सोमवार, 20 अप्रैल 2009

शराब है मौते जहर

शराब है मौते जहर



लाख मना करने पर भी, न छोड़ी उन्होंने पीनी शराब,
रोज-रोज पी पीकर, कर ली अपनी तबियत खराब ।
हुई रूखसत जनबा की न सिर्फ शानो - शौकत ,
गई शोहरत और गया उनका दौलते - असबाब । 1 ।
शौके - शराब कर जहॉं खाते थे वो सींक - कबाब,
हालात यूओं हुए खस्ता कि रोटी को भी मोहताज जनाब
नशा - नशीन हो राह पर लड़खड़ाया वो करते थे ,
मदहोशी के आलम में नुमाइश वो अपनी लगाते थे
बार-बार समझाने पर भी न ली उन्होंने कोई नसीहत,
दर-दर की ठोकरें खाकर ले आते रोज नई फजीहत ।
अपने ही घर में अपनों से खाते जब वो झिड़कियॉं ,
बेचारी बेगम बचाने आबरू बंद करती घर की खिड़कियॉं । 3 ।
शराब वो जहर है जो बनाये खुद को खुद का बैरी,
औरों की क्या बात करें, बनाए अपनों से भी दूरी ।
संभल रहबर अब भी ! मौके हैं तेरे पास अनेक ,
पकड़ राह जिन्दगी की बनाकर अपने इरादे नेक ।
छोड़ शौके शराब-गर, पकडे तू राह दुरूस्त ,
नहीं वजह कोई कि न हो पाये तू फिर तंदुरूस्त ।
कर जिगर मजबूत और पक्का कर अपना इरादा,
छोड़ नशा शौके-शराब का और कर खुद से ये वादा । 5 ।
न होऊँगा गुमराह फिर, न खावूँगा और ठोकर,
गलतियॉं न दोहराऊँगा जिंदगी से सीख पाकर ।
न पीऊँगा अब शराब, शराब है मौते - जहर ,
छोड़कर वह बदनाम गली पकडूँगा अब नई डगर । 6 ।

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