सोमवार, 20 अप्रैल 2009

बारबाला

बारबाला

बारबाला कह रही है अपने स्त्रीभ्रूण से ........

"बेटी,

मेरी मुस्कुराहट पर न जाओ,
तुम्हें क्या पता कितने आँसू,
छिपे हैं इसके पीछे।
गमों का एक समंदर पार किया है मैंने।
कितनी ही मंजिलें तलाशीं,
हर मोड़ पर तन्हा ही खड़ी रही मैं।
हर मोड़ पर तन्हा ही खड़ी रही मैं।
और मृगतृष्णा में,मैं भटकती ही रही।
किसी को खुशबू का एहसास ही न हुआ,
और मुरझाये फूल - सी बिखरती ही चली गई मैं॥
कौन कहता है कि ,
मैं अकेली हँू
बदनसीबी मेरी सहेली है।
और भाग्य बिगड़ा है वक्त के हाथों
मुफ्त बदनाम ये हथेली है॥
ख्वाब आँखें में सजा हरदम ,
जैसे सजी कोई नवेली है
और खुद से है बारबाला का सवाल यही,
तू खण्डहर है या हवेली है
तू खण्डहर है या हवेली है ॥


बेटी,

हजार खुशियाँ कम है,एक गम को भुलाने के लिये,
और एक गम काफी है,जिंदगी भर रूलाने के लिये॥
बेनूर मेरी आँखें में,और दूर का सफर है,
उठते हैं पाँव लेकिन,गिर जाने का डर है॥


बेटी,

दाग न लगने पाये कोई निर्मल तेरे आँचल में,
गंदा पानी भरा हुआ है,आज हुस्न के दलदल में॥
हर रास्ते पर रोड़ा है,
रोज-रोज मरती हूँ लेकिन ,
जीन के लिये,यह भी थोड़ा है॥


बेटी,

यह रोज-रोज की मौत ,तुझे न मरने दूँगी,
यहाँ कदम-कदम पर खड़ी है मुश्किल,
अत: इस जमीं पर पाँव रखने से पहले ही,
अत: इस जमीं पर पाँव रखने से पहले ही,
तुझे मौत के घट उतार दँूगी॥


यह सब सुनकर स्त्री-भ्रुण के मन में, हलचल मच गई है,
और उसने अपनी संवेदना व्यक्त की ......

माँ,

छोटे-छोटे हाथ मेरे ,कोमल सुन्दर तन है।
मेरी पीड़ा को तो समझो, मेरा भी तो मन है॥

माँ,

तुम चाहती ही हो मुझे मारना,
एक नारी होकर भी, तुम्हारी इतनी अमानवीय धारण॥

माँ,

गर लगती है ठोकर कहीं तुम्हें,
तो होता है मुझे भी दर्द भयंकर,
साेचा है तुमने कभी,जब हड्डी टूटेगी मेरी,
तो होगी कितनी यातना घनघोर


माँ,

क्यों सोचा तुमने
कि मैं बड़ी होकर बारबाला ही बन जाऊँगी,
अगर हम दोनों ठान लें तो,
क्या मैं किरण बेदी , कल्पना चावला नहीं बन पाऊँगी॥


माँ,

तुम्हारा अश्क दामन पे गिरा,खुश्क हुआ, सुख गया,
तुम्हारी पलकों पर ठहरता,तो सितारा बनने वाला था।
और तुम ठहर गई झील की पानी कर तरह
दरिया बनती , जो ये दलदल नजर नहीं आने वाला था॥


माँ,

हुनर की खुश्बू से तो ,मन चंदन बन जाता है,
जैसे सोना आग में तप कर कंदन बन जाता है॥

माँ,

दिल की धड़कन न रहे, आँख अगर नम न रहे
जिन्दगी मौत से बदतर है ,अगर गम न रहे॥

माँ,

इसीलिए करती हँू,मैं तुमसे श्ही प्रार्थना,
न काटो तुम पंख मेरे,
मुझे भी मुक्त विचरण करने दो आकाश में,
और पूरे होने दो सपने मेरे
और पूरे होने दो सपने मेरे॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें