सीख
बात उन दिनों की है जब मैं अपनी पढ़ाई पूर्ण कर शासकीय निर्माणी में कनिष्ठ हिन्दी अनुवादक के पद पर तैनात ही हुआ था । पहली व नई नौकरी थी लिहाजा मैं हर कार्य सम्भलकर तथा निष्ठापूर्वक करने का प्रयास करता था । मुझे सौंपे गए कार्य को सावधानी करने के साथ- साथ अपने कार्यालय में स्वयं को स्थापित व सिद्ध भी करना था । अत: सौंपे गए कार्य के त्वरित निपटान में लग जाता था और सच तो यह भी था कि मुझमें अनुभव की भी कमी थी । इसी क्रम में मेरे जीवन में एक ऐसा अनुभव आया जिसने मेरी सोच को बदल दिया और शासकीय विभाग में कार्य करने के तरीके को सीखा दिया ।
हमारे हिन्दी अधिकारी श्री चन्द्रभान मौर्य एक अत्यन्त सख्त एवं ज्ञानी अधिकारी थे जो अपने अनुवादकों से उनकी प्रतिभा का 100 प्रतिशत प्रयोग सुनिश्चित करवाते थे। इसके अतिरिक्त वे अधीनस्थों से 100 प्रतिशत सही व परिशुद्ध (एक्युरेट) उत्तर की अपेक्षा रखते थे। मैं चूँकि नया था और अपने अधिकारी के इन गुणों से अपरिचित था और मेरे लिए शासकीय निर्माणी में कार्य मतलब नगरपालिका के कर्मचारियों के कार्य से अलग नहीं था जो कि 'पैसे रूपी ग्रीस' के अभाव में अपनी मेज से फाइलों को महिनों तक हिलने नहीं दिया करते हैं ।
हमारा राजभाषा अनुभाग प्रशासनिक खण्ड से करीबन आधे किलोमीटर की दूरी पर स्थित था और कभी -कभार ही हम अनुवादक निर्माणी के अन्य अनुभागों में जाया करते थे । एक दिन हमारे हिन्दी अधिकारी महोदय ने मुझसे कहा कि '' संतोष FR RULES की किताब दो ।'' इस पर मैंने बिना सोचे जोश में कह दिया कि ''सर , FACTORY RULES की किताब अलमारी में है । इस पर उन्होंने अत्यन्त सहजता से कहा कि संतोष तुरन्त प्रशासनिक खण्ड स्थित स्थापना अनुभाग के फोरमैन से व्यक्तिगत रूप से जाकर पता लगाइए कि ''FR '' का फुलफार्म क्या है ?
''मरता क्या न करता '' मई महिने की गर्मी में मैं तत्काल स्थापना अनुभाग की चल पड़ा । स्थापना अनुभाग के फोरमैन से जाकर मैंने अपनी शंका बतालाई तो उन्होंने मुस्कुराते हुउ कहा कि ''संतोष , FR का अर्थ FACTORY RULES नहीं बल्कि FUNDAMENTAL RULES होता है ।''
इतना सुनना था कि मेरा जोश सोंडा वाटर के बुलबुले की तरह शांत हो गया । अब मैं भारी मन से राजभाषा अनुभाग की ओर बढ़ चला । अनुभाग में पहुँचते ही मैंने देखा कि मेरे वरिष्ठ सहयोगी श्री मिलिंद एल.शेडगे, हिन्दी अनुवादक, श्री एन.आर.गुमगांवकर, हिन्दी टंकक तथा श्री डी.एस.मुदलियार, अवर श्रेणी लिपिक मंद-मंद मुस्कुरा रहें हैं।
मुझे देखते ही हिन्दी अधिकारी महोदय ने बैठने का इशारा किया और चतुर्थ श्रेणी कार्मिक को पानी लाने का आदेश दिया । मेरे द्वारा पानी पिने के बाद उन्होंने पूछा ''संतोष , FRका फुलफार्म ज्ञात हुआ ? इस प्रश्न की अपेक्षा मैं पहले से ही कर रहा था पर उत्तर क्या होगा मुझे यह सूझ नहीं आ रहा था। प्रश्न के जवाब में मैं बस मौन रहा । मेरी मनोदशा उनसे छिपी हुई नहीं थी । डरते-डरते विनम्रतापूर्वक मैंने हिन्दी अधिकारी महोदय से पूछ लिया '' सर, यदि आपको FRका फुलफार्म ज्ञात था तो मुझे भरी दोपहरी में स्थापना अनुभाग तक क्यों भेजा ? आप चाहते तो यहीं मेरी त्रुटि को सुधार सकते थे।''
इस पर उन्होंने कहा कि '' इसमें कोई शक नहीं कि मैं यहीं पर बैठे-बैठे तुम्हारी त्रुटि को सुधार सकता था , पर यदि मैं ऐसा कर देता तो तुम इस भूल को साधारण तरीके से लते तथा कुछ दिनों बाद इस वाकये को भुला देते और हर बात को सहजता से लेने की तुम्हारी प्रवृत्ति कभी गम्भीर नहीं होती । ''संतोष , याद रखो कि शासकीय सेवा में कार्मिक की विश्वसनीयता , सक्षमता सदैव उसके द्वारा लिखे व बोले गए तथ्यों पर पर निर्भर होती है। अत: जो भी कहो उसके बारे में पहले स्वयं निश्चत (स्यूर) हो जाओं ।''
अब हमारे अधिकारी महोदय का स्थान्नातरंण अन्य स्टेशन पर हो गया पर उनकी सीख आजीवन मेरे मानस पटल पर उत्कीर्ण हो गयी है।
यह ब्लॉग समर्पित है उन लोगों को जिन्हें अपनी राजभाषा हिन्दी से प्रेम है तथा तमाम कठिनाइयों के बावजूद भी उसकी प्रगति के लिए प्रयासरत है। जय हिन्द , जय भारत।
बुधवार, 29 अप्रैल 2009
चुनाव का करिश्मा
चुनाव का करिश्मा
लोकसभा का देश में , चल रहा आज चुनाव ।
चुनाव के माहौल में, नेतन के बदल गए स्वभाव।।
बदल गए स्वभाव , नेता गली-गली में घुमे।
वोट के खातिर , नेता मतदाता के पद चूमें।।
बाल मेवाती कहे, करूणा के बन गए मूरत ।
जीत के आने पर , इनकी नहीं दिखेगी सूरत।।
पी.एम. महोदय की सीट पर, सबकी टिकी नजर ।
देश, गरीबी, जनता की , इनको नहीं फिकर ।।
इनको नहीं फिकर, कोई मंदिर की बात उठावे।
अन्न, जल , कपड़ा मिलें न सबको, विकास की ताल बजावे।।
बाल मेवाती कहे , शहर-शहर में करते रैली ।
सभी पार्टी आज देश की , अस्मिता से खेली ।।
लोकतंत्र का देश में , हो रहा बुरा हाल।
जीतने के बाद नेता, चले बेढंगी चाल ।।
चले बेढंगी चाल, संसद की गरीमा खोते ।
इनका नाटक देख,भगवान सुबक-सुबक के रोते।।
बाल मेवाती कहे, अब जनता समझ गई है।
हमाम में सब नंगे हैं, सबको परख गई है।।
चुनाव के दौरान , नेता बोले मिठे बोल ।
एक-दूजे की खोलते, खड़े मंच पर पोल।।
खड़े मंच पर पोल,शब्दों के तीर छोड़ें।
अपने पापों की मटकी, दूजे के सिर फोड़ें।।
बाल मेवाती कहें,जीत के बाद करते हैं चिन्तन।
सरकार बनाने के खातीर, करते हैं गठबंधन।।
लोकसभा का देश में , चल रहा आज चुनाव ।
चुनाव के माहौल में, नेतन के बदल गए स्वभाव।।
बदल गए स्वभाव , नेता गली-गली में घुमे।
वोट के खातिर , नेता मतदाता के पद चूमें।।
बाल मेवाती कहे, करूणा के बन गए मूरत ।
जीत के आने पर , इनकी नहीं दिखेगी सूरत।।
पी.एम. महोदय की सीट पर, सबकी टिकी नजर ।
देश, गरीबी, जनता की , इनको नहीं फिकर ।।
इनको नहीं फिकर, कोई मंदिर की बात उठावे।
अन्न, जल , कपड़ा मिलें न सबको, विकास की ताल बजावे।।
बाल मेवाती कहे , शहर-शहर में करते रैली ।
सभी पार्टी आज देश की , अस्मिता से खेली ।।
लोकतंत्र का देश में , हो रहा बुरा हाल।
जीतने के बाद नेता, चले बेढंगी चाल ।।
चले बेढंगी चाल, संसद की गरीमा खोते ।
इनका नाटक देख,भगवान सुबक-सुबक के रोते।।
बाल मेवाती कहे, अब जनता समझ गई है।
हमाम में सब नंगे हैं, सबको परख गई है।।
चुनाव के दौरान , नेता बोले मिठे बोल ।
एक-दूजे की खोलते, खड़े मंच पर पोल।।
खड़े मंच पर पोल,शब्दों के तीर छोड़ें।
अपने पापों की मटकी, दूजे के सिर फोड़ें।।
बाल मेवाती कहें,जीत के बाद करते हैं चिन्तन।
सरकार बनाने के खातीर, करते हैं गठबंधन।।
मंगलवार, 28 अप्रैल 2009
नेता की आत्मा
नेता की आत्मा
यमदूत और यमराज का वार्तालाप
यमलोक में यमदूत से , बोल रहे यमराज।
एक दलबदलू नेता , जग से विदा हो रहा आज।।
विदा हो रहा आज, तुम फौरन भारत में जाओं।
दिल्ली जा के, संसद भवन के चक्कर आप लगाओ।।
बाल मेवाती कहे, आत्मां संसद में घुस न पाए।
सांसदों से मिल, कहीं रिश्व त खाए और खिलाए।।
यमराज की बाते सून बोला यम का दूत।
दलबदलू नेता की हम, खूब सूनी करतूत।।
खूब सूनी करतूत , उनकी तो मर चुकी है आत्मा।
क्यों मजाक करते हो हमसे, आप मेरे परमात्मा ।।
बाल मेवाती कहे, नेताओं में आत्माआ कहाँ से आई ।
ऊपर से सफेदपोश, भीतर से बढ़ रही खाई।।
यमदूत और यमराज का वार्तालाप
यमलोक में यमदूत से , बोल रहे यमराज।
एक दलबदलू नेता , जग से विदा हो रहा आज।।
विदा हो रहा आज, तुम फौरन भारत में जाओं।
दिल्ली जा के, संसद भवन के चक्कर आप लगाओ।।
बाल मेवाती कहे, आत्मां संसद में घुस न पाए।
सांसदों से मिल, कहीं रिश्व त खाए और खिलाए।।
यमराज की बाते सून बोला यम का दूत।
दलबदलू नेता की हम, खूब सूनी करतूत।।
खूब सूनी करतूत , उनकी तो मर चुकी है आत्मा।
क्यों मजाक करते हो हमसे, आप मेरे परमात्मा ।।
बाल मेवाती कहे, नेताओं में आत्माआ कहाँ से आई ।
ऊपर से सफेदपोश, भीतर से बढ़ रही खाई।।
प्रेरणा
मुझे ही क्यों ?
ऑर्थर ऐश, सुप्रसिद्ध विम्बेल्ड:न खिलाड़ी, मृत्युा शैय्या पर पड़े थे। सन् 1983 में उन्होंोने हृदय रोग से संबंधित शल्यर चिकित्सा के लिए रक्ता दान किया था । उस दौरान संक्रमित रक्तथ के संपर्क में आने के कारण उन्हें एड्स हो गया। इस दौरान उन्हें पूरी दुनिया से चाहने वालों के पत्र आया करते थे। ऐसे ही एक पत्र में लिखा गया था:-
‘’ इस तरह की गंभीर बिमारी के लिए भगवान ने आपको ही क्यों चुना होगा ?’’
उक्त के जवाब में ऐश ने लिखा :-
पूरी दुनिया से 5 करोड़ बच्चे टेनिस खेलने के लिए शुरूवात करते हैं। एसमें से 50 लाख टेनिस खेलना सीखते हैं। उक्त में से पॉंच लाख व्यालवसायिक टेनिस खिलाड़ी बन पाते हैं । 5 हजार ग्रैन्डेस्लैम तक पहुँचते हैं, मात्र 50 खिलाड़ी ही विम्बटलडन की ऊँचाई तक पहुँच सकते हैं। अंत में मात्र 4 खिलाड़ी ही सेमी फाइनल तक पहुँच पाते हैं एवं 2 खिलाड़ी ही अंतिम दौर में प्रवेश करते हैं।
उपरोक्तव पूरे दौर से गुजरते हुए मैं, अंतिम दौर में विजयी होकर सफलता की शील्ड सभी के सामने विजयी मुद्रा में ऊँचा करके दिखाता हूँ , ‘’तब मेरे मन को इस विचार ने स्प र्श क्यों नहीं किया कि इस अत्युउच्च क्षण के लिए ईश्वीर ने मुझे ही क्यों चुना ?’’
इसलिए अब मैं ऐसा विचार क्यों करूँ कि ‘’मुझे ही क्यों ?’’
ऑर्थर ऐश, सुप्रसिद्ध विम्बेल्ड:न खिलाड़ी, मृत्युा शैय्या पर पड़े थे। सन् 1983 में उन्होंोने हृदय रोग से संबंधित शल्यर चिकित्सा के लिए रक्ता दान किया था । उस दौरान संक्रमित रक्तथ के संपर्क में आने के कारण उन्हें एड्स हो गया। इस दौरान उन्हें पूरी दुनिया से चाहने वालों के पत्र आया करते थे। ऐसे ही एक पत्र में लिखा गया था:-
‘’ इस तरह की गंभीर बिमारी के लिए भगवान ने आपको ही क्यों चुना होगा ?’’
उक्त के जवाब में ऐश ने लिखा :-
पूरी दुनिया से 5 करोड़ बच्चे टेनिस खेलने के लिए शुरूवात करते हैं। एसमें से 50 लाख टेनिस खेलना सीखते हैं। उक्त में से पॉंच लाख व्यालवसायिक टेनिस खिलाड़ी बन पाते हैं । 5 हजार ग्रैन्डेस्लैम तक पहुँचते हैं, मात्र 50 खिलाड़ी ही विम्बटलडन की ऊँचाई तक पहुँच सकते हैं। अंत में मात्र 4 खिलाड़ी ही सेमी फाइनल तक पहुँच पाते हैं एवं 2 खिलाड़ी ही अंतिम दौर में प्रवेश करते हैं।
उपरोक्तव पूरे दौर से गुजरते हुए मैं, अंतिम दौर में विजयी होकर सफलता की शील्ड सभी के सामने विजयी मुद्रा में ऊँचा करके दिखाता हूँ , ‘’तब मेरे मन को इस विचार ने स्प र्श क्यों नहीं किया कि इस अत्युउच्च क्षण के लिए ईश्वीर ने मुझे ही क्यों चुना ?’’
इसलिए अब मैं ऐसा विचार क्यों करूँ कि ‘’मुझे ही क्यों ?’’
रविवार, 26 अप्रैल 2009
और मेरी जेब कट गई !
और मेरी जेब कट गई !
बारह वर्ष पहले की बात है मैं दिल्ली घुमने गया था। उस समय मेरी आयु करीब 28 वर्ष थी । उत्तरी भारत, दिल्ली तथा मध्य भारत में ठंड का आगमन हो चुका था। दिल्ली में 03 दिन अच्छी खासी ठंड में घूमने के पश्चात मैंशाम की अमृतसर-दादर एक्सप्रेस से वापसी यात्रा पर निकल पड़ा। यह गाड़ी सबरे 08 बजे के लगभग भोपाल पहुँचती है।
बड़ा शहर पास में हो तो आरक्षित डिब्बों में दैनिक यात्रियों की भीड़ बढ़ जाती है। मेरी सीट पर दो सुन्दर युवतियॉं बिना पूछे विराजमान हो गई। उन्होंने मुझसे या किसी और से पूछना जरूरी नहीं समझा। फिर भी मैंने उनसे अपना प्रतिरोध दर्शाया । मैं भी क्या करता , उसमें एक युवती ने तत्काल अपना पक्ष बिना हिचकिचाहट के रखा ‘’एक घंटे बाद हम लोग उतर जाएंगे, उसके बाद आप अपनी यह सीट अपने साथ ही लेते जाइयेगा।’’
मैं युवती की बात सुनकर झुंझलाया। गुस्सा तो बहुत आया लेकिन मैं चुपचाप अपनी सीट पर बैठ गया। एक घंटे पश्चात यात्रियों की हलचल से ज्ञात हुआ कि थोड़ी देर में भोपाल जंक्शन आने वाला है। ठंड के मौसम में सुनहरी धूप खिली हुई थी।मैं भी सुबह चाय पीने के चक्कर में था। अपनी सह यात्री सुन्दर युवतियों की बातों से अब तक जान चुका था कि दोनों कॉलेज छात्राएं हैं। लेकिन उनमें उतरने के लिए कोई हलचल न देखकर मैंने सोचा शायद इन्हें और आगे जाना है। गाड़ी रूकने के पश्चात सुनहरी धूप में गरमागरम चाय पी जाए ऐसा मैं सोच कर अपनी सीट से उठा ही था कि उनमें से एक युवती ने सवाल दागा ‘’ क्या आप नीचे प्लेटफार्म पर जा रहे हैं ? मैंने कहा ‘’हॉं,चाय पीने के लिए ।’’ तब उसने आग्रह से कहा ‘’आते समय हमारे लिए दो कप चाय लेते आइएगा।’’ इतना कहकर उसने अपने पर्स से पैसे निकालने का दिखावा किया तो मैंने कहा कि पैसे बाद में दीजिएगा। ठण्ड होने के कारण मैंने अपना गर्म कोट पहन लिया जिसकी अन्दरूनी पॉकेट में रेल टिकट, पैसे रखेथे। कोट के आगे का बटन खुला हुआ था । मैंने प्लेटफार्म पर चाय पी और उन दोनों के लिए दो प्याला चाय लेकर ट्रेन में चढ़ा , तभी ट्रेन सरकने लगी । मैं अपनी सीट के पास आ गया । वह सुनदर युवतियॉं मुझे देखने के साथ ही खड़ी हो गईं और कहा ‘’आप चाय पकड़े रहिए, हम एक मिनट में आ रहे हैं।’’ इतना कहकर मेरे दाहिने हाथ के नीचे झुकती हुई वे दोनों युवतियॉं डिब्बे में आगे बढ़ गईं। रेल धीरे-धीरे,रेंगने के बाद रफ्तार पकड़ने लगी। मैं चाय का प्याला पकड़े खड़ा रहा और मेरा ध्यान इस तरफ था कि कही चाय छलक कर दूसरे सह यात्रियों के ऊपर न गिरे। करीब एक मिनट के बाद सामने बैठे सज्जन जो कि दैनिक यात्री थे और उन दोनों सुनदर युवतियों को गाड़ी से उत्रते देखा था मुझसे कहा ‘’भाई साहब आप अपना पॉकेट देख लीजिए।’’ मैंने तत्काल अपना एक चाय का प्याला डनहें पकड़ा दिया और कोट के अन्दरूनी पॉकेट को टटौला तो पाया कि रेल टिकट के साथ पैसे भी गायब थे। हमारे चहरे पर उड़ती हवाइयॉं देखकर उन्होंने पूरा किस्सा भांप लिया । मैं कुछ बोलता इसके पहले ही टिकट चेकर महोदय पधारते दिखे। मैंने उन्हें सारी परिस्थितियॉं समझाई लेकिन वह मानने को तैयार नहीं थे कि मेरा टिकट व पैसे कोट के पौकेट से उन दो सुनदरियों द्वारा उड़ा दिए गए हैं।
फिर मेरे सहयात्री ने जिन्होंने मुझे उन युवतियों के बारे में आगाह किया था मेरे पद्वक्ष में टिकट चेकर महोदय से आग्रह किया । मेरे अनुनय विनय करने पर टिकट चेकर महोदय न सिर्फ मान गए बल्कि मुझे भुसावल तक छोड़ने का वादा भी किया और अपने कर्मचारियों को इटारसी में बताकर चले गए। गाड़ी रात 11 बजे भुसावल पहुँची । अब मैं पूर्णत: भगवान भरोसे था तथा उन दो सुवतियो को कोस रहा था । ट्रेन की उस रात से शायद ही और कोई त्रासदाई रात मैंने अपनी जिन्दगी में गुजारी हो।
किसी तरह गाड़ीसुबह के उजाले में कल्याण पहुँची । मैं प्लेटफार्म के दूसरी ओर उतर कर लगभग दौड़ते हुए रेल्वे की चारदीवारी से जल्द सेजल्द बाहर निकला चाह रहा था। अचानक एक टिकट चेकर की मुझ पर नजर पड़ी । उसने कहा ‘’पतली गली से कहॉं जा रहे हो ? ऊपर आ जाओ वरना मुझे भी तुम्हारे पीछे दौड़ना पड़ेगा।’’ मरता क्या न करता प्लेटफार्म पर आना ही पड़ा।‘’भले आदमी ! भाग क्यों रहे हो ?’’ टिकट चेकर ने पूछा । फिर मैंने अपनी पूरी भोपाल की राम कहानी सुनाई। पता नहीं उन्होंने विश्वास किया या नहीं पर अचानक कहा ‘’ अच्छा, क्या तुम विश्वास के दोस्त हो ?’’ अब मुझे भी याद आया कि यह मेरे दोस्त विश्वास के जीजाजी है और उसके यहॉं मिल चुके हैं। ‘’ खैर जाओ’’ उन्होंने मेरी ‘’हॉं’’ सुनकर कहा। चलते – चलते मुझे उनके शब्द सुनाई दिए ‘’विश्वास भी कैसे-कैसे लोगों से दोस्ती रखता है ! ’’ मुझे लगा कि
‘’मेरी जेब तो कट गई भोपाल में, पर नाक कटी आकर कल्याण में’’
शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009
आम का पेड़
आम का पेड़
वह आम का पेड़ था। बहुत ही घना और फल देने वाला। अपनी जिन्दगी की 40 – 45 बहारें देखी थी उसने। इन 40-45 सालों में कितने ही तूफानों से खेला था वह , मगर क्या मजाल कि शिक्स्त की एक हल्की सी लकीर भी उसका माथा चूम पाती।
अमरकांत के जीवन में प्रेरणा का स्रोत भी यहीं पेड़ था। अपने घर के ठीक सामने लगे इस पेड़ से वचपन से ही बहुत सारी यादें वाविस्ता थीं। झूला झूलने की कोशिश में दरख्त से गिरना और दादी अम्मा का पेड़ की छाल जला कर उसके जख्मों पर बांधना उसे आज भी अच्छी तरह याद है। जख्म सह कर दूसरों के जख्मों को भरने का आदर्श इसी पेड़ से जो सीखा था उसने।
फिर एक दिन दादी अम्मा से किसी बात पर तमाचा खा कर घंटों पेड़ के तने से लिपट कर रोना भी कैयो भूल सकता था वह ? एक अनाथ बालक को इस तरह रोता देख कर , जैसे पेड़ से दादी अम्मा की शिकायत कर रहा हो, दादी अम्मा की भी ऑंखें भर आयी थी।
हॉं वह अनाथ था, किलकुल अनाथ। उसके पैदा होते ही उसकी मॉं ने दम तोड़ दिया था और पिताजी भी 10-15 दिनों बाद चल बसे थे, दिल के मरीज तो थे ही , ऊपर से यह हादसा। अब अमरकान्त के पालन-पोषण की सारी जिम्मेदारियाँ दादी अम्मा पर आ पड़ी थी। यह जिम्मेदारी दादी अम्मा ने अपने जीते-जी खूब निभाई । सरकार से मिलने वाली पेंशन के सहारे उसे पढ़ाया लिखाया। उसकी एक – एक जिद को पूरा किया । दादी अम्मा के लाड़ व प्यार के साये तले खेल कूद कर उमरकान्त 17 वर्ष का नवयुवक बन गया। तभी वक्त के जालिम हाथों ने दादी अम्मॉं को भी दबोच लिया। इस दुनिया में अमरकान्त अब बिलकुल अकेला था।
वक्त के खेल भी खूब निराले होते हैं। लेने पर आ जाए तो एक आध मुस्कुराहट भी नहीं छोड़ता यह वक्त , बल्कि मनुष्य की जीवन नैय्या को दुख दर्द के असीम सागर में धकेल कर खुद साहिल पर खड़ा मुस्कुराता रहता है। कभी यही वक्त कुछ देने पर आ जाए तो इतना कुछ दे देता है कि कि समेटते नहीं बनता । घर , आंगन, गलियारे सभी कुछ खुशियों की महक से महकने लगते हैं। मनुष्य की जीवन नैय्या एक बार फिर शांति तथा सुख के सागर पर सरलता और सहजता के साथ सीधी तरह आगे बढ़ने लगती है वक्त का कोई नया खेल देखने के लिए ।
कुछ ऐसा ही खेल, अमरकान्त के साथ खेल गया था यह वक्त। उसके जीने का आखिरी सहारा जो दादी अम्मां के रूप में था, वह भी छीन लिया था इस वक्त ने । उसने ला खड़ा कर दिया था उसे एक ऐसे मुकाम पर, जहॉं से हर रास्ता कॉंटों और खाइयों से होकर गुजरता था। ऐसे मुकाम पर पथिक का भ्रमित होना स्वाभाविक बात थी।
पेड़ के नीचे बैठा अमरकांत भी कुछ ऐसे ही भ्रमित होकर अपने जीवन की दिशा को ढूँढ़ रहा था कि किसी की आवाज ने उसे चौंका दिया। ‘बेटे अमर।’ यह पड़ोस के जुम्मन चाचा थे जो उसके समीप आकर बैठ गए थे। कुछ क्षणों के लिए अम्रकान्त उन्हें देखता रहा फिर वह अपनी उदास ऑंखों से आसमान की तरफ देखने लगा। जुम्मन चाचा फिर बोले ‘ बेटे अम्र। होनी को कौन टाल सकता है ? यह तो कुदरत के फैसले हैं जो हमें झेलने पड़ते हैा। समढ लो कि दादी अम्मॉं की जिन्दगी इतनी ही थी , मगर तुम्हारे सामने तो अभी पूरी जिन्दगी पड़ी हुई है। ऊठो संघर्ष करो और निकालो अपना हिस्सा इस दुनिया से’। फिर थेड़ी देर रूक के वे बोले ‘ और यह मत समझो कि तुम अब अकेले हो, हम सब तुम्हारे साथ हैं।‘ जुम्मन चाचा के स्वर में बड़ी आत्मीयता थी।‘ ‘ देखो इस आम के पेड़ को ‘’ जुम्मन चाचा ने आगे कहना शुरू किया ‘पहले यह भी एक नन्हा – मुन्ना पौधा था, बिलकुल तुम्हारी तरह। शुरू की देखभाल के बाद पौधे ने अपनी जड़ें जमीन में ऐसी मजबूत कर लीं कि बस बढ़ता ही चला गया। लाख ऑंधी तूफान आये इये जड़ से उखाडं फेंकने के निये मगर यह बड़ी दृढ़ता और सहजता से उसके साथ लड़ता रहा। कभी हार नहीं मानी इसने उन तूफानों से। फिर देखते तनावर दरख्त बन गया यह।‘’
‘‘और आज। आज, यह दूसरों का सहारा बना हुआ है। स्पवंय धूप में जलता है , मगर दूसरों को छाया देता है । बारिश में भीगता है , परन्तु अपनी डालियों पर बैठे पंछियों को भीगने से बचाता है । फिर यही पंछी इसके मीठे-मीठे आम खाकर अपना पेट भरते है और रात गये अपना सर उसकी गोद में टिका कर सो जाते हैं। यह रात भर जगकर उनकी हिफाजत करता है, अपनी जगह पर तैनात बिल्कुल एक मुस्तैद फौजी की तरह।‘’
‘’बेटे अमर । ‘’ वह उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोले -‘’इस पेड़ को अपनी जिन्दगी का आदर्श बना लो, यह आदर्श तुम्हे अपनी मंजिल पाने में सार्थक सिद्ध होगा।’’
पेड़ के प्रति अमरकांत के मन में पहले से ही आस्था थी, परन्तु जुम्मन चाचा की बातों से वह इतना प्रभावित हो गया कि बहुत जल्द ही वह और पेड़ दो तन एक मन बन गये। अब उसके हर काम में पेड़ से ली गयी प्रेरणा की झालक मिलने लगी। परिणामस्वरूप 0-8 साल की लगातार मेहनत से अमरकांत ने वक्त से वह सब कुछ हासिल कर लिया जो किसी इंसान के जीवन का आवश्यक अंग होता है। एक अच्छा सा घर, नौकरी, पत्नी अौर इन्हीं बातों ने उसे आज एक तनावर दरख्त बन जाने का एहसास दिलाया बिलकुल आम के पेड़ की तरह।
दिन महीनों में और महीने सालों में परिवर्तित होते रहे। इस बीच अमरकांत और आम का पेड़ एक समीकरण में बंधते चले गए। अब वह भी अपने परिवार की देख भाल , बिल्कुल आम की पेड़ की तरह कर रहा था। कभी धूप में जलकर तो कभी बारिश में भीगकर और कभी रातों में जाग कर अपने परिवार का रक्षण किया था उसने । उसके सुख में में अपने सुख को उनके दु:ख में अपने दु:ख को महसूस किया था।
फिर वह दिन भी आ गया जब इसका बेटा अजय पढ़ लिखकर एक बड़ी कम्पनी में बड़े पद पर काम करने लगा। डेढ़ दो साल बाद उसकी शादी भी कर दी गयी। फिर नई नवेली दुल्हन के आने से घर में और भी रोनक आ गई।
पेड़ की प्रेरणा से वह इतनी जल्दी इतना सब कुछ हासिल कर लेगा यह तो उसके ख्याल व गुमान में भी न था। कभी तो उसे ऐसा लगता जैसे वह एक सपना देख रहा है । कभी वह मन ही मन सोचन लगता क्या वाकई वक्त ने उसे सब कुछ दे दिया है ? इस विचार के मन में आते ही संशय का एक हल्का सा कंपन उसके पूरे शरीर को प्रकंपित कर जाता । फिर इस स्थिति से संभलते ही उसकी नजर बड़ी आत्मीयता लिए पेड़ की ओर चली जाती ।
ऐसा ही एक शाम वह बरामदे में बैठा पेड़ की ओर देख रहा था कि एक पंछी पेड़ के तने से आकर लिपट गया। यह पंछी जो थोड़ी देर पहले पेड़ की डाली पर बैठा था उसे तने से चिमटते देख अमरकांत को आश्चर्य हुआ। अगले ही क्षण आश्चर्य की जगह गुस्से ने ले ली। वह पंछी जो कटफोड़वा जाति का था, खटा-खट अपनी चोंच पेड़ के तने पर जमाए चला जा रहा था। एक क्षण को उसे ऐसा लगा, जैसे कोई तेज नुकीला हथियासर उसके सीने पर घाव बनाता चला जा रहा है। वह दर्द से व्याकुल हो उठा। इस स्थिति से संभलते ही वह पेड़ की ओर दौड़ा। बड़े जोर से उसने एक पत्थर पंछी की ओर उछाल दिया । इससे पहले कि वह पत्थर उसे लगता वह उड़कर पास के दरख्त पर जा बैठा।
‘’कल तक तो यह पंछी उसकी छाया में पल , बढ़कर अपने आपको सशक्त करता रहा और आज उसी प्राप्त शक्ति से उसके तने पर घाव बनाये जा रहा है।’’ इस बात के मन में आते ही वह भयाक्रांत हो उठा। पेड़ और उसके बरच का समीकरण उसे याद आ गया था।’’ ओह। तो क्या मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही होने वाला है । नहीं – नहीं ऐसा नहीं हो सकता । मेरा बेटा इस पंछी की तरह अहसान फरामोश और निर्दयी नहीं है , जो मेरे मन में छेद कर दे।‘’ मगर वह अन्दर ही अन्दर यह बात महसूस किये बिना न रह सका कि केवल अपने मन को सांत्वना दे रहा है । उसका दिल घबराने लगा। माथे से पसीना पोछते हुए उसने एक नजर फिर पेड़ के तने पर डाली । चोंच के बहुत सारे गहरेनिशान देखकर उसका दिल करूणा से भर आया । फिर अनायास ही उसका हाथ तने पर फिरने लगा। जैसे वह पेड़ को सहलाना चाहता हो , उसे तसल्ली देना चाहता हो। तभी एक आवाज सी महसूस कर वह चोंक पड़ा ‘’ अमरकांत । तुम्हारी ऑंखों में ऑंसू। अरे यह तो कुदरत के फैसलें है जो हमें झेलने पड़ते है।‘’
वह चौंक गया । उसने चारों ओर निगाह दौड़ाई। एकाएक उसे जुम्मन चाचा की याद आयी । मगर जुम्मन चाचा को गॉंव छोड़े तो जमाना हो गया है।
फिर कौन था यहॉं ? वह अपने आप में बड़बड़ाया।
’’उस दिन जुम्मन चाचा की बातें मैं भी बड़े ध्यान से सुन रहा था। ठीक कहा था जुम्मन चाचा ने, मैंने अपनी जिन्दगी में कभी किसी से हार नहीं मानी। मगर वह सब के सब मेरे लिए गैर थे और यही कारण था कि मैं उनसे बड़ी ढिठाई से लड़ता रहा था।’’
‘’मगर आज । आज, यह लड़ाई मेरे अपनों के साथ है, जिसे मैं जीत कर हारना नहीं चाहता।‘’
‘’अमरकांत। पेड़ की आवाज रूंध गयी थी। कुछ देर रूक कर फिर उसने कहना शुरू किया’’यह कठफोड़वा पंछी जो मेरे तने में सुराख बनाना चाहता है आज से चंद महीनों पहले एक नन्हा-मुन्ना प्यारा-प्यारा सा लगने वाला बच्चा था।’’इसकी मॉं इसे मेरे सहारे छोड़ कर दाना चुगने चली जाती थी, तो यह यही मेरी ओर बड़ी मासुमियत से देखता रहता था। इसकी प्यारी सी मूरत, मोहिनी सी सूरत मुझे आज भी अच्छी तरह याद है । तब इसकी देख भाल मैं ही करता था। इसे हवा के हल्के-हल्के झोकों से मीठी नींद सुला दिया करता था मैं। इसने मेरी डालियों पर कितनी बार झूला है । मेरे आम खा कर पेट भरने वाला यह पंछी आज मुझे ही परास्त करना चाहता है, यह मेरा दुर्भाग्य नहीं तो और क्या।‘’
‘’ मगर अमरकान्त । मुझे इससे कोई शिकायत नहीं है। बल्कि एक तरह के सुख का अनुभव मैं अपने मन में कर रहा हूँ कि चलो इस काम को करके इसे खुशी तो हासिल हो रही है, क्योंकि इसकी खुशी में ही मेरी खुशी है अमरकांत इसे पत्यार मार कर तुम मेरी खुशी छीन नहीं सकते अमरकांत।‘’ वह थोड़ी देर रूक कर बोला।
अपने हाथ पर दो कतरे आँसुओं के देख्रा कर अमरकांत ने आश्चर्यचकित होकर पेड़ की ओर देखा। हजारों गम थे, जो एक साथ मिलकर पेड़ की ऑंखों में सिमट आये थे। सदैव हंसते, मुस्कुराते और खिलखिलाते रहने वाला उसका यह दोस्त आज हजारों गम की परछाइयॉं अपने चेहरे पर ओढ़े खड़ा था। पेड़ की यह हालत उससे देखी न गयी, वह दर्द से व्याकुल हो ऊठा। ‘’कहीं मेरे घर भी कोई कठफोड़वा तो नहीं पल रहा है’’, इस विचार से वह आंकित हो ऊठा। इब इस स्थिति में एक पल भी पेड़ के नीचे रूकना उसके लिए कयामत से कम न था, वह तेज कदमों से अपने घर की ओर बढ़ता चला गया।
रात के ठीक दस बजे रहे थे। वह आहिस्ता-आहिस्ता कदम बढ़ाता हुआ अपने कमरे में दाखिल हो गया । कमरे में अपनी पत्नी पार्वती की ऑंख लगी देख कर , उसे देर से आने का अहसास हुआ। पास वाले कमरे में जहॉं उसकी बहू और बेटा सोया करते थे वहॉं भी खामोशी छायी हुई थी । उसने मुनासिब नहीं समझा कि किसी को खाना देने के लिए जगाए। वैसे भी वह खाना खाने की मन:स्थिति में नहीं था। वह एक गिलास पानी पीकर लेट गया, नींद उसकी ऑंखों से कोसों दूर थी।
अभी उसे लेटे चन्द मिनट ही गुजरे थे कि पास वाले कमरे से कुछ अवाजें सुनाई पड़ी। यह उसकी बहू और बेटा थे, जो आपस में बातें कर रहे थे । उसने उस ओर ध्यान देना मुनासिब न समझा मगर अगले ही क्षण आवाज कुछ तेज होती चली गयी। अब अमरकांत का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। मन में पहले ही बहुत सारी संशय की बातों ने घर कर रखा था और आज पहली बार अपनी कहू की तेज आवाज सूनकर वह बेचैन हो ऊठा। ‘’जरूर कोई बात है ‘’ यह सोच कर वह धीरे-धीरे कदमों से कमरे की ओर बढ़ता चला गया ।
करीब जा कर अमरकांत ने जो कुछ सूना , उसके बाद उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं आर रहा था।‘’ जब तुमने इस गॉंव को छोड़ शहर में बसने का इरादा कर ही लिया है , तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है । मैं कल ही बाबूजी से अनुमति ले लुँगा अौर तुम मो जानती हो वह मेरी किसी बात को नहीं टालते ।‘’ अपने बेटे के मुँह से निकले हुए यह वाक्य उसके मन मस्तिष्क पर हथौड़े बरसाने लगे। उसे ऐसा लगाा जैसे जैसे बहुत सारे कठफोड़वा पंछी उसके सीने पर एक साथ घाब कर रहे हों। इतनी बड़ी बात अजय ने कितनी सहजता से कह डाली थी । वह दर्द से बिलबिला उठा, अचानक उसने अपने सीने में एक टीस सी महसूस की । अपने दिल पर हाथ रखे वह बिस्तर पर लौट आया। एक नजर उसने पास ही सोई पार्वती पर डाली, जो बड़े ही सुकून से निद्रामग्न थी । उसे जगाने के लिए एसने अपने हाथ बढझ़ाए मगर वे उसे स्पर्श न कर सके।
‘’नहीं, पार्वती इस तुफान को झेल नहीं पाएगी’’ इस विचार के मन में आते ही उसने अपने आपको बिस्तर पर गिरा दिया।
‘’तो क्या तू उस तूफान को ऐल पायेगा ?’’ अपने ही प्रश्न से वह तिलमिला गया।
‘’नहीं,नहीं। अजय और छिब्बू तो मेरे प्राण हैं। भला मैं उनके बगैर कैसे जी पाऊँगा ? छिब्बू मेरा पोता जिसका रोना और हँसना भी मैं ठीक तरह से देख नहीं पाया हूँ। जिसकी शरारतों की छाप इस घर के कोने – कोने में हैं। कहॉं से देख पाऊँगा मैं ? छिब्बू के बिना यह घर सूना-सूना हो जाएगा।’’
‘’नहीं मैं अजय को नहीं जाने दूँगा।’’ वह दृढ़ निश्चयी होकर बोला।
’’तू उसे जाने नहीं देगा और बहू उसे यहॉं रहने नहीं देगी। क्या तू चाहता है कि तेरा अजय जिसे तू बचपन से लेकर आज तक सिर्फ खुशियॉं ही देता चला आया है, दो पाटों में पिसकर लहूलुहान हो जाए ? ’’ यह उसकी आत्मा की आवाज थी जो उसे कचोट रही थी। वह बिल्कुल हताश होकर रह गया।सीने का दर्द अपनी परम सीमा पर पहुँच गया था। पार्वती अब भी गहरी नींद में सोयर हुई थी । एसने एक नजर भर कर उसकी ओर देखा, फिर अपनी ऑंखें बन्द कर सीने को सहलाने लगा। उसकी ऑंखों में ऑंसू आ गये असज वह अपनी ही विवशता पर रो रहा था वक्त एक बार फिर उसके सामने भयानक खेल खेल रहा था और अबकी बार खिलाड़ी था उसका अपना ही खून। इधर आम का पेड़ भी एक भयानक स्थिति से गुजर रहा था। कठफोड़वा अपने काम में एक बार फिर तन्मयता से जुट गया था। अबकी बार उसके काम करने की गति इतनी तेज थी मानो अगले ही पल वह इस पेड़ को धराशायी करना चाहता हो। इधर अमरकांत के सीने का दर्द था कि रूकने का नाम नहीं ले रहा था।
वह रात दोनों पर ही प्रलयंकारी बन कर सवार थी। दोनों ही वक्त के रहम व करम पर मजबूर व बेबस एक ऐसी सुबह का इंतजार कर रहे थे, जहॉं अमरकांत की बोद में छिब्बू खेल रहा हो तो पेड़ की डालियों पर पंछी ढूल रहे हों। एक ऐसी सुबह , जिसमें अमरकांत और आम का पेड़ फिर अपना सुख-दुख एक दूसरे को सुना तथा बीते दिनों को याद कर सकें।
लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था। ठीक सुबह साढ़े पॉंच बजे , जहॉं एक ओर मंदिर मेंघंटा नाद हो रहा था तो दूसरी ओर मस्जिद में अजान गूंज रहीं थी , एक जोरदार कड़कड़ाहट की आवाज फिजा में उभरी, कठफोड़वा अपना काम पूरा कर चुका था। आवाज से पार्वती की ऑंचों खुल गयी, वह उठकर बड़ी तेजी से बाहर की ओर चली गसी , ओर यह देख कर कि आम का पेड़ पूरी तरह धराशायी हो चुका है, और इर्द-गिर्द पूरा मोहल्ला जमा हो गया है, वह दौड़ी-दौड़ी अमरकांत को जगाने चली आई।
‘’ अजी उठो जी। देखो तुम्हारा आम का पेड़ गिर गया , देखो । तुम्हारा आम का पेड़ गिर गया , उठो, उठो न । देखो / तुम्हारा आम का पेड़ गिर गया । उठो, उठो जी ।..........’’
फिर अगले ही क्षण उसके चेहरे पर एक खौफ छा गया और एक भयानक चीख के साथ वह अमरकांत से लिपट गयी । सारा मोहल्ला अमरकांत के धर जमा हो गया था। जिसमें उसका अजय भी था, वह भी थी और उसका छिब्बू भी । मगर नहीं था तो अमरकांत । और रहता भी कैसे ? वह तो कब का अपने दोस्त के साथ जा चुका था।
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वह आम का पेड़ था। बहुत ही घना और फल देने वाला। अपनी जिन्दगी की 40 – 45 बहारें देखी थी उसने। इन 40-45 सालों में कितने ही तूफानों से खेला था वह , मगर क्या मजाल कि शिक्स्त की एक हल्की सी लकीर भी उसका माथा चूम पाती।
अमरकांत के जीवन में प्रेरणा का स्रोत भी यहीं पेड़ था। अपने घर के ठीक सामने लगे इस पेड़ से वचपन से ही बहुत सारी यादें वाविस्ता थीं। झूला झूलने की कोशिश में दरख्त से गिरना और दादी अम्मा का पेड़ की छाल जला कर उसके जख्मों पर बांधना उसे आज भी अच्छी तरह याद है। जख्म सह कर दूसरों के जख्मों को भरने का आदर्श इसी पेड़ से जो सीखा था उसने।
फिर एक दिन दादी अम्मा से किसी बात पर तमाचा खा कर घंटों पेड़ के तने से लिपट कर रोना भी कैयो भूल सकता था वह ? एक अनाथ बालक को इस तरह रोता देख कर , जैसे पेड़ से दादी अम्मा की शिकायत कर रहा हो, दादी अम्मा की भी ऑंखें भर आयी थी।
हॉं वह अनाथ था, किलकुल अनाथ। उसके पैदा होते ही उसकी मॉं ने दम तोड़ दिया था और पिताजी भी 10-15 दिनों बाद चल बसे थे, दिल के मरीज तो थे ही , ऊपर से यह हादसा। अब अमरकान्त के पालन-पोषण की सारी जिम्मेदारियाँ दादी अम्मा पर आ पड़ी थी। यह जिम्मेदारी दादी अम्मा ने अपने जीते-जी खूब निभाई । सरकार से मिलने वाली पेंशन के सहारे उसे पढ़ाया लिखाया। उसकी एक – एक जिद को पूरा किया । दादी अम्मा के लाड़ व प्यार के साये तले खेल कूद कर उमरकान्त 17 वर्ष का नवयुवक बन गया। तभी वक्त के जालिम हाथों ने दादी अम्मॉं को भी दबोच लिया। इस दुनिया में अमरकान्त अब बिलकुल अकेला था।
वक्त के खेल भी खूब निराले होते हैं। लेने पर आ जाए तो एक आध मुस्कुराहट भी नहीं छोड़ता यह वक्त , बल्कि मनुष्य की जीवन नैय्या को दुख दर्द के असीम सागर में धकेल कर खुद साहिल पर खड़ा मुस्कुराता रहता है। कभी यही वक्त कुछ देने पर आ जाए तो इतना कुछ दे देता है कि कि समेटते नहीं बनता । घर , आंगन, गलियारे सभी कुछ खुशियों की महक से महकने लगते हैं। मनुष्य की जीवन नैय्या एक बार फिर शांति तथा सुख के सागर पर सरलता और सहजता के साथ सीधी तरह आगे बढ़ने लगती है वक्त का कोई नया खेल देखने के लिए ।
कुछ ऐसा ही खेल, अमरकान्त के साथ खेल गया था यह वक्त। उसके जीने का आखिरी सहारा जो दादी अम्मां के रूप में था, वह भी छीन लिया था इस वक्त ने । उसने ला खड़ा कर दिया था उसे एक ऐसे मुकाम पर, जहॉं से हर रास्ता कॉंटों और खाइयों से होकर गुजरता था। ऐसे मुकाम पर पथिक का भ्रमित होना स्वाभाविक बात थी।
पेड़ के नीचे बैठा अमरकांत भी कुछ ऐसे ही भ्रमित होकर अपने जीवन की दिशा को ढूँढ़ रहा था कि किसी की आवाज ने उसे चौंका दिया। ‘बेटे अमर।’ यह पड़ोस के जुम्मन चाचा थे जो उसके समीप आकर बैठ गए थे। कुछ क्षणों के लिए अम्रकान्त उन्हें देखता रहा फिर वह अपनी उदास ऑंखों से आसमान की तरफ देखने लगा। जुम्मन चाचा फिर बोले ‘ बेटे अम्र। होनी को कौन टाल सकता है ? यह तो कुदरत के फैसले हैं जो हमें झेलने पड़ते हैा। समढ लो कि दादी अम्मॉं की जिन्दगी इतनी ही थी , मगर तुम्हारे सामने तो अभी पूरी जिन्दगी पड़ी हुई है। ऊठो संघर्ष करो और निकालो अपना हिस्सा इस दुनिया से’। फिर थेड़ी देर रूक के वे बोले ‘ और यह मत समझो कि तुम अब अकेले हो, हम सब तुम्हारे साथ हैं।‘ जुम्मन चाचा के स्वर में बड़ी आत्मीयता थी।‘ ‘ देखो इस आम के पेड़ को ‘’ जुम्मन चाचा ने आगे कहना शुरू किया ‘पहले यह भी एक नन्हा – मुन्ना पौधा था, बिलकुल तुम्हारी तरह। शुरू की देखभाल के बाद पौधे ने अपनी जड़ें जमीन में ऐसी मजबूत कर लीं कि बस बढ़ता ही चला गया। लाख ऑंधी तूफान आये इये जड़ से उखाडं फेंकने के निये मगर यह बड़ी दृढ़ता और सहजता से उसके साथ लड़ता रहा। कभी हार नहीं मानी इसने उन तूफानों से। फिर देखते तनावर दरख्त बन गया यह।‘’
‘‘और आज। आज, यह दूसरों का सहारा बना हुआ है। स्पवंय धूप में जलता है , मगर दूसरों को छाया देता है । बारिश में भीगता है , परन्तु अपनी डालियों पर बैठे पंछियों को भीगने से बचाता है । फिर यही पंछी इसके मीठे-मीठे आम खाकर अपना पेट भरते है और रात गये अपना सर उसकी गोद में टिका कर सो जाते हैं। यह रात भर जगकर उनकी हिफाजत करता है, अपनी जगह पर तैनात बिल्कुल एक मुस्तैद फौजी की तरह।‘’
‘’बेटे अमर । ‘’ वह उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोले -‘’इस पेड़ को अपनी जिन्दगी का आदर्श बना लो, यह आदर्श तुम्हे अपनी मंजिल पाने में सार्थक सिद्ध होगा।’’
पेड़ के प्रति अमरकांत के मन में पहले से ही आस्था थी, परन्तु जुम्मन चाचा की बातों से वह इतना प्रभावित हो गया कि बहुत जल्द ही वह और पेड़ दो तन एक मन बन गये। अब उसके हर काम में पेड़ से ली गयी प्रेरणा की झालक मिलने लगी। परिणामस्वरूप 0-8 साल की लगातार मेहनत से अमरकांत ने वक्त से वह सब कुछ हासिल कर लिया जो किसी इंसान के जीवन का आवश्यक अंग होता है। एक अच्छा सा घर, नौकरी, पत्नी अौर इन्हीं बातों ने उसे आज एक तनावर दरख्त बन जाने का एहसास दिलाया बिलकुल आम के पेड़ की तरह।
दिन महीनों में और महीने सालों में परिवर्तित होते रहे। इस बीच अमरकांत और आम का पेड़ एक समीकरण में बंधते चले गए। अब वह भी अपने परिवार की देख भाल , बिल्कुल आम की पेड़ की तरह कर रहा था। कभी धूप में जलकर तो कभी बारिश में भीगकर और कभी रातों में जाग कर अपने परिवार का रक्षण किया था उसने । उसके सुख में में अपने सुख को उनके दु:ख में अपने दु:ख को महसूस किया था।
फिर वह दिन भी आ गया जब इसका बेटा अजय पढ़ लिखकर एक बड़ी कम्पनी में बड़े पद पर काम करने लगा। डेढ़ दो साल बाद उसकी शादी भी कर दी गयी। फिर नई नवेली दुल्हन के आने से घर में और भी रोनक आ गई।
पेड़ की प्रेरणा से वह इतनी जल्दी इतना सब कुछ हासिल कर लेगा यह तो उसके ख्याल व गुमान में भी न था। कभी तो उसे ऐसा लगता जैसे वह एक सपना देख रहा है । कभी वह मन ही मन सोचन लगता क्या वाकई वक्त ने उसे सब कुछ दे दिया है ? इस विचार के मन में आते ही संशय का एक हल्का सा कंपन उसके पूरे शरीर को प्रकंपित कर जाता । फिर इस स्थिति से संभलते ही उसकी नजर बड़ी आत्मीयता लिए पेड़ की ओर चली जाती ।
ऐसा ही एक शाम वह बरामदे में बैठा पेड़ की ओर देख रहा था कि एक पंछी पेड़ के तने से आकर लिपट गया। यह पंछी जो थोड़ी देर पहले पेड़ की डाली पर बैठा था उसे तने से चिमटते देख अमरकांत को आश्चर्य हुआ। अगले ही क्षण आश्चर्य की जगह गुस्से ने ले ली। वह पंछी जो कटफोड़वा जाति का था, खटा-खट अपनी चोंच पेड़ के तने पर जमाए चला जा रहा था। एक क्षण को उसे ऐसा लगा, जैसे कोई तेज नुकीला हथियासर उसके सीने पर घाव बनाता चला जा रहा है। वह दर्द से व्याकुल हो उठा। इस स्थिति से संभलते ही वह पेड़ की ओर दौड़ा। बड़े जोर से उसने एक पत्थर पंछी की ओर उछाल दिया । इससे पहले कि वह पत्थर उसे लगता वह उड़कर पास के दरख्त पर जा बैठा।
‘’कल तक तो यह पंछी उसकी छाया में पल , बढ़कर अपने आपको सशक्त करता रहा और आज उसी प्राप्त शक्ति से उसके तने पर घाव बनाये जा रहा है।’’ इस बात के मन में आते ही वह भयाक्रांत हो उठा। पेड़ और उसके बरच का समीकरण उसे याद आ गया था।’’ ओह। तो क्या मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही होने वाला है । नहीं – नहीं ऐसा नहीं हो सकता । मेरा बेटा इस पंछी की तरह अहसान फरामोश और निर्दयी नहीं है , जो मेरे मन में छेद कर दे।‘’ मगर वह अन्दर ही अन्दर यह बात महसूस किये बिना न रह सका कि केवल अपने मन को सांत्वना दे रहा है । उसका दिल घबराने लगा। माथे से पसीना पोछते हुए उसने एक नजर फिर पेड़ के तने पर डाली । चोंच के बहुत सारे गहरेनिशान देखकर उसका दिल करूणा से भर आया । फिर अनायास ही उसका हाथ तने पर फिरने लगा। जैसे वह पेड़ को सहलाना चाहता हो , उसे तसल्ली देना चाहता हो। तभी एक आवाज सी महसूस कर वह चोंक पड़ा ‘’ अमरकांत । तुम्हारी ऑंखों में ऑंसू। अरे यह तो कुदरत के फैसलें है जो हमें झेलने पड़ते है।‘’
वह चौंक गया । उसने चारों ओर निगाह दौड़ाई। एकाएक उसे जुम्मन चाचा की याद आयी । मगर जुम्मन चाचा को गॉंव छोड़े तो जमाना हो गया है।
फिर कौन था यहॉं ? वह अपने आप में बड़बड़ाया।
’’उस दिन जुम्मन चाचा की बातें मैं भी बड़े ध्यान से सुन रहा था। ठीक कहा था जुम्मन चाचा ने, मैंने अपनी जिन्दगी में कभी किसी से हार नहीं मानी। मगर वह सब के सब मेरे लिए गैर थे और यही कारण था कि मैं उनसे बड़ी ढिठाई से लड़ता रहा था।’’
‘’मगर आज । आज, यह लड़ाई मेरे अपनों के साथ है, जिसे मैं जीत कर हारना नहीं चाहता।‘’
‘’अमरकांत। पेड़ की आवाज रूंध गयी थी। कुछ देर रूक कर फिर उसने कहना शुरू किया’’यह कठफोड़वा पंछी जो मेरे तने में सुराख बनाना चाहता है आज से चंद महीनों पहले एक नन्हा-मुन्ना प्यारा-प्यारा सा लगने वाला बच्चा था।’’इसकी मॉं इसे मेरे सहारे छोड़ कर दाना चुगने चली जाती थी, तो यह यही मेरी ओर बड़ी मासुमियत से देखता रहता था। इसकी प्यारी सी मूरत, मोहिनी सी सूरत मुझे आज भी अच्छी तरह याद है । तब इसकी देख भाल मैं ही करता था। इसे हवा के हल्के-हल्के झोकों से मीठी नींद सुला दिया करता था मैं। इसने मेरी डालियों पर कितनी बार झूला है । मेरे आम खा कर पेट भरने वाला यह पंछी आज मुझे ही परास्त करना चाहता है, यह मेरा दुर्भाग्य नहीं तो और क्या।‘’
‘’ मगर अमरकान्त । मुझे इससे कोई शिकायत नहीं है। बल्कि एक तरह के सुख का अनुभव मैं अपने मन में कर रहा हूँ कि चलो इस काम को करके इसे खुशी तो हासिल हो रही है, क्योंकि इसकी खुशी में ही मेरी खुशी है अमरकांत इसे पत्यार मार कर तुम मेरी खुशी छीन नहीं सकते अमरकांत।‘’ वह थोड़ी देर रूक कर बोला।
अपने हाथ पर दो कतरे आँसुओं के देख्रा कर अमरकांत ने आश्चर्यचकित होकर पेड़ की ओर देखा। हजारों गम थे, जो एक साथ मिलकर पेड़ की ऑंखों में सिमट आये थे। सदैव हंसते, मुस्कुराते और खिलखिलाते रहने वाला उसका यह दोस्त आज हजारों गम की परछाइयॉं अपने चेहरे पर ओढ़े खड़ा था। पेड़ की यह हालत उससे देखी न गयी, वह दर्द से व्याकुल हो ऊठा। ‘’कहीं मेरे घर भी कोई कठफोड़वा तो नहीं पल रहा है’’, इस विचार से वह आंकित हो ऊठा। इब इस स्थिति में एक पल भी पेड़ के नीचे रूकना उसके लिए कयामत से कम न था, वह तेज कदमों से अपने घर की ओर बढ़ता चला गया।
रात के ठीक दस बजे रहे थे। वह आहिस्ता-आहिस्ता कदम बढ़ाता हुआ अपने कमरे में दाखिल हो गया । कमरे में अपनी पत्नी पार्वती की ऑंख लगी देख कर , उसे देर से आने का अहसास हुआ। पास वाले कमरे में जहॉं उसकी बहू और बेटा सोया करते थे वहॉं भी खामोशी छायी हुई थी । उसने मुनासिब नहीं समझा कि किसी को खाना देने के लिए जगाए। वैसे भी वह खाना खाने की मन:स्थिति में नहीं था। वह एक गिलास पानी पीकर लेट गया, नींद उसकी ऑंखों से कोसों दूर थी।
अभी उसे लेटे चन्द मिनट ही गुजरे थे कि पास वाले कमरे से कुछ अवाजें सुनाई पड़ी। यह उसकी बहू और बेटा थे, जो आपस में बातें कर रहे थे । उसने उस ओर ध्यान देना मुनासिब न समझा मगर अगले ही क्षण आवाज कुछ तेज होती चली गयी। अब अमरकांत का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। मन में पहले ही बहुत सारी संशय की बातों ने घर कर रखा था और आज पहली बार अपनी कहू की तेज आवाज सूनकर वह बेचैन हो ऊठा। ‘’जरूर कोई बात है ‘’ यह सोच कर वह धीरे-धीरे कदमों से कमरे की ओर बढ़ता चला गया ।
करीब जा कर अमरकांत ने जो कुछ सूना , उसके बाद उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं आर रहा था।‘’ जब तुमने इस गॉंव को छोड़ शहर में बसने का इरादा कर ही लिया है , तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है । मैं कल ही बाबूजी से अनुमति ले लुँगा अौर तुम मो जानती हो वह मेरी किसी बात को नहीं टालते ।‘’ अपने बेटे के मुँह से निकले हुए यह वाक्य उसके मन मस्तिष्क पर हथौड़े बरसाने लगे। उसे ऐसा लगाा जैसे जैसे बहुत सारे कठफोड़वा पंछी उसके सीने पर एक साथ घाब कर रहे हों। इतनी बड़ी बात अजय ने कितनी सहजता से कह डाली थी । वह दर्द से बिलबिला उठा, अचानक उसने अपने सीने में एक टीस सी महसूस की । अपने दिल पर हाथ रखे वह बिस्तर पर लौट आया। एक नजर उसने पास ही सोई पार्वती पर डाली, जो बड़े ही सुकून से निद्रामग्न थी । उसे जगाने के लिए एसने अपने हाथ बढझ़ाए मगर वे उसे स्पर्श न कर सके।
‘’नहीं, पार्वती इस तुफान को झेल नहीं पाएगी’’ इस विचार के मन में आते ही उसने अपने आपको बिस्तर पर गिरा दिया।
‘’तो क्या तू उस तूफान को ऐल पायेगा ?’’ अपने ही प्रश्न से वह तिलमिला गया।
‘’नहीं,नहीं। अजय और छिब्बू तो मेरे प्राण हैं। भला मैं उनके बगैर कैसे जी पाऊँगा ? छिब्बू मेरा पोता जिसका रोना और हँसना भी मैं ठीक तरह से देख नहीं पाया हूँ। जिसकी शरारतों की छाप इस घर के कोने – कोने में हैं। कहॉं से देख पाऊँगा मैं ? छिब्बू के बिना यह घर सूना-सूना हो जाएगा।’’
‘’नहीं मैं अजय को नहीं जाने दूँगा।’’ वह दृढ़ निश्चयी होकर बोला।
’’तू उसे जाने नहीं देगा और बहू उसे यहॉं रहने नहीं देगी। क्या तू चाहता है कि तेरा अजय जिसे तू बचपन से लेकर आज तक सिर्फ खुशियॉं ही देता चला आया है, दो पाटों में पिसकर लहूलुहान हो जाए ? ’’ यह उसकी आत्मा की आवाज थी जो उसे कचोट रही थी। वह बिल्कुल हताश होकर रह गया।सीने का दर्द अपनी परम सीमा पर पहुँच गया था। पार्वती अब भी गहरी नींद में सोयर हुई थी । एसने एक नजर भर कर उसकी ओर देखा, फिर अपनी ऑंखें बन्द कर सीने को सहलाने लगा। उसकी ऑंखों में ऑंसू आ गये असज वह अपनी ही विवशता पर रो रहा था वक्त एक बार फिर उसके सामने भयानक खेल खेल रहा था और अबकी बार खिलाड़ी था उसका अपना ही खून। इधर आम का पेड़ भी एक भयानक स्थिति से गुजर रहा था। कठफोड़वा अपने काम में एक बार फिर तन्मयता से जुट गया था। अबकी बार उसके काम करने की गति इतनी तेज थी मानो अगले ही पल वह इस पेड़ को धराशायी करना चाहता हो। इधर अमरकांत के सीने का दर्द था कि रूकने का नाम नहीं ले रहा था।
वह रात दोनों पर ही प्रलयंकारी बन कर सवार थी। दोनों ही वक्त के रहम व करम पर मजबूर व बेबस एक ऐसी सुबह का इंतजार कर रहे थे, जहॉं अमरकांत की बोद में छिब्बू खेल रहा हो तो पेड़ की डालियों पर पंछी ढूल रहे हों। एक ऐसी सुबह , जिसमें अमरकांत और आम का पेड़ फिर अपना सुख-दुख एक दूसरे को सुना तथा बीते दिनों को याद कर सकें।
लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था। ठीक सुबह साढ़े पॉंच बजे , जहॉं एक ओर मंदिर मेंघंटा नाद हो रहा था तो दूसरी ओर मस्जिद में अजान गूंज रहीं थी , एक जोरदार कड़कड़ाहट की आवाज फिजा में उभरी, कठफोड़वा अपना काम पूरा कर चुका था। आवाज से पार्वती की ऑंचों खुल गयी, वह उठकर बड़ी तेजी से बाहर की ओर चली गसी , ओर यह देख कर कि आम का पेड़ पूरी तरह धराशायी हो चुका है, और इर्द-गिर्द पूरा मोहल्ला जमा हो गया है, वह दौड़ी-दौड़ी अमरकांत को जगाने चली आई।
‘’ अजी उठो जी। देखो तुम्हारा आम का पेड़ गिर गया , देखो । तुम्हारा आम का पेड़ गिर गया , उठो, उठो न । देखो / तुम्हारा आम का पेड़ गिर गया । उठो, उठो जी ।..........’’
फिर अगले ही क्षण उसके चेहरे पर एक खौफ छा गया और एक भयानक चीख के साथ वह अमरकांत से लिपट गयी । सारा मोहल्ला अमरकांत के धर जमा हो गया था। जिसमें उसका अजय भी था, वह भी थी और उसका छिब्बू भी । मगर नहीं था तो अमरकांत । और रहता भी कैसे ? वह तो कब का अपने दोस्त के साथ जा चुका था।
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बुधवार, 22 अप्रैल 2009
हिन्दी हमारा राष्ट्रभाषा होता !
हिन्दी हमारा राष्ट्रभाषा होता !
बात उन दिनों कि है जब मैनें कॉलेज की पढाई समाप्त होने के पश्चात नौकरी के लिए कई सरकारी तथा गैर - सरकारी विभागों में आवेदन करना तथा प्रतियोगिता परीक्षा देना प्रारंभ किया था । चूँकी अभी-अभी कॉलेज से निकला था, तो प्रतियोगिता में शामिल होना मतलब खूब मौज-मस्ती तथा नये-नये शहरों में घूमना-फिरना ही समझता था। अब तक मेरा संबंध धनबाद जैसे एक छोटे से शहर से था अतः आरम्भ से इच्छा यही हुआ करती की बडे. शहरों को करीब से देखे-जाने व समझें ।
इसी प्रकार एक बार कुछ मित्रों के साथ सिकंदराबाद जाने का अवसर प्राप्त हुआ या यों कहिये की हम सब मित्र्रों नें योजना बनाकर ही सिकंदराबाद रेलवे भर्ती बोर्ड में टिकट निरीक्षक के पद के लिए आवेदन किया जिससे परीक्षा के नाम पर हैदराबाद-सिकदराबाद जुडवा शहर को देखने का अवसर मिल सके । परीक्षा का बुलावा पत्र आते ही हम सबने चेन्नई के लिये फलकनामा एक्सप्रेस की टिकटें रिजर्व करावा लिया तथा जाने की तैयारी शुरू कर दी । चूँकी हम सभी का मकसद परीक्षा देने से ज्यादा मौज-मस्ती करना था , अत : हम लोग चेन्नई दो दिन पहले ही पहुंच गये । चेन्नई रेल्वे स्टेशन के पास के ही एक सस्ते लॉज में दो कमरें किराये पर लिया तथा स्नानादि कर यात्रा की थकान मिटाया और शाम होते लॉज के मैनेजर से टूटी-फूटी अंगे्रजी भाषा का प्रयोग कर नगर भ्रमण का प्लान बनाया । इसी संदर्भ हम लोग एक ट्रैवेल एजेंसी से अगले दिन शहर घूमनें के लिये पॉंच टिकट बूक करा लिये। इस शहर में हमें बहुत कम ही लोग ऐसे मिले जिनसे स्तरीय हिन्दी में बात किया जा सकता था। भाषा की कठिनाई के बावजूद हम लोग नगर भ्रमण का लोभ नहीं सवर कर पा रहे थे। थोडी-बहुत कठिनाइयों के साथ हिन्दी-ईगलिश्ा या यों कहें हिंगलिश्ा का प्रयोग कर हमारा काम निकल रहा था ।
ट्रैवेल एजेंट हमें बारम्बार यह हिदायत दे रहा था की यदि हमनें देर की तो वो निर्धारित समय के बाद हमें छोड कर चला जायेगा और हमारा किराया भी वापस नहीं करेगा, आदतन देर तक सोकर उठने की परंपरा को छोड. हम सभी मित्र जल्दी-जल्दी अपने नित्य कर्मों से निजात पाकर लॉज से बाहर सडक पऱ एक निश्चित स्थान पर पहुचें जहां से हमें शहर दर्शन कराने वाली बस लेने आने वाली थी।
यात्रा आरम्भ हुआ, पूरे दिन हम लोगों ने चारमिनार ,गोलकुण्डा का किला, संग्रहालयों, पार्को इत्यादि को देखा, खुब मौज-मस्ती की । शाम होते ही यात्रा अपने अंतिम पडाव पर हुसैन सागर झिल के पास रूकी। बडा ही मनमोहक दृश्य था । वहॉं हुसैन सागर के किनारे के पर लगे स्ट्रीट लाइट मोती की माला की तरह प्रतित हो रही थी। हम लोंगों ने उस सुहाने मौसम में नौकायन का लुत्फ भी ऊठाया । भारी संख्या में लोग इस मनमोहक स्थल का लुत्फ ऊठाने के लिये आये हुए थे । तभी बस के कण्डक्टर ने बस में वापस आनें के लिये आवाज लगाई। हमें यह मनमोहक स्थान छोडने की इच्छा नही हो रही थी, अब तक हमें ज्ञात हो चुका था, कि यह यात्रा का अतिम स्थल है और इसके बाद बस वापस जाने वाली है, अतः हम सभी मित्रों ने बस छोड देने का निणर्य किया ताकी कुछ और समय रूक कर मनमोहक दृश्य का आनन्द उठाया जा सके ।
यह पता ही नहीं चला समय कैसे बीत गया और रात के ग्यारह बज गए। दिन भर का थकान के साथ-साथ भूख भी लगी थी। सो हम सभी मित्र पास के ही एक होटल में खाना खाकर वापस लॉज जाने के लिये आटोरिक्शा के आने का इंतजार करने लगे, इतने में एक डिजल इंजन वाली 6 सीटर ऑटोरिक्शा आयी । ऑटोवाले ने स्टेश्ान-स्टेशन की आवाज लगाई । रिक्शे में पीछे की सिटें बिलकुल खाली थी । इतना सूनना था कि हम लोग रिक्शे में कूद पडे। अब हम लोग आपस में बडे शहर की की कल्पना में खो गए और इसी के संबंध में विचार-विमर्श करने लगे। अब तक रिक्शेवाले ने अपना रिक्शा नहीं चालू किया और बचे हुए एक सीट के लिए आवाज देता रहा। इसी बीच एक अधेड़ सा व्यक्ति जो अत्यन्त मैली कुचेली लुंगी और बनियान पहने हुआ था , लडखडाते हुए रिक्च्चे में आ बैठा । उसके आते हमारा रिक्शा सोमरस की खुश्ाबू से महक पडा । उसकी उपस्थिति ने तो हमारे कल्पनालोक में विघ्न न तो डाल ही दिया साथ -साथ हमे साक्षात नर्क लोक का अनुभव भी करा दिया। किसी तरह रिक्शा आरम्भ हुआ। हम सभी मित्र उसकी उपस्थिति से अब तक सहज नहीं हो पाए थे और झल्लाहट में उसे हिन्दी में विभिन्न प्रकार के उपाधियों से नवाजने लगे अर्थात भद्दी-भद्दी गालिया देने लगे । उस व्यक्ति द्वारा कोई प्रतिक्रिया नहीं दर्शाए जाने पर तो हम लोग अपने आप को उस रिक्शे का मालिक ही समझाने लगे और पूर्ण जोश से उसके बारे में उपहासजनक छींटे कसने लगे।
इस बीच हमें पता चला कि हम लोग स्टेच्चन पहुंच गए हैं किन्तु स्टेशन का नजारा देखते ही हमारे पैरों तले जमीन खिसक गई क्योंकि रिक्शेवाले ने हमें स्टेश्ान की दूसरी और ला दिया था जहॉं से उस लॉज जिसमें हम लोग ठहरे थे, तक जाने का रास्ता हमें ज्ञात नहीं हो पा रहा था । अब तक रात के 12:30 बज गए थे। सड़क सूनसान हो गई थी । इस बीच रिक्शा वाले भी निकल चुका था। अब हम सभी मित्र लॉज पहुंचने के लिए सही रास्ते का अनुमान लगाते हुए बात-चीत करने लगे। घबराहट में यह बात-चीत जोरों से होने लगी।
इतने में हमारे साथ यात्रा करना वाला वह व्यक्ति, जो पूरी यात्रा के दौरान हमारे उपहास का पात्र बना हुआ था बोल पडा '' आप लोग का मुरगन लॉज जाने का है, तो आगे राइट गली से मुड़कर सीधा जाओ। आगे का चौराहा से लॉज दिखेगा। '' इतना सुनते ही हम सभी मित्र अवाक से रह गए। मैंने हिम्मत करके उससे पूछा '' क्या आप हिन्दी जानते हैं।' ' उसने पूर्ण दृढ़ता से उत्तर दिया '' हिन्दी हमारा राष्ट्रभाषा होता, हम हिन्दी क्यों नहीं जानता'' ।
बात उन दिनों कि है जब मैनें कॉलेज की पढाई समाप्त होने के पश्चात नौकरी के लिए कई सरकारी तथा गैर - सरकारी विभागों में आवेदन करना तथा प्रतियोगिता परीक्षा देना प्रारंभ किया था । चूँकी अभी-अभी कॉलेज से निकला था, तो प्रतियोगिता में शामिल होना मतलब खूब मौज-मस्ती तथा नये-नये शहरों में घूमना-फिरना ही समझता था। अब तक मेरा संबंध धनबाद जैसे एक छोटे से शहर से था अतः आरम्भ से इच्छा यही हुआ करती की बडे. शहरों को करीब से देखे-जाने व समझें ।
इसी प्रकार एक बार कुछ मित्रों के साथ सिकंदराबाद जाने का अवसर प्राप्त हुआ या यों कहिये की हम सब मित्र्रों नें योजना बनाकर ही सिकंदराबाद रेलवे भर्ती बोर्ड में टिकट निरीक्षक के पद के लिए आवेदन किया जिससे परीक्षा के नाम पर हैदराबाद-सिकदराबाद जुडवा शहर को देखने का अवसर मिल सके । परीक्षा का बुलावा पत्र आते ही हम सबने चेन्नई के लिये फलकनामा एक्सप्रेस की टिकटें रिजर्व करावा लिया तथा जाने की तैयारी शुरू कर दी । चूँकी हम सभी का मकसद परीक्षा देने से ज्यादा मौज-मस्ती करना था , अत : हम लोग चेन्नई दो दिन पहले ही पहुंच गये । चेन्नई रेल्वे स्टेशन के पास के ही एक सस्ते लॉज में दो कमरें किराये पर लिया तथा स्नानादि कर यात्रा की थकान मिटाया और शाम होते लॉज के मैनेजर से टूटी-फूटी अंगे्रजी भाषा का प्रयोग कर नगर भ्रमण का प्लान बनाया । इसी संदर्भ हम लोग एक ट्रैवेल एजेंसी से अगले दिन शहर घूमनें के लिये पॉंच टिकट बूक करा लिये। इस शहर में हमें बहुत कम ही लोग ऐसे मिले जिनसे स्तरीय हिन्दी में बात किया जा सकता था। भाषा की कठिनाई के बावजूद हम लोग नगर भ्रमण का लोभ नहीं सवर कर पा रहे थे। थोडी-बहुत कठिनाइयों के साथ हिन्दी-ईगलिश्ा या यों कहें हिंगलिश्ा का प्रयोग कर हमारा काम निकल रहा था ।
ट्रैवेल एजेंट हमें बारम्बार यह हिदायत दे रहा था की यदि हमनें देर की तो वो निर्धारित समय के बाद हमें छोड कर चला जायेगा और हमारा किराया भी वापस नहीं करेगा, आदतन देर तक सोकर उठने की परंपरा को छोड. हम सभी मित्र जल्दी-जल्दी अपने नित्य कर्मों से निजात पाकर लॉज से बाहर सडक पऱ एक निश्चित स्थान पर पहुचें जहां से हमें शहर दर्शन कराने वाली बस लेने आने वाली थी।
यात्रा आरम्भ हुआ, पूरे दिन हम लोगों ने चारमिनार ,गोलकुण्डा का किला, संग्रहालयों, पार्को इत्यादि को देखा, खुब मौज-मस्ती की । शाम होते ही यात्रा अपने अंतिम पडाव पर हुसैन सागर झिल के पास रूकी। बडा ही मनमोहक दृश्य था । वहॉं हुसैन सागर के किनारे के पर लगे स्ट्रीट लाइट मोती की माला की तरह प्रतित हो रही थी। हम लोंगों ने उस सुहाने मौसम में नौकायन का लुत्फ भी ऊठाया । भारी संख्या में लोग इस मनमोहक स्थल का लुत्फ ऊठाने के लिये आये हुए थे । तभी बस के कण्डक्टर ने बस में वापस आनें के लिये आवाज लगाई। हमें यह मनमोहक स्थान छोडने की इच्छा नही हो रही थी, अब तक हमें ज्ञात हो चुका था, कि यह यात्रा का अतिम स्थल है और इसके बाद बस वापस जाने वाली है, अतः हम सभी मित्रों ने बस छोड देने का निणर्य किया ताकी कुछ और समय रूक कर मनमोहक दृश्य का आनन्द उठाया जा सके ।
यह पता ही नहीं चला समय कैसे बीत गया और रात के ग्यारह बज गए। दिन भर का थकान के साथ-साथ भूख भी लगी थी। सो हम सभी मित्र पास के ही एक होटल में खाना खाकर वापस लॉज जाने के लिये आटोरिक्शा के आने का इंतजार करने लगे, इतने में एक डिजल इंजन वाली 6 सीटर ऑटोरिक्शा आयी । ऑटोवाले ने स्टेश्ान-स्टेशन की आवाज लगाई । रिक्शे में पीछे की सिटें बिलकुल खाली थी । इतना सूनना था कि हम लोग रिक्शे में कूद पडे। अब हम लोग आपस में बडे शहर की की कल्पना में खो गए और इसी के संबंध में विचार-विमर्श करने लगे। अब तक रिक्शेवाले ने अपना रिक्शा नहीं चालू किया और बचे हुए एक सीट के लिए आवाज देता रहा। इसी बीच एक अधेड़ सा व्यक्ति जो अत्यन्त मैली कुचेली लुंगी और बनियान पहने हुआ था , लडखडाते हुए रिक्च्चे में आ बैठा । उसके आते हमारा रिक्शा सोमरस की खुश्ाबू से महक पडा । उसकी उपस्थिति ने तो हमारे कल्पनालोक में विघ्न न तो डाल ही दिया साथ -साथ हमे साक्षात नर्क लोक का अनुभव भी करा दिया। किसी तरह रिक्शा आरम्भ हुआ। हम सभी मित्र उसकी उपस्थिति से अब तक सहज नहीं हो पाए थे और झल्लाहट में उसे हिन्दी में विभिन्न प्रकार के उपाधियों से नवाजने लगे अर्थात भद्दी-भद्दी गालिया देने लगे । उस व्यक्ति द्वारा कोई प्रतिक्रिया नहीं दर्शाए जाने पर तो हम लोग अपने आप को उस रिक्शे का मालिक ही समझाने लगे और पूर्ण जोश से उसके बारे में उपहासजनक छींटे कसने लगे।
इस बीच हमें पता चला कि हम लोग स्टेच्चन पहुंच गए हैं किन्तु स्टेशन का नजारा देखते ही हमारे पैरों तले जमीन खिसक गई क्योंकि रिक्शेवाले ने हमें स्टेश्ान की दूसरी और ला दिया था जहॉं से उस लॉज जिसमें हम लोग ठहरे थे, तक जाने का रास्ता हमें ज्ञात नहीं हो पा रहा था । अब तक रात के 12:30 बज गए थे। सड़क सूनसान हो गई थी । इस बीच रिक्शा वाले भी निकल चुका था। अब हम सभी मित्र लॉज पहुंचने के लिए सही रास्ते का अनुमान लगाते हुए बात-चीत करने लगे। घबराहट में यह बात-चीत जोरों से होने लगी।
इतने में हमारे साथ यात्रा करना वाला वह व्यक्ति, जो पूरी यात्रा के दौरान हमारे उपहास का पात्र बना हुआ था बोल पडा '' आप लोग का मुरगन लॉज जाने का है, तो आगे राइट गली से मुड़कर सीधा जाओ। आगे का चौराहा से लॉज दिखेगा। '' इतना सुनते ही हम सभी मित्र अवाक से रह गए। मैंने हिम्मत करके उससे पूछा '' क्या आप हिन्दी जानते हैं।' ' उसने पूर्ण दृढ़ता से उत्तर दिया '' हिन्दी हमारा राष्ट्रभाषा होता, हम हिन्दी क्यों नहीं जानता'' ।
मंगलवार, 21 अप्रैल 2009
परहित सरस धरम नाहि भाई
परहित सरस धरम नाहि भाई
वर्ल्ड कप 2008 में भारतीय टीम बांग्लादेश से हारकर बाहर हो गई जिसे काफी शर्मनाक बताया जा रहा है । इससे शर्म की क्या बात है भारत बांग्लादेश का जनक है अत: बांग्लादेश को एहसानमंद होने के नाते उसे स्वयं हार जाना चाहिए परंतु वह एहसान फरामोश साबित हुआ। शर्म के काबिल वह है भारत नहीं। दूसरे मैच में टीम इंडिया ने बरमुडा त्रिकोण को पार कर इतिहास रच दिया विदित है आज तक किसी ने बरमुडा त्रिकोण पार नहीं किया। तीसरे मैच में टीम इंडिया का मुकाबला श्री लंकाई शेरों से था अब शेर का मुकाबला (बंगाल) टाइगर कैसे करें सो जीते शेरों की ही हुई। कई लोग यह भी आरोप लगाते है कि टीेम इंडिया विदेशों से श्रुंखला हार कर लौटी है। अरे ये तो टीम इंडिया का बडप्पन है जिसे देश में जाते हैं उनका नमक खाते हैं और नमक का कर्ज चुकमा कर चले आते हैं। हमें फख्र है वो नमक हराम नहीं है। इसके विपरित विदेशी टीमें इंडिया आती हैं। हमारा नमक खाती हैं हमें ही हरा कर चली जाती है। सबसे ज्यादा नमक हराम आस्ट्रेलिया है। वैसे भी विदेशी टीमें हमारी अतिथि होती हैं। भारतीय धर्म है अतिथि देवो:भव। उन्हें हराना हमारे धर्म के खिलाफ है।
हमारे देश के क्रिकेटर बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। क्रिकेटर के साथ-साथ वे अच्छे मॉडल भी हैं। अक्सर विज्ञापनों में मॉडलिंग करते रहते हैं। उनमें आपस में होड़ लगी रहती है कि कौन कीतनी ज्यादा मॉडलिंग कर पता है।इन सबके अलावा वे अच्छे सामाजिक कार्यकर्ता व समाज सुधारक भी है। सचिन तेंदूलकर हमें कोक व पेप्सी पीने की सलाह देते हैं जो स्वास्थय के लिए लाभ दायक है। इसे जितना भी पीजीए कम है क्योकिं ये दिल मांगे मोर।
सौरव गांगुली का कहना है कि सोना चांदी च्वनप्राश खाकर हम बंगाल टाइगर जैसा बन सकते हैं। विरेन्द्र सहवाग हमें कपड़ा पहनना सिखाते हैं मयूर शुटींग पहनेंगे तभी लडकियाँ हमारी तरफ देखेंगी। महेन्द्र सिंह धोनी युवाओं के रोल मॉडल बन गए हैं सभी लड़के उनकी हेयर स्टाइल अपना रहे हैं ऐसे युवाओं को लड़कियाँ काफी पसंद कर रही हैं। उनकी पसंद बाद में प्यार में बदल जाती है। इस तरह से युवाओं में प्रेम, मोहब्बत जैसी भावनाओं को बढ़ाने का श्रेय धोनी को जाता है इसलिए युवा वर्ग को धोनी का आभारी होना चाहिए।कुछ असामाजिक लोग जिन्हें भारतीय क्रिकेट प्रेमी कहा जाता है बेवफा हो गए हैं और क्रिकटरों के पोस्टर और पुतले जला रहे हैं। कुछ लोग तो उनकी अर्थी निकाल कर उन्हें फना कर देना चाहतजे हैं। इसमें घबराने की जरूरत नहीं है। मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी अडवाणी जी, लालु प्रसाद यादव के पोस्टर रोज जलाएं जाते हैं उन्हें कोई फर्क पड़ता है? नहीं क्योंकि वे जानते हैं वे महान है इससे उन्हें मुफ्त में पब्लिसिटी मिल जाती है।
टीम इंडिया भले ही मैच हार गई लेकिन उसने बांग्लादेश के करोड़ो लोगों का दिल जीता। सारे श्रीलंका वासीयों का दिल जीता। टीम इंडिया ने जता दिया कि वो स्वार्थी नहीं है दूसरे को आगे बढ़ने दिया, परहित का ध्यान रखा। टीम इंडिया महापुरूषों की टीम है। तुलसीदास ने भी कहा है,
परहित सरस धरम नाहि भाई
इसलिए हमें टीम इंडिया पर गर्व होना चाहिए। हे टीम इंडिया तुम्हें शत-शत बार प्रणाम।
वर्ल्ड कप 2008 में भारतीय टीम बांग्लादेश से हारकर बाहर हो गई जिसे काफी शर्मनाक बताया जा रहा है । इससे शर्म की क्या बात है भारत बांग्लादेश का जनक है अत: बांग्लादेश को एहसानमंद होने के नाते उसे स्वयं हार जाना चाहिए परंतु वह एहसान फरामोश साबित हुआ। शर्म के काबिल वह है भारत नहीं। दूसरे मैच में टीम इंडिया ने बरमुडा त्रिकोण को पार कर इतिहास रच दिया विदित है आज तक किसी ने बरमुडा त्रिकोण पार नहीं किया। तीसरे मैच में टीम इंडिया का मुकाबला श्री लंकाई शेरों से था अब शेर का मुकाबला (बंगाल) टाइगर कैसे करें सो जीते शेरों की ही हुई। कई लोग यह भी आरोप लगाते है कि टीेम इंडिया विदेशों से श्रुंखला हार कर लौटी है। अरे ये तो टीम इंडिया का बडप्पन है जिसे देश में जाते हैं उनका नमक खाते हैं और नमक का कर्ज चुकमा कर चले आते हैं। हमें फख्र है वो नमक हराम नहीं है। इसके विपरित विदेशी टीमें इंडिया आती हैं। हमारा नमक खाती हैं हमें ही हरा कर चली जाती है। सबसे ज्यादा नमक हराम आस्ट्रेलिया है। वैसे भी विदेशी टीमें हमारी अतिथि होती हैं। भारतीय धर्म है अतिथि देवो:भव। उन्हें हराना हमारे धर्म के खिलाफ है।
हमारे देश के क्रिकेटर बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। क्रिकेटर के साथ-साथ वे अच्छे मॉडल भी हैं। अक्सर विज्ञापनों में मॉडलिंग करते रहते हैं। उनमें आपस में होड़ लगी रहती है कि कौन कीतनी ज्यादा मॉडलिंग कर पता है।इन सबके अलावा वे अच्छे सामाजिक कार्यकर्ता व समाज सुधारक भी है। सचिन तेंदूलकर हमें कोक व पेप्सी पीने की सलाह देते हैं जो स्वास्थय के लिए लाभ दायक है। इसे जितना भी पीजीए कम है क्योकिं ये दिल मांगे मोर।
सौरव गांगुली का कहना है कि सोना चांदी च्वनप्राश खाकर हम बंगाल टाइगर जैसा बन सकते हैं। विरेन्द्र सहवाग हमें कपड़ा पहनना सिखाते हैं मयूर शुटींग पहनेंगे तभी लडकियाँ हमारी तरफ देखेंगी। महेन्द्र सिंह धोनी युवाओं के रोल मॉडल बन गए हैं सभी लड़के उनकी हेयर स्टाइल अपना रहे हैं ऐसे युवाओं को लड़कियाँ काफी पसंद कर रही हैं। उनकी पसंद बाद में प्यार में बदल जाती है। इस तरह से युवाओं में प्रेम, मोहब्बत जैसी भावनाओं को बढ़ाने का श्रेय धोनी को जाता है इसलिए युवा वर्ग को धोनी का आभारी होना चाहिए।कुछ असामाजिक लोग जिन्हें भारतीय क्रिकेट प्रेमी कहा जाता है बेवफा हो गए हैं और क्रिकटरों के पोस्टर और पुतले जला रहे हैं। कुछ लोग तो उनकी अर्थी निकाल कर उन्हें फना कर देना चाहतजे हैं। इसमें घबराने की जरूरत नहीं है। मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी अडवाणी जी, लालु प्रसाद यादव के पोस्टर रोज जलाएं जाते हैं उन्हें कोई फर्क पड़ता है? नहीं क्योंकि वे जानते हैं वे महान है इससे उन्हें मुफ्त में पब्लिसिटी मिल जाती है।
टीम इंडिया भले ही मैच हार गई लेकिन उसने बांग्लादेश के करोड़ो लोगों का दिल जीता। सारे श्रीलंका वासीयों का दिल जीता। टीम इंडिया ने जता दिया कि वो स्वार्थी नहीं है दूसरे को आगे बढ़ने दिया, परहित का ध्यान रखा। टीम इंडिया महापुरूषों की टीम है। तुलसीदास ने भी कहा है,
परहित सरस धरम नाहि भाई
इसलिए हमें टीम इंडिया पर गर्व होना चाहिए। हे टीम इंडिया तुम्हें शत-शत बार प्रणाम।
कम्प्यूटरजनित बीमारियाँ
कम्प्यूटरजनित बीमारियाँ
कम्प्यूटर का इस्तेमाल विगत कुछ व र्षों से बहुत बढ़ गया है । कार्य स्थलों पर तो कम्प्यूटर के बिना काम करना असंभव हो गया है। अब तो युवाएँ और बच्चे मौज करने के लिए, खेलने के लिए कम्प्यूटर का इस्तेमाल करने लगे हैं । चैटिंग, नेट सर्फिंग, गेम्स में डूबे बच्चों और युवाओं को इस बात का भी होश नहीं रहता कि वे कितनी देर और किस स्थिति में कम्प्यूटर के सामने बैठे हैं । नतीजा कमर, पीठ, कुहनियों की जकड़न और कमजोर नजर । इसलिए कहते हैं कि जहाँ कम्प्यूटर अपने साथ फायदे लाया है वहीं उसके सामने गलत मुद्रा में बैठकर काम करने वालों में कम्प्यूटरजनित बीमारियों को प्रकोप भी बढ़ रहा है। लोग इन बीमारियों की चपेट में आते जा रहे हैं लेकिन कम्प्यूटर का दायरा इतना व्यापक व महत्वपूर्ण है कि इसके इस्तेमाल से बचा नहीं जा सकता है। अगर आप को अपने कैरियर में अभी बहुत आगे तक जाना है तो यह जरूरी है कि आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें और कम्प्यूटरजनित बीमारियों के बारे में जागरूक रहें और इनसे बचने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएं ।
हम में से ज्यादातर लोगों को यह पता ही नहीं होता कि हमारे बार-बार होते पीठ के दर्द का कारण क्या है या आँखों में पानी आना, बाहों के दर्द के कारण की वजह कोई और नहीं, हमारे दफ्तर और घर का प्रिय साथी 'कम्प्यूटर' है । खास बात तो यह है कि अधिकांश मामलों में इन रोगों के मरीज तब तक अपनी तकलीफ को गंभीरता से नहीं लेते जब तक स्थिति और गंभीर न हो जाए । कम्प्यूटर का इस्तेमाल करने वालों में कम्प्यूटरजनित बीमारियों अर्थात 'सी.आर.आई' कितनी घातक हो सकती है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह व्यक्ति झुक कर अपने जूतों की लैस भी नहीं बांध पाता है । आई.टी. प्रोफेशनलों व इसका ज्यादा इस्तेमाल करने वालों में 'सी.आर.आई' के लक्षण अब धीरे-धीरे गम्भीर रूप लेते जा रहे हैं। जहाँ ये अपनी दिनचर्या का ज्यादातर समय कम्प्यूटर के सामने बिताते हैं परंतु अपने बैठने की मुद्रा पर कोई ध्यान नहीं देते हैं। इसकी वजह होती हैं सी.आर.आई.; मतलब 'कम्प्यूटर रिलेटेड इन्जरि' और इसकी मुख्य वजह है कम्प्यूटर के सामने गलत मुद्रा में बैठकर काम करना । इससे बचने के लिए जागरूकता जरूरी है इसके अलावा हम कुछ निम्न बातों का ध्यान रखें तो इससे बचा जा सकता है ।
कम्प्यूटर का मॉनिटर इतनी दूरी पर रखें कि उसकी चमक आपकी आँखें पर प्रभाव नहीं डाल पाए । मॉनिटर को लगातार देखने की बजाए पलके झपकाएँ । मॉनिटर को लगातार देखने के कारण उसकी चमक से आँखें शुष्क हो जाती हैं । आपकी कुर्सी आरामदेह होनी चाहिए तथा लंबाई के हिसाब से वह मेज के अनुरूप ऊपर नीचे हो सके। पैर फर्श पर टिके रहने चाहिए और घुटने 90 डिग्री के कोण पर मुडे. होने चाहिए । टाइपिंग के वक्त कलाई सीधी व कहीं पर भी मुड.ी नहीं होनी चाहिए । की-बोर्ड आपके शरीर के निकट होना चाहिए व की-बोर्ड की ट्रे बहुत नीचे नहीं होनी चाहिए । घर में जमीन पर कम्प्यूटर रखकर उसे लेटकर इस्तेमाल में न लाएं । थोड़ी-थोड़ी देर में स्थिति बदलते रहें और थोड़ी अन्तराल के बाद उठें। कुर्सी पर सीधे बैठें, पसर कर नहीं तथा संभव हो तो बिना हैंडिल वाली कुर्सी का प्रयोग करें । गर्दन, बाँह, कलाई व आँख संबंधी व्यायाम नियमित रूप से करें । कुछ व्यायाम तो आप अपने ऑफिस में कुर्सी पर बैठे ही कर सकते हैं । सी.आर.आई. के लक्षण दिखने पर विशेषज्ञ डॉक्टर द्वारा शारीरिक जाँच करवाएँ । बैठने के तरीके को सुधारकर, बीच-बीच में कुछ आराम करके और उपचार के बाद योग को दैनिक जीवन में उपयोग में लाकर सी.आर.आई. से बचा जा सक ता है ।
कम्प्यूटर का इस्तेमाल विगत कुछ व र्षों से बहुत बढ़ गया है । कार्य स्थलों पर तो कम्प्यूटर के बिना काम करना असंभव हो गया है। अब तो युवाएँ और बच्चे मौज करने के लिए, खेलने के लिए कम्प्यूटर का इस्तेमाल करने लगे हैं । चैटिंग, नेट सर्फिंग, गेम्स में डूबे बच्चों और युवाओं को इस बात का भी होश नहीं रहता कि वे कितनी देर और किस स्थिति में कम्प्यूटर के सामने बैठे हैं । नतीजा कमर, पीठ, कुहनियों की जकड़न और कमजोर नजर । इसलिए कहते हैं कि जहाँ कम्प्यूटर अपने साथ फायदे लाया है वहीं उसके सामने गलत मुद्रा में बैठकर काम करने वालों में कम्प्यूटरजनित बीमारियों को प्रकोप भी बढ़ रहा है। लोग इन बीमारियों की चपेट में आते जा रहे हैं लेकिन कम्प्यूटर का दायरा इतना व्यापक व महत्वपूर्ण है कि इसके इस्तेमाल से बचा नहीं जा सकता है। अगर आप को अपने कैरियर में अभी बहुत आगे तक जाना है तो यह जरूरी है कि आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें और कम्प्यूटरजनित बीमारियों के बारे में जागरूक रहें और इनसे बचने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएं ।
हम में से ज्यादातर लोगों को यह पता ही नहीं होता कि हमारे बार-बार होते पीठ के दर्द का कारण क्या है या आँखों में पानी आना, बाहों के दर्द के कारण की वजह कोई और नहीं, हमारे दफ्तर और घर का प्रिय साथी 'कम्प्यूटर' है । खास बात तो यह है कि अधिकांश मामलों में इन रोगों के मरीज तब तक अपनी तकलीफ को गंभीरता से नहीं लेते जब तक स्थिति और गंभीर न हो जाए । कम्प्यूटर का इस्तेमाल करने वालों में कम्प्यूटरजनित बीमारियों अर्थात 'सी.आर.आई' कितनी घातक हो सकती है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह व्यक्ति झुक कर अपने जूतों की लैस भी नहीं बांध पाता है । आई.टी. प्रोफेशनलों व इसका ज्यादा इस्तेमाल करने वालों में 'सी.आर.आई' के लक्षण अब धीरे-धीरे गम्भीर रूप लेते जा रहे हैं। जहाँ ये अपनी दिनचर्या का ज्यादातर समय कम्प्यूटर के सामने बिताते हैं परंतु अपने बैठने की मुद्रा पर कोई ध्यान नहीं देते हैं। इसकी वजह होती हैं सी.आर.आई.; मतलब 'कम्प्यूटर रिलेटेड इन्जरि' और इसकी मुख्य वजह है कम्प्यूटर के सामने गलत मुद्रा में बैठकर काम करना । इससे बचने के लिए जागरूकता जरूरी है इसके अलावा हम कुछ निम्न बातों का ध्यान रखें तो इससे बचा जा सकता है ।
कम्प्यूटर का मॉनिटर इतनी दूरी पर रखें कि उसकी चमक आपकी आँखें पर प्रभाव नहीं डाल पाए । मॉनिटर को लगातार देखने की बजाए पलके झपकाएँ । मॉनिटर को लगातार देखने के कारण उसकी चमक से आँखें शुष्क हो जाती हैं । आपकी कुर्सी आरामदेह होनी चाहिए तथा लंबाई के हिसाब से वह मेज के अनुरूप ऊपर नीचे हो सके। पैर फर्श पर टिके रहने चाहिए और घुटने 90 डिग्री के कोण पर मुडे. होने चाहिए । टाइपिंग के वक्त कलाई सीधी व कहीं पर भी मुड.ी नहीं होनी चाहिए । की-बोर्ड आपके शरीर के निकट होना चाहिए व की-बोर्ड की ट्रे बहुत नीचे नहीं होनी चाहिए । घर में जमीन पर कम्प्यूटर रखकर उसे लेटकर इस्तेमाल में न लाएं । थोड़ी-थोड़ी देर में स्थिति बदलते रहें और थोड़ी अन्तराल के बाद उठें। कुर्सी पर सीधे बैठें, पसर कर नहीं तथा संभव हो तो बिना हैंडिल वाली कुर्सी का प्रयोग करें । गर्दन, बाँह, कलाई व आँख संबंधी व्यायाम नियमित रूप से करें । कुछ व्यायाम तो आप अपने ऑफिस में कुर्सी पर बैठे ही कर सकते हैं । सी.आर.आई. के लक्षण दिखने पर विशेषज्ञ डॉक्टर द्वारा शारीरिक जाँच करवाएँ । बैठने के तरीके को सुधारकर, बीच-बीच में कुछ आराम करके और उपचार के बाद योग को दैनिक जीवन में उपयोग में लाकर सी.आर.आई. से बचा जा सक ता है ।
संरक्षा पर भरोसा करें, भाग्य पर नहीं
संरक्षा पर भरोसा करें, भाग्य पर नहीं
जिंदगी एक सफर है सुहाना, यहाँ कल क्या हो किसने जाना।
इस काव्य पंक्ति का आधार लेकर जीवन को भाग्य के भरोसे पर हम छोड़ नहीं सकते हैं। असिम त्याग, ध्येय, आशावाद से स्वयं संरक्षित कर्तव्य करना ही अमूल्य जीवन का आधार है किन्तु कर्तव्य विमुख होकर पश्चाताप करना मूर्खता है। अत: संरक्षा पर ही भरोसा करें, भाग्य पर नहीं। जीवन का हर क्षण सुख-शांति से बिताना हो तो हर पल अपने कार्यक्षेत्र में कार्य करते समय जहाँ-जहाँ जरूरत है, वहाँ संरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल करना होगा। जीवन सुंदर है, इसे सुरक्षित रखने के लिए हमेशा ध्यान दें और संरक्षा पर भरोसा करें, भाग्य पर कदापि नहीं।
कारखानों में काम करनेवाले कर्मचारी मशीन पर काम करते समय हैंड ग्लोज जरूर पहने, जिससे हाथों में चिप्स नहीं जाएँगे और हाथ में, उँगलियों में जख्म नहीं होगा। विद्य.ुत अनुरक्षण से संबंधित कार्य करते समय संरक्षा जूते जरूर पहने। ऊँचाई पर कार्य करते समय सेफ्टी बेल्ट जरूर इस्तेमाल करें जिससे संभावित दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है। वेल्डिंग करनेवाले कर्मचारी सेफ्टी गॉगल जरूर पहने, जिससे अपनी आँखों को हम हमेशा के लिए सुरक्षित रख सकते हैं तथा विश्व की सुंदरता जीवन की संध्या तक देख सकते हैं। अग्निशमन कर्मचारी संरक्षा कवच, संरक्षा वस्त्र, हेल्मेट पहनेंगे तो दुर्घटना को निमंत्रण नहीं मिल सकता है। सुरक्षा में ही समाज तथा जनता की उन्नति तथा देश की प्रगति है। इससे नागरिक हित तथा अपने परिवार के लिए एक अच्छा योगदान होगा। वाहन चालक वाहन चलाते समय सुरक्षा बेल्ट लगाना, मोटर सायकिल चलाते समय हेल्मेट पहनना अनिवार्य है लेकिन इसका उल्लंघन करने से प्राण हानी होने की संभावना सर्वाधिक रहती है।
चरितार्थ के लिए विश्व में अनेक कार्यक्षेत्र उपलब्ध हैं। जैसे रासायनिक तथा विस्फोटक पदार्थ उत्पादित करनेवाली फैक्टरियाँ हैं। यहाँ काम करनेवाले कर्मचारियों की संरक्षा के लिए आवश्यक संरक्षा उपकरण उपलब्ध करवा कर उनके उपयोग का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। संरक्षा संस्थान फैक्ट्ररियों का अविभाज्य अंग है। जिस प्रकार शरीर से आत्मा अलग करने से शरीर का अस्तित्व नष्ट होता है इसी तरह यदि कार्यक्षेत्र में संरक्षा को महत्व नहीं दिया जाए, उपेक्षा की जाए तो कर्मचारियों एवं कार्यस्थलों का भी अस्तित्व नष्ट होने की संभावना बनी रहेगी।
आखिर में पुनश्च: यह कहना चाहता हूँ कि जीवन की अनंत यात्रा सुखमय करने के लिए संरक्षा की ओर जरूर ध्यान दे, सिर्फ भाग्य के भरोसे रहने से जीवन में सफलता नहीं प्राप्त होगी।
जिंदगी एक सफर है सुहाना, यहाँ कल क्या हो किसने जाना।
इस काव्य पंक्ति का आधार लेकर जीवन को भाग्य के भरोसे पर हम छोड़ नहीं सकते हैं। असिम त्याग, ध्येय, आशावाद से स्वयं संरक्षित कर्तव्य करना ही अमूल्य जीवन का आधार है किन्तु कर्तव्य विमुख होकर पश्चाताप करना मूर्खता है। अत: संरक्षा पर ही भरोसा करें, भाग्य पर नहीं। जीवन का हर क्षण सुख-शांति से बिताना हो तो हर पल अपने कार्यक्षेत्र में कार्य करते समय जहाँ-जहाँ जरूरत है, वहाँ संरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल करना होगा। जीवन सुंदर है, इसे सुरक्षित रखने के लिए हमेशा ध्यान दें और संरक्षा पर भरोसा करें, भाग्य पर कदापि नहीं।
कारखानों में काम करनेवाले कर्मचारी मशीन पर काम करते समय हैंड ग्लोज जरूर पहने, जिससे हाथों में चिप्स नहीं जाएँगे और हाथ में, उँगलियों में जख्म नहीं होगा। विद्य.ुत अनुरक्षण से संबंधित कार्य करते समय संरक्षा जूते जरूर पहने। ऊँचाई पर कार्य करते समय सेफ्टी बेल्ट जरूर इस्तेमाल करें जिससे संभावित दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है। वेल्डिंग करनेवाले कर्मचारी सेफ्टी गॉगल जरूर पहने, जिससे अपनी आँखों को हम हमेशा के लिए सुरक्षित रख सकते हैं तथा विश्व की सुंदरता जीवन की संध्या तक देख सकते हैं। अग्निशमन कर्मचारी संरक्षा कवच, संरक्षा वस्त्र, हेल्मेट पहनेंगे तो दुर्घटना को निमंत्रण नहीं मिल सकता है। सुरक्षा में ही समाज तथा जनता की उन्नति तथा देश की प्रगति है। इससे नागरिक हित तथा अपने परिवार के लिए एक अच्छा योगदान होगा। वाहन चालक वाहन चलाते समय सुरक्षा बेल्ट लगाना, मोटर सायकिल चलाते समय हेल्मेट पहनना अनिवार्य है लेकिन इसका उल्लंघन करने से प्राण हानी होने की संभावना सर्वाधिक रहती है।
चरितार्थ के लिए विश्व में अनेक कार्यक्षेत्र उपलब्ध हैं। जैसे रासायनिक तथा विस्फोटक पदार्थ उत्पादित करनेवाली फैक्टरियाँ हैं। यहाँ काम करनेवाले कर्मचारियों की संरक्षा के लिए आवश्यक संरक्षा उपकरण उपलब्ध करवा कर उनके उपयोग का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। संरक्षा संस्थान फैक्ट्ररियों का अविभाज्य अंग है। जिस प्रकार शरीर से आत्मा अलग करने से शरीर का अस्तित्व नष्ट होता है इसी तरह यदि कार्यक्षेत्र में संरक्षा को महत्व नहीं दिया जाए, उपेक्षा की जाए तो कर्मचारियों एवं कार्यस्थलों का भी अस्तित्व नष्ट होने की संभावना बनी रहेगी।
आखिर में पुनश्च: यह कहना चाहता हूँ कि जीवन की अनंत यात्रा सुखमय करने के लिए संरक्षा की ओर जरूर ध्यान दे, सिर्फ भाग्य के भरोसे रहने से जीवन में सफलता नहीं प्राप्त होगी।
11 जुलाई, 2006
11 जुलाई, 2006
11 जुलाई मंगल के दिन, ऐसा बरपा कहर।
आर्थिक नगर मुम्बई शहर, अचानक गया ठहर॥
अचानक गया ठहर, निशाचरों ने खूनी खेल रचाया।
दिल की धड़कन लोकल ट्रेनों में, बम विस्फोट कराया॥
रोजी-रोटी कमावन खातिर, घर से निकले लोग।
किसी को क्या खबर, काल का बनना पड़ेगा भोग॥
बनना पड़ेगा भोग, आतंक ने अपना रंग दिखाया।
किसी का बाप किसी का बेटा, काल गाल समाया॥
न जाने कितने अपाहिज हुए, कितने जन परिवार से बिछड़े।
शासन प्रणाली मूक बनी, जुलमी कब तक जायेंगे पकड़े॥
कहे 'मेवाती सारंग', भारत माता कब तक घायल होगी।
सब मिलकर करो मुकाबला, वरना गले पर धार चलेगी॥
11 जुलाई मंगल के दिन, ऐसा बरपा कहर।
आर्थिक नगर मुम्बई शहर, अचानक गया ठहर॥
अचानक गया ठहर, निशाचरों ने खूनी खेल रचाया।
दिल की धड़कन लोकल ट्रेनों में, बम विस्फोट कराया॥
रोजी-रोटी कमावन खातिर, घर से निकले लोग।
किसी को क्या खबर, काल का बनना पड़ेगा भोग॥
बनना पड़ेगा भोग, आतंक ने अपना रंग दिखाया।
किसी का बाप किसी का बेटा, काल गाल समाया॥
न जाने कितने अपाहिज हुए, कितने जन परिवार से बिछड़े।
शासन प्रणाली मूक बनी, जुलमी कब तक जायेंगे पकड़े॥
कहे 'मेवाती सारंग', भारत माता कब तक घायल होगी।
सब मिलकर करो मुकाबला, वरना गले पर धार चलेगी॥
हिन्दी में ई - मेल
हिन्दी में ई - मेल
संचार क्रांति के इस युग में अब संदेष मात्र डाक-तार से ही नहीं भेजे जाते हैं बल्कि इन्टरनेट, फैक्स, मॉडेम आदि अत्याधुनिक उपकरणों का बखुबी से प्रयोग होने लगा है । इस दिशा में केन्द्र सरकार तथा सभी प्रदेशों की राज्य सरकारें ई-गर्वनेन्स को बढ़ावा देने में प्रयासरत रहीं हैं। वर्तमान में ई-मेल द्वारा संदेश भेजने का चलन बढ़ गया है क्योंकि इससे संदेश भेजना जितना सरल है उतना ही कम खर्चीला भी है । इसके अतिरिक्त इन्टरनेट द्वारा प्रेषित संदेषों की गोपनीयता बरकरार रहती है क्योंकि इसके संचालन हेतु पासवर्ड की आवश्यनकता पड़ती है ।
हिन्दी में ई-मेल भेजना
ई-मेल भेजने की प्रक्रिया अंग्रेजी एवं हिन्दी में एक समान ही है । सर्वप्रथम माउस से ‘’इन्टरनेट एक्सप्लोरर’’ सक्रिय कर वांछित साइट लॉग ऑन करें । ई-मेल आई.डी. एवं पासवर्ड अपेक्षित स्थान पर टाइप कर ''ओ.के.प्रेस बटन'' क्लिक कर दें। हिन्दी में टाइप संदेश तथा तत्संबंधी फॉन्ट के एटैचमेन्ट विधि की जानकारी निम्नानुसार प्रस्तुत है :-
फॉन्ट एटैचमेन्ट संबंधी पूर्व तैयारी
चूँकि कम्पोज विन्डो में हिन्दी में संदेष टाइप करने की व्यवस्था नहीं होती है इसलिए हिन्दी में टाइप किए हुए संदेश (वर्ड अथवा एक्सेल फाइलें) तथा संबंधित हिन्दी फॉन्ट को डेस्कटॉप पर पेस्ट कर दें क्योंकि बहुत संभव है कि जिस हिन्दी फॉन्ट में संदेश टाइप किया गया है वह फॉन्ट उस व्यक्ति के पास न हो जिसे आप संदेश भेज रहें हैं। ऐसी स्थिति में संबंधित फॉन्ट जिसमें संदेश टाइप किया गया है, का प्रयोग कर प्राप्तकर्ता प्रेषित संदेश पढ़ने में सक्षम हो सकेगा।
01 ई-मेल एकाउन्ट ओपन होने पर कम्पोज बटन क्लिक कर कम्पोज विन्डो में प्राप्तकर्ता के नाम अंग्रेजी में संक्षिप्त संदेष टाइप करें कि ‘’मेल के साथ हिन्दी में संदेष तथा तत्संबंधी फॉन्ट एटैच किया जा रहा है।‘’ तदुपरान्त ‘एटैच प्रेस बटन’ क्लिक करें।
02 ऐसा करते ही एटैचमेन्ट विन्डो ओपन होगा, जिसमें स्क्रीन पर एटैचमेन्ट हेतु विकल्प प्रदर्शित होगा जिसमें हिन्दी में टाइप किए हुए संदेश वाली फाइल के पाथ का उल्लेख करें । उदाहरण के लिए डेस्कटॉप पर ‘santosh' नामक वर्ड फाइल को एटैच करने के लिए पाथ के रूप में c/desktop/santosh.doc का उल्लेख कर ‘ओ.के. प्रेस बटन’ क्लिक करना होगा। ऐसा करते ही फाइल ''अपलोडिंग'' प्रक्रिया आरम्भ हो जाएगी । ''अपलोडिंग प्रक्रिया'' के समर्थन में पुष्टि संदेश स्क्रीन पर आने पर 'ओ.के.प्रेस बटन’ माउस द्वारा क्लिक कीजिए ।
03 इसी प्रकार फॉन्ट एटैच करने के लिए उपरोक्त विधि का पालन करें । ध्यान रखें कि फॉन्ट कन्ट्रोल पैनल के ‘फॉन्ट फोल्डर’ में होते हैं । अतः फॉन्ट के पाथ का उल्लेख करने संबंधी व्यर्थ की परेषानी से बचने के लिए ऑपरेटर संबंधित फॉन्ट कॉपी कर डेस्कटॉप पर पेस्ट कर ले तथा एटैचमेन्ट हेतु विकल्प प्रदर्शित होने पर क्रमश: डेस्कटॉप एवं फॉन्ट का नाम टाइप या सिलेक्ट कर दें । यदि फॉन्ट फ्लॅापी से एटैच करना हो तो ''ए'' ड्राइव का विकल्प पाथ के रूप में टाइप कर ‘ओ.के.प्रेस बटन’ क्लिक करें। तदुपरान्त अपलोडिंग के समर्थन में पुष्टि संदेश स्क्रीन पर आने पर क्रमषः ''ओ.के.''व ''डन'' प्रेस बटन क्लिक कीजिए। ऐसा करते ही एटैचमेन्ट विन्डो बन्द हो जाएगी ।
04 ई-मेल भेजने के आखरी चरण के अन्तर्गत कम्पोज पेज पर एटैच्ड फाइलों की सूची प्रदर्शित होगी । अब ''सेन्ड प्रेस बटन'' क्लिक कर दें । उपर्युक्त विधि के प्रयोग से हिन्दी में ई-मेल द्वारा संदेश प्रेषित किए जा सकते हैं।
प्यारे वीरों जागो
प्यारे वीरों जागो
आह्वान कर रही है जननी दुर्बलताएँ सारी त्यागो।
भारत के भाग्य विधाता बन प्यारे वीरों जागो॥
क्यों अमर कहानी वीरों की तुम ने सारी बिसराई है।
आजाद, सुभाष, भगत सिंह ने जिसे कुर्बानी से सजाई है।
राणा प्रताप और छत्रपति ने क्या करके दिखलाया है।
दैदिप्यमान स्वर्णिम कीर्ति, जर्रे-जर्रे में छाया है।
तुम भी उनके ही वंशज हो, उनके भावों से दिल पागो॥
ऋषियों मुनियों की तपोभूमि ये वसुन्धरा कहलाती है।
देवों ने महिमा गायी है शारदा भी पार न पाती है।
सुन्दर अरण्य पालन उपवन, वाटिका तडाग अपारे हैं।
जो प्रायद्वीप कहलाता है, गिरिराज जहाँ रखवारे हैं।
रक्षक प्रहरी का है संदेश, तुम भी सेवा व्रत को मांगो॥
गीता, रामायण, वेद और उपनिषद जहाँ अति प्यारे हैं।
श्रीराम, कृष्ण, नानक, कबीर, भगवान बुध्द अवतारे हैं।
जहाँ राजयोग और कर्मयोग का बोध कराया जाता है।
वह भारत देश हमारा है, इतिहास हमें बतलाता है।
सदगुरू से आत्म स्वरूप ज्ञान, निष्काम कर्म में फिर लागो॥
जब ज्ञान भक्ति और प्रेम नहीं तो जीवन भी क्या जीवन है।
सम्भलो-सम्भलो है वक्त अभी, यही अपना सच्चा धन है।
असहाय गरीबों को देखो, वे भी तो अपने भाई हैं।
क्या यही हमारी संस्कृति है, क्या कला ने यही सिखाई है।
दु:ख के दलदल से निकाल कर, ममता के धागों से धागो॥
घर का भेदी लंका ढावे, ना द्वेष कभी दिल में लाओ।
एकता में बल है याद रखो, मिलकर कदम बढ़ाओ।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हम सब भाई-भाई हैं।
भारत माता अपनी ही है, मत समझो यह पराई है।
'लक्खी नारायण' विनय है, देश की उन्नति में लागो।
भारत भाग्य विधाता बन प्यारे वीरों जागो ॥
आह्वान कर रही है जननी दुर्बलताएँ सारी त्यागो।
भारत के भाग्य विधाता बन प्यारे वीरों जागो॥
क्यों अमर कहानी वीरों की तुम ने सारी बिसराई है।
आजाद, सुभाष, भगत सिंह ने जिसे कुर्बानी से सजाई है।
राणा प्रताप और छत्रपति ने क्या करके दिखलाया है।
दैदिप्यमान स्वर्णिम कीर्ति, जर्रे-जर्रे में छाया है।
तुम भी उनके ही वंशज हो, उनके भावों से दिल पागो॥
ऋषियों मुनियों की तपोभूमि ये वसुन्धरा कहलाती है।
देवों ने महिमा गायी है शारदा भी पार न पाती है।
सुन्दर अरण्य पालन उपवन, वाटिका तडाग अपारे हैं।
जो प्रायद्वीप कहलाता है, गिरिराज जहाँ रखवारे हैं।
रक्षक प्रहरी का है संदेश, तुम भी सेवा व्रत को मांगो॥
गीता, रामायण, वेद और उपनिषद जहाँ अति प्यारे हैं।
श्रीराम, कृष्ण, नानक, कबीर, भगवान बुध्द अवतारे हैं।
जहाँ राजयोग और कर्मयोग का बोध कराया जाता है।
वह भारत देश हमारा है, इतिहास हमें बतलाता है।
सदगुरू से आत्म स्वरूप ज्ञान, निष्काम कर्म में फिर लागो॥
जब ज्ञान भक्ति और प्रेम नहीं तो जीवन भी क्या जीवन है।
सम्भलो-सम्भलो है वक्त अभी, यही अपना सच्चा धन है।
असहाय गरीबों को देखो, वे भी तो अपने भाई हैं।
क्या यही हमारी संस्कृति है, क्या कला ने यही सिखाई है।
दु:ख के दलदल से निकाल कर, ममता के धागों से धागो॥
घर का भेदी लंका ढावे, ना द्वेष कभी दिल में लाओ।
एकता में बल है याद रखो, मिलकर कदम बढ़ाओ।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हम सब भाई-भाई हैं।
भारत माता अपनी ही है, मत समझो यह पराई है।
'लक्खी नारायण' विनय है, देश की उन्नति में लागो।
भारत भाग्य विधाता बन प्यारे वीरों जागो ॥
राष्ट्र सेवा के लिए वर्दी की आवश्यकता नहीं
राष्ट्र सेवा के लिए वर्दी की आवश्यकता नहीं
दिनांक 26/11/2008 को जब आतंकवादी निरीह एवं मासूम लोगों पर कहर बरपाने के उद्देश्य से ओबेराय के ट्रीडेन्ट होटल में गोलियाँ चलाते घुस रहे थे तब वहाँ मौजूद दो बावर्चियों ने अपनी वीरता से यह दिखला दिया कि राष्ट्र सेवा के लिए वर्दी पहनने की आवश्यकता नहीं होती और न ही आतंकवादियों से लड़ना मात्र सुरक्षाबलों का ही कार्य है वरन आम व्यक्ति सामान्य सूझबूझ एवं जागरूकता से यह कार्य कर सकता है।
उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन श्री राहुल पारकर तथा श्री श्रीपाद जामदार ओबेराय के ट्रीडेन्ट होटल के कर्मचारी प्रतिदिन की तरह किचन में व्यस्त थे। उस समय हॉटेल के हॉल में लभभग 150 विदेशी मेहमान मौजूद थे। इसी समय आतंकवादियों ने होटल में गोलीबारी करते हुए प्रवेश किया तथा गोलीबारी की आवाज सुनते ही हॉल में अफरातफरी मच गई। उस समय श्री राहुल पारकर तथा श्री श्रीपाद जामदार ने खतरे को भाँपते हुए किचन से निकल कर निडरता से तत्काल हॉल के दरवाजे को अन्दर से धकेल दिया तथा हाथ में मौजूद फ्राइंग पैन को कुंडी में लगा दिया जिससे दरवाजा बंद हो गया परिणामस्वरूप आतकंवादी अतिथिगृह में प्रवेश नहीं कर पाए।
इस दौरान उक्त कार्मिकों ने हॉल की लाइट तथा गैस सप्लाई को बंद कर अतिथियों को पिछले दरवाजे से सुरक्षित स्थान पर सकुशल ले जाने का अनुकरणीय कार्य किया।
इस सराहनीय कार्य से मात्र हॉल में विद्यमान विदेशी सैलानियों की जान ही नहीं बची बल्कि विख्यात औबेराय होटेल तथा देश की प्रतिष्ठा बनी रही।
दिनांक 26/11/2008 को जब आतंकवादी निरीह एवं मासूम लोगों पर कहर बरपाने के उद्देश्य से ओबेराय के ट्रीडेन्ट होटल में गोलियाँ चलाते घुस रहे थे तब वहाँ मौजूद दो बावर्चियों ने अपनी वीरता से यह दिखला दिया कि राष्ट्र सेवा के लिए वर्दी पहनने की आवश्यकता नहीं होती और न ही आतंकवादियों से लड़ना मात्र सुरक्षाबलों का ही कार्य है वरन आम व्यक्ति सामान्य सूझबूझ एवं जागरूकता से यह कार्य कर सकता है।
उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन श्री राहुल पारकर तथा श्री श्रीपाद जामदार ओबेराय के ट्रीडेन्ट होटल के कर्मचारी प्रतिदिन की तरह किचन में व्यस्त थे। उस समय हॉटेल के हॉल में लभभग 150 विदेशी मेहमान मौजूद थे। इसी समय आतंकवादियों ने होटल में गोलीबारी करते हुए प्रवेश किया तथा गोलीबारी की आवाज सुनते ही हॉल में अफरातफरी मच गई। उस समय श्री राहुल पारकर तथा श्री श्रीपाद जामदार ने खतरे को भाँपते हुए किचन से निकल कर निडरता से तत्काल हॉल के दरवाजे को अन्दर से धकेल दिया तथा हाथ में मौजूद फ्राइंग पैन को कुंडी में लगा दिया जिससे दरवाजा बंद हो गया परिणामस्वरूप आतकंवादी अतिथिगृह में प्रवेश नहीं कर पाए।
इस दौरान उक्त कार्मिकों ने हॉल की लाइट तथा गैस सप्लाई को बंद कर अतिथियों को पिछले दरवाजे से सुरक्षित स्थान पर सकुशल ले जाने का अनुकरणीय कार्य किया।
इस सराहनीय कार्य से मात्र हॉल में विद्यमान विदेशी सैलानियों की जान ही नहीं बची बल्कि विख्यात औबेराय होटेल तथा देश की प्रतिष्ठा बनी रही।
ब्लॉ ग कैसे बनाए
ब्लॉग कैसे बनाए
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा समकालिन समाज में विचारों की अभिव्यनक्ति को मनुष्ये का मूलभूत अधिकार माना गया है। आज व्यथक्ति इन्टंरनेट के माध्य्म से अत्यनन्त अल्पॉ अवधि एवं व्यमय में अपने विचारों को असंख्यक लोगों तक पहुँचा सकने में सफल हो गया है। इनटरनेट तथा युनिकोड स्क्रिप्टं के संगम ने तो विचारों की अभिव्यकक्ति को उच्चयतम शिखर पर पहुँचा दिया है। इसके माध्यकम से अब ग्रामिण तथा अल्पि शिक्षित वर्ग क्षेत्रीय भाषा में विचारों को अभिव्यरक्ति करने सक्षम हुआ है। इस दिशा में ब्लॉिगिंग सर्वाधिक नया एवं प्रभावपूर्ण चलन बनकर उभर रहा है। इस लेख में ब्लॉ।ग तैयार करने की जानकारी प्रस्तुवत है:-
सर्वप्रÏथम ऑपरेटर https://www.blogger.com/start साइट ओपन करे। ऐसा करते ही उक्तर वेबपेज में ब्लॉबग बनाने के क्रमश: 03 चरण प्रदर्शित होंगे जिसमें से "क्रीएट ए ब्लॉ ग लिंक" को क्लिक कर दे ।
तदुपरान्तइ "क्रीएट ए गुगल एकाउन्टo पेज" प्रदर्शित होगा जिसमें क्रमश: ई-मेल एडरेस, रिटाइप ई-मेल एडरेस, एन्टकर पासवर्ड, रिटाइप पासवर्ड ,डिसप्लेे नेम, वर्ड वेरिफिकेशन आदि फिलिंग बॉक्स बने प्राप्त होंगे। अब ऑपरेटर इनमें अपना गुगल एकाउन्टप, पासवर्ड तथा अपना नाम टाइप कर दे। यदि ऑपरेटर का गुगल एकाउन्टे नहीं है तो उक्त पेज पर ही उसे तैयार करने की सुविधा भी विद्यमान रहती है जिसका प्रयोग कर ऑपरेटर नया गुगल एकाउन्टत तैयार कर सकता है। इस क्रम में बागे ऑपरेटर वेरिफिकेशन हेतु वेबपेज पर प्रदर्शित अक्षरों को "वर्ड वेरिफिकेशन" फिलिंग बॉक्स में टाइप कर नीचे प्रदर्शित "कन्टीवन्यूद" प्रेस बटन को माउस द्वारा क्लिक कर दे।
ऐसा करते ही द्वितीय चरण के रूप में स्क्री न पर नेम यॉर ब्लॉ ग, ब्लॉ ग टाइटेल, ब्लॉ ग एड्रेस आदि फिलिंग बॉक्सतयुक्त वेबपेज प्रदर्शित हो जाएगा। जिसमें ऑपरेटर अपने ब्ला ग का क्रमश: नाम, टाइटेल नेम तथा यू.आर.एल. एड्रेस टाइप करें। उदाहरण के लिए यहाँ (URL) rajbhashagyandhara.blogspot.com को यू.आर.एल. एड्रेस के रूप में प्रदर्शित किया गया है। तत्पश्चाhत "कन्टीन्यू" प्रेस बटन को क्लिक कर दें।
तृतीय चरण के रूप में स्क्रीन पर "चूस ए टेमप्लेोट पेज" प्रदर्शित होगा जिसमें से आपकी सुविधा के लिए ब्लॉेग के बहुत सारे टेमप्लेचट बने प्राप्त होंगे। ऑपरेटर उक्त में से अपनी पसंद अनुसार वांछित ब्लॉsग टेमप्लेट का चयन कर "कन्टीन्यू" प्रेस बटन को क्लिक करें। इस प्रक्रिया को पूर्ण करते ही आपका ब्लॉॉग तैयार हो जाएगा तथा आपके स्क्रीतन पर "यॉर ब्लॉयग हेज बीन क्रीएटेड" प्रदर्शित हो जाएगा । अब "स्टालर्ट ब्लॉ गिंग लिंक" को क्लिक कर ऑपरेटर ब्लॉ ग पर सामग्री पोस्टप करना आरम्भह करने में सफल हो जाएगा।
सोमवार, 20 अप्रैल 2009
सूचना प्रौद्योगिकी तथा हिन्दी कम्प्यूटरीकरण
सूचना प्रौद्योगिकी तथा हिन्दी कम्प्यूटरीकरण
सर्वविदित है कि हिन्दी विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषाओं में से एक है तथा इसका संस्कृत भाषा जिसे प्रोग्रामिंग का आधार माना जा रहा है, अत्यन्त घनिष्ठ संबंध है। वस्तुत: संस्कृत एवं हिन्दी की लिपि एक है और गणित विषय की भांँति दोनों भाषाओं में तार्किक तत्व विद्यमान है शायद यही कारण है कि कम्प्यूटर विशेषज्ञों का यह कथन कि "प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में भारतीयों का कोई सानी नहीं और भविष्य में भारत सॅाफ्टवेयर निर्माण में आशातित प्रगति करेगा क्योंकि यहाँ के प्रोग्रामरों को अत्यंन्त वैज्ञानिक एवं तार्किक भाषा हिन्दी व संस्कृत का ज्ञान है " सटिक प्रतीत होता है।
कम्प्यूटर तकनीकी के प्रति रूचि :- इतिहास गवाह है कि मनुष्य सदैव ही आरम्भ में नई तकनीकी को आत्मसात करने में झिझक का अनुभव करता रहा है किन्तु जब उसे नविन तकनीकी के सहज प्रयोग व अन्य लाभों का अनुभव हुआ तो उसने न केवल उसे आत्मसात ही किया बल्कि उसे और भी विकसित करने हेतु नवीन प्रयोग भी किए। अत: हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु न केवल नवीन तकनीकी को हमें सहर्ष रूप से स्वीकार करना पडे.गा बल्कि उसके सहज प्रचालन हेतु संबंधित कार्मिको को प्रशिक्षित कर उनमें रूचि एवं जिज्ञासा का भाव उत्पन्न करने के लिए वातावरण भी तैयार करना होगा।
हिन्दी कम्प्यूटर प्रचालन प्रशिक्षण :- नई तकनीकी अर्थात कम्प्यूटर का द्विभाषीकरण तब तक सफल नहीं माना जा सकेगा जब तक सर्वसामान्य हिन्दी कम्प्यूटर के प्रयोग में सहज अनुभव न कर पाएं। अत: यह अत्यन्त आवश्यक है कि ऐसे हिन्दी कम्प्यूटर प्रचालन प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों को तैयार किया जाए जो प्रशिक्षणार्थियों में कम्प्यूटरीकरण के प्रति रूचि व जिज्ञासा के भाव को उत्पन्न कर सकने में सफल हों। बाजार में हिन्दी भाषा में उपलब्ध कम्प्यूटर आपरेटिंग पुस्तकों का प्रयोग किया जा सकता है किन्तु इसकी भी सीमाएं हैं। ऐसी अधिकांश पुस्तकों की भाषा शैली पांडित्यपूर्ण होती है तथा विवरण अत्यन्त संक्षिप्त जो कि औसत बुद्वि वाले व्यक्ति या प्रथम बार ही कम्प्यूटर का प्रयोग करने वाले प्रशिक्षाणार्थियों की समझ से बाहर होती है। ऐसी स्थिति में यही श्रेयकर होगा कि पाठ्यक्रम निदेशक अथवा आयोजक स्वयं ही सामान्य एवं सहज भाषा शैली में चित्र सहित हिन्दी कम्प्यूटर आपरेटिंग से संबंधित विस्तृत पाठ्यक्रम तैयार करें।
हिन्दी कम्प्यूटरीकरण में भारत सरकार, गृह मंत्रालय राजभाषा विभाग व शासकीय संस्थाओं की भूमिका में नीतिगत परिवर्तन :- हिन्दी की प्रगति में भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग तथा अन्य शासकीय संस्थानों की अहम भूमिका है क्योंकि निजी संस्थानों के विपरित प्रत्येक शासकीय संस्थान में राजभाषा अनुभाग स्थापित किए गए हैं जो राजभाषा प्रचार-प्रसार के प्रति उत्तरदायी हैं। भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग को अब अपने पाठ्यक्रमों में समय के साथ बदलाव लाना चाहिए। आज मात्र "ग" क्षेत्र के लोगों को ही प्राज्ञ प्रशिक्षण हेतु पात्र घोषित कर वेतनवृद्घि दिए जाने का प्रावधान रखना चाहिए चूॅकि देश के अन्य हिस्सों में राजभाषा हिन्दी ने पूर्ण रूप से लोकप्रियता अर्जित कर ली है तथा इन क्षेत्रों में रहने वाले लोग भलि-भाँति हिन्दी बोलने ,समझने व लिखने में सक्षम हो गए हैं इसलिए हिन्दी एवं सह हिन्दी भाषी क्षेत्रों में प्रबोध , प्रवीण तथा प्राज्ञ पाठ्यक्रम चलाना न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता है। इस नीति के कार्यान्वयन से जो धनराशि बचेगी उसका प्रयोग हिन्दी कम्प्यूटर प्रचालन प्रशिक्षण हेतु पाठ्यक्रम तैयार करने तथा हिन्दी कम्प्यूटर प्रचालन प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए जाने हे तु किया जा सकता है। तद्नुसार राजभाषा अनुभाग के क्रियाकलापों में भी परिवर्तन कर उन्हें मुख्यत: हिन्दी में कम्प्यूटर पाठ्यक्रम तैयार करने तथा हिन्दी कम्प्यूटर प्रचालन प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए जाने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसमें राजभाषा विभाग ,नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति तथा केन्द्र सरकार के संस्थान, अर्ध सरकारी कार्यालय, भारत सरकार के उपक्रम, आयुध निर्माणियाँ, आयुध निर्माणियाँ शिक्षण संस्थान,सी.एम.सी. लिमिटेड तथा विभिन्न शासकीय संस्थानों द्वारा समन्वित प्रयास किया जाना चाहिए।
हिन्दी सामग्री अपलोड करने की सुविधा प्रदान करना :- इंटरनेट में हिन्दी वेब साइट रहने के बावजूद अब भी हिन्दी में कोई बहुत ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है तथापि इस दिशा में विभिन्न भारतीय सॉफ्टवेयर कम्पनियों,राजभाषा सेवी वर्क ग्रुप ने अपने वेब साइट पर हिन्दी में सामग्री अपलोड की है और इसके सतत् विकास एवं वृद्घि के लिए आम लोगों से भी विविध विषय पर लिखित /रचित मौलिक स्तरीय लेखन सामग्री उनके वेब साइट पर अपलोड करने की अपील की है । उदाहरण के लिए http://www.mediawiki.org वेब साइट पर हिन्दी से संबंधित विविध विषयों पर लिखित स्तरीय लेख आदि सामग्री अपलोड किए जाने की स्वतंत्रता है। इसी प्रकार प्रत्येक संस्थान को अपनी वेबसाइट पर संस्थान के कार्मिकों द्वारा तैयार स्तरीय सामग्री को अपलोड करवाने की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए। इसके अन्तर्गत संबंधित संस्थान/मंत्रालय में प्रयुक्त विविध तकनीकी एवं अभियांत्रिक परिभाषिक शब्दों के अर्थ कार्यालयीन शब्दार्थों व तकनीकी लेख को समाहित किया जा सकता है। ऐसा होने पर निश्चय ही इंटरनेट पर हिन्दी के भंडार में वृद्घि होगी तथा जिससे समस्त मानव जाति लाभान्वित होगी।
सर्वविदित है कि वर्तमान युग विज्ञापन का युग है जिस प्रकार नए उत्पाद को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रचार-प्रसार माध्यमों पर उनका विज्ञापन किया जाता है। उसी प्रकार सॉफ्टवेयर फर्म अपने नवीन उत्पादों को लोकप्रिय बनाने के लक्ष्य को हासिल करने हेतु उपभोक्ताओं को निश्चित समयावधि तक अपने साफ्टवेयरों का प्रयोग करने की अनुमति प्रदान करती हैं। ऐसे सॉफ्टवयरों को "शेयरवेयर" श्रेणी में रखा जाता है। इसी प्रकार साफ्टवेयर फर्म उपभोक्ता को अपने द्वारा तैयार सॉफ्टवेयरों को पूर्ण रूप से नि:शुल्क प्रयोग करने की सुविधा भी प्रदान करती हैं। "शेयरवेयर" तथा "फ्रिवेयर" श्रेणी के सॉफ्टवेयर और फॉन्ट इंटरनेट से डाउनलोड कर उनका प्रयोग किया जा सकता है। ओपन ऑफिस, रूपान्तर सॉफ्टवेयर फ्रिवेयर तथा आई.एस.एम. सॉफ्टवेयर शेयरवेयर श्रेणी के साफॅ्टवेयर हैं ,जिन्हें क्रमश: http://www.openoffice.org व http://tdil.gov.in से डाउनलोड कर प्रयोग में लाया जा सकता है। उपरोक्त श्रेणी के ऐसे कई और सॉफ्टवेयर या पूरक सॉफ्टवेयर ,फॉन्ट इंटरनेट पर उपलब्ध है। इन पर हिन्दी में पाठ्यसामग्री एवं प्रचालन पुस्तिका बनाकर प्रशिक्षाणथियों को प्रशिक्षित करने से निश्चय ही राजभाषा के प्रचार - प्रसार में अपेक्षित गति से प्रगति संभव हो सकेगी ।
भ्रमण बनाम व्यावहारिक प्रशिक्षण :- राजभाषा प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में कार्यरत अधिकांश गैर-सरकारी संस्थान तथा पुस्तक के प्रकाशकों द्वारा समय-समय पर राजभाषा संगोष्ठियाँ एवं कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं। जिनमें राजभाषा कार्मिकों को आमंत्रित किया जाता है। इन कार्यशालाओं एवं संगोष्ठियों का प्रस्तावित पाठ्यक्रम तो अत्यंत आकर्षक प्रतीत होता है किंतु वास्तव में शैक्षणिक भ्रमण का कार्य शिक्षण क्रियाकलाप पर भारी पड़ता है । ऐसा देखने में आता है कि प्रस्तावित पाठ ्यक्रम के पठन-पाठन के प्रति न तो प्रशिक्षणाथियों और नही आयोजकों में कोई रूचि होती है। वस्तुत: भ्रमण पर व्यय धनराशि का यदि आधा भाग भी संग्रहित कर उपस्थित प्रतिभागियों को राजभाषा हिन्दी से संबद्घ नवीन सॉफ्टवेयरों तथा उक्त के प्रचालन विधि से अवगत कराये जाने के लिए किया जाए तो निश्चय ही संगोष्ठी तथा कार्यशाला के आयोजन का उद्देश्य बहुत हद तक सफल हो पायेगा। इसके लिए विभिन्न सॉफ्टवेयर फर्मों के प्रतिनिधियों को उनके द्वारा तैयार हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं से संबंधित सॉफ्टवेयर का डेमो देने के लिए आमंत्रित किया जा सकता है तथा इसके लिए अधिकांश सॉफट्वेयर कम्पनियाँ सहर्ष ही तैयार हो जायेगी क्यांेंकि एक ही मंच पर बड.ी संख्या में राजभाषा कर्मियों की उपस्थिति से उनके द्वारा निर्मित सॉफ्टवेयरों का विज्ञापन भी हो जायेगा।
सी-डैक की भूमिका :- राजभाषा हिन्दी को लोकप्रिय करने के उद््देश्य से सरकार द्वारा सी-डैक वर्क ग्रुप का गठन एक ईमानदार कोशिश है। सी-डैक दिनों-दिन हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं के लिए नवीन सॉफट्वेयरों का निर्माण कर रही है। जो सहज उपलब्ध एवं प्रचालन में सुलभ हैं। लिप आफिस तथा आई - लिप सॉफ्टवेयर इनके उदाहरण है। हिन्दी सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में सी- डैक ने लम्बी दूरी तय कर ली है किन्तु यह भी सत्य है कि अभी इस दिशा में तीव्र गति से और भी लम्बी दूरी तय की जानी है। अब भी सी-डैक निर्मित सॉफ्टवेयरों की कीमतें बहुत अधिक हैं उदाहरण के तौर पर आई.एस.एम.2005, आई.एस.एम.पब्लिशर व आई.एस.एम. चित्रांकन को ही लीजिए। इन बहुभाषी सॉफटवेयरों का मूल्य लगभग रूपए 8000/- है । प्रश्न यह उठता है कि क्या औसत आय वाला सामान्य व्यक्ति रूपये 8000/- का सॉफ्टवेयर खरीद सकता है ? निश्चय ही नहीं। अत: अब समय आ गया है कि सी- डैक सहित समस्त सॉफ्टवेयर कम्पनियों को अपने सॉफ्टवेयरों की कीमतें आम व्यक्ति के पहुँच के भीतर रखनी होगी। इसके लिए सरकार को चाहिए कि वह सी-डैक तथा अन्य सॉफ्टवेयर कम्पनियों को सब्सिडी प्रदान करे अथवा उद्योगों के विकास हेतु कर माफ किए जाने के तर्ज पर सॉफ्टवेयर कम्पनियों पर लागू कर को भी माफ करे।
संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय,भारत सरकार की भूमिका :- यह अत्यंत हर्ष की बात है कि भारत सरकार राजभाषा विभाग हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु दृढ.ता से कार्य कर रही है। इस दिशा में संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने हिन्दी सॉफ्टवेयर उपकरण की निशुल्क सी.डी. सामान्यजन को वितरित करने का बीड़ा उठाया है। इस सॉफ्टवेयर उपकरण को पूर्वोक्त मंत्रालय के साइड से भी डाउनलोड किए जाने की व्यवस्था भी है। इसी तरह सी.डी.ए.सी. के एप्लाइड ए.आई.ग्रुप द्वारा राजभाषा विभाग के सहयोग से कम्प्यूटर साधित अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद सॉफ्टवेयर च्मंत्र-राजभाषाछ जो कि वित्तीय एवं प्रशासनिक क्षेत्रों से संबंधित अधिसूचनाओं तथा आदेशों को अंग्रेजी से हिन्दी में अनूदित करने में सक्षम हैं की सी.डी. का नि:शुल्क वितरण किया जाना आशावादी कदम है। यद्यपि इन सॉफ्टवेयर में कुछ विसंगतियाँ भी हैं तथापि राजभाषा हिन्दी के प्रचार - प्रसार में उपरोक्त सॉफ्टवेयरों का वितरण हिन्दी की प्रगति में मिल का पत्थर साबित होगा।
सी.डी. पर सामग्री संचित करना
सी.डी. पर सामग्री संचित करना
वर्तमान युग में डेटा संचित करना अति महत्वपूर्ण एवं चुनौतिपूर्ण कार्य माना जाता है। डेटा संचय हेतु फ्लापि व पेन ड्राइव आदि इलेक्ट्रानिक उपकरण बाजार में उपलब्ध हैं किन्तु अब भी डेटा चिरकाल तक स्थायी रूप से संचित करना कठीन ही प्रतीत हो रहा है क्योंकि उपयुक्त उपकरणों के खराब हो जाने का खतरा बना रहता है। चिरकाल तक डेटा को स्थायी रूप से संचित करने हेतु वर्तमान में सी.डी. पर सामग्री संचित करने का चलन बढ़ रहा है क्योंकि डेटा संचय हेतु प्रयुक्त अन्य उपकरणों की अपेक्षा सस्ता तथा चिरकालिक है ; इसके करप्ट होने का जोखिम नहीं रहता है। सी.डी. पर डेटा संचय की पद्घति अत्यंत सहज एवं सरल भी है । इस लेख में उक्त से संबंधित जानकारी निम्नवत प्रस्तुत है :-
डेटा संचय हेतु वांछित सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर
सर्वविदित है कि कम्प्यूटर में इन्स्टाल्ड भिन्न - भिन्न सॉफ्टवेयर/हार्डवेयर के भिन्न कार्य होते हैं जिसके अभाव में कम्प्यूटर अपेक्षित कार्य करने में सक्षम नहीं हो पाएगा। अत : उपयोगकर्ता को सर्वप्रथम सी.पी.यू. स्लॅाट में सी.डी. राइटर और कम्प्यूटर प्रोग्राम में न्यूरो एक्स्प्रेस सॅाफ्टवेयर इन्स्टाल करवाना होगा।
सी.डी. पर डेटा संचित करने की प्रक्रिया
1.डेटा संचय प्रक्रिया के आरम्भ ऑपरेटर "स्टार्ट" मेन्यू को माउस द्वारा क्लिक कर इन्स्टाल्ड कम्प्यूटर प्रोग्रामों की सूची से "न्यूरो स्टार्ट स्मार्ट सॉफ्टवेयर" को सक्रिय कर लें ।
2. ऐसा करते ही मॉनिटर पर "न्यूरो" नामक डॅायलग बॉक्स प्रदर्शित हो जाएगा जिसमें से उपयोगकर्ता रूची अथवा आवश्यकतानुसार संचित/राइट किए जाने वाले सामग्री के फार्मेट का चयन कर ले ; उदाहरण के लिए यदि ऑपरेटर डेटा फार्मेट में डेटा संचित करना चाहता है तो वह पूर्वोक्त डॅायलग बॉक्स में से मेक डेटा डिस्क फार्मेट का चयन कर ले ।
3. अगली प्रक्रिया के रूप में मॉनिटर पर "न्यूरो एक्स्प्रेस" नामक डॅायलग बॉक्स मॉनिटर पर आ जाएगा जिसके ड्रॉप डॉउन मेन्यू को सक्रिय करते हुए ऑपरेटर को क्रमश: उस स्थान का उल्लेख करना होगा जहाँ उसने (ऑपरेटर)े संचित/राइट किए जाने वाले फोल्डर / डेटा को संचित कर रखा है और डॉयलग बॉक्स के नीचे विद्यमान "नैक्स्ट" प्रेस बटन को क्लिक करना होगा।
4. ऐसा करते ही "सिलेक्ट फाइल्स एण्ड फोल्डर्स" नामक डॉसलग बॉक्स स्क्रीन पर अवतरित हो जिसमें चयनित स्थान /ड्राइव में संचित समस्त शार्टकट मेन्यू ,फाइल तथा फोल्डर आदि प्रदर्शित हो जाएंगे।
5. अगले चरण में ऑपरेटर प्रदर्शित शार्टकट मेन्यू ,फाइल तथा फोल्डर आदि में से सी.डी. पर राइट किए जाने योग्य फाइल /फोल्डर को माउस द्वारा चून कर "एैड" प्रेस बटन को क्लिक कर लें वाँछित डेटा चुन लेने के उपरान्त "फिनिश" (कुँजी) बटन प्रेस करें ।
6. प्रक्रियास्वरूप स्क्रिन पर परिलक्षित "न्यूरो एक्सप्रेस" डॉयलग बॉक्स में राइट किए जाने वाले डेटा आ प्रतिबिम्बित हो जाएंगे । त्रुटिवश चयनित फाइल तथा फोल्डर को हटाने हेतु माउस द्वारा उन्हें चुन कर "डिलिट" प्रेस बटन को क्लिक करें ।
7. तदुपरान्त "नैक्सट" (कुँजी) बटन को माउस द्वारा सक्रिय कर उपरोक्त डॉयलग बॉक्स के अन्तर्गत "फाइनल बर्न सेटिंग" में क्रमश: राइटिंग स्पीड कॉलम,सी.डी. राइट करने की अपेक्षित गति, मल्टिसेशन एवं वेरिफाय ऑफटर राइटिंग सी.डी. विकल्प को माउस के माध्यम से आवश्यकता अनुरूप सक्रिय कर दें ।
8. इस बीच सी.डी. राइटर में खाली (ब्लैंक) सी.डी. इनसर्ट कर दें। अंतिम चरण में "बर्न" कुँजी को माउस से प्रेस कर दें। ऐसा करने के साथ ही कम्प्यूटर ड्राइव में सी.डी. की उपस्थिति जाँचते हुए डेटा राइट करने की प्रक्रिया आरम्भ कर देगा तथा उक्त की समाप्ति पर तत्संबंधी सूचना मॅानिटर पर स्वत: ही प्रदर्शित कर देगा।
शराब है मौते जहर
शराब है मौते जहर
लाख मना करने पर भी, न छोड़ी उन्होंने पीनी शराब,
रोज-रोज पी पीकर, कर ली अपनी तबियत खराब ।
हुई रूखसत जनबा की न सिर्फ शानो - शौकत ,
गई शोहरत और गया उनका दौलते - असबाब । 1 ।
शौके - शराब कर जहॉं खाते थे वो सींक - कबाब,
हालात यूओं हुए खस्ता कि रोटी को भी मोहताज जनाब
नशा - नशीन हो राह पर लड़खड़ाया वो करते थे ,
मदहोशी के आलम में नुमाइश वो अपनी लगाते थे
बार-बार समझाने पर भी न ली उन्होंने कोई नसीहत,
दर-दर की ठोकरें खाकर ले आते रोज नई फजीहत ।
अपने ही घर में अपनों से खाते जब वो झिड़कियॉं ,
बेचारी बेगम बचाने आबरू बंद करती घर की खिड़कियॉं । 3 ।
शराब वो जहर है जो बनाये खुद को खुद का बैरी,
औरों की क्या बात करें, बनाए अपनों से भी दूरी ।
संभल रहबर अब भी ! मौके हैं तेरे पास अनेक ,
पकड़ राह जिन्दगी की बनाकर अपने इरादे नेक ।
छोड़ शौके शराब-गर, पकडे तू राह दुरूस्त ,
नहीं वजह कोई कि न हो पाये तू फिर तंदुरूस्त ।
कर जिगर मजबूत और पक्का कर अपना इरादा,
छोड़ नशा शौके-शराब का और कर खुद से ये वादा । 5 ।
न होऊँगा गुमराह फिर, न खावूँगा और ठोकर,
गलतियॉं न दोहराऊँगा जिंदगी से सीख पाकर ।
न पीऊँगा अब शराब, शराब है मौते - जहर ,
छोड़कर वह बदनाम गली पकडूँगा अब नई डगर । 6 ।
लाख मना करने पर भी, न छोड़ी उन्होंने पीनी शराब,
रोज-रोज पी पीकर, कर ली अपनी तबियत खराब ।
हुई रूखसत जनबा की न सिर्फ शानो - शौकत ,
गई शोहरत और गया उनका दौलते - असबाब । 1 ।
शौके - शराब कर जहॉं खाते थे वो सींक - कबाब,
हालात यूओं हुए खस्ता कि रोटी को भी मोहताज जनाब
नशा - नशीन हो राह पर लड़खड़ाया वो करते थे ,
मदहोशी के आलम में नुमाइश वो अपनी लगाते थे
बार-बार समझाने पर भी न ली उन्होंने कोई नसीहत,
दर-दर की ठोकरें खाकर ले आते रोज नई फजीहत ।
अपने ही घर में अपनों से खाते जब वो झिड़कियॉं ,
बेचारी बेगम बचाने आबरू बंद करती घर की खिड़कियॉं । 3 ।
शराब वो जहर है जो बनाये खुद को खुद का बैरी,
औरों की क्या बात करें, बनाए अपनों से भी दूरी ।
संभल रहबर अब भी ! मौके हैं तेरे पास अनेक ,
पकड़ राह जिन्दगी की बनाकर अपने इरादे नेक ।
छोड़ शौके शराब-गर, पकडे तू राह दुरूस्त ,
नहीं वजह कोई कि न हो पाये तू फिर तंदुरूस्त ।
कर जिगर मजबूत और पक्का कर अपना इरादा,
छोड़ नशा शौके-शराब का और कर खुद से ये वादा । 5 ।
न होऊँगा गुमराह फिर, न खावूँगा और ठोकर,
गलतियॉं न दोहराऊँगा जिंदगी से सीख पाकर ।
न पीऊँगा अब शराब, शराब है मौते - जहर ,
छोड़कर वह बदनाम गली पकडूँगा अब नई डगर । 6 ।
भारत देश की धरती
भारत देश की धरती
भारत देश की धरती, यह धरती है महान,
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
हरी भरी इन खेतियों को पवन चुमती जाए
उगती खुशियाँ देखकर कृषक मन ही मन मुस्काए
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
भारत देश की धरती, यह धरती है महान,
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
झर झर बहते झरने गाते सुर ताल में हर दम
जैसे इनमें बस गई आकर सात सुरों की सरगम
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
भारत देश की धरती, यह धरती है महान,
ताज,एलोरा,काशि,मथुरा हर एक इसको प्यारे हैं,
जैसे बच्चे गोद में बैठे, माँ को अपने प्यारे हैं।
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
भारत देश की धरती, यह धरती है महान,
वीरों की यह धरती, यह धरती है बलिदान की,
आँच न आने देंगे, देंगे बाजी जान की,
जय हिन्द! जय हिन्द! जय हिन्द!
भारत देश की धरती, यह धरती है महान,
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
हरी भरी इन खेतियों को पवन चुमती जाए
उगती खुशियाँ देखकर कृषक मन ही मन मुस्काए
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
भारत देश की धरती, यह धरती है महान,
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
झर झर बहते झरने गाते सुर ताल में हर दम
जैसे इनमें बस गई आकर सात सुरों की सरगम
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
भारत देश की धरती, यह धरती है महान,
ताज,एलोरा,काशि,मथुरा हर एक इसको प्यारे हैं,
जैसे बच्चे गोद में बैठे, माँ को अपने प्यारे हैं।
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
भारत देश की धरती, यह धरती है महान,
वीरों की यह धरती, यह धरती है बलिदान की,
आँच न आने देंगे, देंगे बाजी जान की,
जय हिन्द! जय हिन्द! जय हिन्द!
आजादी के शुभ अवसर पर-समूह गान
आजादी के शुभ अवसर पर-समूह गान
आजादी के शुभ अवसर पर,
हमने कसम यह खायी है
आजाद रहेगा हमारा वतन
हमारा वतन,प्यारा,प्यारा वतन
वक्त की आवाज को सब मिलकर पहचानेंगे,
दुश्मन की हर चाल को सब मिलकर पहचानेंगे
कभी न टूटे एकता अपनी ऽऽऽऽ
हमने कसम ये खायी है
आजाद रहेगा हमारा वतन
हमारा वतन,प्यारा,प्यारा वतन
वीरों के बलिदान का कर्ज चुकाते जाएंगे,
सरहद पर मर-मिटने का फर्ज निभाते जाएंगे,
धरती की अब शान बढ़ेगी ऽऽऽऽ,
हमने कसम यह खायी है
आजाद रहेगा हमारा वतन
हमारा वतन,प्यारा,प्यारा वतन
देश के हित की राह खुले,ज्ञान हमारा ऐसा हो,
हर हाथों को काम मिले,विज्ञान हमारा ऐसा हो।
अब न रहे कोई भूखा-प्यासा ऽऽऽऽ
हमने कसम यह खायी है।
आजाद रहेगा हमारा वतन
हमारा वतन,प्यारा,प्यारा वतन
आजादी के शुभ अवसर पर,
हमने कसम यह खायी है
आजाद रहेगा हमारा वतन
हमारा वतन,प्यारा,प्यारा वतन
वक्त की आवाज को सब मिलकर पहचानेंगे,
दुश्मन की हर चाल को सब मिलकर पहचानेंगे
कभी न टूटे एकता अपनी ऽऽऽऽ
हमने कसम ये खायी है
आजाद रहेगा हमारा वतन
हमारा वतन,प्यारा,प्यारा वतन
वीरों के बलिदान का कर्ज चुकाते जाएंगे,
सरहद पर मर-मिटने का फर्ज निभाते जाएंगे,
धरती की अब शान बढ़ेगी ऽऽऽऽ,
हमने कसम यह खायी है
आजाद रहेगा हमारा वतन
हमारा वतन,प्यारा,प्यारा वतन
देश के हित की राह खुले,ज्ञान हमारा ऐसा हो,
हर हाथों को काम मिले,विज्ञान हमारा ऐसा हो।
अब न रहे कोई भूखा-प्यासा ऽऽऽऽ
हमने कसम यह खायी है।
आजाद रहेगा हमारा वतन
हमारा वतन,प्यारा,प्यारा वतन
(श्री बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित मूल सम्पूर्ण गीत)
वंदे मातरम्
वंदे मातरम् वंदे मातरम्
सुजलां सुफलां मलयज-शीतलाम्
सस्य-श्यामलां मातरम् !
शुभ्र-ज्योत्स्ना-पुलकित-यामिनीम्
फुल्ल-कुसुमित-द्रुमदल शोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुर-भाषिंणीम्
सुखदाम् वरदाम् मातरम् !! ॥1॥
कोटी कोटी-कण्ठ-कलकल-निनाद कराले
कोटि कोटि भुजैर्धृत-खरकरवाले
के बोले मा तुमि अबले !
बहुबल-धारिणीम् नमामि तारिणीम्
रिपुदल-वारिणीम्-मातरम् !! ॥2॥
तुमि विद्या तुमि धर्म
तुमि हृदि तुमि मर्म
त्वम् हि प्राणा : शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति
हृदये तुमि मा भक्ति
तोमारई प्रतिमा गडि
मन्दिरे मन्दिरे
त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरण-धारिणी
कमला कमल-दल-विहारिणी
वाणी विद्यादायिनी ॥3॥
नमामि कमलाय् अमलाम् अतुलाम्
सुजलाम् सुफलाम् मातरम् !!
श्यामलाम् सरलाम् सुस्मिताम भूषिताम्
धरणीम् भरणीम् मातरम् !! ॥4॥
(श्री बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित मूल सम्पूर्ण गीत)
वंदे मातरम् वंदे मातरम्
सुजलां सुफलां मलयज-शीतलाम्
सस्य-श्यामलां मातरम् !
शुभ्र-ज्योत्स्ना-पुलकित-यामिनीम्
फुल्ल-कुसुमित-द्रुमदल शोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुर-भाषिंणीम्
सुखदाम् वरदाम् मातरम् !! ॥1॥
कोटी कोटी-कण्ठ-कलकल-निनाद कराले
कोटि कोटि भुजैर्धृत-खरकरवाले
के बोले मा तुमि अबले !
बहुबल-धारिणीम् नमामि तारिणीम्
रिपुदल-वारिणीम्-मातरम् !! ॥2॥
तुमि विद्या तुमि धर्म
तुमि हृदि तुमि मर्म
त्वम् हि प्राणा : शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति
हृदये तुमि मा भक्ति
तोमारई प्रतिमा गडि
मन्दिरे मन्दिरे
त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरण-धारिणी
कमला कमल-दल-विहारिणी
वाणी विद्यादायिनी ॥3॥
नमामि कमलाय् अमलाम् अतुलाम्
सुजलाम् सुफलाम् मातरम् !!
श्यामलाम् सरलाम् सुस्मिताम भूषिताम्
धरणीम् भरणीम् मातरम् !! ॥4॥
(श्री बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित मूल सम्पूर्ण गीत)
हड़ताल
हड़ताल
दिन शाम को जब मैं घर लौटा,
घर में छाया था एकदम सन्नाटा।
सामान इधर-उधर बिखरा था,
जैसे कोई भूचाल आया था।
मैंने पूछा बेटे से क्या है ये घर का हाल ?
उसने कहा, मम्मी ने की है आज हडताल !
सुनकर यह बात मेरे अंदर करंट मारा गया,
मेरे जेब पर अब क्या गुजरेगी इसका अंदाज आ गया।
डर कर मैं अंदर गया,
आनेवाली मुसिबतों को भॉप गया।
बिबी आराम से लेटी थी सोफे में,
जैसे भैंस बैठती है पानी में।
मैंने कहा भागवान,घर का क्या हाल बना रखा है,
जैसे किसी कबाड़खाने में पैर रखा है।
किस बातपर हड़ताल का ऐलान कर रही हो,
इस उम्र में गरीब को क्यों परेशान कर रही हो ?
इस पर चिल्लाकर वह बोली, जब तक मेरी माँगे नहीं होगी पूरी,
आपको रखनी होगी मुझसे दूरी।
पूरानी हो गयी साड़ियाँ और गहनें,
शर्म आती है पडोसियों को मुँह दिखाने।
टि.वी, फ्रिज, सोफा कुछ काम के नहीं हैं,
पूरानी चीजों में अब मजा नहीं है।
सारी चीजें मुझे नई दिलवा दो,
तभी आकर मुझे अपना लो।
हड़ताल तब खत्म होगी,
जब सभी माँगे सफल होगी।
तब मैंने कहा, पूरानी चीजों से तो मैं भी हूँ परेशान,
ऐसी बातों से छुडाना चाहता हूँ मैं भी अपनी जान।
बीस साल से तुम भी तो हो गई हो पुरानी,
चाहता हँू लेकर आऊँ कोई कमसीन जवानी।
तुम्हें घर के किसी कोने में बिठाऊँगा,
इस उमर में कुछ हसीन लम्हें बिताऊंगा।
इस बातपर वह लगी रोने,
घुटने टेककर लगी गिडगिडाने।
खत्म करती हँू अब ये हड़ताल,
घर में नहीं लाना कोई नया माल।
इस पर मैंने कहा, मैं तो मजाक कर रहा था रानी,
तेरे नाम पर लिखी है पूरी जवानी।
पूरानी चीजों की बात ही कुछ और है,
बिवी जितनी पूरानी उसकी लज्जत कुछ और है।
उसी वक्त हड़ताल समाप्त हो गयी,
जिंदगी फिरसे खुशहाल हो गयी
दिन शाम को जब मैं घर लौटा,
घर में छाया था एकदम सन्नाटा।
सामान इधर-उधर बिखरा था,
जैसे कोई भूचाल आया था।
मैंने पूछा बेटे से क्या है ये घर का हाल ?
उसने कहा, मम्मी ने की है आज हडताल !
सुनकर यह बात मेरे अंदर करंट मारा गया,
मेरे जेब पर अब क्या गुजरेगी इसका अंदाज आ गया।
डर कर मैं अंदर गया,
आनेवाली मुसिबतों को भॉप गया।
बिबी आराम से लेटी थी सोफे में,
जैसे भैंस बैठती है पानी में।
मैंने कहा भागवान,घर का क्या हाल बना रखा है,
जैसे किसी कबाड़खाने में पैर रखा है।
किस बातपर हड़ताल का ऐलान कर रही हो,
इस उम्र में गरीब को क्यों परेशान कर रही हो ?
इस पर चिल्लाकर वह बोली, जब तक मेरी माँगे नहीं होगी पूरी,
आपको रखनी होगी मुझसे दूरी।
पूरानी हो गयी साड़ियाँ और गहनें,
शर्म आती है पडोसियों को मुँह दिखाने।
टि.वी, फ्रिज, सोफा कुछ काम के नहीं हैं,
पूरानी चीजों में अब मजा नहीं है।
सारी चीजें मुझे नई दिलवा दो,
तभी आकर मुझे अपना लो।
हड़ताल तब खत्म होगी,
जब सभी माँगे सफल होगी।
तब मैंने कहा, पूरानी चीजों से तो मैं भी हूँ परेशान,
ऐसी बातों से छुडाना चाहता हूँ मैं भी अपनी जान।
बीस साल से तुम भी तो हो गई हो पुरानी,
चाहता हँू लेकर आऊँ कोई कमसीन जवानी।
तुम्हें घर के किसी कोने में बिठाऊँगा,
इस उमर में कुछ हसीन लम्हें बिताऊंगा।
इस बातपर वह लगी रोने,
घुटने टेककर लगी गिडगिडाने।
खत्म करती हँू अब ये हड़ताल,
घर में नहीं लाना कोई नया माल।
इस पर मैंने कहा, मैं तो मजाक कर रहा था रानी,
तेरे नाम पर लिखी है पूरी जवानी।
पूरानी चीजों की बात ही कुछ और है,
बिवी जितनी पूरानी उसकी लज्जत कुछ और है।
उसी वक्त हड़ताल समाप्त हो गयी,
जिंदगी फिरसे खुशहाल हो गयी
नालंदा हास्य व्यंग्य
नालंदा हास्य व्यंग्य
नालंदा से हास्य व्यंग्य कवि सम्मेलन का पैगाम आया,
सुनकर मेरा मन अति हर्षाया ।
सोचा मैंने,मुफ्त में विहार घुम आऊँगा,
अपने जैसे कई कालाकारों के दर्शन पाऊँगा।
तब तक श्रीमतीजी आयीं
मुझ पर जोर से झुझलाईं,बोली कुछ काम-धाम नहीं है।
क्या सोच रहे हैं ? किसी ने कुछ कही है ?
मैंने बोला, नालंदा से हास्य व्यंग्य कवि सम्मेलन का पैगाम आया है,
और हमने भी जाने का खुब मन बनाया है।
हँसी जोर से और बोली
क्यों करते हो ठिठोली।
हास्य - व्यंग्य और आप, सुना पाएंगे ,
लागों के दिल को गुदगुदा पाएंगे ।
अरे नीम के पेड़ पर क्या आम भी कभी आया है।
आपने हास्य- व्यंग्य कवि सम्मेलन में जाने का मन कैसे बनाया है,
खुद तो कभी हँसते ही नहीं, लागों को क्या खाक हँसाओगे ?
श्रेष्ठ हास्य कवियों के बीच बौने नजर आओगे।
यह सुन हिम्मत जुटाया, गला खरखराया,
बोला, भाग्यवान जब मुँह खोलों ,शुभ-शुभ बोलो ।
युक्ति लगाऊँगा , लालूजी के पास जाऊँगा,
थोड़े कुछ गुर उनसे भी पूछ आऊँगा।
आपको देखते ही लोग हँस पड़ते हैं, क्या राज है कुछ तो बताएं,
हमें भी हास्य कवि बनने के कुछ तो गुर सीखाएं।
तब तक मेरे अन्तस से आवाज आयी, अरे यार, क्यों है परेशान,
यह तो है बड़ा आसान, कुछ घर की, कुछ बाहर की, गप्पे सुनाना,
कोई ना हँसे, तो भी सुनाते जाना,
समझदार श्रोता कुछ तो शर्माएंगे ,
प्रोत्साहन हेतु कुछ तो ताली बजाएंगे।
बस धीरे-धीरे तू आगे बढ़ जाएगा
और एक न एक दिन हास्य कवि जरूर कहलाएगा।
बात राज की समझ में आयी और हमने हिम्मत जुटायी,
कितने ही खोटे सिक्के देश में चल रहे हैं
और मीडिया के माध्यम से लोग उन्हें झेल रहे हैं।
क्रिकेट, राजनीति कोई भी क्षेत्र देखें,
सब मास्टर थोड़े ही हैं फिर भी चल रहे हैं, हम भी चल जाएंगे।
कर्मन की गति न्यारी है, देश में भ्रष्टाचार की बीमारी है,
हंस दाना चुग रहा है,कौआ मोती खा रहा है,
विविाता से देश परिपूर्ण है।
परहित की बात सोचते हैं, परोपकारी हैं
इसीलिए अपनी भूमि पर भी क्रिकेट में प्राय: हार जाते हैं ।
नालंदा से हास्य व्यंग्य कवि सम्मेलन का पैगाम आया,
सुनकर मेरा मन अति हर्षाया ।
सोचा मैंने,मुफ्त में विहार घुम आऊँगा,
अपने जैसे कई कालाकारों के दर्शन पाऊँगा।
तब तक श्रीमतीजी आयीं
मुझ पर जोर से झुझलाईं,बोली कुछ काम-धाम नहीं है।
क्या सोच रहे हैं ? किसी ने कुछ कही है ?
मैंने बोला, नालंदा से हास्य व्यंग्य कवि सम्मेलन का पैगाम आया है,
और हमने भी जाने का खुब मन बनाया है।
हँसी जोर से और बोली
क्यों करते हो ठिठोली।
हास्य - व्यंग्य और आप, सुना पाएंगे ,
लागों के दिल को गुदगुदा पाएंगे ।
अरे नीम के पेड़ पर क्या आम भी कभी आया है।
आपने हास्य- व्यंग्य कवि सम्मेलन में जाने का मन कैसे बनाया है,
खुद तो कभी हँसते ही नहीं, लागों को क्या खाक हँसाओगे ?
श्रेष्ठ हास्य कवियों के बीच बौने नजर आओगे।
यह सुन हिम्मत जुटाया, गला खरखराया,
बोला, भाग्यवान जब मुँह खोलों ,शुभ-शुभ बोलो ।
युक्ति लगाऊँगा , लालूजी के पास जाऊँगा,
थोड़े कुछ गुर उनसे भी पूछ आऊँगा।
आपको देखते ही लोग हँस पड़ते हैं, क्या राज है कुछ तो बताएं,
हमें भी हास्य कवि बनने के कुछ तो गुर सीखाएं।
तब तक मेरे अन्तस से आवाज आयी, अरे यार, क्यों है परेशान,
यह तो है बड़ा आसान, कुछ घर की, कुछ बाहर की, गप्पे सुनाना,
कोई ना हँसे, तो भी सुनाते जाना,
समझदार श्रोता कुछ तो शर्माएंगे ,
प्रोत्साहन हेतु कुछ तो ताली बजाएंगे।
बस धीरे-धीरे तू आगे बढ़ जाएगा
और एक न एक दिन हास्य कवि जरूर कहलाएगा।
बात राज की समझ में आयी और हमने हिम्मत जुटायी,
कितने ही खोटे सिक्के देश में चल रहे हैं
और मीडिया के माध्यम से लोग उन्हें झेल रहे हैं।
क्रिकेट, राजनीति कोई भी क्षेत्र देखें,
सब मास्टर थोड़े ही हैं फिर भी चल रहे हैं, हम भी चल जाएंगे।
कर्मन की गति न्यारी है, देश में भ्रष्टाचार की बीमारी है,
हंस दाना चुग रहा है,कौआ मोती खा रहा है,
विविाता से देश परिपूर्ण है।
परहित की बात सोचते हैं, परोपकारी हैं
इसीलिए अपनी भूमि पर भी क्रिकेट में प्राय: हार जाते हैं ।
बीवी का डर
बीवी का डर
जब हम दोनों मिलते थे,
चमन में फूल खिलते थे ।
मीठी बातें होती थी,
काटे नहीं कटते दिन ये रात ऐसे वो कहती थी।
ये सब सुनकर आप सब हो गये होंगे दंग,
क्योंकि तब हम थे बहोत यंग
और तब हमारी शादी नहीं हुई थी ।
अब जब हम दोनों मिलते हैं,
सारे चमन में बम फटते हैं ।
अब काहे के यंग,
आमना-सामना होने पर शुरू हो जाती है जंग।
पहले मुझे देखकर शरम के मारे वो काँपती थी
अब डर के मारे मैं काँपता हॅूं ।
जब हम दोनों मिलते थे,
सारे चमन में फूल खिलते थे ।
पहले मुझे देखकर वो मुस्कुराती थी
अब मुँह सरकाती है ।
जब हम दोनों मिलते थे,
सारे चमन में फूल खिलते थे ।
पहले मैं था उसका यार,
उसको था मुझसे प्यार।
अब हो गया हँू पति,
तो देखती है मुझे गुलाम की भांति ।
जब हम दोनों मिलते थे,
सारे चमन में फूल खिलते थे ।
पहले हम थे Made For Each other,
अब Everything is Made For Her Only।
जब हम दोनों मिलते थे,
सारे चमन में फूल खिलते थे ।
पहले तो इशारों इशारों में काम होता था,
मगर अब टेलीफोन तो छोडो मोबाईल से भी दिल नहीं भरता।
जब हम दोनों मिलते थे, सारे चमन में फूल खिलते थे ।
अंत में देवीयों और सज्जनों,
आप सब से मुझे यही है कहना।
यह बात उससे न जाकर कहना,
क्योंकि मुझे कुछ और साल है जीना,
कुछ और साल है जीना ।
जब हम दोनों मिलते थे,
चमन में फूल खिलते थे ।
मीठी बातें होती थी,
काटे नहीं कटते दिन ये रात ऐसे वो कहती थी।
ये सब सुनकर आप सब हो गये होंगे दंग,
क्योंकि तब हम थे बहोत यंग
और तब हमारी शादी नहीं हुई थी ।
अब जब हम दोनों मिलते हैं,
सारे चमन में बम फटते हैं ।
अब काहे के यंग,
आमना-सामना होने पर शुरू हो जाती है जंग।
पहले मुझे देखकर शरम के मारे वो काँपती थी
अब डर के मारे मैं काँपता हॅूं ।
जब हम दोनों मिलते थे,
सारे चमन में फूल खिलते थे ।
पहले मुझे देखकर वो मुस्कुराती थी
अब मुँह सरकाती है ।
जब हम दोनों मिलते थे,
सारे चमन में फूल खिलते थे ।
पहले मैं था उसका यार,
उसको था मुझसे प्यार।
अब हो गया हँू पति,
तो देखती है मुझे गुलाम की भांति ।
जब हम दोनों मिलते थे,
सारे चमन में फूल खिलते थे ।
पहले हम थे Made For Each other,
अब Everything is Made For Her Only।
जब हम दोनों मिलते थे,
सारे चमन में फूल खिलते थे ।
पहले तो इशारों इशारों में काम होता था,
मगर अब टेलीफोन तो छोडो मोबाईल से भी दिल नहीं भरता।
जब हम दोनों मिलते थे, सारे चमन में फूल खिलते थे ।
अंत में देवीयों और सज्जनों,
आप सब से मुझे यही है कहना।
यह बात उससे न जाकर कहना,
क्योंकि मुझे कुछ और साल है जीना,
कुछ और साल है जीना ।
संगणक का कमाल
संगणक का कमाल
वर्ष 2007, माह सितम्बर, दिनांक 15, दिन शनिवार का। तमिल नाडू राज्य में एक छोटे से शहर के निवासी मिस्टर रंग अय्यर, उम्र 65 वर्ष ने दिल्ली के होटल में सुबह के दस बजे नाश्ते में वडा और साम्भर खाने का मन बना लिया। उन्होंने बैरे को कॉल बेल दबाकर बुलाया तथा उसके इलेक्ट्रॉनिक नोटिंग पैड में अपने नाश्ते का ऑर्डर नोट करा दिया, साथ ही बैरे ने उनसे सविनय पुछा महाशय आपके पहचान पत्र का नम्बर क्या है। उन्होंने कहा IN05TN034172 । उसने उसे नोट कर लिया और अन्दर जाकर मास्टर संगणक में पहचान पत्र संख्या फीड करने पर उसे ज्ञात् हुआ कि आठ वर्षपूर्व उनके धमनियों में रक्त प्रवाह कम होने के कारण अपोलो अस्पताल, तामिलनाडू में श्ल्य चिकित्सा कर नमक वर्जित कर दिया था। बैरे ने उन्हें आ कर सूचित किया,"हमारा होटल आपके स्वास्थ को देखते हुऐ आपके द्वारा दिए गये ऑर्डर का नाश्ता नहीं दे सकता।" कुछ समय के बाद श्री रंग अय्यर ने कहा,"कुछ मिठाईयाँ लेकर आओं।" उसने फिर संगणक में देखा उन्हें ब्लड शुगर भी है। उसमें फिर उन्हें सूचित किया कि होटल के द्वारा मिठाईयाँ नहीं दी जा सकती हैं तीसरी बार जब बैरे ने सूचित किया तो श्री रंग अय्यर बिगड़ कर बोल,"यह होटल तुम्हारा कैसे हैं। मैं नाश्ते के लिए बैठा हँू अब खाने का समय भी लगभग हो गया। ठीक है तुम सिर्फ मुझे कॉफी पीला दो।" बैरे ने फिर सूचित किया,"कॉफी में निकोटीन है जो आपके स्वास्थ्य के लिए वर्जित है इसलिए आपको कॉफी नहीं दे सकता। अगर आप उपभोक्ता नियम के अन्तर्गत बारी थी वह बेहद क्रोधीत हो कर बोले,"अगर तुम कुछ दे नहीं सकते तो फिर अपना होटल बन्द कर दो।" होटल का मैनेजर आने से पहले बैरे ने पेट्रोल पुलिस को सूचित कर दिया। पुलिस ने आकर श्री रंग अय्यर से पुछताछ कर जाँच शुरू की। लैप टॉप पर पुलिस ने पाया कि इसके पूर्व श्री रंग अय्यर की न्यायलय ने 17 वर्ष पूर्व रेल्वे के अधिकारियों से दुर्व्यवहार करने पर रूपये 2500/- बतौर जुर्माना वसुला था तथा 28 वर्ष पूर्व एक मॉल में कर्मचारी के साथ बिना वजह उलझने के लिये तीन दिन कैद की सजा सुनाई थी। सब कार्रवाई करते हुए दिन के तीन बजे पुलिस ने श्री रंग अय्यर को न्यायालय में न्यायधीश के सामने पेश कर दिया। न्यायधीश महोदय अपने लैप टॉप पर उनके जीवन में किए गये अपराधों का विवरण देख कर सोचा यह कोई खतरनाक मुजरीम नहीं है। सार्वजनिक जगह पर उपद्रव करने के पुलिस के आरोप को सही मानते हुए एक दिन के जेल की सजा दी तथा पुलिस को यह आदेश दिया कि इनके कैद का समय शाम को पाँच बजे पुरा होने के बाद इन्हें रिहा कर दिया जाए। अभी शाम के चार बजे थे। न्यायालय के आदेश के मुताबित उन्हें शाम के पाँच बजे के बाद मुक्त करना था। पुलिस के पास भी एक घंटा बचा था। श्री रंग अय्यर ने सोचा होटल गए थे नाश्ता खाने, जेल की हवा खाकर आए। तभी प्रभारी पेट्रोल पुलिस ने श्री रंग अय्यर से पूछा,बिना शक्कर, दुध, निंबु की चाय पीयोगे क्या?
वर्ष 2007, माह सितम्बर, दिनांक 15, दिन शनिवार का। तमिल नाडू राज्य में एक छोटे से शहर के निवासी मिस्टर रंग अय्यर, उम्र 65 वर्ष ने दिल्ली के होटल में सुबह के दस बजे नाश्ते में वडा और साम्भर खाने का मन बना लिया। उन्होंने बैरे को कॉल बेल दबाकर बुलाया तथा उसके इलेक्ट्रॉनिक नोटिंग पैड में अपने नाश्ते का ऑर्डर नोट करा दिया, साथ ही बैरे ने उनसे सविनय पुछा महाशय आपके पहचान पत्र का नम्बर क्या है। उन्होंने कहा IN05TN034172 । उसने उसे नोट कर लिया और अन्दर जाकर मास्टर संगणक में पहचान पत्र संख्या फीड करने पर उसे ज्ञात् हुआ कि आठ वर्षपूर्व उनके धमनियों में रक्त प्रवाह कम होने के कारण अपोलो अस्पताल, तामिलनाडू में श्ल्य चिकित्सा कर नमक वर्जित कर दिया था। बैरे ने उन्हें आ कर सूचित किया,"हमारा होटल आपके स्वास्थ को देखते हुऐ आपके द्वारा दिए गये ऑर्डर का नाश्ता नहीं दे सकता।" कुछ समय के बाद श्री रंग अय्यर ने कहा,"कुछ मिठाईयाँ लेकर आओं।" उसने फिर संगणक में देखा उन्हें ब्लड शुगर भी है। उसमें फिर उन्हें सूचित किया कि होटल के द्वारा मिठाईयाँ नहीं दी जा सकती हैं तीसरी बार जब बैरे ने सूचित किया तो श्री रंग अय्यर बिगड़ कर बोल,"यह होटल तुम्हारा कैसे हैं। मैं नाश्ते के लिए बैठा हँू अब खाने का समय भी लगभग हो गया। ठीक है तुम सिर्फ मुझे कॉफी पीला दो।" बैरे ने फिर सूचित किया,"कॉफी में निकोटीन है जो आपके स्वास्थ्य के लिए वर्जित है इसलिए आपको कॉफी नहीं दे सकता। अगर आप उपभोक्ता नियम के अन्तर्गत बारी थी वह बेहद क्रोधीत हो कर बोले,"अगर तुम कुछ दे नहीं सकते तो फिर अपना होटल बन्द कर दो।" होटल का मैनेजर आने से पहले बैरे ने पेट्रोल पुलिस को सूचित कर दिया। पुलिस ने आकर श्री रंग अय्यर से पुछताछ कर जाँच शुरू की। लैप टॉप पर पुलिस ने पाया कि इसके पूर्व श्री रंग अय्यर की न्यायलय ने 17 वर्ष पूर्व रेल्वे के अधिकारियों से दुर्व्यवहार करने पर रूपये 2500/- बतौर जुर्माना वसुला था तथा 28 वर्ष पूर्व एक मॉल में कर्मचारी के साथ बिना वजह उलझने के लिये तीन दिन कैद की सजा सुनाई थी। सब कार्रवाई करते हुए दिन के तीन बजे पुलिस ने श्री रंग अय्यर को न्यायालय में न्यायधीश के सामने पेश कर दिया। न्यायधीश महोदय अपने लैप टॉप पर उनके जीवन में किए गये अपराधों का विवरण देख कर सोचा यह कोई खतरनाक मुजरीम नहीं है। सार्वजनिक जगह पर उपद्रव करने के पुलिस के आरोप को सही मानते हुए एक दिन के जेल की सजा दी तथा पुलिस को यह आदेश दिया कि इनके कैद का समय शाम को पाँच बजे पुरा होने के बाद इन्हें रिहा कर दिया जाए। अभी शाम के चार बजे थे। न्यायालय के आदेश के मुताबित उन्हें शाम के पाँच बजे के बाद मुक्त करना था। पुलिस के पास भी एक घंटा बचा था। श्री रंग अय्यर ने सोचा होटल गए थे नाश्ता खाने, जेल की हवा खाकर आए। तभी प्रभारी पेट्रोल पुलिस ने श्री रंग अय्यर से पूछा,बिना शक्कर, दुध, निंबु की चाय पीयोगे क्या?
गजल
रूप तुम्हारा चाँद सा प्यारा
आँखे है हंसते कंवल
ओ मेरी जाने गजल,ओ मेरी जाने गजल
छुप गए सारे चाँद तारे, रूख से हटाया जब आँचल
ओ मेरी जाने गजल ,ओ मेरी जाने गजल
लम्हा, लम्हा शाम को जब दर्द ने ली अंगड़ाइयाँ
गम के छेड़े साज पर जब ,बजने लगी शहनाइयाँ
रात की तारिकियों में मुस्कुराती तन्हाइयाँ
फिर तस्व्वूर ने तुम्हारे दी मेरी दुनिया बदल
ओ मेरी जाने गजल ,ओ मेरी जाने गजल
रास्ते अंजान और वो मंजिलों की दूरियाँ
धुप से जलते सफर में चलने की मजबूरियाँ
लड़खड़ाती सांस पर वो दश्त की वीरानियाँ
फिर तसव्वूर ने तुम्हारे दी मेरी दूनियाँ बदल
ओ मेरी जाने गजल ,ओ मेरी जाने गजल
आँखे है हंसते कंवल
ओ मेरी जाने गजल,ओ मेरी जाने गजल
छुप गए सारे चाँद तारे, रूख से हटाया जब आँचल
ओ मेरी जाने गजल ,ओ मेरी जाने गजल
लम्हा, लम्हा शाम को जब दर्द ने ली अंगड़ाइयाँ
गम के छेड़े साज पर जब ,बजने लगी शहनाइयाँ
रात की तारिकियों में मुस्कुराती तन्हाइयाँ
फिर तस्व्वूर ने तुम्हारे दी मेरी दुनिया बदल
ओ मेरी जाने गजल ,ओ मेरी जाने गजल
रास्ते अंजान और वो मंजिलों की दूरियाँ
धुप से जलते सफर में चलने की मजबूरियाँ
लड़खड़ाती सांस पर वो दश्त की वीरानियाँ
फिर तसव्वूर ने तुम्हारे दी मेरी दूनियाँ बदल
ओ मेरी जाने गजल ,ओ मेरी जाने गजल
गीत
मेरे दिल की धड़कन में
मेरे दिल की धड़कन में क्यों शोर मचाते हो,
मुझे अपना बनाने की क्यों आस जगाते हो
ओ जानू ऽऽऽ ओ जानूऽऽऽ
तुम पास जो होते हो चाँद कितना करीब लगता है,
तारों में घिरे रहने का हर ख्वाब हसीं लगता है
मरे ख्वाब में आकर क्यों नींद चुराते हो
मुझे अपना बनाने की क्यों आस जगाते हो
ओ जानू ऽऽऽ ओ जानूऽऽऽ
मेरी सुबह तुम्हीं हो जानम
मेरी शाम तुम्हीं हो जानम
मेरे जीवन के हर पल का अहसास तुम्ही हो जानम
मेरी तन्हा रातों में क्यों दिए जलाते हो
मुझे अपना बनाने की क्यों आस जगाते हो
ओ जानू ऽऽऽ ओ जानूऽऽऽ
पास आओं के सजना तुम बिन
कहीं दिल नहीं लगता मेरा
हर वक्त तुम्हीं को सोचूं
अब दिल पर नहीं बस मेरा
क्यों दूर ही से तुम ऐसी अगन लगाते हो
मुझे अपना बनाने की क्यों आस जगाते हो
ओ जानू ऽऽऽ ओ जानूऽऽऽ
मेरे दिल की धड़कन में क्यों शोर मचाते हो,
मुझे अपना बनाने की क्यों आस जगाते हो
ओ जानू ऽऽऽ ओ जानूऽऽऽ
तुम पास जो होते हो चाँद कितना करीब लगता है,
तारों में घिरे रहने का हर ख्वाब हसीं लगता है
मरे ख्वाब में आकर क्यों नींद चुराते हो
मुझे अपना बनाने की क्यों आस जगाते हो
ओ जानू ऽऽऽ ओ जानूऽऽऽ
मेरी सुबह तुम्हीं हो जानम
मेरी शाम तुम्हीं हो जानम
मेरे जीवन के हर पल का अहसास तुम्ही हो जानम
मेरी तन्हा रातों में क्यों दिए जलाते हो
मुझे अपना बनाने की क्यों आस जगाते हो
ओ जानू ऽऽऽ ओ जानूऽऽऽ
पास आओं के सजना तुम बिन
कहीं दिल नहीं लगता मेरा
हर वक्त तुम्हीं को सोचूं
अब दिल पर नहीं बस मेरा
क्यों दूर ही से तुम ऐसी अगन लगाते हो
मुझे अपना बनाने की क्यों आस जगाते हो
ओ जानू ऽऽऽ ओ जानूऽऽऽ
उदारता
उदारता
उदारता की नीति अगर आचरण में लाये हम,
तो जीवन सुख का भण्डार बन जाएगा ।
सभी ह्दय में प्रेम और प्रसन्नता का दीप जल,
संसार परम ज्योति से प्रकाशमय हो जाएगा ॥1॥
न द्वेष भाव हम रखें, किसी भी व्यक्ति से कभी,
यह जहर का है प्याला, हमें ही खा जाएगा ।
दूसरे को दर्द तो बाद में होगा परन्तु
जिस ह्दय में उठता है यह उसी को जलायेगा ॥ 2॥
सभ्यता और संस्कृति सिखाती है सदा यही
ऋषियों और संतों की वाणी भी यही रही ।
परोपकार जो करे और उदार है वही,
मनुष्य के लिए मरे मनुष्य है सही वही ॥3॥
प्रेम के भूखे सभी, प्रेम से तूँ कहके देख,
सारा कार्य तेरा प्राणी शीघ्र ही हो जाएगा।
परम मंत्र है यही परम सत्य है यही,
जो इसे अपनायेगा सफलता वो पायेगा॥।4॥
अकथनीय, अतिमहान, महिमा, उदारता की है,
लक्खीनारायण इसे जीवन में अपनाइये ।
मान, बडाई, सम्पदा सभी छूट जाएगी,
काम ऐसा कीजिए कि प्यार सबसे पाइये ॥5॥
उदारता की नीति अगर आचरण में लाये हम,
तो जीवन सुख का भण्डार बन जाएगा ।
सभी ह्दय में प्रेम और प्रसन्नता का दीप जल,
संसार परम ज्योति से प्रकाशमय हो जाएगा ॥1॥
न द्वेष भाव हम रखें, किसी भी व्यक्ति से कभी,
यह जहर का है प्याला, हमें ही खा जाएगा ।
दूसरे को दर्द तो बाद में होगा परन्तु
जिस ह्दय में उठता है यह उसी को जलायेगा ॥ 2॥
सभ्यता और संस्कृति सिखाती है सदा यही
ऋषियों और संतों की वाणी भी यही रही ।
परोपकार जो करे और उदार है वही,
मनुष्य के लिए मरे मनुष्य है सही वही ॥3॥
प्रेम के भूखे सभी, प्रेम से तूँ कहके देख,
सारा कार्य तेरा प्राणी शीघ्र ही हो जाएगा।
परम मंत्र है यही परम सत्य है यही,
जो इसे अपनायेगा सफलता वो पायेगा॥।4॥
अकथनीय, अतिमहान, महिमा, उदारता की है,
लक्खीनारायण इसे जीवन में अपनाइये ।
मान, बडाई, सम्पदा सभी छूट जाएगी,
काम ऐसा कीजिए कि प्यार सबसे पाइये ॥5॥
गजल
गजल
जब कभी दूसरों को आंकते हैं
खुद के गिरेबां में हम,पहले झांकते हैं
उन्हीं के दामन, दागदार देखे हमने
दूसरों की जिन्दगी में, जो अक्सर झांकते हैं
पसीना बहा कर वो पत्थर पे सो गया
नर्म-नर्म गद्दों पर, लोग जागते हैं
बदनसीब है लोग अपनों को छोड़कर
सिक्कों की खनक के ,पीछे भागते हैं
मुँह के बल वो अक्सर गिर पड़े
दूसरों को जो, कमतर आंकते हैं
जब कभी दूसरों को आंकते हैं
खुद के गिरेबां में हम,पहले झांकते हैं
उन्हीं के दामन, दागदार देखे हमने
दूसरों की जिन्दगी में, जो अक्सर झांकते हैं
पसीना बहा कर वो पत्थर पे सो गया
नर्म-नर्म गद्दों पर, लोग जागते हैं
बदनसीब है लोग अपनों को छोड़कर
सिक्कों की खनक के ,पीछे भागते हैं
मुँह के बल वो अक्सर गिर पड़े
दूसरों को जो, कमतर आंकते हैं
गजल
गजल
कही जवाब,कहीं सवाल दोस्तों
नसीब का है ये,कमाल दोस्तों
कोई भरपेट मीठी नींद हैसोता
कोई कर रहा है,बवाल दोस्तों
कहीं जिन्दगी का है,सवाल दोस्तों
वक्त को अपनी मुट्ठी में कर सके
कसिकी अतनी है, मजाल दोस्तों
दोस्ती ,वफा,इंसानियत के रिश्ते
रोज हो रहे है,हलाल दोस्तों
जाति,धर्म,भाषा का बहोत किया
इंसानियत का करो ,ख्याल दोस्तों
कही जवाब,कहीं सवाल दोस्तों
नसीब का है ये,कमाल दोस्तों
कोई भरपेट मीठी नींद हैसोता
कोई कर रहा है,बवाल दोस्तों
कहीं जिन्दगी का है,सवाल दोस्तों
वक्त को अपनी मुट्ठी में कर सके
कसिकी अतनी है, मजाल दोस्तों
दोस्ती ,वफा,इंसानियत के रिश्ते
रोज हो रहे है,हलाल दोस्तों
जाति,धर्म,भाषा का बहोत किया
इंसानियत का करो ,ख्याल दोस्तों
गजल
गजल
कहीं खिलें,कहीं जले रिश्ते
कदम-कदम पर मिले रिश्ते
जब तक रही, पास दौलत
संग-संग कैसे, चले रिश्ते
तल्खियां अजनी क्यों आयीं
लगते थे बड़े भले रिश्ते
ईर्ष्या-द्वेष की अगन में
बर्फ की तरह,गले रिश्ते
एक जरा सी शोहरत पर
देखो कितना,जले रिश्ते
चंद सिक्कों की खातिर हरदम
हाथ कितना, मले रिश्ते
"आनंद" ने जिस तरफ देखा
लहुलूहान पड़े,मिले रिश्ते
कहीं खिलें,कहीं जले रिश्ते
कदम-कदम पर मिले रिश्ते
जब तक रही, पास दौलत
संग-संग कैसे, चले रिश्ते
तल्खियां अजनी क्यों आयीं
लगते थे बड़े भले रिश्ते
ईर्ष्या-द्वेष की अगन में
बर्फ की तरह,गले रिश्ते
एक जरा सी शोहरत पर
देखो कितना,जले रिश्ते
चंद सिक्कों की खातिर हरदम
हाथ कितना, मले रिश्ते
"आनंद" ने जिस तरफ देखा
लहुलूहान पड़े,मिले रिश्ते
गजल
गजल
कैसे-कैसे मंजर दिखाता आदमी
आदमी को देखो,सताता आदमी
पेट की आग बुझाने वास्ते देखा
बोझ आदमी का,उठाता आदमी
जुल्म कहो या मजबूरी
आदमी के आगे सर झुकाता आदमी
रिश्तों की खटास ही तो है
आदमी को नीख ,दिखाता आदमी
जाति, धर्म, भाषा के नाम पर
आदमी को आदमी से, लड़ाता आदामी
प्यार-मोहब्बत के बदले दिखाता है
आदमी को आंख ,दिखाता आदमी
अब ये बात कहीं नजर नहीं आती
आदमी के ही काम, आता आदमी
कैसे-कैसे मंजर दिखाता आदमी
आदमी को देखो,सताता आदमी
पेट की आग बुझाने वास्ते देखा
बोझ आदमी का,उठाता आदमी
जुल्म कहो या मजबूरी
आदमी के आगे सर झुकाता आदमी
रिश्तों की खटास ही तो है
आदमी को नीख ,दिखाता आदमी
जाति, धर्म, भाषा के नाम पर
आदमी को आदमी से, लड़ाता आदामी
प्यार-मोहब्बत के बदले दिखाता है
आदमी को आंख ,दिखाता आदमी
अब ये बात कहीं नजर नहीं आती
आदमी के ही काम, आता आदमी
गजल
गजल
जिन्दगी के सफर में कभी वो मुकाम नहीं मिला
आदमी कदम-कदम पर मिले,इंसान नहीं मिला
नफरतों के रास्ते मिले,मिली साजिशों की मंजिल
दोस्ती-वफा दफन है जहाँ,वो श्मशान नहीं मिला
झूठ-फरेब के तिनके उछाकर ले जाये दूर तलक
बदली-बदली फिजाओं में ,वो तूफान नहीं मिला
अपनी हर बात को चुपके से रख देता मैं कहीं
क्ूंढा दिल किसी का भी ऐसा ,वीरान नहीं मिला
ताश के पत्तों सी बिखर गई उनकी जिन्दगी कैसे
जलजलों के आगे साबूत कोई,मकान नहीं मिला
कोशिश तो बहोत की हर किसी ने जहां में मगर
जमीं किसी को जो किसी को आसमा नहीं मिला
दिल हो अपना जिसमें दर्द दूसरों का छुपाए हुए
मतलबी जमाने में ऐसा ,दिले-नादान नहीं मिला
"आनंद" की बात पर तुम ऐतबार करके देखो तो
जरूरी नहीं कि जो भी तिला,इंसान नहीं मिला
जिन्दगी के सफर में कभी वो मुकाम नहीं मिला
आदमी कदम-कदम पर मिले,इंसान नहीं मिला
नफरतों के रास्ते मिले,मिली साजिशों की मंजिल
दोस्ती-वफा दफन है जहाँ,वो श्मशान नहीं मिला
झूठ-फरेब के तिनके उछाकर ले जाये दूर तलक
बदली-बदली फिजाओं में ,वो तूफान नहीं मिला
अपनी हर बात को चुपके से रख देता मैं कहीं
क्ूंढा दिल किसी का भी ऐसा ,वीरान नहीं मिला
ताश के पत्तों सी बिखर गई उनकी जिन्दगी कैसे
जलजलों के आगे साबूत कोई,मकान नहीं मिला
कोशिश तो बहोत की हर किसी ने जहां में मगर
जमीं किसी को जो किसी को आसमा नहीं मिला
दिल हो अपना जिसमें दर्द दूसरों का छुपाए हुए
मतलबी जमाने में ऐसा ,दिले-नादान नहीं मिला
"आनंद" की बात पर तुम ऐतबार करके देखो तो
जरूरी नहीं कि जो भी तिला,इंसान नहीं मिला
गजल
गजल
जो कुछ भी कहते रहे सब बहाने मुझे लगे
लोग जरूरत से ज्यादा सयाने मुझे लगे
मोहब्बत,दोस्ती की कोई कदर ना रही
चंद सिक्कों के आगे सभी,दिवाने मुझे लगे
नये दौर में खुलापन इस कदर आ गया कि
अच्छे थे वही संस्कार अपने,पुराने मुझे लग
सच्ची बात जब-जब भी क्या कही मैंने
लोग तरेर-जरेरकर आंखे ,दिखाने मुझे लगे
चोब् खाये दुश्मन को जब कभी देखा मैंने
मंदिर-मस्जिद उनके अगले, निशाने मुझे लगे
इतने संगिउल,बेदर्द, इतने वेवफा नहीं थे
जितने अबके पल-पल ये,जमाने मुझे लगे
दोस्ती ,माहब्बत,अपनापन जहाँ-जहाँ मिला
रूकने-ठहरने के सही ,ठिकाने मुझे लगे
जो कुछ भी कहते रहे सब बहाने मुझे लगे
लोग जरूरत से ज्यादा सयाने मुझे लगे
मोहब्बत,दोस्ती की कोई कदर ना रही
चंद सिक्कों के आगे सभी,दिवाने मुझे लगे
नये दौर में खुलापन इस कदर आ गया कि
अच्छे थे वही संस्कार अपने,पुराने मुझे लग
सच्ची बात जब-जब भी क्या कही मैंने
लोग तरेर-जरेरकर आंखे ,दिखाने मुझे लगे
चोब् खाये दुश्मन को जब कभी देखा मैंने
मंदिर-मस्जिद उनके अगले, निशाने मुझे लगे
इतने संगिउल,बेदर्द, इतने वेवफा नहीं थे
जितने अबके पल-पल ये,जमाने मुझे लगे
दोस्ती ,माहब्बत,अपनापन जहाँ-जहाँ मिला
रूकने-ठहरने के सही ,ठिकाने मुझे लगे
"भ्रूण हत्या"
"भ्रूण हत्या"
तीन माह ही तो हुए हैं अभी
तेरी कोख में मुझे !
लम्बा सफर है अभी
आने को तेरी गोद में मुझे !
डूबी रहती हँू हर पल कल्पनाओं में,
तुम लोरियाँ सुनाओगी,
मेरे नन्हे हाथों को
ले अपने हाथों
तुम गुनगुनाओंगी,
मैं गोद में तुम्हारी
गहरी नींद सो जाऊँगी।
पर तभी भयानक स्वप्न
मुझे डरा जाता है।
तेरी गोद में आने से पहले हर
मेरा गला दबाया जाता है।
माँ वो हाथ तुम्हारा ही तो होता है।
क्यों बिन झुलाएँ अपनी बाँहों में,
मुझे दफना दोगी,
क्या आज की बेटियाँ,
कल्पना-सानिया
नाम रोशन नहीं करती।
वतन की राह पे जाँ निसार नहीं करती।
जब इक औरत ही ,
अपनी कोख की दुश्मन हो जाएगी,
वे ही उसे कोख में ही दफनाएगी।
तो बोलो माँ नई कोख,
कहाँ से आएगी ?
तीन माह ही तो हुए हैं अभी
तेरी कोख में मुझे !
लम्बा सफर है अभी
आने को तेरी गोद में मुझे !
डूबी रहती हँू हर पल कल्पनाओं में,
तुम लोरियाँ सुनाओगी,
मेरे नन्हे हाथों को
ले अपने हाथों
तुम गुनगुनाओंगी,
मैं गोद में तुम्हारी
गहरी नींद सो जाऊँगी।
पर तभी भयानक स्वप्न
मुझे डरा जाता है।
तेरी गोद में आने से पहले हर
मेरा गला दबाया जाता है।
माँ वो हाथ तुम्हारा ही तो होता है।
क्यों बिन झुलाएँ अपनी बाँहों में,
मुझे दफना दोगी,
क्या आज की बेटियाँ,
कल्पना-सानिया
नाम रोशन नहीं करती।
वतन की राह पे जाँ निसार नहीं करती।
जब इक औरत ही ,
अपनी कोख की दुश्मन हो जाएगी,
वे ही उसे कोख में ही दफनाएगी।
तो बोलो माँ नई कोख,
कहाँ से आएगी ?
सपनीली नींद सो जाओगे
सपनीली नींद सो जाओगे
क्या सुनाऊ तुम्हें,
इस दास्तान में अश्क का समुंदर है!
सह न पाओगे तुम ,
मेरे दिल में आज दर्द का समुंदर है!
कल तक जिस लाल को ,
अपने कलेजे से लगाया रहा
आज उसी को मरघट तक,
अपना कांधा लगाता रहा।
जब न मिला दो गज कफन भी,
उस बदनसीब के लिए,
माँ ने फाड़ा आंचल,
रोकर उस दिल फरेब के लिए ।
जीते जी न पाया और,
अब वो माँ का आंचल ओढ़ रहा,
उस पत्थर दिल ने रूठ के
आज हमसे अपना मुँह मोड़ा है।
अश्क माँ के बहते रहे,
मुझसे वो कहते रहे,
हमारे बहने का हिसाब लो,
समाज से इसका जवाब लो।
ऐसा क्यों होता है,
सेठ का कुत्ता,मखमल पर सोता है,
गरीब का ब्च्चा,ठंड में ठिठुरते रोता है।
वो बिस्कुट सूंघकर छोड़ देता है,और गरीब लपककर उसे उठा लेता है।
क्या है जवाब इसका ,तुम्हारे पास,
एक हिस्से तीस दिन,
दूजा सोए उदास।
क्या तुम भी कुछ कहोगे "सदा"
और अपने नर्म-नर्म लिहाफ में चैन की,
सपनीली नींद सो जाओगे।
नींद सो जाओगे ............।
क्या सुनाऊ तुम्हें,
इस दास्तान में अश्क का समुंदर है!
सह न पाओगे तुम ,
मेरे दिल में आज दर्द का समुंदर है!
कल तक जिस लाल को ,
अपने कलेजे से लगाया रहा
आज उसी को मरघट तक,
अपना कांधा लगाता रहा।
जब न मिला दो गज कफन भी,
उस बदनसीब के लिए,
माँ ने फाड़ा आंचल,
रोकर उस दिल फरेब के लिए ।
जीते जी न पाया और,
अब वो माँ का आंचल ओढ़ रहा,
उस पत्थर दिल ने रूठ के
आज हमसे अपना मुँह मोड़ा है।
अश्क माँ के बहते रहे,
मुझसे वो कहते रहे,
हमारे बहने का हिसाब लो,
समाज से इसका जवाब लो।
ऐसा क्यों होता है,
सेठ का कुत्ता,मखमल पर सोता है,
गरीब का ब्च्चा,ठंड में ठिठुरते रोता है।
वो बिस्कुट सूंघकर छोड़ देता है,और गरीब लपककर उसे उठा लेता है।
क्या है जवाब इसका ,तुम्हारे पास,
एक हिस्से तीस दिन,
दूजा सोए उदास।
क्या तुम भी कुछ कहोगे "सदा"
और अपने नर्म-नर्म लिहाफ में चैन की,
सपनीली नींद सो जाओगे।
नींद सो जाओगे ............।
खुशियाँ और दर्द
खुशियाँ और दर्द
कुरेद कर जख्म उसके , हर बार मैं रूलाता रहा।
वो दुखते जख्मों पे मेरे,मरहम लगाता रहा॥
चोट खया आज फूलों से मेरा हबीब।
दामन वो अपना, काँटों से बचाता रहा॥
दिखाई नई रोशनी,हर पल मुझे।
मेरे अंधेरे कों वो,अपना बनाता रहा॥
भर दी झोली जिसने ,मुस्कुराहटों से मेरी।
उसी की खुशियों को मैं,कांधा लगाता रहा॥
ख्वाब में भी जिसने,न दिया दर्द कभी मुझे।
उसे ताज कांटों का मैं, "सदा" पहनाता रहा॥
कुरेद कर जख्म उसके , हर बार मैं रूलाता रहा।
वो दुखते जख्मों पे मेरे,मरहम लगाता रहा॥
चोट खया आज फूलों से मेरा हबीब।
दामन वो अपना, काँटों से बचाता रहा॥
दिखाई नई रोशनी,हर पल मुझे।
मेरे अंधेरे कों वो,अपना बनाता रहा॥
भर दी झोली जिसने ,मुस्कुराहटों से मेरी।
उसी की खुशियों को मैं,कांधा लगाता रहा॥
ख्वाब में भी जिसने,न दिया दर्द कभी मुझे।
उसे ताज कांटों का मैं, "सदा" पहनाता रहा॥
लड़ाई
लड़ाई
लड़ाई चाहे जैसी भी हो,
लेकिन उसका मकसद ,
उन करोड़ों लोगों की ,
पीठ से चिपके हुए पेट के लिए,
रोटी पहुँचाने का होना चाहिए।
यह मकसद तपती हुई दोपहरी में ,
दो घुट पानी के लिए मिलों सफर तय करने ,
वालों के लिए पानी पहुँचाने का होना चाहिए।
पगडंडियों से गुजरती हुई उन अंधेरी ,
झुगी झोपड़ियों तक रोशनी पहुॅुचाने वाली होनी चाहिए।
माचिस की तिलियाँ बनाती,
बीड़ी के पत्तियों को लपेटती हुई,
उन मासूम कोमल-कोमल
उंगलियों में स्कूल की किताबें रखने का होना चाहिए।
धूप,बारिश की मार सहते हुए ,
फुटपाथ पर सपने बिछा कर सोने वालों के लिए
छत मुहय्या करने का होना चाहिए।
अमूमन हमारी सारी लड़ाइयाँ,मंदिरों,
मस्जिद और गिरजाघरों की दिवारों से टकराकर लौट आती हैं
या रामरथ के पहियों में उलझकर रह जाती हैं
या धारा 370 के तेज बहाव में बहकर रह जाती हैं।
या मैच फिक्सिंग के सवालों और जवाबों के ढेर के नीचे दबकर रह जाती हैं।
और अन्त में किसी पागल कुत्ते की तरह हाँफते हुए गिरकर दम तोड़ देती हैं।
आइए, हम कुछ ऐसी लड़ाइयाँ तय करें,
जिनका मकसद कागजों से नदियों को उतारकर,
प्यासे घरों तक पहुँचाने का हो।
लहलहाती हुई फसलों को भूखे घरों तक पहुॅचाने का हो।
करोड़ों भूखे,नगें और बेघरों को,
मुद्दत्तें से हमारी इन्हीं लड।ाइयों का
इन्तजार है ! इन्तजार है ! इन्तजार है !
लड़ाई चाहे जैसी भी हो,
लेकिन उसका मकसद ,
उन करोड़ों लोगों की ,
पीठ से चिपके हुए पेट के लिए,
रोटी पहुँचाने का होना चाहिए।
यह मकसद तपती हुई दोपहरी में ,
दो घुट पानी के लिए मिलों सफर तय करने ,
वालों के लिए पानी पहुँचाने का होना चाहिए।
पगडंडियों से गुजरती हुई उन अंधेरी ,
झुगी झोपड़ियों तक रोशनी पहुॅुचाने वाली होनी चाहिए।
माचिस की तिलियाँ बनाती,
बीड़ी के पत्तियों को लपेटती हुई,
उन मासूम कोमल-कोमल
उंगलियों में स्कूल की किताबें रखने का होना चाहिए।
धूप,बारिश की मार सहते हुए ,
फुटपाथ पर सपने बिछा कर सोने वालों के लिए
छत मुहय्या करने का होना चाहिए।
अमूमन हमारी सारी लड़ाइयाँ,मंदिरों,
मस्जिद और गिरजाघरों की दिवारों से टकराकर लौट आती हैं
या रामरथ के पहियों में उलझकर रह जाती हैं
या धारा 370 के तेज बहाव में बहकर रह जाती हैं।
या मैच फिक्सिंग के सवालों और जवाबों के ढेर के नीचे दबकर रह जाती हैं।
और अन्त में किसी पागल कुत्ते की तरह हाँफते हुए गिरकर दम तोड़ देती हैं।
आइए, हम कुछ ऐसी लड़ाइयाँ तय करें,
जिनका मकसद कागजों से नदियों को उतारकर,
प्यासे घरों तक पहुँचाने का हो।
लहलहाती हुई फसलों को भूखे घरों तक पहुॅचाने का हो।
करोड़ों भूखे,नगें और बेघरों को,
मुद्दत्तें से हमारी इन्हीं लड।ाइयों का
इन्तजार है ! इन्तजार है ! इन्तजार है !
गजल
गजल
हाथों में ऊठा मिट्टी,
माथे से लगाᅠमिट्टी,
होगी कभी न तुझसे ,
ता उम जुदा मिट्टी।
जिसका गरूर ऊँचा,
तू उसको दिखा मिट्टी।
की सरहदों हर दम
मिट्टी से जुदा मिट्टी।
गुजरी है भीड़ उसकी,
कंधे पे ऊठा मिट्टी।
हाथों में ऊठा मिट्टी,
माथे से लगाᅠमिट्टी,
होगी कभी न तुझसे ,
ता उम जुदा मिट्टी।
जिसका गरूर ऊँचा,
तू उसको दिखा मिट्टी।
की सरहदों हर दम
मिट्टी से जुदा मिट्टी।
गुजरी है भीड़ उसकी,
कंधे पे ऊठा मिट्टी।
गजल
गजल
जिसका ख्याल रोटी,
उसका सवाल रोटी।
भूखों से ही कराती ,
क्या-क्या कमाल रोटी।
इंसानियत के रिश्ते
करती हलाल रोटी।
वादों का मैं करूँ क्या ,
झाेली में डाल रोटी।
हिन्दु रखे न मुस्लिम,
रखती ख्याल रोटी।
जिसका ख्याल रोटी,
उसका सवाल रोटी।
भूखों से ही कराती ,
क्या-क्या कमाल रोटी।
इंसानियत के रिश्ते
करती हलाल रोटी।
वादों का मैं करूँ क्या ,
झाेली में डाल रोटी।
हिन्दु रखे न मुस्लिम,
रखती ख्याल रोटी।
गजल
गजल
जितनी गरज थी उतना बरसा नहीं है पानी,
इस बार भी नदी में उतरा नहीं है पानी,
बरसा तो, इतना बरसा ये हाल हुआ घर का ,
टूटे हुए छतों में रूकता नहीं है पानी,
पानी में जहर इतना नदियों के मिल चुका है,
जैसी थी शक्ल वैसा दिखता नहीं है पानी,
साजिश दिलों में नफरत की आग है आँखों में,
ऑखों में मोहब्बत का दिखता नहीं है पानी ।
मौसम के खुशनुमा हर लम्हे का घूट पी लो,
मुट्ठी में हन पलों का रूकता नहीं है पानी।
जितनी गरज थी उतना बरसा नहीं है पानी,
इस बार भी नदी में उतरा नहीं है पानी,
बरसा तो, इतना बरसा ये हाल हुआ घर का ,
टूटे हुए छतों में रूकता नहीं है पानी,
पानी में जहर इतना नदियों के मिल चुका है,
जैसी थी शक्ल वैसा दिखता नहीं है पानी,
साजिश दिलों में नफरत की आग है आँखों में,
ऑखों में मोहब्बत का दिखता नहीं है पानी ।
मौसम के खुशनुमा हर लम्हे का घूट पी लो,
मुट्ठी में हन पलों का रूकता नहीं है पानी।
गजल
गजल
जितनी गरज थी उतना बरसा नहीं है पानी,
इस बार भी नदी में उतरा नहीं है पानी,
बरसा तो, इतना बरसा ये हाल हुआ घर का ,
टूटे हुए छतों में रूकता नहीं है पानी,
पानी में जहर इतना नदियों के मिल चुका है,
जैसी थी शक्ल वैसा दिखता नहीं है पानी,
साजिश दिलों में नफरत की आग है आँखों में,
ऑखों में मोहब्बत का दिखता नहीं है पानी ।
मौसम के खुशनुमा हर लम्हे का घूट पी लो,
मुट्ठी में हन पलों का रूकता नहीं है पानी।
जितनी गरज थी उतना बरसा नहीं है पानी,
इस बार भी नदी में उतरा नहीं है पानी,
बरसा तो, इतना बरसा ये हाल हुआ घर का ,
टूटे हुए छतों में रूकता नहीं है पानी,
पानी में जहर इतना नदियों के मिल चुका है,
जैसी थी शक्ल वैसा दिखता नहीं है पानी,
साजिश दिलों में नफरत की आग है आँखों में,
ऑखों में मोहब्बत का दिखता नहीं है पानी ।
मौसम के खुशनुमा हर लम्हे का घूट पी लो,
मुट्ठी में हन पलों का रूकता नहीं है पानी।
भारत देश की धरती
भारत देश की धरती
भारत देश की धरती, यह धरती है महान,
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
हरी भरी इन खेतियों को पवन चुमती जाए
उगती खुशियाँ देखकर कृषक मन ही मन मुस्काए
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
भारत देश की धरती, यह धरती है महान,
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
झर झर बहते झरने गाते सुर ताल में हर दम
जैसे इनमें बस गई आकर सात सुरों की सरगम
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
भारत देश की धरती, यह धरती है महान,
ताज,एलोरा,काशि,मथुरा हर एक इसको प्यारे हैं,
जैसे बच्चे गोद में बैठे, माँ को अपने प्यारे हैं।
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
भारत देश की धरती, यह धरती है महान,
वीरों की यह धरती, यह धरती है बलिदान की,
आँच न आने देंगे, देंगे बाजी जान की,
जय हिन्द! जय हिन्द! जय हिन्द!
भारत देश की धरती, यह धरती है महान,
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
हरी भरी इन खेतियों को पवन चुमती जाए
उगती खुशियाँ देखकर कृषक मन ही मन मुस्काए
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
भारत देश की धरती, यह धरती है महान,
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
झर झर बहते झरने गाते सुर ताल में हर दम
जैसे इनमें बस गई आकर सात सुरों की सरगम
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
भारत देश की धरती, यह धरती है महान,
ताज,एलोरा,काशि,मथुरा हर एक इसको प्यारे हैं,
जैसे बच्चे गोद में बैठे, माँ को अपने प्यारे हैं।
देखो इसकी शान साथियों, देखों इसकी शान,
भारत देश की धरती, यह धरती है महान,
वीरों की यह धरती, यह धरती है बलिदान की,
आँच न आने देंगे, देंगे बाजी जान की,
जय हिन्द! जय हिन्द! जय हिन्द!
बारबाला
बारबाला
बारबाला कह रही है अपने स्त्रीभ्रूण से ........
"बेटी,
मेरी मुस्कुराहट पर न जाओ,
तुम्हें क्या पता कितने आँसू,
छिपे हैं इसके पीछे।
गमों का एक समंदर पार किया है मैंने।
कितनी ही मंजिलें तलाशीं,
हर मोड़ पर तन्हा ही खड़ी रही मैं।
हर मोड़ पर तन्हा ही खड़ी रही मैं।
और मृगतृष्णा में,मैं भटकती ही रही।
किसी को खुशबू का एहसास ही न हुआ,
और मुरझाये फूल - सी बिखरती ही चली गई मैं॥
कौन कहता है कि ,
मैं अकेली हँू
बदनसीबी मेरी सहेली है।
और भाग्य बिगड़ा है वक्त के हाथों
मुफ्त बदनाम ये हथेली है॥
ख्वाब आँखें में सजा हरदम ,
जैसे सजी कोई नवेली है
और खुद से है बारबाला का सवाल यही,
तू खण्डहर है या हवेली है
तू खण्डहर है या हवेली है ॥
बेटी,
हजार खुशियाँ कम है,एक गम को भुलाने के लिये,
और एक गम काफी है,जिंदगी भर रूलाने के लिये॥
बेनूर मेरी आँखें में,और दूर का सफर है,
उठते हैं पाँव लेकिन,गिर जाने का डर है॥
बेटी,
दाग न लगने पाये कोई निर्मल तेरे आँचल में,
गंदा पानी भरा हुआ है,आज हुस्न के दलदल में॥
हर रास्ते पर रोड़ा है,
रोज-रोज मरती हूँ लेकिन ,
जीन के लिये,यह भी थोड़ा है॥
बेटी,
यह रोज-रोज की मौत ,तुझे न मरने दूँगी,
यहाँ कदम-कदम पर खड़ी है मुश्किल,
अत: इस जमीं पर पाँव रखने से पहले ही,
अत: इस जमीं पर पाँव रखने से पहले ही,
तुझे मौत के घट उतार दँूगी॥
यह सब सुनकर स्त्री-भ्रुण के मन में, हलचल मच गई है,
और उसने अपनी संवेदना व्यक्त की ......
माँ,
छोटे-छोटे हाथ मेरे ,कोमल सुन्दर तन है।
मेरी पीड़ा को तो समझो, मेरा भी तो मन है॥
माँ,
तुम चाहती ही हो मुझे मारना,
एक नारी होकर भी, तुम्हारी इतनी अमानवीय धारण॥
माँ,
गर लगती है ठोकर कहीं तुम्हें,
तो होता है मुझे भी दर्द भयंकर,
साेचा है तुमने कभी,जब हड्डी टूटेगी मेरी,
तो होगी कितनी यातना घनघोर
माँ,
क्यों सोचा तुमने
कि मैं बड़ी होकर बारबाला ही बन जाऊँगी,
अगर हम दोनों ठान लें तो,
क्या मैं किरण बेदी , कल्पना चावला नहीं बन पाऊँगी॥
माँ,
तुम्हारा अश्क दामन पे गिरा,खुश्क हुआ, सुख गया,
तुम्हारी पलकों पर ठहरता,तो सितारा बनने वाला था।
और तुम ठहर गई झील की पानी कर तरह
दरिया बनती , जो ये दलदल नजर नहीं आने वाला था॥
माँ,
हुनर की खुश्बू से तो ,मन चंदन बन जाता है,
जैसे सोना आग में तप कर कंदन बन जाता है॥
माँ,
दिल की धड़कन न रहे, आँख अगर नम न रहे
जिन्दगी मौत से बदतर है ,अगर गम न रहे॥
माँ,
इसीलिए करती हँू,मैं तुमसे श्ही प्रार्थना,
न काटो तुम पंख मेरे,
मुझे भी मुक्त विचरण करने दो आकाश में,
और पूरे होने दो सपने मेरे
और पूरे होने दो सपने मेरे॥
बारबाला कह रही है अपने स्त्रीभ्रूण से ........
"बेटी,
मेरी मुस्कुराहट पर न जाओ,
तुम्हें क्या पता कितने आँसू,
छिपे हैं इसके पीछे।
गमों का एक समंदर पार किया है मैंने।
कितनी ही मंजिलें तलाशीं,
हर मोड़ पर तन्हा ही खड़ी रही मैं।
हर मोड़ पर तन्हा ही खड़ी रही मैं।
और मृगतृष्णा में,मैं भटकती ही रही।
किसी को खुशबू का एहसास ही न हुआ,
और मुरझाये फूल - सी बिखरती ही चली गई मैं॥
कौन कहता है कि ,
मैं अकेली हँू
बदनसीबी मेरी सहेली है।
और भाग्य बिगड़ा है वक्त के हाथों
मुफ्त बदनाम ये हथेली है॥
ख्वाब आँखें में सजा हरदम ,
जैसे सजी कोई नवेली है
और खुद से है बारबाला का सवाल यही,
तू खण्डहर है या हवेली है
तू खण्डहर है या हवेली है ॥
बेटी,
हजार खुशियाँ कम है,एक गम को भुलाने के लिये,
और एक गम काफी है,जिंदगी भर रूलाने के लिये॥
बेनूर मेरी आँखें में,और दूर का सफर है,
उठते हैं पाँव लेकिन,गिर जाने का डर है॥
बेटी,
दाग न लगने पाये कोई निर्मल तेरे आँचल में,
गंदा पानी भरा हुआ है,आज हुस्न के दलदल में॥
हर रास्ते पर रोड़ा है,
रोज-रोज मरती हूँ लेकिन ,
जीन के लिये,यह भी थोड़ा है॥
बेटी,
यह रोज-रोज की मौत ,तुझे न मरने दूँगी,
यहाँ कदम-कदम पर खड़ी है मुश्किल,
अत: इस जमीं पर पाँव रखने से पहले ही,
अत: इस जमीं पर पाँव रखने से पहले ही,
तुझे मौत के घट उतार दँूगी॥
यह सब सुनकर स्त्री-भ्रुण के मन में, हलचल मच गई है,
और उसने अपनी संवेदना व्यक्त की ......
माँ,
छोटे-छोटे हाथ मेरे ,कोमल सुन्दर तन है।
मेरी पीड़ा को तो समझो, मेरा भी तो मन है॥
माँ,
तुम चाहती ही हो मुझे मारना,
एक नारी होकर भी, तुम्हारी इतनी अमानवीय धारण॥
माँ,
गर लगती है ठोकर कहीं तुम्हें,
तो होता है मुझे भी दर्द भयंकर,
साेचा है तुमने कभी,जब हड्डी टूटेगी मेरी,
तो होगी कितनी यातना घनघोर
माँ,
क्यों सोचा तुमने
कि मैं बड़ी होकर बारबाला ही बन जाऊँगी,
अगर हम दोनों ठान लें तो,
क्या मैं किरण बेदी , कल्पना चावला नहीं बन पाऊँगी॥
माँ,
तुम्हारा अश्क दामन पे गिरा,खुश्क हुआ, सुख गया,
तुम्हारी पलकों पर ठहरता,तो सितारा बनने वाला था।
और तुम ठहर गई झील की पानी कर तरह
दरिया बनती , जो ये दलदल नजर नहीं आने वाला था॥
माँ,
हुनर की खुश्बू से तो ,मन चंदन बन जाता है,
जैसे सोना आग में तप कर कंदन बन जाता है॥
माँ,
दिल की धड़कन न रहे, आँख अगर नम न रहे
जिन्दगी मौत से बदतर है ,अगर गम न रहे॥
माँ,
इसीलिए करती हँू,मैं तुमसे श्ही प्रार्थना,
न काटो तुम पंख मेरे,
मुझे भी मुक्त विचरण करने दो आकाश में,
और पूरे होने दो सपने मेरे
और पूरे होने दो सपने मेरे॥
डब्ल्यू.टी.सी.
डब्ल्यू.टी.सी.
श्री एस.पी.चक्रवर्ती
अमरीकी शहर न्यूयार्क के,
'निचले-मैनहटन' इलाके में,
एटलांटिक महासागर के किनारे -खड़े,
ओ-विश्व व्यापार केन्द्र
तुम्हें हम जानते थे
'डब्ल्यू.टी.सी. के नाम से,
तुम्हारी दोनों गगनचुम्बी मीनारें
आसमान को दर्शाती थीं-
विश्व को दर्शाती थीं
आर्थिक सम्पन्नता,
तकनीकी दक्षता
'बसुदैव कुटुम्बकम्' की अवधारणा तले
मुद्रा की विनिमयता और
मानवीय एैक्यबद्धता!
तुम थे - अब तुम नहीं हो!
प्र तुम्हारे-
होने और न होने के बीच
घटी अनेक घटनायें,
दर्शाती हैं-
विघटनकारी शक्तियों का आतंक,
घृणा,तिरस्कार,अमानवीय निष्ठुरता
और विध्वंस की लीला!
निर्दोष, निःसहाय हजारों कर्मी
जो तुम्हारे आगोश में समाये,सहस्त्रों कम्पनियों के कार्यालयों
में सेवारत - अचानक समा गये मृत्यु के आगोश में
अविश्वास, विडम्बना और भय के साथ
छा गई चहॅुं और त्रस्तता,वेदना और विशाद,
दर्शाती हैं-
सवहिष्णुता,मानवीय संवेदना,विश्व सहकार्य की भावना
दर्शाती हैं
उद्विग्न अमरीकी किंकर्तव्यविमूढ़ता,
दर्शाती हैं-
बदले की भावना,धमकी,चेतावनी
और सैन्य कार्यवाही-
अफगानिस्तान पर बमबारी-
मुल्ला ओमर और तालिबान,
ओसमा बिन लादेन और अल-कायदा
जार्ज डब्ल्यू.बुश और अमरीकी प्रशासन
क्या मायने रखते हैं ?
उन हजारों जीवन के लिये-
जो ग्यारह सितम्बर के आतंकवादी हमले से
समा गये धरती के गर्भ में
बिछुड़ गये हमेशा-हमेशा के लिए
अपने परिवार जनों से -
या
उन बे गुनाहों के लिये-
जो मारे जा रहे हैं रोज-रोज,
काबुल,कंधार,जलालाबाद और
हैरात के अनचाहे रणांगण में।
विचार एक आता है-
प्रश्न एक उभरता है-
बनाया किसने था'बिन लादेन' को
सशस्त्र किसने किया था तालिबान को
शह कौन देता था पाकिस्तान को
अर्थ सहाय्य कौन देता था-आतंकवादी प्रतिष्ठानों को!
छुपी नहीं ये बाते अब -
दुनिया की नजरों से !
पाप का फल तो भोगना होगा,
जैसा बोया -वैसा ही रोपना होगा,
प्रायश्चित तो करना होगा-
ओ सामा्रज्यवादी अमरीका तुम्हें- चेतना होगा।
मानवीय प्रशासन और विश्वबन्धुत्व की नीति अपनाना होगा,
पुनःनिमार्पण और पुनर्वसन करना होगा!
श्री एस.पी.चक्रवर्ती
अमरीकी शहर न्यूयार्क के,
'निचले-मैनहटन' इलाके में,
एटलांटिक महासागर के किनारे -खड़े,
ओ-विश्व व्यापार केन्द्र
तुम्हें हम जानते थे
'डब्ल्यू.टी.सी. के नाम से,
तुम्हारी दोनों गगनचुम्बी मीनारें
आसमान को दर्शाती थीं-
विश्व को दर्शाती थीं
आर्थिक सम्पन्नता,
तकनीकी दक्षता
'बसुदैव कुटुम्बकम्' की अवधारणा तले
मुद्रा की विनिमयता और
मानवीय एैक्यबद्धता!
तुम थे - अब तुम नहीं हो!
प्र तुम्हारे-
होने और न होने के बीच
घटी अनेक घटनायें,
दर्शाती हैं-
विघटनकारी शक्तियों का आतंक,
घृणा,तिरस्कार,अमानवीय निष्ठुरता
और विध्वंस की लीला!
निर्दोष, निःसहाय हजारों कर्मी
जो तुम्हारे आगोश में समाये,सहस्त्रों कम्पनियों के कार्यालयों
में सेवारत - अचानक समा गये मृत्यु के आगोश में
अविश्वास, विडम्बना और भय के साथ
छा गई चहॅुं और त्रस्तता,वेदना और विशाद,
दर्शाती हैं-
सवहिष्णुता,मानवीय संवेदना,विश्व सहकार्य की भावना
दर्शाती हैं
उद्विग्न अमरीकी किंकर्तव्यविमूढ़ता,
दर्शाती हैं-
बदले की भावना,धमकी,चेतावनी
और सैन्य कार्यवाही-
अफगानिस्तान पर बमबारी-
मुल्ला ओमर और तालिबान,
ओसमा बिन लादेन और अल-कायदा
जार्ज डब्ल्यू.बुश और अमरीकी प्रशासन
क्या मायने रखते हैं ?
उन हजारों जीवन के लिये-
जो ग्यारह सितम्बर के आतंकवादी हमले से
समा गये धरती के गर्भ में
बिछुड़ गये हमेशा-हमेशा के लिए
अपने परिवार जनों से -
या
उन बे गुनाहों के लिये-
जो मारे जा रहे हैं रोज-रोज,
काबुल,कंधार,जलालाबाद और
हैरात के अनचाहे रणांगण में।
विचार एक आता है-
प्रश्न एक उभरता है-
बनाया किसने था'बिन लादेन' को
सशस्त्र किसने किया था तालिबान को
शह कौन देता था पाकिस्तान को
अर्थ सहाय्य कौन देता था-आतंकवादी प्रतिष्ठानों को!
छुपी नहीं ये बाते अब -
दुनिया की नजरों से !
पाप का फल तो भोगना होगा,
जैसा बोया -वैसा ही रोपना होगा,
प्रायश्चित तो करना होगा-
ओ सामा्रज्यवादी अमरीका तुम्हें- चेतना होगा।
मानवीय प्रशासन और विश्वबन्धुत्व की नीति अपनाना होगा,
पुनःनिमार्पण और पुनर्वसन करना होगा!
हड़ताल
हड़ताल
श्री एस.पी.चक्रवर्ती
न होने पर काम की बुनियादी शर्तें
अनुकूल और न्यायसंगत,
न खुले रहने पर -प्रेरणा के लिये जरूरी
पदोन्नति के रास्ते ,
श्रम का सही मूल्यांकन न होने पर ,
न मिलने पर -निर्धारित काम का उचित पारिश्रमिक ,
उत्पादन प्रक्रिया के लिये जरूरी-
स्ंसाधन और सुविधाओं के -
न होने पर उपलब्ध
खड़ी हो जाती है एक दीवार,
अविशवास और वितृश्णाकी -
मालिक और मजदूरों के बीच!
उदासीनता से मालिक की होकर विरक्त,
आवेदन,निवेदन और ज्ञापन-
से होकर विफलः
श्रमजीवी मजदूर-
स्ंयम के कगार पर :
थ्दये जाते हैुं जब धकेल!
होकर विवश तब -
लचकदार,रचनात्मक
उनकी वे शिल्पी अंगुलियॉं-
बंध जाती हैं मजबूत मुठ्ठियों में,
फूट पड़ता है विरोध का दावानल,
गूंज उठता है चतुर्दिक -
मॉंगों के बुलंद उद्घोशणाओं से !
और पाने के लिये अपने अधिकार-
जब
जब खींच लेते हैं अपने कर्मठ हाथ -
यंत्र,तंत्र और संयंत्रों से
रूक जाता है - मशीनी कोलाहल,
थम जाता है - उत्पादन का पहिया
हो जाती है - तब
हड़ताल.......
श्री एस.पी.चक्रवर्ती
न होने पर काम की बुनियादी शर्तें
अनुकूल और न्यायसंगत,
न खुले रहने पर -प्रेरणा के लिये जरूरी
पदोन्नति के रास्ते ,
श्रम का सही मूल्यांकन न होने पर ,
न मिलने पर -निर्धारित काम का उचित पारिश्रमिक ,
उत्पादन प्रक्रिया के लिये जरूरी-
स्ंसाधन और सुविधाओं के -
न होने पर उपलब्ध
खड़ी हो जाती है एक दीवार,
अविशवास और वितृश्णाकी -
मालिक और मजदूरों के बीच!
उदासीनता से मालिक की होकर विरक्त,
आवेदन,निवेदन और ज्ञापन-
से होकर विफलः
श्रमजीवी मजदूर-
स्ंयम के कगार पर :
थ्दये जाते हैुं जब धकेल!
होकर विवश तब -
लचकदार,रचनात्मक
उनकी वे शिल्पी अंगुलियॉं-
बंध जाती हैं मजबूत मुठ्ठियों में,
फूट पड़ता है विरोध का दावानल,
गूंज उठता है चतुर्दिक -
मॉंगों के बुलंद उद्घोशणाओं से !
और पाने के लिये अपने अधिकार-
जब
जब खींच लेते हैं अपने कर्मठ हाथ -
यंत्र,तंत्र और संयंत्रों से
रूक जाता है - मशीनी कोलाहल,
थम जाता है - उत्पादन का पहिया
हो जाती है - तब
हड़ताल.......
छेड़ दे जिहाद -आतंकवाद के खिलाफ
छेड़ दे जिहाद -आतंकवाद के खिलाफ
आतंकवादी तुम क्या आंतकित करोगे हमें ?
हम तो पहले से ही आंतकित हैं
अपनी बेरहम हालात से ,
अपने उन्माद से
अपने ही क्रोध से
अपनी विवषताओं और
अकर्मण्यता से !
आखिर आतंकित होते ही क्यों हैं-
हम जैसे लोग?
क्यों बनते हैं शिकार-
आतंकवादियों के ब्लैक-मेल का ?
क्या लूट ले जायेंगे ,हमसे -
ये आतंकवादी - अपने आतंक के जोर पर ?
धन -संपदा ?
हैं कहॉं जो ये लूट ले पायेंगे हमारी जहन से!
िजन्दगी ?
ये क्या बड़ी चीज ये लूटेंगे,
वह तो हम यूॅं ही ढो रहे हैं- मजबूरी से !
इस कुंठित समाज व्यवस्था में-
है क्या हमारे पास ?
जिसे खोने के भय से हम हुए जा रहे हैं-
आतंकित !
सत्ता,सम्पत्ति और
तथाकथित मान -मर्यादा,
तो बन गई है-
उन चंद लोगों की रखैल-
जिनकी पकड़ में है आज
उत्पादन साधन,निरंकुष प्रशासन
और अंधा कानून!
ब्ुद्धिजीवी, जिन्हें होना चाहिए,
समाज के ऑंख और कान !
इनमें से अधिकांश बन बैठे हैं-
इस कुव्यवस्था के भॉंड!
वे, जो बो रहे हैं, भेदभाव के बीज,
धर्म और भाषा की आड में,
दो -मुहॉं रिशष्ता है उनका ,
आतंक और सत्ता के साथ में!
समाचार की स्वतं;ता के नाम पर -
स्वच्छंद पत्रकारिता द्वारा-
भड़कीले और चटकीले संवाद-
बनाते और बेचते हैं ये लोग!
और तनावपूर्ण वातावरण -
बरकारार बनाये रखते हैं ये लोग !
हैं ये नकाबपोष-
आतंकवादियों से ज्यादा खतरानाक,
आंतकवादी जो महज-
आतंक का खेल - खेला करते हैं इनके इशारों पर-
और ये नकाबपोष बड़े-बड़े दॉंव लगाया करते हैं इन खेलों पर !
भय हो उन्हें - आतंकवादियों से,
जिन्हें डर है कुछ खोने का!
है क्या हम सर्वहाराओं के पास-
जिससे वंचित होने का -
भय हो हमारे मन में ?
उठ रे सर्वहारा - उठ,
छेड़ दे जिहाद- इन आंतकवादियों पर
कर दे बेनकाब - इनके नकाबपोष आकाओं को!
खोने के लिये तो - तेरे पास है नहीं कुछ,
पाने के लिये सारा जहॉं पड़ा है!
आतंकवादी तुम क्या आंतकित करोगे हमें ?
हम तो पहले से ही आंतकित हैं
अपनी बेरहम हालात से ,
अपने उन्माद से
अपने ही क्रोध से
अपनी विवषताओं और
अकर्मण्यता से !
आखिर आतंकित होते ही क्यों हैं-
हम जैसे लोग?
क्यों बनते हैं शिकार-
आतंकवादियों के ब्लैक-मेल का ?
क्या लूट ले जायेंगे ,हमसे -
ये आतंकवादी - अपने आतंक के जोर पर ?
धन -संपदा ?
हैं कहॉं जो ये लूट ले पायेंगे हमारी जहन से!
िजन्दगी ?
ये क्या बड़ी चीज ये लूटेंगे,
वह तो हम यूॅं ही ढो रहे हैं- मजबूरी से !
इस कुंठित समाज व्यवस्था में-
है क्या हमारे पास ?
जिसे खोने के भय से हम हुए जा रहे हैं-
आतंकित !
सत्ता,सम्पत्ति और
तथाकथित मान -मर्यादा,
तो बन गई है-
उन चंद लोगों की रखैल-
जिनकी पकड़ में है आज
उत्पादन साधन,निरंकुष प्रशासन
और अंधा कानून!
ब्ुद्धिजीवी, जिन्हें होना चाहिए,
समाज के ऑंख और कान !
इनमें से अधिकांश बन बैठे हैं-
इस कुव्यवस्था के भॉंड!
वे, जो बो रहे हैं, भेदभाव के बीज,
धर्म और भाषा की आड में,
दो -मुहॉं रिशष्ता है उनका ,
आतंक और सत्ता के साथ में!
समाचार की स्वतं;ता के नाम पर -
स्वच्छंद पत्रकारिता द्वारा-
भड़कीले और चटकीले संवाद-
बनाते और बेचते हैं ये लोग!
और तनावपूर्ण वातावरण -
बरकारार बनाये रखते हैं ये लोग !
हैं ये नकाबपोष-
आतंकवादियों से ज्यादा खतरानाक,
आंतकवादी जो महज-
आतंक का खेल - खेला करते हैं इनके इशारों पर-
और ये नकाबपोष बड़े-बड़े दॉंव लगाया करते हैं इन खेलों पर !
भय हो उन्हें - आतंकवादियों से,
जिन्हें डर है कुछ खोने का!
है क्या हम सर्वहाराओं के पास-
जिससे वंचित होने का -
भय हो हमारे मन में ?
उठ रे सर्वहारा - उठ,
छेड़ दे जिहाद- इन आंतकवादियों पर
कर दे बेनकाब - इनके नकाबपोष आकाओं को!
खोने के लिये तो - तेरे पास है नहीं कुछ,
पाने के लिये सारा जहॉं पड़ा है!
गरीबी का सवाल
गरीबी का सवाल
गरीबी का सवाल
बड़ा पेचीदा सवाल!
गरीबी का सवाल
संसद में लड़ा जा रहा है,
गरीबी का सवाल संसद में
सुलझाया जा रहा है।
गरीबी का सवाल-
संसद में उलझ गया है,
अब गरीबी का सवाल,
संसद में सुलझ गया है,
राष्ट्रगीत अब गाया जा रहा है
राश्ट्रगीत गाया जा चुका है,
संसद का कार्यकाल समाप्त हो चुका है
गरीब गरीब ही है, गरीब गरीब ही रहेगा,
गरीबी का सवाल भुलाया जा चुका है!
गरीबी का सवाल
बड़ा पेचीदा सवाल!
गरीबी का सवाल
संसद में लड़ा जा रहा है,
गरीबी का सवाल संसद में
सुलझाया जा रहा है।
गरीबी का सवाल-
संसद में उलझ गया है,
अब गरीबी का सवाल,
संसद में सुलझ गया है,
राष्ट्रगीत अब गाया जा रहा है
राश्ट्रगीत गाया जा चुका है,
संसद का कार्यकाल समाप्त हो चुका है
गरीब गरीब ही है, गरीब गरीब ही रहेगा,
गरीबी का सवाल भुलाया जा चुका है!
सिगरेट
सिगरेट
सिगरेट फूॅंक-फूॅंक कर उड़ा रहे हो धुऑं।
जानकर भी यह सत्य की खोद रहे हो मौते-कुऑं॥
सिगरेट के हर पैकेट पर लिखी -चेतावनी नहीं तुम्हें कोई परवाह ।
लगता है धुएं की तलब ने ,कर दिया है तुम्हें लापरवाह॥
क्या वजह है कि तुम -रमे हो, कषों की गुलामी में ।
बेखबर,बेपरवाह लगे हो तुम ,अपने फेफड़ों को जलाने में।
कष दर कष ,खींच-खींच,तुम जला रहे हो सिगरेट को!
या फिर सिगरेट ही जला रही है,तुम्हारी जिन्दगी की फितरत को॥
सोचा कभी क्या ? जरूरत क्यों , इस कृत्रिम उत्तेजक की।
इच्छा शक्ति जागृत करों और छोड़ों आदत इस व्यसन की॥
स्वतः स्फूर्त हो संचालित करो अपन सोच ।
जरूरत ही न होगी ढोने की धूम्रपान की पहचान ।
बघारता है वह निश्चित ही,झूठीमूठी षान॥
घुऑं जब फूॅंकते हो,व्यवहार अभ्रद करते हो तुम ।
पास बैठ न पीने वालों की तकलीफ बढ़ाते हो तुम॥
प्रदूषित तो करते ही हो अपने आस-पास का वातावरण।
छुपाते हो अपना खोखलापान,फेलाकर धुएॅं का आवरण॥
बाज आओ अब भी भी वक्त है जब तुम्हारे पास।
छोड़ो किल्लत निकोटिन की और काम करो कुछ खास॥
पाओ काबू तलब पर ,बने न रहो धूग्र के गुलाम ।
धूम्रपान को त्यागकर करो नई जिन्दगी को सलाम ॥
सिगरेट फूॅंक-फूॅंक कर उड़ा रहे हो धुऑं।
जानकर भी यह सत्य की खोद रहे हो मौते-कुऑं॥
सिगरेट के हर पैकेट पर लिखी -चेतावनी नहीं तुम्हें कोई परवाह ।
लगता है धुएं की तलब ने ,कर दिया है तुम्हें लापरवाह॥
क्या वजह है कि तुम -रमे हो, कषों की गुलामी में ।
बेखबर,बेपरवाह लगे हो तुम ,अपने फेफड़ों को जलाने में।
कष दर कष ,खींच-खींच,तुम जला रहे हो सिगरेट को!
या फिर सिगरेट ही जला रही है,तुम्हारी जिन्दगी की फितरत को॥
सोचा कभी क्या ? जरूरत क्यों , इस कृत्रिम उत्तेजक की।
इच्छा शक्ति जागृत करों और छोड़ों आदत इस व्यसन की॥
स्वतः स्फूर्त हो संचालित करो अपन सोच ।
जरूरत ही न होगी ढोने की धूम्रपान की पहचान ।
बघारता है वह निश्चित ही,झूठीमूठी षान॥
घुऑं जब फूॅंकते हो,व्यवहार अभ्रद करते हो तुम ।
पास बैठ न पीने वालों की तकलीफ बढ़ाते हो तुम॥
प्रदूषित तो करते ही हो अपने आस-पास का वातावरण।
छुपाते हो अपना खोखलापान,फेलाकर धुएॅं का आवरण॥
बाज आओ अब भी भी वक्त है जब तुम्हारे पास।
छोड़ो किल्लत निकोटिन की और काम करो कुछ खास॥
पाओ काबू तलब पर ,बने न रहो धूग्र के गुलाम ।
धूम्रपान को त्यागकर करो नई जिन्दगी को सलाम ॥
नियति चक्र
नियति चक्र
बीता हुआ कल
कल का आज था
और
आने वाला कल
कल का आज होगा
कल सर्वदा
आज से सुखद लगता है
और
हर आज बीते कल की
तुलना में
और अधिक
कठिनतम लगता है
कल जो था
वह
अब
इतिहास बन चुका है
और
इतिहास
अतीत का प्रतिबिंब
परिचित है
और
आत्मीय भी
परन्तु
आज
घट रहा है
मुहूर्त दर मुहूर्त !
घड़ी व घड़ी
और
बदल रहा है
कल में
साथ ही
बढ़ रहा है वह
पल-पल
क्षण-क्षण
अनजान
अपरिचित
भविष्य की ओर!
कल
आज बन जाएगा
और
आज
कल का कल
बन
गढ़ता रहेगा
इतिहास
अथक,
अविराम।
नियम यही है
नियति चक्र का ।
कल आज और कल
सब
आज के ही रूप हैं
अतः
वर्तमान ही
इतिहास और
भविश्य
है!
बीता हुआ कल
कल का आज था
और
आने वाला कल
कल का आज होगा
कल सर्वदा
आज से सुखद लगता है
और
हर आज बीते कल की
तुलना में
और अधिक
कठिनतम लगता है
कल जो था
वह
अब
इतिहास बन चुका है
और
इतिहास
अतीत का प्रतिबिंब
परिचित है
और
आत्मीय भी
परन्तु
आज
घट रहा है
मुहूर्त दर मुहूर्त !
घड़ी व घड़ी
और
बदल रहा है
कल में
साथ ही
बढ़ रहा है वह
पल-पल
क्षण-क्षण
अनजान
अपरिचित
भविष्य की ओर!
कल
आज बन जाएगा
और
आज
कल का कल
बन
गढ़ता रहेगा
इतिहास
अथक,
अविराम।
नियम यही है
नियति चक्र का ।
कल आज और कल
सब
आज के ही रूप हैं
अतः
वर्तमान ही
इतिहास और
भविश्य
है!
मील का पत्थर
मील का पत्थर
एक
मील का पत्थर
खड़ा अपनी जमीं पर,
सड़क किनारे देख रहा है,
वक्त का नजारा।
दौड़ती दुनियॉं,
भागता हुआ आदमी,
खदेड़ी गई दुनिया,
खदेड़ता हुआ आदमी,
आदमी-आदमी को खदेड़ता है
आदमी ही आदमी को धकेलता है।
आदमी तिकड़म लगाकर -
बन जाता है बड़ा
और दूसरा भौंचक्का होकर
देखता रह जाता है -खड़ा
आदमी-आदमी की बदौलत
बन जाता है बादषाह
बन कर बादषाह
बरगला जाता है आदमी
फिर आदमी होकर भी
नहीं रह जाता है वह आदमी,
बन जाता है वह - जालिम और बर्बर
होती नहीं जिसे आम आदमी की खबर
आदमी के खून-पसीने से -
बुझाती है उसकी प्यास
मेहनत मषक्कत में आदमी का
झुलसा हुआ मॉंस -
मिटता है उसकी भूखी आस।
आदमी जो होता है श्रमिक,किसान-
करता है निर्माण करता है सृजन
भोगता है जिसे बादषाह-
जीते हुए विलासतापूर्ण जीवन
बादषाह की बेतकल्लुफदार जिन्दगी
चढ़ती है महल की परवानगी।
दो
अब वक्त बदल गया है
वक्त के मुताबिक
बादषाह बन गया है लोकषाह
बादषाही अब जाती रही-
आ गई है लोकषाही
जो हुआ करते थे कभी
जमींदार,सूबेदार या जागीरदार
कल तक थे जो साहूकार या ठेकेदार
बन जाते हैं वो भी अब
आमदार या खासदार
और अपने मातहत रख कर -नौकरषाह
बन जाते हैं वे लोकषाह।
तीन
आजकल,लोकषाह -
कोई भी बन सकता है
बस, उसमें होनी चाहियेः
छल-छलावे की कुव्वत,
हॅंसते हुए झूठ बोलने की कला,
काला धन बटोरने की असीम क्षमता,
होनी चाहिए उसके पास
कुछ लठैत, कुछ त्रिषूलधारी
कुछ गुर्गे,कुछ भाई लोग
और एक राजनीतिक मंच!
चार
लोकषाह भी बादषाह की ही तरह
अपनी मन मर्जी का मालिक होता है
उसके षौक बेषकीमती और
आसमान छूने वाले होते हैं
वह वातानुकूलित भवन में रहता
हवाई जहाज से सफर करता है
दूर दराज देष-विदेष की
सैर सपट करता है
उसे आम आदमी की तकलीफ से
बिजली -पानी की किल्लत से
षिक्षा-स्वास्थ्य की दिक्कत से
विधायक कार्य से -तनाव आता है।
बेरोजगारी और महॅंगाई की मार से
पिटे हुए आदमी की चीख से
उसके चिन्तन-मनन में
खलल पड़ती है ।
पॉंच
चुनाव उसके लिए अखाड़ा है,
लुभावने वायदे उसके पैंतरे हैं!
उन पैंतरों में फंसकर
चित हो जाता है आम आदमी
आम आदमी की ÷मुहर÷ पर हो सवार
करता है वह पॉंच सालाना ÷सफर÷
पा जाता है वह पंचवर्शीय ÷सीजन टिकट÷
आम आदमी का हो जाता है जीवन विकट।
छः
लोकषाह बनते :बिगड़ते रहते हैं
दुनियॉं फिर भी चलती रहती है
मील का पत्थर
अपनी जगह गड़ा
वक्त की सड़क पर ÷रामलीला÷ देख रहा है
और कर रहा है- इंतजार
थक आयेगा कोई राम ,कोई कृश्ण
या कोई ÷षिवराया÷
और फिर एक बार करेगा संहार
भ्रश्टाचार रूपी रावण का
दुराचारी कंस का और प्रस्थापित करेगा
सच्चा स्वराज, जो सही मायने में होगा
लोक का, लोक द्वारा, लोक के लिये -लोकषाही
मील का पत्थर, अपनी जगह खड़ा,कर रहा कामना यही।
एक
मील का पत्थर
खड़ा अपनी जमीं पर,
सड़क किनारे देख रहा है,
वक्त का नजारा।
दौड़ती दुनियॉं,
भागता हुआ आदमी,
खदेड़ी गई दुनिया,
खदेड़ता हुआ आदमी,
आदमी-आदमी को खदेड़ता है
आदमी ही आदमी को धकेलता है।
आदमी तिकड़म लगाकर -
बन जाता है बड़ा
और दूसरा भौंचक्का होकर
देखता रह जाता है -खड़ा
आदमी-आदमी की बदौलत
बन जाता है बादषाह
बन कर बादषाह
बरगला जाता है आदमी
फिर आदमी होकर भी
नहीं रह जाता है वह आदमी,
बन जाता है वह - जालिम और बर्बर
होती नहीं जिसे आम आदमी की खबर
आदमी के खून-पसीने से -
बुझाती है उसकी प्यास
मेहनत मषक्कत में आदमी का
झुलसा हुआ मॉंस -
मिटता है उसकी भूखी आस।
आदमी जो होता है श्रमिक,किसान-
करता है निर्माण करता है सृजन
भोगता है जिसे बादषाह-
जीते हुए विलासतापूर्ण जीवन
बादषाह की बेतकल्लुफदार जिन्दगी
चढ़ती है महल की परवानगी।
दो
अब वक्त बदल गया है
वक्त के मुताबिक
बादषाह बन गया है लोकषाह
बादषाही अब जाती रही-
आ गई है लोकषाही
जो हुआ करते थे कभी
जमींदार,सूबेदार या जागीरदार
कल तक थे जो साहूकार या ठेकेदार
बन जाते हैं वो भी अब
आमदार या खासदार
और अपने मातहत रख कर -नौकरषाह
बन जाते हैं वे लोकषाह।
तीन
आजकल,लोकषाह -
कोई भी बन सकता है
बस, उसमें होनी चाहियेः
छल-छलावे की कुव्वत,
हॅंसते हुए झूठ बोलने की कला,
काला धन बटोरने की असीम क्षमता,
होनी चाहिए उसके पास
कुछ लठैत, कुछ त्रिषूलधारी
कुछ गुर्गे,कुछ भाई लोग
और एक राजनीतिक मंच!
चार
लोकषाह भी बादषाह की ही तरह
अपनी मन मर्जी का मालिक होता है
उसके षौक बेषकीमती और
आसमान छूने वाले होते हैं
वह वातानुकूलित भवन में रहता
हवाई जहाज से सफर करता है
दूर दराज देष-विदेष की
सैर सपट करता है
उसे आम आदमी की तकलीफ से
बिजली -पानी की किल्लत से
षिक्षा-स्वास्थ्य की दिक्कत से
विधायक कार्य से -तनाव आता है।
बेरोजगारी और महॅंगाई की मार से
पिटे हुए आदमी की चीख से
उसके चिन्तन-मनन में
खलल पड़ती है ।
पॉंच
चुनाव उसके लिए अखाड़ा है,
लुभावने वायदे उसके पैंतरे हैं!
उन पैंतरों में फंसकर
चित हो जाता है आम आदमी
आम आदमी की ÷मुहर÷ पर हो सवार
करता है वह पॉंच सालाना ÷सफर÷
पा जाता है वह पंचवर्शीय ÷सीजन टिकट÷
आम आदमी का हो जाता है जीवन विकट।
छः
लोकषाह बनते :बिगड़ते रहते हैं
दुनियॉं फिर भी चलती रहती है
मील का पत्थर
अपनी जगह गड़ा
वक्त की सड़क पर ÷रामलीला÷ देख रहा है
और कर रहा है- इंतजार
थक आयेगा कोई राम ,कोई कृश्ण
या कोई ÷षिवराया÷
और फिर एक बार करेगा संहार
भ्रश्टाचार रूपी रावण का
दुराचारी कंस का और प्रस्थापित करेगा
सच्चा स्वराज, जो सही मायने में होगा
लोक का, लोक द्वारा, लोक के लिये -लोकषाही
मील का पत्थर, अपनी जगह खड़ा,कर रहा कामना यही।
महँगाई की मार
महँगाई की मार
महँगाई की मार से, जनता हो रही त्रस्त।
नेता और अभिनेता, अपनी मस्ती में मस्त ॥
अपनी मस्ती में मस्त, कोई भाषावाद ऊठावे ।
कोई प्रांतवाद पर भाषण कर, अपना काम चलावे॥
बाल मेवाती कहे, परमाणु करार पर अटके।
मस्ती में सब मस्त हुए, देश खा रहा झटके ॥
महँगाई की मार से, जनता है बेचैन।
त्राहि-त्राहि चहुं दिश मची,छीन लिया सुख चैन॥
छीन लिया सुख चेन , अब कैसे होय गुजारा।
रोटी, कपड़ा कैसे पुरावे, ओ मेरे करतारा ॥
बाल मेवाती कहे, अब नैय्या राम भरोसे।
खाली पड़ी है आज कटोरी, कैसे दाल परोसे ॥
20 रू? . किलो है गेहूँ , 30 रू . चावल।
महँगाई की मार से ,जनता हो रही घायल ॥
जनता हो रही घायल, नेता करे विदेशी दौरा।
मेहनतकश इंसान के ,भूखे मरते छोरी-छोरा॥
बाल मेवाती कहे, अब जीना हुआ मुहाल।
रोटी, कपड़ा कहाँ से लावें ,सम्मुख खड़ा सवाल॥
फुल रफ्तार से दौड़ती, महँगाई की रेल ।
कन्ट्रोलर अब क्या करे, ब्रेक हो गये फेल॥
ब्रेक हो गए फेल, स्वाद बिगाड़ा जी का।
हर दम्पत्ति का चेहरा, आज हो गया फिका॥
बाल मेवाती कहे, अब रहना पड़ेगा फाकें।
भूखे बच्चों की चीख, कौन सुनेगा आ के॥
किमतों को रोकने में, शासन हुआ मजबूर।
आम जनता का स्वप्न, हो गया चकनाचुर॥
हो गया चकनाचुर, गरीब क्या खा पायेगा।
मेहनतकश तो अब, भूखा ही सो जाएगा॥
बाल मेवाती कहे , अमेरीका से करो तुम "डील"।
गरीब जनता के मुहँ, लगा दो आकर सील॥
ब्याज की दर बढ़ा रही, सभी भारतीय बैंक।
देश के नेता कर रहे , ऑख मूंद बैलेंस॥
आखँ मूंद बैलेंस, गरीब के तन पर नहीं लंगौटी।
देश के रक्षक बना रहे, अपनी दस-दस कोठी॥
बाल मेवाती कहे, बैकों का महँगा हो गया कर्ज।
देश के नेता जनता के प्रति , अपना भूल गए है फर्ज॥
महँगाई की मार से, जनता हो रही त्रस्त।
नेता और अभिनेता, अपनी मस्ती में मस्त ॥
अपनी मस्ती में मस्त, कोई भाषावाद ऊठावे ।
कोई प्रांतवाद पर भाषण कर, अपना काम चलावे॥
बाल मेवाती कहे, परमाणु करार पर अटके।
मस्ती में सब मस्त हुए, देश खा रहा झटके ॥
महँगाई की मार से, जनता है बेचैन।
त्राहि-त्राहि चहुं दिश मची,छीन लिया सुख चैन॥
छीन लिया सुख चेन , अब कैसे होय गुजारा।
रोटी, कपड़ा कैसे पुरावे, ओ मेरे करतारा ॥
बाल मेवाती कहे, अब नैय्या राम भरोसे।
खाली पड़ी है आज कटोरी, कैसे दाल परोसे ॥
20 रू? . किलो है गेहूँ , 30 रू . चावल।
महँगाई की मार से ,जनता हो रही घायल ॥
जनता हो रही घायल, नेता करे विदेशी दौरा।
मेहनतकश इंसान के ,भूखे मरते छोरी-छोरा॥
बाल मेवाती कहे, अब जीना हुआ मुहाल।
रोटी, कपड़ा कहाँ से लावें ,सम्मुख खड़ा सवाल॥
फुल रफ्तार से दौड़ती, महँगाई की रेल ।
कन्ट्रोलर अब क्या करे, ब्रेक हो गये फेल॥
ब्रेक हो गए फेल, स्वाद बिगाड़ा जी का।
हर दम्पत्ति का चेहरा, आज हो गया फिका॥
बाल मेवाती कहे, अब रहना पड़ेगा फाकें।
भूखे बच्चों की चीख, कौन सुनेगा आ के॥
किमतों को रोकने में, शासन हुआ मजबूर।
आम जनता का स्वप्न, हो गया चकनाचुर॥
हो गया चकनाचुर, गरीब क्या खा पायेगा।
मेहनतकश तो अब, भूखा ही सो जाएगा॥
बाल मेवाती कहे , अमेरीका से करो तुम "डील"।
गरीब जनता के मुहँ, लगा दो आकर सील॥
ब्याज की दर बढ़ा रही, सभी भारतीय बैंक।
देश के नेता कर रहे , ऑख मूंद बैलेंस॥
आखँ मूंद बैलेंस, गरीब के तन पर नहीं लंगौटी।
देश के रक्षक बना रहे, अपनी दस-दस कोठी॥
बाल मेवाती कहे, बैकों का महँगा हो गया कर्ज।
देश के नेता जनता के प्रति , अपना भूल गए है फर्ज॥
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