"भ्रूण हत्या"
तीन माह ही तो हुए हैं अभी
तेरी कोख में मुझे !
लम्बा सफर है अभी
आने को तेरी गोद में मुझे !
डूबी रहती हँू हर पल कल्पनाओं में,
तुम लोरियाँ सुनाओगी,
मेरे नन्हे हाथों को
ले अपने हाथों
तुम गुनगुनाओंगी,
मैं गोद में तुम्हारी
गहरी नींद सो जाऊँगी।
पर तभी भयानक स्वप्न
मुझे डरा जाता है।
तेरी गोद में आने से पहले हर
मेरा गला दबाया जाता है।
माँ वो हाथ तुम्हारा ही तो होता है।
क्यों बिन झुलाएँ अपनी बाँहों में,
मुझे दफना दोगी,
क्या आज की बेटियाँ,
कल्पना-सानिया
नाम रोशन नहीं करती।
वतन की राह पे जाँ निसार नहीं करती।
जब इक औरत ही ,
अपनी कोख की दुश्मन हो जाएगी,
वे ही उसे कोख में ही दफनाएगी।
तो बोलो माँ नई कोख,
कहाँ से आएगी ?
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