सोमवार, 20 अप्रैल 2009

समझने का फर्क

समझने का फर्क

कौन कहता है कि हमारे देश में भ्रष्टाचार होता है।
अरे भाई, हमारे लिए तो वो सद्- आचार होता है।।
हमारा तो वह साइड बिजनेस है, हर मानव लिप्त होता है।
रिश्वत में मिला मान धन, इसीलिए गुप्त‍ होता है।।

जीवन में आगे बढ़ने का यही तो हमारा धन्धा, है।
भ्रष्टांचार का त्याग करें, वो नहीं भारतीय बन्दाच है।।
दोनों हाथों से करें घोटाला, तभी तो अब तक जिन्दा हैं।
तुम भी खाओं, हमें भी खिलाओ, छोड़ो व्यदर्थ की चिन्ता है।।

भ्रष्टाचार को छोड़ दिया तो, बच्चे अमेरिका कैसे जाएंगे।
तो क्याकि हम अपने बच्चों को हिन्दी माध्यम से पढ़ाएंगे।।
किसी को डाक्टार,किसी को इंजिनियर कैसे बनाएंगे।।
इस आमदनी को त्या‍ग दिया, फिर कोठी, बंगला कहॉं से लाएंगे।

उन्नति करने के साधन को तुम कहते हो भ्रष्टाचार।
चपरासी से ऊपर तक, यह हमारे लिए है 'सुविचार'।।
चारा घोटाला हो या ताबूत हो, हमारे नेता गए डकार।
अब तक तो कुछ हुआ नहीं, आगे भी नहीं होगा यार ।।

फिजूल की बातों पर, क्योंग करते हो तर्क ।
हमारे लिए स्वंर्ग है, तुम समझो जिसे नर्क ।।
रिश्वत लेना,कमिशन खाना,हमारा है यह फर्ज।
क्यों करते हो जिद्द मेवाती,केवल समझने का है फर्कं।

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