सोमवार, 20 अप्रैल 2009

भूतों की संस्था

भूतों की संस्था

बढ़ता आतंक देश में, मार रहा है डंक।
आहिस्ता-आहिस्ता डस रहा, क्या राजा, क्या रंक॥
क्या राजा, क्या रंक ,अब सुरक्षित रहा न राही।
सी.एस.टी.स्टेशन पर, लाशें दे रहीं हैं गवाही ॥
बाल मेवाती कहे , अब महफूज नहीं है रात।
चंहू दिशा आतंक छाया, किसका ढूंढे साथ ॥

सूने कर दिए महल, झोपड़ी सूना कर दिया अंक।
दहशत बैठी अब दिल में , फैल रहा आतंक॥
फैल रहा आतंक, रूक-रूक कर चोट चलावे।
इस निर्लज्ज बेहया को , जरा शर्म न आवे॥
बाल मेवाती कहे ,इसकी नियत है नासाज ।
बेआबरू कर दिया, मुम्बई का होटल ताज॥

भारत देश की अस्मिता पर , कर रहा चोट।
सारी दुनिया जानती, इसकी नियती में है खोट॥
नियती में है खोट, अब तू सुन ले जरदारी ।
एक चोट भी तुझसे , सही जाए न हमारी॥
बाल मेवाती कहे ,तू किस गफलत में खोया।
तीन बार हारा है जंग में, फिर सिर पकड़ कर रोया॥

अब की बार युद्घ में , मिल जाएगा खाक।
अपने आपको सुधार ले, सुन ले पाजी पाक॥
सुन ले पाजी पाक, तू वतन बचा ले अपना ।
हमारी मरहमी को , बुझदिली ना समझना॥
बाल मेवाती कहे , तूने सोता शेर को जगाया।
मधुमक्खियों के छत्ते में , तूने हाथ फंसाया। ।

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