गजल
जो कुछ भी कहते रहे सब बहाने मुझे लगे
लोग जरूरत से ज्यादा सयाने मुझे लगे
मोहब्बत,दोस्ती की कोई कदर ना रही
चंद सिक्कों के आगे सभी,दिवाने मुझे लगे
नये दौर में खुलापन इस कदर आ गया कि
अच्छे थे वही संस्कार अपने,पुराने मुझे लग
सच्ची बात जब-जब भी क्या कही मैंने
लोग तरेर-जरेरकर आंखे ,दिखाने मुझे लगे
चोब् खाये दुश्मन को जब कभी देखा मैंने
मंदिर-मस्जिद उनके अगले, निशाने मुझे लगे
इतने संगिउल,बेदर्द, इतने वेवफा नहीं थे
जितने अबके पल-पल ये,जमाने मुझे लगे
दोस्ती ,माहब्बत,अपनापन जहाँ-जहाँ मिला
रूकने-ठहरने के सही ,ठिकाने मुझे लगे
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