देखा जो टकटकी लगाए हुए हमे देख रहा था। उसके हावभाव से वह मजदूर लग रहा था।  इस बीच सिग्‍नल डाउन हो गया और हम लोग बोगी के दरवाजे पर खड़े हो गए। ट्रेन मंथर गति से आगे बढ़ने लगी कि अचानक वह मजदूर हमारे पास आया और भोजपूरी में कहने लगा ‘’साहब, तीन दिन से खइले नाहीं बाणीं, आप जउन चाय पियत बाणीं उ थोड़ा छोड़ देई। हम पियब।‘’ (साहब, तीन दिन से खाना नहीं खाया हूँ। आप जो चाय पी रहे हैं उसे थोड़ा छोड़ दीजिए, मैं पी लूँगा।) मैं हतप्रभ हो गया। मैंने उसे चाय के लिए पैसे की पेशकश की पर उसने पैसे लेने से इंकार कर दिया। अंतत: मैंने जबरदस्‍ती उसे 10 रूपए दिए और बर्थ पर बैठ गया।

मैने महसूस किया कि ‘’इंडिया 2020’’ मुझे मुँह चिढ़ा रही है।

शनिवार, 6 अगस्त 2011

क्‍या अब भी रक्‍तदान करने का कारण किसी को समझाना पड़ेगा ........?

क्‍या अब भी रक्‍तदान करने का कारण किसी को समझाना पड़ेगा ........?


आज मेरी निर्माणी के अस्‍पताल में रक्‍तदान का कार्यक्रम प्रायोजित किया गया है। हम सभी इसके महत्‍ता से परिचित हैं। मानव ने चिकित्‍सा विज्ञान में खूब प्रगति कर ली है हृदय, गुर्दा प्रत्‍यारोपण अब तो आम बात हो गई है। अब तो कृत्रिम हृदय भी सफलतापूर्वक तैयार कर मानव शरीर में स्‍थापित कर लिया गया है किन्‍तु विचारणीय तथ्‍य यह है कि उपरोक्‍त तमाम वैज्ञानिक उपलब्धियों के बावजूद भी अभी तक हम रक्‍त का विकल्‍प नहीं बना पाए हैं।   

खेल-खेल में अपने बच्‍चे को लगी खरोच से निकलते खून को देख तुरन्‍त डॉक्‍टर के पास ऐसे दौड़ते हैं कि दुनियॉं के हम पहले व एकमात्र अभिभावक हैं। हम सभी अनभिज्ञ नहीं हैं कि प्रतिवर्ष कई हजारों लोग दुर्घटना का शिकार होकर रक्‍त के आभाव में काल के मुँह में समा जाते हैं। इसके अतिरिक्‍त थैलिसिमिया से पीडित बच्‍चों की पीड़ा से क्‍या हम सभी वाकिफ नहीं हैं ? वैसे तो रक्‍तदान पूरी तरह स्‍वैच्छिक होता है तथा रक्‍तदान करना बंधनकारी नहीं होता है फिर भी सरकार इसे जनहित में प्रोत्‍साहित करते हुए रक्‍तदाता को कुछ सुविधाएं प्रदान करती है। कॉलेज के दिनों में तथा एन.सी.सी. प्रशिक्षण के दौरान इनका मैं पहले भी उपभोग कर चुका हूँ। उन दिनों रक्‍तदान करने से अधिक उससे प्राप्‍त होने वाली सुविधाओं का मोह ज्‍यादा था पर अब स्थिति बदल चुकी है। अब मैं दो प्‍यारे बच्‍चों का पिता हूँ। यकीनन उनकी सलामती की सोच ने मुझे रक्‍तदान करने के लिए मजबूर कर दिया है। इस दृष्टिकोण से मैं स्‍वयं को स्‍वार्थी पाता हूँ ; स्‍वार्थवश ही सही, पर रक्‍तदान करने जा रहा हूँ। रक्‍तदान करने से पूर्व अपने उन सहयोगियों के लिए महाभारतकालिन एक किंवदन्ति का उल्‍लेख करना चाहता हूँ जो इस आयोजन के प्रति अनभिज्ञ हैं या जानबुझ कर हो रहे हैं। 

प्राचीनकाल में आज की भॉंति नहाने के लिए बाथरूम नहीं होते थे। महिलाएं ब्रह्म मूहर्त में उठकर स्नान करने के लिए नदी के घाट पर पहुँच जाती थी तथा अजोरा होने से पहले ही स्‍नान आदि करके अपने घरों में लौट जाती थी। ऐसे ही ब्रह्म मूहर्त में एक दिन द्रौपदी अपने दासियों के साथ स्‍थान करने घाट की ओर निकलीं । अभी सूर्य देवता का उदय नहीं हुआ था। मंद-मंद बयार चल रही थी। घाट के समीप पहुँचते ही द्रौपदी की नजर एक साधु महाराज पर पड़ी जो कटिले झा‍डियों के झुरमुट में फंसे अपने लंगोट को निकालने का प्रयास कर रहे थे। लंगोट निकालने की प्रक्रिया में साधु महाराज ने थोड़ा जोर लगाया किन्‍तु लंगोट निकलने के बजाय बुरी तरह से फट गया और पहनने लायक नहीं रहा। अब तक साधु महाराज को महिलाओं के आने का आभास हो गया। अपनी लाज बचाने के उद्देश्‍य से साधु महाराज कटिले झा‍डियों के झुरमुट में छीपने लगे।

द्रौपदी ने सारा मामला समझ लिया और अपनी आँचल फाड़कर एक स्‍थान पर रख दिया और एक तरफ हटते हुए कहा, "पिताजी, मैं आपकी स्थिति समझ गई हूँ। कृपया इस वस्‍त्र को स्‍वीकार करें।" इसके बाद द्रौपदी अपनी दासियों के साथ स्‍नानघाट पर अपनी नियमित क्रिया कर राजमहल लौट गईं। बात आई-गई हो गई और द्रौपदी ने भी इसके संबंध में किसी से कोई चर्चा नहीं की।

इस बीच हस्तिनापुर में कौरवों ने द्युत क्रीड़ा में माहिर अपने कपटी मामा शकुनी के साथ मिलकर पांडवों को हस्तिनापुर से निकालने का षडयंत्र रचा और कामयाब भी हुए। पांडवों का सर्वस्‍व जीत कर भी कौरवों को शांति नहीं हुई बल्कि उन्‍होंने सुनियोजित योजना के अन्‍तर्गत पांडवों को और लज्जित करने के उद्देश्‍य से अंतिम दाँव के रूप में द्रौपदी को ही दाँव पर लगाने के लिए उकसा दिया। परिणाम भी कौरवों के मनानुकूल ही रहा। कौरव अब अपनी नीचता की सीमा लांघने लगे और दुर्योंधन ने भरी सभा में अपने भ्राता दु:शासन को द्रौपदी का चीरहरण करने का आदेश दे डाला। पांडव चूँकि द्रौपदी को हार चुके थे, अत: सर झुकाकर अपमान का घुट पीने के अतिरिक्‍त कुछ नहीं कर सके। पूरा दरबार बेबस था। धृतराष्‍ट अपने पुत्र मोह में इतने अंधे हो गए कि अपनी पुत्रवधू का अपमान होता देखकर भी कुछ नहीं बोले । पितामह भीष्‍म, गुरू द्रोणचार्य, मंत्रिगण व अन्‍य दरबारी, शासकीय नौकर-चाकर, दास-दासियॉं राजभक्ति के प्रति बंधे हुए बेबस अनर्थ होता देख रहे थे।

इस बीच दु:शासन रानीवास से द्रौपदी को उसके केशों से पकड़ कर घसीटता हुआ भरी सभा में ले आया। द्रौपदी अपनी रक्षा के लिए चिखती- चिल्‍लाती रही पर उसकी रक्षा के लिए कोई नहीं आया। आते भी कैसे ? हस्तिनापुर के राजवंश से कौन बैर लेता ? पूरे हस्तिनापुर में हहाकार मच गया ।

द्रौपदी का क्रंदन सुनकर स्‍वर्गलोक भी डोल गया। देवता भी बेबस हो गए थे परन्‍तु इस अनर्थ से द्रौपदी को बचाने का यत्‍न करने लगे। देवताओं ने कहा कि ‘’मुनष्‍य अपने कर्मों का फल पाता है तथा उसके किए हुए पाप और पुण्‍य उसके साथ रहते हैं।’’ अंतत: चित्रगुप्‍त को आदेश दिया गया कि वह द्रौपदी के कर्मों का हिसाब करें। चित्रगुप्‍त ने वैसा ही किया तथा देवताओं को बताया कि किस तरह बहुत पहले द्रौपदी ने संकट में फँसे साधू महाराज की लाज अपने ऑंचल को फाड़कर बचाई थी और वहीं ऑंचल का वस्‍त्र अब ब्‍याज के रूप में बढ़कर असंख्‍य वस्‍त्रों का अंबार बन चुका है।

अब क्‍या था, समस्‍या का समाधान निकल गया था। कृष्‍ण भगवान ने इन्‍हीं वस्‍त्रों के अम्‍बारों से द्रौपदी की लाज बचाई।

क्‍या अब भी रक्‍तदान करने का कारण किसी को समझाना पड़ेगा ..........?

गुरुवार, 30 जून 2011

ऑफ लाइन हिन्‍दी युनिकोड रिपेयर टूल

ऑफ लाइन हिन्‍दी युनिकोड रिपेयर टूल


युनिकोड फॉन्‍टों ने सर्वसामान्‍य लोगों की अभिव्‍यक्ति को पँख लगा दिए हैं । युनिकोड फॉन्‍टों में कार्य करना अत्‍यन्‍त आसान है तथा इससे संबंधित अधिकांश प्रोग्राम व एपिलिकेशन इंटरनेट पर नि:शुल्‍क हैं जिन्‍हें इन्‍टरनेटयुक्‍त कम्‍प्‍यूटर से डाउनलोड कर प्रयोग में लाया जा सकता है। अपने पूर्व अंकों में विविध आई.एम.ई. के संबंध में जानकारियों दी गई थी। इस अंक में हिन्‍दी युनिकोड रिपेयर टूल संबंधी महत्‍वपूर्ण जानकारी प्रस्‍तुत है।

गुगल जैसी कई ई-मेल सर्विस प्रदाता कई कम्‍पनियॉं कतिपय कारणों से नियमित समयांतरल के पश्‍चात हिन्‍दी युनिकोड कैरेक्‍टर एन्‍कोडिंग को नष्‍ट कर देती हैं जिससे प्रयोगकर्ता युनिकोड में लिखित पाठ्य को पढ़ नहीं पाता। इस समस्‍या के समाधान के रूप में http://lang.ojnk.net/hindi/unifix.html साइट पर हिन्‍दी युनिकोड रिपेयर टूल नामक ऑन- लाइन सेवा आरम्‍भ की गई है। इस सेवा के अन्तर्गत प्रदर्शित टैक्‍स्‍ट बॉक्‍स में त्रुटिपूर्ण व अपठनीय  हिन्‍दी युनिकोड कैरेक्‍टर एन्‍कोडिंग को पेस्‍ट कर दें। तत्पश्‍चात टैक्‍स्‍ट बॉक्‍स के नीचे विद्यमान "फिक्‍स इट" प्रेस बटन को माउस से क्लिक कर दें। ऐसा करते ही टैक्‍स्‍ट बॉक्‍स के ऊपर शुद्ध हिन्‍दी युनिकोड पाठ्य प्रदर्शित हो जाएगा जिसे कॉपी कर प्रयोग में लाया जा सकेगा।

हिन्‍दी युनिकोड रिपेयर टूल सुविधा को अत्‍यन्‍त सहजता से ऑफ-लाइन हिन्‍दी युनिकोड रिपेयर टूल में परिवर्तित किया जा सकता है।
 
ऐसा करते ही हिन्‍दी युनिकोड रिपेयर टूल वेबसाइट प्रदर्शित हो जाएगी। 




 अब वेबसाइट पर माउस राइट क्लिक कर व्‍यू सोर्स कमांड सक्रिय करें। 

 ऐसा करते ही हिन्‍दी युनिकोड रिपेयर टूल नामक एक्‍सटेंशनयुक्‍त फाइल ओपन हो जाएगा। इस फाइल में  एच.टी.एम.एल. प्रोग्रामिंग टैग्‍स के साथ-साथ जावा स्‍क्रीप्‍ट में प्रोग्राम लिखा हुआ प्राप्‍त होगा जिसे माउस की सहायता से कॉपी कर लें।  अब स्‍टार्ट मेन्‍यू से होते हुए टैक्‍स्‍ट फाइल ओपन कर लें तथा कॉपी की गई सामगी को पेस्‍ट कर दें। 
उक्‍त नोटपैड में क्रमश: फाइल मेन्‍यू से होते हुए सेव ऐज कमांड को क्रियान्वित करें। 




 अगले क्रम में ऐसा होते ही सेव ऐज डॉयलाग बॉक्‍स प्रदर्शित हो जाएगा जिसमें फाइल नेम के सम्‍मुख अपनी पसंद के अनुसार कोई नाम तथा फाइल एक्‍स्‍टेंशन के रूप में .html टाइप कर फाइल लोकेशन डेस्‍कटॉप चयनित करते हुए सेव प्रेस बटन को माउस से क्लिक कर दें। अब डेस्‍कटॉप पर आप द्वारा दिए गए नामयुक्‍त इन्‍टरनेट ई.-एक्‍स्‍प्‍लोरर फाइल बना पाएंगे। 
 
 अगले क्रम में आप कोई भी जिस भी त्रुटिपूर्ण व अपठनीय हिन्‍दी युनिकोड कैरेक्‍टर एन्‍कोडिंग को ठीक करना चाहते हैं उसे  पेस्‍ट कर दें। तत्पश्‍चात टैक्‍स्‍ट बॉक्‍स के नीचे विद्यमान "फिक्‍स इट" प्रेस बटन को माउस से क्लिक कर दें। 



 ऐसा करते ही ऐसा करते ही टैक्‍स्‍ट बॉक्‍स के ऊपर शुद्ध हिन्‍दी युनिकोड पाठ्य प्रदर्शित हो जाएगा जिसे किसी भी टैक्‍स्‍ट एडिटिंग सॉफ्टवेयर जैसे की वर्ड , नोटपैड, वर्डपेड में  पेस्‍ट कर प्रयोग में ला सकेंगे। 




शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

हाय ! हाय ! यह ब्‍यूरोक्रेसी और भ्रष्‍टाचार की फूंसी

हाय ! हाय ! यह ब्‍यूरोक्रेसी और भ्रष्‍टाचार की फूंसी

हाल ही में जापान सुर्खियों में छाया रहा कारण से हम सभी अनभिज्ञ नहीं हैं । जापान के लिए भूकम्‍प कोई नई बात नहीं है। वस्‍तुत: जापान में भुकम्‍प आना साधारण बात है। इसे साधारण और विचारणीय बनाया उस देश के निष्‍ठावान, कर्मठ तथा परम अनुशासित नागरिकों ने ।

उधर जापान में भूकम्‍प आया इधर भारत में भ्रष्‍टाचार विरोधी सुनामी ने अन्‍ना हजारे के नेतृत्‍व में संपूर्ण भारत में अपना प्रभाव दिखाना आरम्‍भ किया। आप भी सोच रहे होंगे की लेखक को क्‍या पड़ी कि वह जापान के भूकम्‍प और भारत के भ्रष्‍टाचार विरोधी मुहिम में साम्‍य देखने लगा।

दरअसल बात यह है कि संकट की घड़ी में जापनियों द्वारा दर्शाई गई काविल-ए-तारिफ सहिष्‍णुता एवं अनुशासन । राहत सामग्री के वितरण के दौरान जिस तरह लोगों ने असाधारण धैर्य एवं मानवता का परिचय दिया वह मात्र सराहनीय ही नहीं वरन अनुकरणीय भी है। राहत सामग्री के वितरण के दौरान भी पीडि़तों ने कोई भगदड़ नहीं मचाई। लागों ने बच्‍चों, बूढ़ों तथा घायलों को स्‍वैच्‍छा से राहत सामग्री का वितरण होने दिया । यहॉं उनके देश के नागरिकों ने उच्‍च राष्‍ट्रीय चरित्र का परिचय दिया।

भूकम्‍प, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा और साम्‍प्रदायिक दंगों जैसी मानवीय विपदा के दंश को इस देश ने भी झेला है पर एक-दो अपवाद को छोड़कर हमने कभी-कभार ही अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है। सामाचार पत्र में छपे एक खबर को पढ़कर मेरा दिल रो पड़ा। खबर थी कि ‘’गुजरात दंगों के पश्‍चात एक दंगा पीडि़त के घर से मूल्‍यवान वस्‍तुओं को चुराते हुए केन्‍द्रीय रिर्जव पुलिस बल के जवानों ने एक 07 माह की गर्भवती महिला को रंगे हाथ गिरफ्तार किया।’’ क्‍या यही हमारा राष्‍ट्रीय चरित्र है ? अलबत्‍ता हमारे रक्षा, पुलिस, चिकित्‍सा सहायता बल तथा अर्ध सैनिक बलों ने पूर्ण निष्‍ठा एवं उनके संगठनों के उच्‍चतम मूल्‍यों के अनुरूप कार्य किया है।
जहॉं तक मैं समझता हूँ हमारे देश में प्राय: अधिकांश आम व्‍य‍क्ति भ्रष्‍ट नहीं हैं पर सिस्‍टम अर्थात ब्‍यूरोक्रेसी के दबाव में भ्रष्‍ट बन जाते हैं अथवा उसके प्रति अपनी ऑंखें मूंद लेते हैं। इस संबंध में मेरे जीवन में घटित वाकये का उदाहरण प्रस्‍तुत करना चाहूँगा।

हुआ यों कि मैंने एक बिल्‍डर से घर खरीदा था तथा पूर्ण भूगतान करने के पश्‍चात बिल्‍डर ने घर सौंपा था । एक साल तक बिल्‍डर उक्‍त आवासीय परिसर के लोगों से मेंटेनेस वसुलता रहा तथा सोसायटी बनाने का कोरा आश्‍वासन देता रहा किन्‍तु उसने सोसायटी नहीं बनाई। इस पूरे वाकये के अन्‍दर वह हमें मात्र जल आपूर्ति रोक देने की धमकी देकर मनमाने तरिके से हमारा शोषण करता रहा और चूँकि सोसायटी नहीं बनी हुई थी इसलिए नगर परिषद एवं अन्‍य शासकीय प्राधिकारी मदद नहीं करने पर तूले हुए थे। मूलत: मदद न करने के एवज में बिल्‍डर द्वारा उन्‍हें काफी रकम भी मिल रही थी। इस दौरान परिसर के लोगों ने एकजूट होकर सोसायटी फीज बिल्‍डर के पास जमा कर दिया तथा सोसायटी बनाने का अनुरोध किया किन्‍तु बिल्‍डर कुत्‍ते की दुम की भॉंति सोसायटी न देने पर अड़ा रहा। इसकी शिकायत हमारे द्वारा सभी संबंधित कार्यालयों में की गई पर कोई आशानुकूल परिणाम नहीं निकला।
अंतत: एक विचौलिये के माध्‍यम से हम लोगों को मजबूरन व्‍यक्तिगत जल कनेक्‍शन के लिए आवेदन भरना पड़ा। इस मार्ग में भी बिल्‍डर ने नगर परिषद एवं जल आपूर्ति बोर्ड के अधिकारियों को पैसे देकर अवरोध खड़े करना आरम्‍भ कर दिया। परिणामत: आवेदन करने के 02 माह तक नगर परिषद से अनापत्ति प्रमाणपत्र नहीं मिल पाया । किसी तरह सभी लोगों ने मिलकर एक सप्‍ताह तक नगर परिषद में डेरा डाला तब जाकर आनापत्ति प्रमाण पत्र हम लोगों को प्राप्‍त हुआ। अब इस प्रमाण पत्र के साथ जल आपूर्ति विभाग में हमने आवेदन किया, यहॉं भी आशानुरूप बिल्‍डर हम पर भारी पड़ा। जल आपूर्ति विभाग के अधिकारियों ने बिचौलियों के माध्‍यम से पैसे तो ले लिए पर जल कनेक्‍शन के नाम पर करीबन 04 माह तक कोरे आश्‍वासन ही देते रहे। थक- हार कर मैंने क्रमश: संबंधित अधिकारी, मंत्रालय, मंत्री को नियमित अंतराल पर पत्र लिखने आरम्‍भ किया । इस दिशा में महामहिम प्रधानमंत्री तथा राष्‍ट्रपति महोदय को भी पत्र लिखा गया । सौभाग्‍यवश महामहिम प्रधानमंत्री द्वारा जल आपूर्ति बोर्ड के कार्यालय को हम सभी आवेदकों को अविलम्‍ब जल कनेक्‍शन देने का निदेश दिया गया।

इस पर जल आपूर्ति बोर्ड के अधिकारियों ने हमें नल कनेक्‍श्‍न जोड़ने संबंधी पावती उपलब्‍ध करवा दिए तथा महामहिम प्रधानमंत्री कार्यालय को नल जोड़ने के प्रमाण स्‍वरूप उक्‍त की कार्यालय प्रति अग्रेषित कर दिया किन्‍तु वास्‍तविकता में हमें जल कनेक्‍शन नहीं दिया। जब जल विभाग के अधिकारियों की इस चालाकी का हमें पता चला तो हम लोगों अविलम्‍ब सभी अधिकारियों द्वारा की गई कारगुजारियों व जालसाजियों का प्रमाण सहित प्रधानमंत्री तथा राष्‍ट्रपति महोदय व संबंधित कार्यालयों को शिकायत की। अब तक दोषी अधिकारियों को हमारे पत्र के संबंध ज्ञात हो चुका था उन्‍होंने अपनी नौकरी की सलामती की खैर मानाते हुए तत्‍काल हम सभी आवेदकों को नल कनेक्‍शन जोड़ कर दिया।

ज्ञातव्‍य तथ्‍य यह है कि जिस नल कनेक्‍शन को लेने के लिए मात्र रू.3000/- की लागत तथा 15 दिनों की समयावधि लगती है उसी को लेने के लिए हमें रू. 25000/- तथा 08 माह का समय लगा। इस रू. 25000/- में से रू.3000/- की राशि को छोड़कर शेष 22000/- की राशि जल आपूर्ति विभाग, नगर परिषद तथा विचौलियों द्वारा अकारण ही हजम कर ली गई।


कुल मिलाकर मेरे देश को आजाद हुए 06 दशक से अधिक हो गए हैं और मुझ जैसे उच्‍च शिक्षित व्‍यक्ति को स्‍वच्‍छ जल कनेकशन लेने के लिए मेरे देश के ही शासकीय अधिकारियों को घूस देना पड़ा, तो हम समझ सकते हैं कि अल्‍प शिक्षित आम नागरिकों की क्‍या हालत यह भ्रष्‍ट शासकीय अधिकारी करते होंगे।

इसके विपरित जापान का उदाहरण प्रस्‍तुत है:- कुछ वर्ष पूर्व जापान में भूकम्‍प आया था तब एक बहुमंजिले इमारत में एक गर्भवती महिला और जल आपूर्ति विभाग का युवा इंजिनीयर फँस गया। महिला घायल थी और पानी की मॉंग करने लगी। । इंजिनीयर ने अपनी जान जौखिम में डालकर उस ढहे हुए इमारत में जल तलाशने का जौखिमपूर्ण कार्य किया पर कहीं से भी पानी नहीं ला सका। इस बीच वह गर्भवती औरत पानी के अभाव में मर गई। यह देखकर वह बहुत दुखी हुआ और ढहे हुए इमारत के भग्‍नावेश से कूद कर उस इंजीनियर ने अपनी जान दे दी।

जब राहत कर्मियों ने उसके शव की जॉंच-पड़ताल की तो उन्‍हें उनकी जेब से एक पर्ची मिली जिसमें उसने लिखा था :-

‘’मुझ पर मेरे देश के लोगों को जल आपूर्ति करवाने का दायित्‍व सौंपा गया था । मैंने इसीलिए अपने जीवन के बहुमूल्‍य 23 वर्ष तक शिक्षा ली और इंजीनियर बना किन्‍तु आज मैं अपने देश के नागरिक को पानी नहीं दे सका। मेरी पूरी शिक्षा और अनुभव किसी काम के नहीं निकले, ऐसी शिक्षा और अनुभव का क्‍या लाभ, ऐसे जीवन से क्‍या लाभ कि मैं अपने देश की गर्भवती महिला को पानी नहीं पिला सका। मेरी अक्षमता के कारण ही उसकी मृत्‍यु हो गई। मेरे ऐसे जीवन से अच्‍छी तो मौत है।

मेरे प्रिय देशवासियों इस अक्षम्‍य अपराध के लिए मुझे क्षमा करना।’’

मुझे इसी चारित्रिक गुणों की हर भारतीय नागरिक व ब्‍यूरोक्रेट्स से आशा व अपेक्षा है। क्‍या हम में यह चारित्रिक गुण हैं................ ? क्‍या हम पूर्वोक्‍त चारित्रिक गुण अपने बच्‍चों में विकसित कर पाएं हैं ? यदि नहीं तो क्‍या भारत लालफिताशाही व भ्रष्‍टाचार से कभी मूक्‍त हो पाएगा ......... ? यह प्रश्‍न हमें सदैव हमारे सामने मुँह बॉये खड़ा रहेगा।                                                                             
       

शनिवार, 2 अप्रैल 2011

क्‍या मूर्ख बनाना आसान है ?

क्‍या मूर्ख बनाना आसान है ?



बातों-बातों में ही हमने अपने मित्र से कहा , ‘रजा, क्‍या किसी को मूर्ख बनाना आसान है?’ इस पर हमारे मित्र श्री रजा ने पहले तो साधुओं की भॉंति अपनी भौंहे सिकोड़ी, कुछ देर चुप रहे फिर लम्‍बी सांस छोड़ते हुए बोल ‘’इसमें क्‍या दो राय है। आजकल तो यही व्‍यवसाय फुल फार्म में चल रहा है। यह भी कोई विचार मंथन का विषय है, मूर्ख बनाना तो बहुत आसान है।’’ मैंने पूछा कैसे ? इस पर रजा महाराज के चेहरे पर महात्‍माओं जैसी शान्ति छा गई । कुछ देर मौन रहने के पश्‍चात वे बोले ‘’ कैसे का जवाब मैं क्‍या दूँ, खुद ही जाकर ‘’दादा भाऊ ’’ से पूछ लो।‘’

रजा महाराज ने यह बात कह कर मेरे दिमाग के खुराफाती कीड़े को कुलबला दिया । अब तो मैंने प्रण कर लिया कि कैसे भी हो मूर्ख बनाने की कला सिखनी ही होगी। रजा महाराज ने ‘’ दादा भाऊ ’’ का नाम बतलाकर पहले ही उन्‍हें गुरू तथा मुझे शिष्‍य बना दिया था। मैं पूरी तैयारी के साथ ‘’दादा भाऊ ’’ से मिलने निकल पड़ा। उनके सेक्‍शन में पहुँचा तो देखा की दादा भाऊ अपनी मेज-कुर्सी पर विराजमान थे और चार-पॉंच लोग उन्‍हें घेरे बैठे थे। मैं उनके समीप पहुँचा और बस बोल पड़ा ‘’दादा भाऊ, क्‍या मूर्ख बनाना आसान है ?’’ यह सुनते ही वहॉं बैठे सभी लोग खिलखिलाकर ऐसे हँसने लगे जैसे कि मैंने कोई चुटकूला सुनाया हो। वहीं मेरे मित्र कलंत्रे जी भी थे। मुझे देखते ही वह बोल पड़े, ‘’अरे गुप्‍ता, यार तू सटक गया है क्‍या ?, कहा था न, हिन्‍दी का इतना ज्‍यादा काम मत कर। दिमाग पर असर हो गया न।‘’ इस पर मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। देता भी कैसे, मुझे तो मूर्ख बनाने की कला जो सिखनी थी। अब दादा भाऊ ने मेरी तरफ मुखातिब होते हुए कहा ‘बैठो संतोष, तुम्‍हारी तबीयत तो ठीक है न,’ मैंने कहा ‘दादा भाऊ , तबीयत को मारो गोली, मुझे तो मूर्ख बनाने की कला सिखाओ।‘ दादा भाऊ ठहरे मजे हुए खिलाड़ी उन्‍होंने बहानेबाजी शुरू कर दी ’अरे यार, फाइनेन्‍सीयल ईयर का एन्‍ड है, बहुत काम है। बाद में आना।’ मैं टस से मस नहीं हुआ। 

मेरे कैयकी हठ के आगे दादा भाऊ को आखिर हथियार डालना ही पड़ा। उन्‍होंने बोलना शुरू किया ‘किसी को भी मूर्ख बनाने के कुछ बेसिक फार्मुले हैं इनका पालन करना पड़ता है जैसे हमेशा कांफिडेंड रहो, कपड़े टका-टक पहनों, जेब में सवा रूपए हो न हो पर, बात लाखों के नीचे की न कहो। पर कुछ विशेष परिस्थितियों में इसके अपवाद भी होते हैं। ऊपर की बाते तो मैं समझ चुका था पर अपवाद वाली बात को मैं समझ नहीं सका था। समझता भी कैसे, मैं इस मामले में निरा अनपढ़ था। मैंने कहा, ‘’दादा भाऊ, कुछ उदाहरण दे सकें तो अच्‍छा होगा। आखिर मैं ठहरा नौसिखिया।’’ 

दादा भाऊ ने कहा तो ठीक है, सुनो,- एक दिन मैंने कैसे एक टी.सी. को मूर्ख बनाया। मैं पूर्ण तल्लिनता से उन्‍हें सुनने में लग गया। उन्‍होंने कहा, ‘मेरा रिकार्ड है कि मैंने ट्रेन में कभी भी टिकट लेकर ट्रेवल नहीं किया और फस्‍ट क्‍लास की बोगी से नीचे में ट्रैवलिंग नहीं की।‘ अपने रिकार्ड के अनुरूप मैं एक दिन अम्‍बरनाथ से सी.एस.टी. (मुम्‍बई) फस्‍ट क्‍लास में ट्रैवल कर रहा था। थाणे स्‍टेशन तक आराम से पहुँच गया तभी मेरी नज़र टी.सी. तथा रे.सु.बल के जवानों पर पड़ी । वे बारी-बारी से सभी यात्रियों के टिकट की पड़ताल कर रहे थे। इस दौरान उन्‍होंने मेरे बगल में बैठे व्‍यक्ति से टिकट मॉंगा। वह व्‍यक्ति उठा और अपनी पतलून की जेब टिकट निकालकर आगे बढ़ा दिया । 

टिकट देखते ही टी.सी. के चहरे पर ऐसी मुस्‍कान आयी की जैसे उसने वर्ल्‍ड कप जीत लिया हो। उसने तपाक से कहा, ‘’भाई साहब यह सेकण्‍ड क्‍लास का टिकट है और आप फस्‍ट क्‍लास में ट्रेवल कर रहे हो। चलो, 800 रू. फाइन निकालो। युवक फाइन देने में असमर्थता जताने लगा। बोलने लगा, ‘’साहब, गलती से चढ़ गया, पैसा नहीं है।‘’ इतना सुनना था कि टी.सी. भड़क ऊठा, उसे जलील करने लगा और रे.सु.बल के जवानों ने भी उसके विरूद्ध मोर्चा खोल दिया। मैं समझ चुका था कि अब अगली बारी मेरी थी। इस दौरान टी.सी. ने उसे मारने के लिए हाथ भी ऊठा दिया।

इसे देख मैं समझ गया कि मेरी हालत इससे अच्‍छी नहीं हो सकेगी। इससे पहले कि टी.सी. मुझ तक आते मैं पूरे कांफिडेंस के साथ खड़ा हुआ और जोर से बोल पड़ा, ‘ओ.के. मिस्‍टर, स्‍टॉप दिस नॉनसेन्‍स। हाउ मच इज यॉर फाइन, टेक इट फ्राम मी।’ ऐसा सुनना था कि टी.सी. और रे.सु.बल के जवान शांत हो गए। अब टी.सी. ने अदब के साथ मुझसे कहा , ‘सर’ 800/- रूपीज़ प्‍लीज़। मैंने तुरन्‍त जेब से हजार रूपये का करारा नोट निकालकर टिका दिया। टी.सी. ने अदब से फाइन की पर्ची काट कर उस व्‍यक्ति को पकड़ा दिया और बाकी बचे 200/- रूपये मुझे दे दिया। मेरी इस दरियादिली को देखकर सहयात्री मुझे हीरो की भॉंति सम्‍मान तथा उस युवक को तिरस्‍कार की नजरों से देखने लगे। अमूमन फस्‍ट क्‍लास के यात्री आपस में कम ही बात करते हैं पर मेरी दानवीरता के कृत्‍य के बाद मुझसे बात करने की लोगों में होड़ लग गई।

इस बीच मुलुंड स्‍टेशन आते ही टी.सी. और रेल सुरक्षा बल के जवान उतर गए। अब वह युवक जिसका मैंने फाइन भरा था मुझसे कहने लगा, थैंक्‍स, सर, मैं तो आपको जानता भी नहीं फिर आपने मेरा फाइन भर दिया, आपका बहुत-बहुत धन्‍यवाद। मैंने कुछ जवाब नहीं दिया। 

इस बीच और लोग भी मेरी प्रशंसा करने लगे। वह युवक फिर मुझे धन्‍यवाद देने लगा। अब मुझसे रहा नहीं गया। मैंने जोर से कहा, ‘साले, तेरा फाइन नहीं भरता तो मुझे वह लोग पकड़ नहीं लेते। तेरे पास तो सेकंड क्‍लास का टिकट था, मेरे पास तो वह भी नहीं है।‘ 

अब तो पाठकगण समझ ही गए होंगे कि मूर्ख बनाना....................... । 

गुरुवार, 31 मार्च 2011

ऐतिहासिक प्रतीक बदल गए ?

(नोट :- प्रस्‍तुत लेख मेरे द्वारा नहीं लिखा गया है यह एक कार्यालय की वार्षिक राजभाषा पत्रिका में छपी हुई थी। इसके लेखक श्री प्रेमनारायण शुक्‍ल जी हैं। मैं सामान्‍यत: पत्रिका में प्रकाशित लेखों को अपने ब्‍लॉग में कभी-कभार ही प्रकाशित करता हूँ। प्रस्‍तुत लेख भी उसकी एक कड़ी है । इस लेख को पढ़ने के पश्‍चात मुझे यह महसूस हुआ कि यदि इसे ब्‍लॉग  में नहीं प्रकाशित किया गया तो यह पाठकों के साथ-साथ हमारे भावी पीढ़ी के लिए भी अन्‍याय करने जैसा ही होगा इसलिए इस लेख को उसके लेखक के नाम से ही प्रकाशित कर रहा हूँ।)  

ऐतिहासिक प्रतीक बदल गए ?



अंग्रेजी तथा अंग्रेजियत के प्रति हमारा अगाध मोह किस प्रकार प्रगति के नाम पर नई पीढ़ी को अपनी संस्‍कृति, भाषा  और गौरवशाली इतिहास से दूर कर रहा है , एइसके उदाहरण हिन्‍दुस्‍तान में समय-समय पर मिलते रहे हैं और प्रभावकारी परिवर्तन दिखाई पड़े तो आश्‍चर्य की बात नहीं होनी चाहिए। एक राष्‍ट्रवादी कवि, जो राजनीतिक वातावरण में व्‍याप्‍त प्रदूषण से खासे परेशान8 थे,ख्‍ अपनी व्‍यथा को क्रांतिकारी कलम के जरिए कभी-कभी बाहर प्रकट कर ही देते थे।

यह घटना कुछ वर्षों पूर्व की ही है, शादी के लिए कन्‍या देखने एक परिवार घर आया हुआ था। परिवार में लड़का, उसके माता-पिता, भाई-भाभी तथा छोटे-छोटे बच्‍चे आए थे। अर्थात भारी भरकम दलबल सहित पधारे थे।

घर में कमरे की दीवारों पर भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम तथा राष्‍ट्रीय नेताओं के चित्र लगे थे। उनमें महात्‍मा  गॉंधी, प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू, सर्वपल्‍ली राधाकृष्‍णन, छत्रपति शिवाजी, स्‍वामी विवेकानंद आदि महान विभूतियों के चित्र थे।
  
कवि तथा स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी ने बच्‍चों को प्‍यार से बुलाया तथा बड़े प्रेम से उनका नाम पूछा, फिर महाम्‍ता गॉंधीजी की ओर इशारा करके पूछा  बेटा बताओं ये कौन है? बच्‍चों ने मुँह बिगाड़कर अटपटा सा जवाब दिया, से तो कोई गरीब फकीर दिखता है। लेकिन इसके फोटो को यहॉं पर इतने ऊपर क्‍यों लगा रखा है ?

कमरे का वातावरण अचानक गंभीर हो गया । बच्‍चों के माता-पिता, दादा-दादी को मानो सॉंप सूँघ गया हो। स्‍वतंत्रता सेनानी, राष्‍ट्रवादी कवि इस उत्‍तर को सुनकर खामोश हो गए। फिर कवि जी वातावरण सामान्‍य बनाने के लिए बोले, हॉं बेटा ये पागल फकीर ही था जिसने हमें आजाद देश और आजादी की स्‍वच्‍छ सॉंस दिलवाई है।

अभी वातावरण सामान्‍य हो ही रहा था कि एक बच्‍चे ने डॉ.सर्वपल्‍ली राधाकृष्‍णन की तस्‍वीर देखकर बोला-इस पागल ने अपने सिर को एक्‍सीडेंट से बचाने के लिए हेल्‍मेट के बजाए पता नहीं सिर पर क्‍या बॉंध रखा है ? और फिर घोड़े पर सवार छत्रपति शिवाजी तथा पं. जवाहरलाल नेहरू की तस्‍वीर देखकर बोला,इनको तो कभी चौराहे पर या कही पार्क पर भी देखता हूँ पर नाम कुछ याद नहीं।

लड़के के दादा-दादी, माता-पिता सफाई देने लगे कि बच्‍चे इंटरनेशनल कान्‍वेंट में पढ़ते हैं इसलिए उन्‍हें इन सबकी जानकारी नहीं है। तनावपूर्ण वातावरण में कन्‍या देखने का सारा कार्यक्रम संपन्‍न हुआ और लोग चले गए। प्रश्‍न यह है कि क्‍या हमारी ऐतिहासिक धरोहर और राष्‍ट्रवादिता अब आउटडेटेड हो गयी है ? नई पीढ़ी को कोन्‍ सा परिवेश देंगे ? क्‍या राष्ट्रीय अस्मिता की मृत्‍यु हो गयी?
  
यह इन्‍फोसिस से संबंधित श्रीमति सुधा मूर्तिजी का लेख है। उन्‍हें अपने काम से प्रवास करना पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों के विकास आदि से समय नहीं बचता। एक शिक्षिका के नाते वे छोटी-छोटी घटनाओं का स्‍मरण रखती हैं। आज नई पीढ़ी कहॉं जा रही है ? इनुमान इससे लगता है कि भोपाल में ओजस्विनी पुरस्‍कार में उन्‍हं घोड़े पर सवार झाँसी की रानी लक्ष्‍मीबाई की हाथ में तलवार लिए नितांत सुंदर प्रतिमा प्राप्‍त हुई। इस पुरस्‍कार को अपने ही साथ रखने के लिए विमान कमिर्यों से अनुमति प्राप्‍त कर वो अपनी सीट पर जा बैठीं। मूर्ति गोद में लिए बैठने में असुविधा हो रही थी और पुरस्‍कार में प्राप्‍त मूर्ति नीचे रखने में अपमान होने की समस्‍या थी। अत: सुधाजी मूर्ति को नीचे रखने की सोच भी नहीं सकती थी।

एक एयर होस्‍टेस के ध्‍यान में यह बात आ गयी, उसने वह पुरस्‍कार लेकर एक्‍जीक्‍यूटिव क्‍लास के एक खाली सीट पर ससम्‍मान ठीक से रख दिया। विमान प्रवासी प्राय: आपस में बातचीत नहीं करते । इस प्रवास में सुधा मूर्ति जी के पास ही एक युवक-युवती जो कि चचेरे भाई-बहन थे, बैठे थे तथा दिल्‍ली में अपने दादा-दादी से मिलकर लौट रहे थे। उनमें से युवती ने पूछा- मैडम बढिया खुबसुरत खिलौना है, क्‍या ऐसे खिलौने बैंगलोर में नहीं मिलते ? आप इसे संभाल नहीं पा रही थी और नीचे रखने को भी तैयार नहीं थी। सुधा जी ने बताया, यह खिलौना नहीं, यह तो मुझे मिला पुरस्‍कार है। अब युवक ने मुँह खोला-उसने कहा, लगता है आपको घुड़सवारी, तलवारबाजी का खूब शौक है। यह क्‍या किसी रेसकोर्स का घोड़ा है?

सुधा जी को बात मन में चुभ गई। उन्‍होंने कहा, आप उसे खूब ध्‍यान से देख आइए। फिर बताइये, आपको क्‍या लगता है। हमने उसे देखा है इसलिए तो पूछ रहे हैं। उत्‍तर सुनकर सुधाजी का हृदय टूट गया, गहरा धक्‍का लगा। एक शिक्षिका का कर्तव्‍य बोध याद करके, प्रतिमा किसकी है समझाना आवश्‍यक समझा और युवक-युवती से पूछा, आपने प्रथम स्‍वतंत्रता संग्राम के बारे में सुना है।

उत्‍तर मिला- हॉं-हॉं, 1942 में जो हुआ था न। उसे पढ़ा है, उस पर बनी फिलम भी देखी है, उसका नाम था  1942 ए लव स्‍टोरी। उसमें ब्रिटिश लोगों के साथ लड़ाई भी होती है और मनीषा कोईराला कितनी सुंदर लग रही थी।

सुधा जी ने अपना माथा पकड़ा और भूत की कुर्बानियों और भविष्‍य के खतरों के विषय में सोचती रहीं। उन्‍होंने फिर 1942 से 100 वर्ष पूर्व ब्रिटिश शासन की क्रूरता के वातावरण को समझाते हुए झॉंसी की रानी की प्रतिमा के विषय में विस्‍तार से समझाया। वे दोनों उनकी बातों को ध्‍यानपूर्वक सुनते रहे। देश को आजादी मिले 63 वर्ष गुजर गए हैं और हमारी युवा पीढ़ी इस बेशकिमती ऐतिहासिक सच्‍चाई से कितनी जल्‍दी अपरिचित होती जा रही है। उसे इसका आभास तक नहीं है, यह तथ्‍य एक बार पुन: प्रकट हुआ। अपने ऐतिहासिक विरासत और गौरवमय इतिहास का स्‍मरण कराने के लिए आगे बढ़ने वालों की देश में कमी नहीं है। क्‍या अब कुछ गिने चुने अवसर रह गए हैं जब अपनी राष्‍ट्रीयता, ऐतिहासिक धरोहर की यदा-कदा याद करके, उपकार कर दिया जाए। यह सब कब और कैसे होगा, राष्‍ट्रीय प्रतीक, धरोहर आदि भविष्‍य में विलुप्‍त तो नहीं हो जाएंगे अथवा क्‍या हमारे प्रतिमान भी आयातीत किए जाएंगे। आशा है इस यक्ष प्रश्‍न का उत्‍तर मिल सकेगा।


!!जय हिन्‍द!! जय भारत!!


शुक्रवार, 4 मार्च 2011

गुगल ट्रांस्लिट्रेशन आई.एम.ई. स्‍टैण्‍ड एलोन वर्जन



 

गुगल ट्रांस्लिट्रेशन आई.एम.. स्‍टैण्‍ड एलोन वर्जन


गुगल ट्रांस्लिट्रेशन आई.एम.ई. एक प्रकार का इनपूट मेथड़ है जो कि रोमन की-बोर्ड के माध्‍यम से यूनिकोड समर्थित भाषा में टंकण करने की स्‍वतंत्रता प्रदान करता है। इसके द्वारा उपयोगकर्ता लैटिन लिपि की ध्‍वनि अर्थात उच्‍चारण अनुरूप किसी शब्‍द या वाक्‍यांश विशेष को वांछित भाषा में टंकित कर सकता है। उदाहरण के लिए अंग्रेजी के "hamesha" शब्‍द को यह आई.एम.ई. हिन्‍दी में "हमेशा" के रूप में प्रदर्शित करेगा।

गुगल ट्रांस्लिट्रेशन आई.एम.ई. अम्‍हेरिक, अरबी, बंगाली, फारसी, ग्रीक, गुजराती, हीब्रू, हिन्‍दी, कन्‍नड़, मलयालम, मराठी, नेपाली, ओरिया, पंजाबी, रूसी, संस्‍कृत, सर्बियन, सिंहली, तमिल, तेलगु, तिघरियन तथा उर्दू जैसे कुल 22 भिन्‍न भाषाओं में नि:शुल्‍क उपलब्‍ध है। 

मूलत: यह ऑन-लाइन टाइपिंग टूल है  तथा दिनो-दिन लोकप्रिय होता जा रहा है किन्‍तु  इसके इन्‍स्‍टालेशन हेतु इंटरनेट कनेक्‍शन की अनिवार्यता एक बहुत बड़ी समस्‍या बनी हुई है क्‍योंकि यह टूल  केवल उसी कम्प्‍यूटर में इंस्‍टाल किया जा सकता है जो इंटरनेट से जुड़ा हुआ हो। इस प्रक्रिया में वस्‍तुत:  इन्‍स्‍टालर एक्जिक्‍यूट होनेवाला एक रैपर स्‍टब डाउनलोड करता है। जब आप इस फाइल को रन करते हैं  तो यह आपको अद्यतन इन्‍स्‍टालर डाउनलोड कर सिस्‍टम पर आई.एम.ई. संस्‍थापित करने देता है और सफल संस्‍थापना उपरान्‍त स्‍वयं को डिलिट कर देता है। ऐसा करके गुगल कंपनी यह सुनिश्चित करना चाहती है कि  प्रयोगकर्ता को सदैव गुगल ट्रांस्लिट्रेशन टूल का नवीनतम संस्‍करण उपलब्‍ध होता रहे परन्‍तु गुगल कंपनी की यही दृष्टिकोण ऐसे सभी कंप्‍यूटर जो इन्‍टरनेट से नहीं जुड़े हैं, में देशी भाषा के संस्‍थापना में बाधक हो रही है। उदाहरण के लिए भारत जैसे विकासशील देश में जहॉं अब भी बहुत सारे कंप्‍यूटर इंटरनेट से नहीं जुड़े हैं। गुगल द्वारा उक्‍त टाइपिंग टूल का स्‍टैंडएलोन ऑफ-लाइन संस्‍करण उपलब्‍ध नहीं करवाए जाने के कारण भारत में लोग इस टाइपिंग टूल को अपने स्‍वतंत्र पर्सनल कम्‍प्‍यूटर सिस्‍टम में इंस्‍टाल कर पाने में असमर्थ हैं।

समाधान

इस समस्‍या का समाधान गुगल ट्रॉंस्लिट्रेशन टाइपिंग टूल के ऑन-लाइन वर्जन के वास्‍तविक आई.एम.ई. इंस्‍टालर की क्रमश: लोकेशन ज्ञात कर स्‍टैंडएलोन ऑफ-लाइन संस्‍करण में परिवर्तित कर निकाला जा सकता है। चूँकि वास्‍तविक ट्रॉंस्लिट्रेशन आई.एम.ई. आपके सिस्‍टम में स्‍टब डाउनलोडर के माध्‍यम से डाउनलोड होता है अत: आप उसका लोकेशन सहजता से ज्ञात कर सकते हैं तथा उसका प्रयोग कर स्‍वतंत्र कम्‍प्‍यूटर में पूर्वोक्‍त टाइपिंग टूल इंस्‍टाल कर सकेंगे। इंस्‍टालेशन विधि निम्‍नानुसार है :-

  1. सर्वप्रथम एडमिनिस्‍ट्रेटिव प्रिविलेजयुक्‍त विंडोज कम्‍प्‍यूटर को इंटरनेट से कनेक्‍ट कर हिन्‍दी टंकण हेतु गुगल ट्रांस्लिट्रेशन आई.एम.ई. युनिकोड एप्लिकेशन को डाउनलोड करने के लिए www.google.com/ime/transliteration बेबसाइट ओपन करें।
  2. आवश्‍यकता अनुसार क्रमश: ड्रॉपडाउन मेन्‍यू से आई.एम.ई. भाषा तथा कम्‍प्‍यूटर की आवश्‍यकता अनुरूप रेडियो बटन का प्रयोग कर 32 बिट अथवा 64 बिट का चयन कर ”Download Google IME”प्रेस बटन को दबा दें। सामान्‍यत: आम प्रयोग के पर्सनल कम्‍प्‍यूटर 32 बिट वाले ही होते हैं।   

          
  1. ऐसा करते ही स्‍क्रीन पर googlehindiinputsetup.exe. नामक एक फाइल उभर आएगा जिसे सेव फाइल प्रेस बटन दबा कर अपने सिस्‍टम में सेव कर लें। मेरे द्वारा दिनांक 16 जूलाई, 2010 को डाउनलोडेड इस फाइल की साइज 554 KB (567,624 bytes) थी। 
 
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  1. अब अपने कम्‍प्‍यूटर पर डाउनलोड हुए googleinputsetup.exe फाइल की लोकेशन ज्ञात कर माउस डबल क्लिक से इन्‍स्‍टालर को सक्रिय करें। इस दौरान यह सुनिश्चित करें कि आपका कम्‍प्‍यूटर इंटरनेट से जुड़ा रहे ।

  1. विंडोज मशीन के आपके सीक्‍यूरिटी सेटिंग के अधार पर आपको “do you want to run this file?” नामक सीक्‍यूरिटी वार्निंग प्राप्‍त हो सकता है । ऐसी स्थिति में माउस से रन प्रेस बटन को क्लिक कर दें।  

  1. अब इंस्‍टालर इंटरनेट से कनेक्‍ट हो जाएगा तथा वास्‍तविक इंस्‍टालर फाइल डाउनलोड करना आरंभ कर देगा।

   7.      डाउनलोड समाप्‍त होते ही गुगल स्‍टब इंस्‍टालर वास्‍तिवक इंस्‍टालर आरम्‍भ कर देगा तथा प्रथम स्क्रिन के रूप में एंड यूजर लाइसेंस एग्ररमेंट प्रदर्शित हो जाएगा।

   8.  कृपया नेक्‍सट’’ प्रेस बटन को क्लिक नहीं करें क्‍योंकि हम आई.एम.ई. को इस रूप में इंस्‍टाल नहीं करना चाहते हैं। अब हमे विंडोज मशीन पर वास्‍विक इंस्‍टालर का लोकेशन ज्ञात करना होगा।

गुगल ट्रॉस्लिट्रेशन आई.एम.. ऑफ- लाइन इन्स्टालर लोकेट करने की पहली पद्धति

1.         अपने कम्‍प्‍यूटर में गुगल निर्मित सॉफ्टवेयर डायरेक्‍टरी को खोजें। यदि आप पहले से ही गुगल कम्‍पनी द्वारा निर्मित कोई उत्‍पाद अर्थात सॉफ्टवेयर प्रयोग में ला रहे हैं तो उसके इन्‍स्‍टालेशन डायरेक्‍टरी को खोजें। मेरे कम्‍प्‍यूटर में गुगल कम्‍पनी के उत्‍पाद अर्थात सॉफ्टवेयर c:\Program Files\google डायरेक्‍टरी में इन्‍स्‍टाल्‍ड है। मैं इसी डायरेक्‍टरी का प्रयोग अगली कार्रवाई हेतु करूँगा। 

2.         c:\ ड्राइव के अर्न्‍तगत बने क्रमश:Program Files\google फोल्‍डर से होते हुए Update\ Download. फोल्‍डर को लोकेट कर लें।

3.         अब आप c:\Program Files\google\ Update\ Download फोल्‍डर के अन्‍तर्गत अत्‍यन्‍त लम्‍बा नामवाला डायरेक्‍टरी बना पाएंगे जो कि ‘’{‘’ चिह्न से आरम्‍भ होकर ‘’ }‘’  चिह्न से समाप्‍त होगा तथा इस डायरेक्‍टरी के नाम में चार ‘’-‘’ चिह्न बने होंगे है। उदाहरण के लिए मेरे कम्‍प्‍यूटर में इस डायरेक्‍टरी का नाम {0FF3CE40-F329-483C-A3F5-03BFCC07A90C}है।

4.         अंतिम चरण में पूर्वोक्‍त डायरेक्‍टरी में आप .exe एक्‍सेटशन युक्‍त googlehindiinputsetup.exe फाइल बना पाएंगे। आप पाएंगे कि इस .exe एक्‍सेटशन युक्‍त फाइल का नाम तथा आप द्वारा पूर्व में डाउनलोड किए गए स्‍टब इन्‍स्‍टालर का नाम एक ही है किन्‍तु इसका साइज पहले डाउनलोड किए गए फाइल की अपेक्षा बड़ा होगा। मेरे कम्‍प्‍यूटर में इस फाइल की संख्‍या 3.18 MB (3,337,200 बाइट्स) है।

अंतिम चरण में पूर्वोक्‍त फाइल को किसी भी एक्‍सटरनल मीडिया जैसे की पेन ड्राइव या सी.डी. में कॉपी कर स्‍वतंत्र पी.सी. में डबल क्लिक कर रन कर दें। इस फाइल के रन होते ही संबंधित कम्‍प्‍यूटर में गुगल आई.एम.ई. इंस्‍टाल हो जाएगा।



विंडोज रजिस्टरी का प्रयोग कर गुगल ट्रॉस्लिट्रेशन आई.एम.. ऑफ-लाइन इन्स्टालर लोकेट करने की द्धितीय पद्धति

1.         यदि किसी कारणवश उस डायरेक्‍टरी विशेष को लोकेट नहीं कर पाते हैं जिसमें गुगल सॉफ्टवेयर इंस्‍टाल्‍ड है तो आप विंडोज रजिस्‍टरी एडिटर का प्रयोग कर ऑफ-लाइन स्‍टैण्‍ड एलोन आई.एम.ई. इन्‍स्‍टालर को लोकेट कर सकते हैं।

2.         कमाण्‍ड प्राम्‍पट में  “regedit” टाइप कर माउस से ओ.के. प्रेस बटन दबा दें। ऐसा करते ही रजिस्‍टरी एडिटर ओपन हो जाएगा।


3.         अब क्रमश: एडिट तथा फाइंड को माउस से सक्रिय कर MUIcache. खोजें।


 4.         अब रजिस्‍टरी में MUIcache key हाईलाइट होकर प्रदर्शित हो जाएगा।  तदुपरान्‍त MUIcache पर राइट क्लिक कर माउस से एक्‍स्‍पोर्ट कमांड क्रियान्वित करें।


5.         रजिस्‍ट्ररी के MUIcache ब्रान्‍च को टेक्‍स्‍ट फाइल में MUIcache.txt नामक एक्‍स्‍टेंशन फाइल से सेव करें।

6.   अब MUIcache.txt  को नोटपेड जैसे किसी भी टेक्‍स्‍ट एडिटर सॉफ्टवेयर में ओपन कर \Update\Download\. वाक्‍यांश को सर्च करें।  उक्‍त वाक्‍यांश सर्च करने के उपरान्‍त उसके पूर्ण पॉथ का अनुसरण करते हुए standalone Hindi IME installer को कॉपी कर लें । पूर्वोक्‍त फाइल को किसी भी एक्‍सटरनल मीडिया जैसे की पेन ड्राइव या सी.डी. में कॉपी कर स्‍वतंत्र पी.सी. में डबल क्लिक कर रन कर दें। इस फाइल के रन होते ही संबंधित कम्‍प्‍यूटर में गुगल आई.एम.ई. इंस्‍टाल हो जाएगा।



न्‍स्‍टॉलेशन :- इस आई.एम.ई. को इन्‍स्‍टॉल करने हेतु सर्वप्रथम अपने सिस्‍टम को इंटरनेट से कनेक्‍ट कर गुगल ट्रांस्लिट्रेशन आई.एम.ई. इंस्‍टालेशन वेबपेज ओपन कर लें। तदुपरान्‍त कम्‍प्‍यूटर के ऑपरेटिंग सिस्‍टम के अनुरूप ड्रॉप डाउन मेन्‍यू अपेक्षित विकल्‍प का चयन करें। ऐसा करते ही डेस्‍कटॉप पर ‘’गुगल हिन्‍दी इनपूट सेटअप विजार्ड’’ नामक विन्‍डो ओपन हो जाएगा। अब उपयोगकर्ता उक्‍त विजार्ड में विद्यमान एन्‍ड यूजर लाइसेंस एग्रीमेन्‍ट सूचक चेक बॉक्‍स में माउस से क्लिक कर क्रमश: नेक्‍स्‍ट तथा फिनिश प्रेस बटन दबा दे। अब सिस्‍टम में गुगल ट्रांस्लिट्रेशन आई.एम.ई. स्‍वत: ही इन्‍स्‍टॉल हो जाएगा। उल्‍लेखनीय है कि एक ही सिस्‍टम पर एक से अधिक भाषाओं के लिए आई.एम.ई. इन्‍स्‍टॉल किया जा सकता है। 

कॉंफिगरेशन :- गुगल ट्रांस्लिट्रेशन आई.एम.ई. को नोटपैड जैसे किसी भी एप्लिकेशन के साथ प्रयोग में लाए जाने हेतु सर्वप्रथम नोटपैड को ओपन कर डेस्‍कटॉप पर विद्यमान लैग्‍वेज बार में से गुगल आई.एम.ई. लैग्‍वेज ऑयकन को क्लिक करें । ऐसा करते ही आप नोटपैड में टंकण करने में सक्षम हो जाएंगे।

लैग्वेज बार एनेबल अर्थात सक्रिय किया जाना:- विंडोज एक्‍स.पी. में यदि कम्‍प्‍यूटर में लैग्‍वेज बार एनेबल अर्थात सक्रिय नहीं किया गया है तो उक्‍त को निम्‍नानुसार सक्रिय किया जा सकता है:-

1.      अपने कम्‍प्‍यूटर के क्रमश: स्‍टार्ट एवं प्रोग्राम मेन्‍यू से होते हुए कन्‍ट्रोल पैनल में जाऍं। वहॉं 'रिजनल एण्‍ड लैंग्‍वेज ऑप्‍शन' को सक्रिय करते हुए 'लैंग्‍वेज' टैब को क्लिक करें। 

2.      तदुपरान्‍त 'इन्‍स्‍टॉल फाइल्‍स फार काम्‍पेलेक्‍स स्क्रिप्‍ट चेक बॉक्‍स' के सम्‍मुख प्रदर्शित चेक बॉक्‍स को क्लिक कर 'ओ.के.' प्रेस बटन को दबाएं। यदि आपके कम्‍प्‍यूटर में विंडोज एक्‍स.पी. पूर्ण रूप से इन्‍स्‍टॉल किया गया होगा तो सिस्‍टम स्‍वत: ही कॉम्‍प्‍लेक्‍स स्क्रिप्‍ट हेतु वांछित फाइल्‍स इन्‍स्‍टॉल कर देगा अन्‍यथा विन्‍डोज एक्‍स.पी. सी.डी. को सीडी.रॉम में डाले जाने संबंधी निदेश स्‍क्रीन पर प्रदर्शित करेगा। सीडी.रॉम में वांछित सी.डी. डाले जाने पर कम्‍प्‍यूटर स्‍वत: ही आवश्‍यक फाइल्‍स ग्रहण कर लेगा। ऐसा होते ही इन्डिक लैंग्‍वेज सपोर्ट आपके कम्‍प्‍यूटर पर इन्‍स्‍टॉल हो जाएगा। इन्‍स्‍टॉलेशन के अन्तिम चरण में कम्‍प्‍यूटर को 'रिस्‍टार्ट' करें।

3.      गुगल ट्रांस्लिट्रेशन आई.एम.ई. की-बोर्ड जोड़ना:  पूर्वोक्‍त विधि द्वारा क्रमश: स्‍टार्ट, सेटिंग्‍स तथा कन्‍टोल पैनल मैन्‍यू से होते हुए रिजनल एण्‍ड लैंग्‍वेज ऑप्‍शन डायलॉग बॉक्‍स के 'लैंग्‍वेज' टैब को सक्रिय कर 'डिटेल' प्रेस बटन को क्लिक करें। ऐसा करते ही 'टेक्‍स्‍ट सर्विस एण्‍ड इनपूट लैंग्‍वेज सर्विस डायलॉग बॉक्‍स' प्रदर्शित हो जाएगा जिसमें आपके सिस्‍टम में विद्यमान विविध की-बोर्ड तथा उन्‍हें जोड़ने और हटाने हेतु 'ऐड' व 'रिमूव' प्रेस बटन दिखाई देंगे।  'ऐड' बटन को माउस द्वारा प्रेस कर 'इनपूट लैंग्‍वेज' सूची में 'हिन्‍दी' तथा प्रदर्शित 'की-बोर्ड ले-आउट' में 'गुगल आई.एम.ई. की-बोर्ड ले-आउट' को चुन कर 'अप्‍लाय' व 'ओ.के.' बटन को क्लिक करें। ऐसा होते ही गुगल आई.एम.ई. की-बोर्ड आपके कम्‍प्‍यूटर से जुड़ जाएगा।

4.      भाषा परिवर्तन हेतु कुँजी सैट करना: उपरोक्‍त डायलॉग बॉक्‍स में विद्यमान की-सेटिंग्‍स प्रेस बटन को क्लिक कर आवश्‍यकता एवं रूचि अनुसार अंग्रेजी से हिन्‍दी तथा हिन्‍दी से अंग्रेजी में भाषा परिवर्तन हेतु कुँजियों को नए सिरे से सैट किया जा सकता है। सामान्‍यत: भाषा परिवर्तन के लिए ALT+SHIFT को डिफाल्‍ट सेटिंग्‍स के रूप में रखा गया है। भाषा परिवर्तन संबंधी कुँजी सेट करने के उपरान्‍त ओ.के. प्रेस बटन को क्लिक कर दें।

5.      पूर्वोक्‍त क्रिया की समाप्ति के साथ ही कम्‍प्‍यूटर मॉनिटर की दाँयी ओर नीचे एक टास्‍कबार पर ‘स्‍टेटस विंडो’ बना पाएंगे जिसमें भाषा परिवर्तन, चयनित भाषा विशेष के अक्षर संबंधी ले-आउट, मैक्रो सहायता आदि विकल्‍प उपयोगकर्ता के त्‍वरित संदर्भ हेतु मिलेंगे।

टंकण विधि :- इस आई.एम.ई. द्वारा उपयोगकर्ता लैटिन लिपि की ध्‍वनि अर्थात उच्‍चारण अनुरूप किसी शब्‍द या वाक्‍यांश विशेष को नोटपैड, वर्ड पैड, एम.एस. वर्ड, एम.एस. पावर पाइंट, एम.एस. एक्‍सेल आदि टेक्‍स्‍ट एडिटिंग सॉफ्टवेयर में टंकित कर सकता है। जैसे ही उपयोगकर्ता की बोर्ड पर विद्यमान लैटिन अक्षर टाइप करेगा उस स्‍थान विशेष के बगल में ‘एडिट विन्‍डो’ प्रदर्शित हो जाएगा जिसमें टंकित अक्षर के समतुल्‍य हिन्‍दी में विविध संभावित शब्‍द प्रदर्शित हो जाएंगे। इनमें से वांछित शब्‍द को प्रयोगकर्ता क्रमश: ऐरो तथा तदुपरान्‍त एण्‍टर कुँजी का प्रयोग अपने टेक्‍स्‍ट एडिटिंग सॉफ्टवेयर में समाहित कर सकेगा। 

की-बोर्ड शार्टकट :- अपेक्षित अक्षर न मिलने की स्थिति में उपयोगकर्ता के सुविधा हेतु चयनित भाषा विशेष के वर्णमाला संबंधी ले-आउट को स्‍टेटस विंडो में उपलब्‍ध फ्लेक्सिबल की-बोर्ड माउस से सक्रिय कर प्राप्‍त किया जा सकता है अथवा इस कार्य हेतु नियत की-बोर्ड शार्टकट CTRL+K प्रेस क पाया जा सकता है।  

मैक्रो :- किसी निर्धारित शब्‍द या वाक्‍यांश को बारम्‍बार टंकण करने से बचने हेतु गुगल आई.एम.ई. में उपयोगकर्ता अपनी आवश्‍यकता एवं रूचि के अनुरूप ‘मैक्रो’ तैयार  कर सकता है । इसके लिए स्‍टेटस विंडो में उपलब्‍ध माउस द्वारा मैनेज मैक्रो विकल्‍प को माउस से सक्रिय किया जा सकता है। ऐसा करते ही मैनेज मैक्रो विंडो ओपन हो जाएगा । अब उपयोगकर्ता ऐड बटन को क्लिक कर दे जिससे मैक्रो टैक्‍स्‍ट व मैक्रो टारगेट कॉलम  में एक खाली रो बन जाएगी। अब मैक्रो टैक्‍स्‍ट कॉलम के नीचे बने सेल को डबल क्लिक कर उसमें लैटिन अक्षर या शब्‍द टाइप करें। इसी प्रकार मैक्रो टारगेट कॉलम के नीचे बने सेल को डबल क्लिक कर उसमें उस लैटिन अक्षर या शब्‍द का समतुल्‍य हिन्‍दी अक्षर या शब्‍द टाइप कर ‘’सेव’’ प्रेस बटन को माउस से क्लिक कर दें।
मैक्रो संपादन :- पूर्वोक्‍त प्रक्रिया का अनुसरण करते हुए पहले से बनाए गए मैक्रो का संपादन किये जाने की भी व्‍यवस्‍था है । इसके लिए सेल को डबल क्लिक कर उसमें विद्यमान शब्‍द को संपादित कर ‘’सेव’’ प्रेस बटन को माउस से क्लिक कर दें। बनाए गए मैक्रो को स्‍थाई रूप से हटाने के लिए सेल विशेष को सिलेक्‍ट कर की-बोर्ड में विद्यमान ‘’डिलिट’’ बटन को प्रेस करें।

अन् सुविधाएं :- इस आई.एम.ई. में पेज सेटअप तथा एडिट विन्‍डो प्रदर्शित होनेवाले शब्‍दों के फॉन्‍ट तथा साइज, को भी अपनी रूचि के अनुरूप उपयोगकर्ता बदल सकता है। इसके अतिरिक्‍त स्किम विकल्‍प के अन्‍तर्गत .scm एक्‍सटेशन का प्रयोग कर नई भाषाओं को भी टंकित करने सुविधा प्राप्‍त होती है।  

नोट :- हिन्‍दी टंकण हेतु गुगल ट्रांस्लिट्रेशन आई.एम.ई. युनिकोड एप्लिकेशन को www.google.com/ime/transliteration बेबसाइट से नि:शुल्‍क इन्‍टरनेटयुक्‍त पी.सी. पर लोड कर उपयोग में लाया जा सकता है।