सोमवार, 20 अप्रैल 2009

सपनीली नींद सो जाओगे

सपनीली नींद सो जाओगे


क्या सुनाऊ तुम्हें,
इस दास्तान में अश्क का समुंदर है!
सह न पाओगे तुम ,
मेरे दिल में आज दर्द का समुंदर है!
कल तक जिस लाल को ,
अपने कलेजे से लगाया रहा
आज उसी को मरघट तक,
अपना कांधा लगाता रहा।
जब न मिला दो गज कफन भी,
उस बदनसीब के लिए,
माँ ने फाड़ा आंचल,
रोकर उस दिल फरेब के लिए ।
जीते जी न पाया और,
अब वो माँ का आंचल ओढ़ रहा,
उस पत्थर दिल ने रूठ के
आज हमसे अपना मुँह मोड़ा है।
अश्क माँ के बहते रहे,
मुझसे वो कहते रहे,
हमारे बहने का हिसाब लो,
समाज से इसका जवाब लो।
ऐसा क्यों होता है,
सेठ का कुत्ता,मखमल पर सोता है,
गरीब का ब्च्चा,ठंड में ठिठुरते रोता है।
वो बिस्कुट सूंघकर छोड़ देता है,और गरीब लपककर उसे उठा लेता है।
क्या है जवाब इसका ,तुम्हारे पास,
एक हिस्से तीस दिन,
दूजा सोए उदास।
क्या तुम भी कुछ कहोगे "सदा"
और अपने नर्म-नर्म लिहाफ में चैन की,
सपनीली नींद सो जाओगे।
नींद सो जाओगे ............।

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