सोमवार, 20 अप्रैल 2009

हड़ताल

हड़ताल


दिन शाम को जब मैं घर लौटा,
घर में छाया था एकदम सन्नाटा।
सामान इधर-उधर बिखरा था,
जैसे कोई भूचाल आया था।
मैंने पूछा बेटे से क्या है ये घर का हाल ?
उसने कहा, मम्मी ने की है आज हडताल !
सुनकर यह बात मेरे अंदर करंट मारा गया,
मेरे जेब पर अब क्या गुजरेगी इसका अंदाज आ गया।
डर कर मैं अंदर गया,
आनेवाली मुसिबतों को भॉप गया।
बिबी आराम से लेटी थी सोफे में,
जैसे भैंस बैठती है पानी में।
मैंने कहा भागवान,घर का क्या हाल बना रखा है,
जैसे किसी कबाड़खाने में पैर रखा है।
किस बातपर हड़ताल का ऐलान कर रही हो,
इस उम्र में गरीब को क्यों परेशान कर रही हो ?
इस पर चिल्लाकर वह बोली, जब तक मेरी माँगे नहीं होगी पूरी,
आपको रखनी होगी मुझसे दूरी।
पूरानी हो गयी साड़ियाँ और गहनें,
शर्म आती है पडोसियों को मुँह दिखाने।
टि.वी, फ्रिज, सोफा कुछ काम के नहीं हैं,
पूरानी चीजों में अब मजा नहीं है।
सारी चीजें मुझे नई दिलवा दो,
तभी आकर मुझे अपना लो।
हड़ताल तब खत्म होगी,
जब सभी माँगे सफल होगी।
तब मैंने कहा, पूरानी चीजों से तो मैं भी हूँ परेशान,
ऐसी बातों से छुडाना चाहता हूँ मैं भी अपनी जान।
बीस साल से तुम भी तो हो गई हो पुरानी,
चाहता हँू लेकर आऊँ कोई कमसीन जवानी।
तुम्हें घर के किसी कोने में बिठाऊँगा,
इस उमर में कुछ हसीन लम्हें बिताऊंगा।
इस बातपर वह लगी रोने,
घुटने टेककर लगी गिडगिडाने।
खत्म करती हँू अब ये हड़ताल,
घर में नहीं लाना कोई नया माल।
इस पर मैंने कहा, मैं तो मजाक कर रहा था रानी,
तेरे नाम पर लिखी है पूरी जवानी।
पूरानी चीजों की बात ही कुछ और है,
बिवी जितनी पूरानी उसकी लज्जत कुछ और है।
उसी वक्त हड़ताल समाप्त हो गयी,
जिंदगी फिरसे खुशहाल हो गयी

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