सोमवार, 20 अप्रैल 2009

भटकती आत्माएं

भटकती हुई आत्माहओं में से
एक आत्माई ने दुसरी से कहा क्यात मेरी तरह तुम्हारी भी
जिंदगी अधुरी रह गयी जिन्दीगी को जीने की तमन्नाभ
तमन्ना ही रह गयी

ऐसा क्यान हुआ था तुम्हारे साथ
जो दुनिया से नाता टूट गया
जिन्दनगी का धागा टूट गया
भाई क्या‍ बताऊ मैं अपनी कहानी
सुनकर तुम्हा‍री ऑंखों में आ
जाएगा पानी

आजकल खुदा के घर में चलती है गोलियॉं
मंदिरों –मस्जिदों में बहती है खून की नदियॉं
यही सब देखकर ,सोच समझकर कहीं अपना सर नहीं झुकाया
किसी को अपना रब नहीं बनाया
अपना काई मजहब नहीं बनाया
फिर लोग मुझे कहने लगे काफिर
मैने कहा मुझे खुदा नहीं
खुदा के बन्दे से मिला दे
उसने मुझे खुदा के बन्देस से नहीं मिलाया
एक खंजर मेरी पीठ में घुसाया
मुझसे बोला जा ऊपर जाकर
खुदा से ही मिल लेना
और इस खुदा के बंदे का
खुदा को सलाम कह देना
खुदा को सलाम कह देना


ये हुई मेरी खबर अब तुम अपनी बताओ
ये था मेरा अंत अब अपना अंत सुनाओ
मेरी भी है यही कहानी
सुनकर तुम्हाहरी ऑंखों में भी आएगा पानी
आजकल शहर में आती हैं मजहबी ऑंधियॉं
जो पीछे छोड़ जाती हैं वीरानियॉं
फिर छा जाती है लम्बीं खामाशियॉं
तुम्हारा तो काई रब नहीं था कोई मजहब नहीं था
लेकिन मेरा तो एक खुदा था।
मैं भी खुदा का बंदा था फिर भी मुझे काटा गया
फिर भी मुझे मारा गया
जिस तलवार से मैं काटा गया
उस तलवार पर मजहब लिखा था
जिस तलवार से मेरे भाई हलाल हुए
किसी पर हिन्दू तो किसी पर
मुसलमान लिखा था
मेरे सैकड़ो भाई बारूद के
ढेर पर बिखर गए
बारूद के हर कतरे पर जेहाद लिखा था
जेहाद लिखा था
घबराओ मत मेरे भाई
तुम्हारे गुनहगारों को भी सजा मिलेगी
उनकी करनी उनको भरनी होगी
नहीं मेरे भई यह तो सिर्फ कहने की बात है
मेरे गुनहगार तो आराम से घुम रहे हैं
गुरूजी जेल में आराम कर रहे हैं
और हमारे देश के महान नेता
वोट बैंक के लिए उनकी सजा को टल रहे हैं – टाल रहे हैं।

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