सोमवार, 20 अप्रैल 2009

नियति चक्र

नियति चक्र

बीता हुआ कल
कल का आज था
और
आने वाला कल
कल का आज होगा
कल सर्वदा
आज से सुखद लगता है
और
हर आज बीते कल की
तुलना में
और अधिक
कठिनतम लगता है
कल जो था
वह
अब
इतिहास बन चुका है
और
इतिहास
अतीत का प्रतिबिंब
परिचित है
और
आत्मीय भी


परन्तु
आज
घट रहा है
मुहूर्त दर मुहूर्त !
घड़ी व घड़ी
और
बदल रहा है
कल में
साथ ही
बढ़ रहा है वह
पल-पल
क्षण-क्षण
अनजान
अपरिचित
भविष्य की ओर!


कल
आज बन जाएगा
और
आज
कल का कल
बन
गढ़ता रहेगा
इतिहास
अथक,
अविराम।
नियम यही है
नियति चक्र का ।
कल आज और कल
सब
आज के ही रूप हैं
अतः
वर्तमान ही
इतिहास और
भविश्य
है!

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