खुशियाँ और दर्द
कुरेद कर जख्म उसके , हर बार मैं रूलाता रहा।
वो दुखते जख्मों पे मेरे,मरहम लगाता रहा॥
चोट खया आज फूलों से मेरा हबीब।
दामन वो अपना, काँटों से बचाता रहा॥
दिखाई नई रोशनी,हर पल मुझे।
मेरे अंधेरे कों वो,अपना बनाता रहा॥
भर दी झोली जिसने ,मुस्कुराहटों से मेरी।
उसी की खुशियों को मैं,कांधा लगाता रहा॥
ख्वाब में भी जिसने,न दिया दर्द कभी मुझे।
उसे ताज कांटों का मैं, "सदा" पहनाता रहा॥
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