सोमवार, 20 अप्रैल 2009

फरियाद-ए-चमन

फरियाद-ए-चमन

कौन है यह ?
इंसानियत के चरागों को बुझाने वाले
खून-ए-इंसा से दिल बहलाने वाले
लाशों से कफन खिंच -खिंच कर
अपने जिस्मों पर सजाने वाले

कौन है यह ?
माँगों से सिन्दूर मिटाने वाले
बच्चे-बच्चे को यतिम बनाने वाले
हिंसा के दहकते अंगारों पर
मासूम जानों को लिटाने वाले

कौन है यह ?
जिनके हाथों से महफूज नहीं अब यह चमन
खून के आँसू बहाते हैं जिसके नयन
पत्ता-पत्ता,बूटा-बूटा हर चीज बिखर जाएगी
रो-रो कर कह रहीं है दुखयारी पवन

यह कोई और नहीं अपने ही वतन के बच्चे हैं
धून के पक्के ही सहीं, मगर अक्ल के कच्चे हैं
गलत राहें ,गलत कामों को अपनाकर
समझते है यही सब काम अच्छे हैं

कोख से जन्मा था जिन्हें देश पर मर मिटने के लिए
आज तत्पर है यह देश को मिटाने के लिए
भरे जाते हैं बन्दूकों में गाोलियाँ
देशभक्तों के सीनों पर चलाने के लिए

रूक जाओ
ऐ नव जावानाने वतन रूक जाओं
अब भी बाकी है शान-ए-चमन रूक जाओ
छोड़ दो कलियों का मसलना, फूलों का कुचलना
कर रहा है फरियाद चमन रूक जाओ


वरना
लूटता रहेगा यह गुलिस्तां
घुटता रहेगा यह चमनिस्तां
आह,कराह,सिसकियाँ भर-भर कर
टूटता रहेगा हिन्दूस्तां

फिर एक दिन ऐसा आएगा
बच्चा-बच्चा, बूढ़ा-बूढ़ा हर कोई कट जाएगा
और समय का एक-एक पल तुमसे पूछता जाएगा

अब किसे चाटेगी, तुम्हारी गोलियाँ ?
किसका लहू बहाएंगी, तुम्हारी गोलियाँ ?
किसका सिन्दूर मिटाएंगी, तुम्हारी गोलियाँ ?
किसको अनाथ बनाएंगी, तुम्हारी गोलियाँ ?

फिर अक्ल तुम्हारी इन प्रश्नों में उलझती जाएंगी
और लहू कि प्यास तुम्हे आपस में ही टकराएंगी
लड़ोगे - मरोगे,कट-कट कर गिरोगे
मगर यह प्यास बढ़ती ही जाएगी

फिर दूर देश से एक शैतान आ रहा होगा
जो तुम्हारी लाशों को रौंद रहा होगा।
हँसी, कहकहे और ठहाके मार-मार कर
सारा देश निगल रहा होगा

इसलिए रूक जाओ ऐ नव जावानाने वतन रूक जाओं
अब भी बाकी है शान-ए-चमन रूक जाओ
छोड़ दो कलियों का मसलना,फूलों का कुचलना
कर रहा है फरियाद चमन रूक जाओ।
कर रहा है फरियाद चमन रूक जाओ।

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