सोमवार, 20 अप्रैल 2009

कलियुगी हनुमान

कलियुगी हनुमान

सीता की खोज में, राम ने अपने भक्त हनुमान को बुलाया ।
प्रेम भाव प्रकट कर, भक्त को छाती से लगाया॥
राम बोले "दुनिया कुेछ भी कहे पर तू मेरा दास है।"
मुझे अपने से भी ज्यादा, तुझ पर भाई विश्र्वास है॥
जाओ,जल्दी से जाओं और सीता को खोज के लाओ।
यह अंगूठी मेरी निशानी देकर सीता को तसल्ली ॥
हनुमानजी ने रामचन्द्र के पैर छुए, सीता की खोज को रवाना हुए।
रावण के दरबार में पहुँचे,उसे देख गुस्से में जबड़े भींचे॥
कहा "अरे दुष्ट तू सीता को लौटा दे ।
क्यों मरने को तैयार हो रहा है॥
पर कलयुगी रावण बहुत होशियार था।
विरोधी को बस में करने का उसके पास औजार था॥
उसने बड़े प्यार से हनुमान को गले लगाया ।
और प्यार से समझाया ॥
देखो यार,तुम जंगल में पड़े-पड़े क्यों अपनी जवानी बरबाद कर रहा है।
भाई, तेरा पेट भूख से कितना सिकुड़ रहा है॥
मैं चाहूँ तो, तुझे लखपती बना दूँ।
मेरे मंत्रीमंडल में एक जगह खाली है,तू चाहे तो तुझे मंत्री बना दूँ॥
इतना सुनते ही;पत्थर से भी ठोस हनुमानजी ढीले पड़ गए।
वो राम के पैर छूते थे पर रावण के पैरों में ही पड़ गए॥
बोले"माई बाप,सीता का तो केवल बहाना था, मुझे तो वैसे भी आप के पास आना था॥
अरे,मैं आपके इस एहसान का बदला कैसे चुकाऊँगा ।
आप मेरी पूँछ में आग लगा दो तो, मैं राम की अयोध्या ही फूँक आऊँगा ॥
मैं उसकी किस्मत कभी भी फोड़ सकता हूँ।
आपके कहने पर मैं, राम की पार्टी भी छोड़ सकता हूँ॥
आपके मंत्रीमण्डल में अगर और जगह खाली हो तो मैं लक्ष्मण को भी फोड़ सकता हूँ।
आप अगर चाहें तो मैं अयोध्या में बम भी फोड़ सकता हूँ पर मैं मंत्री पद नहीं छोंड़ सकता ॥
इस गद्दी के लिए एक सीता तो क्या आप के पास हजार सीता भी छोड़ सकता हूँ।
आप भी कितने बेसमझ इंसान हैं, कलयुग में कहीं सीता चुराते हैं॥
अरे पद के लिए तो आज के राम,अपने-आप आपके पास चले आएंगे।
और अपनी सीता खुद आपके पास छोड़ जाएंगे।

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