गजल
जब कभी दूसरों को आंकते हैं
खुद के गिरेबां में हम,पहले झांकते हैं
उन्हीं के दामन, दागदार देखे हमने
दूसरों की जिन्दगी में, जो अक्सर झांकते हैं
पसीना बहा कर वो पत्थर पे सो गया
नर्म-नर्म गद्दों पर, लोग जागते हैं
बदनसीब है लोग अपनों को छोड़कर
सिक्कों की खनक के ,पीछे भागते हैं
मुँह के बल वो अक्सर गिर पड़े
दूसरों को जो, कमतर आंकते हैं
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