प्रकृति विभिन्न प्रकार से वनस्पतियों, जीव - जन्तुओं तथा मनुष्य को संचालित करती रहती है । हम सभी जानते हैं कि वनस्पतियों में विद्यमान हरा रंग उनमें उपस्थित क्लोरोफिल के कारण होता है। ठीक इसी प्रकार मनुष्य का रंग उसमें उपस्थित मेलानिन की मात्रानुसार गोरा या सांवला हूआ करता है।
रू? प-रंग का मुख्य आधार हमारी त्वचा में उपस्थित मेलानिन क?णों पर काफी निर्भर करता है। त्वचा जो हमारे शरीर को ऊपर से ढके रहती है उसमें दो प्रकार के रंजक कण उपस्थित होते हैं । प्रथम, भूरे-काले रंजक कण जो "यूमेलानिन" कहलाते हैं तथा द्वितीय लाल - पीले रंग के रंजक कण जो "फिओमेलानिन" नाम से जाने जाते हैं । उक्त दोनों प्रकार के कणों को "मेलानिन" कहतें हैं । ये मेलानिन कण ही व्यक्ति विशेष के गोरं अथवा सांवले रंगत के लिए जिम्मेदार होते हैं । "मेलानिन" कण "मिलेनोसाइट" कोशिकाओं से निर्मित होते हैं।
इसके अतिरिक्त हमारे रक्त में "हीमोग्लोबिन" नामक लाल रंजक कण, पीले रंग के केराटिन रंजक कण तथा आक्सीहीमोग्लोबिन आदि रंजक कण भी पाये जाते हैं। यह रंजक कण आपस में मिलकर त्वचा को रंग प्रदान करतें हैं, किन्तु इनमें मेलानिन की मुख्य भूमिका रहती है । किसी व्यक्ति की त्वचा में "मेलानिन" की संख्या अधिक होने पर उसका रंग काला हो जाता है । इसके विपरित जिस व्यक्ति की त्वचा में मेलानिन की संख्या कम होती है, तो उसका रंग गोरा होता है । काली त्वचा में मिलेनोसोम और मिलेनोसाइट कोशिकाएं त्वचा के पूरे भाग में समान रुप से फैली होती हैं, जबकि गोरी त्वचा में "मिलेनोसोम" छोटे और मिलेनोसाइट कोशिकाएं अत्यन्त छोटे-छोटै समूह के रू? प में त्वचा में विद्यमान होती हैं । अत: यह स्पष्ट है कि त्वचा का रंग "मेलानिन" की मात्रा तथा इसकी उपस्थिति पर निर्भर करता है । गर्म प्रदेशों में रहने वाले व्यक्तियों की त्वचा का रंग काला और ठण्डे प्रदेशों वाले व्यक्तियों की त्वचा का रंग काला और ठण्डे प्रदेशों वाले व्यक्तियों की त्वचा गौर वर्णीय होती है ।
त्वचा के रंग निर्धारित करने वाले "मेलानिन" कण मूलत: प्रोटीन के ही अंश होते हैं। इसकी आकृति के संबंध में अभी तक बहुत ज्यादा जानकारी नहीं हैं।
हमारे शरीर की त्वचा में "मेलानिन" की तादाद सूर्य की रोशनी के प्रमाण पर निश्चित होती है। सूर्य की अधिक रोशनी से त्वचा में "मेलानिन" की मात्रा बढ़ जाती है परिणामस्वरूप त्वचा का रंग गहरा अर्थात सांवला हो जाता है । वास्तव में त्वचा में "मेलानिन" की अधिक उपस्थिती से व्यक्ति विशेष को लाभ ही होता है। सांवले रंग पर झुर्रियों का प्रकोप कम होता है। मेलानिन त्वचा को सूर्य की किरणों में निहित पराबैंगनी किरणों (अल्ट्रावायलट रे) के हानिकारक प्रभाव से बचाता है। मेलानिन की अधिक उपस्थिति त्वचा को धूप से झुलसने से बचाये रखती है ।मेलानिन ज्यादा होने स े त्वचा-कैंसर की संभावना कम हो जाती है जबकी गोरी त्वचा पर कील- मुहांसे, पिग्मेण्टेशन होने की सम्भावना अपेक्षाकृत अधिक होती है। भौतिक तत्वों अर्थात चोट लगने , जलने , अधिक धूप में झुलसने पराबैंगनी किरणों (अल्ट्रावायलट रे) आदि के प्रभाव से भी त्वचा के रंग में बदलाव आ जाता है।
निष्कर्ष के रुप में यह स्पष्ट है कि त्वचा के रंग का निर्धारण वैज्ञानिक तत्वों पर आधारित है तथा इसे किसी तरह के सौंदर्य प्रसाधन का प्रयोग कर बदला नहीं जा सकता। मेलानिन जो त्वचा में जन्म से ही मौजूद होती है,उसे हम कृत्रिम रू? प से नहीं बदल सकते हैं।
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