सोमवार, 20 अप्रैल 2009

नालंदा हास्य व्यंग्य

नालंदा हास्य व्यंग्य

नालंदा से हास्य व्यंग्य कवि सम्मेलन का पैगाम आया,
सुनकर मेरा मन अति हर्षाया ।
सोचा मैंने,मुफ्त में विहार घुम आऊँगा,
अपने जैसे कई कालाकारों के दर्शन पाऊँगा।
तब तक श्रीमतीजी आयीं
मुझ पर जोर से झुझलाईं,बोली कुछ काम-धाम नहीं है।
क्या सोच रहे हैं ? किसी ने कुछ कही है ?
मैंने बोला, नालंदा से हास्य व्यंग्य कवि सम्मेलन का पैगाम आया है,
और हमने भी जाने का खुब मन बनाया है।
हँसी जोर से और बोली
क्यों करते हो ठिठोली।
हास्य - व्यंग्य और आप, सुना पाएंगे ,
लागों के दिल को गुदगुदा पाएंगे ।
अरे नीम के पेड़ पर क्या आम भी कभी आया है।
आपने हास्य- व्यंग्य कवि सम्मेलन में जाने का मन कैसे बनाया है,
खुद तो कभी हँसते ही नहीं, लागों को क्या खाक हँसाओगे ?
श्रेष्ठ हास्य कवियों के बीच बौने नजर आओगे।
यह सुन हिम्मत जुटाया, गला खरखराया,
बोला, भाग्यवान जब मुँह खोलों ,शुभ-शुभ बोलो ।
युक्ति लगाऊँगा , लालूजी के पास जाऊँगा,
थोड़े कुछ गुर उनसे भी पूछ आऊँगा।
आपको देखते ही लोग हँस पड़ते हैं, क्या राज है कुछ तो बताएं,
हमें भी हास्य कवि बनने के कुछ तो गुर सीखाएं।
तब तक मेरे अन्तस से आवाज आयी, अरे यार, क्यों है परेशान,
यह तो है बड़ा आसान, कुछ घर की, कुछ बाहर की, गप्पे सुनाना,
कोई ना हँसे, तो भी सुनाते जाना,
समझदार श्रोता कुछ तो शर्माएंगे ,
प्रोत्साहन हेतु कुछ तो ताली बजाएंगे।
बस धीरे-धीरे तू आगे बढ़ जाएगा
और एक न एक दिन हास्य कवि जरूर कहलाएगा।
बात राज की समझ में आयी और हमने हिम्मत जुटायी,
कितने ही खोटे सिक्के देश में चल रहे हैं
और मीडिया के माध्यम से लोग उन्हें झेल रहे हैं।
क्रिकेट, राजनीति कोई भी क्षेत्र देखें,
सब मास्टर थोड़े ही हैं फिर भी चल रहे हैं, हम भी चल जाएंगे।
कर्मन की गति न्यारी है, देश में भ्रष्टाचार की बीमारी है,
हंस दाना चुग रहा है,कौआ मोती खा रहा है,
विविाता से देश परिपूर्ण है।
परहित की बात सोचते हैं, परोपकारी हैं
इसीलिए अपनी भूमि पर भी क्रिकेट में प्राय: हार जाते हैं ।

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