सोमवार, 20 अप्रैल 2009

महँगाई की मार

महँगाई की मार


महँगाई की मार से, जनता हो रही त्रस्त।
नेता और अभिनेता, अपनी मस्ती में मस्त ॥
अपनी मस्ती में मस्त, कोई भाषावाद ऊठावे ।
कोई प्रांतवाद पर भाषण कर, अपना काम चलावे॥
बाल मेवाती कहे, परमाणु करार पर अटके।
मस्ती में सब मस्त हुए, देश खा रहा झटके ॥

महँगाई की मार से, जनता है बेचैन।
त्राहि-त्राहि चहुं दिश मची,छीन लिया सुख चैन॥
छीन लिया सुख चेन , अब कैसे होय गुजारा।
रोटी, कपड़ा कैसे पुरावे, ओ मेरे करतारा ॥
बाल मेवाती कहे, अब नैय्या राम भरोसे।
खाली पड़ी है आज कटोरी, कैसे दाल परोसे ॥

20 रू? . किलो है गेहूँ , 30 रू . चावल।
महँगाई की मार से ,जनता हो रही घायल ॥
जनता हो रही घायल, नेता करे विदेशी दौरा।
मेहनतकश इंसान के ,भूखे मरते छोरी-छोरा॥
बाल मेवाती कहे, अब जीना हुआ मुहाल।
रोटी, कपड़ा कहाँ से लावें ,सम्मुख खड़ा सवाल॥

फुल रफ्तार से दौड़ती, महँगाई की रेल ।
कन्ट्रोलर अब क्या करे, ब्रेक हो गये फेल॥
ब्रेक हो गए फेल, स्वाद बिगाड़ा जी का।
हर दम्पत्ति का चेहरा, आज हो गया फिका॥
बाल मेवाती कहे, अब रहना पड़ेगा फाकें।
भूखे बच्चों की चीख, कौन सुनेगा आ के॥

किमतों को रोकने में, शासन हुआ मजबूर।
आम जनता का स्वप्न, हो गया चकनाचुर॥
हो गया चकनाचुर, गरीब क्या खा पायेगा।
मेहनतकश तो अब, भूखा ही सो जाएगा॥
बाल मेवाती कहे , अमेरीका से करो तुम "डील"।
गरीब जनता के मुहँ, लगा दो आकर सील॥

ब्याज की दर बढ़ा रही, सभी भारतीय बैंक।
देश के नेता कर रहे , ऑख मूंद बैलेंस॥
आखँ मूंद बैलेंस, गरीब के तन पर नहीं लंगौटी।
देश के रक्षक बना रहे, अपनी दस-दस कोठी॥
बाल मेवाती कहे, बैकों का महँगा हो गया कर्ज।
देश के नेता जनता के प्रति , अपना भूल गए है फर्ज॥

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