सोमवार, 20 अप्रैल 2009

रो रहे आज मौहल्ले सारे

रो रहे आज गली गलियारे,रो रहे आज मौहल्लेर सारे।
धरती रोती ,अम्ब,र रोता,रो रहे आज हैं, चॉंद सितारे।।
सीता रोती,गीता रोती,आतंकवाद से सब हैं हारे।
आतंकवाद का नंगा नाच देख, रो रहे भारतवासी सारे।।

फूल रो रहे,कली रो रही,रो रही आज फिजाएं।
सूर्य रो रहा,किरणें रो रहीं,रो रहीं आज हवाएं।।
नगर रो रहे,शहर रो रहे,रो रहीं आज दिशाएं।
आतंकवाद इस दुष्ट,, नीच से कैसे जान बचाएं।।

माता रो रही, बहना रो रहीं, रो रही आज घरवाली।
सूनी ऑंखे बाप की कह रहीं, मेरा जीवन हो गया खाली।।
दहाड़ मार कर पत्नीह रोवे, कहॉं गया मेरी बगिया का माली।
आतंकवाद इस दुष्टन दानव ने, जिन्दगगी कर दी काली।।
हर चहरे की खुशी छीन ली, बैरी दुष्टन धमाकों ने।
चुपके से घुसकर भारत में, भारत को डस लिया नागों ने।।
निर्दोषजनों को मारा क्‍यों, क्यान गुनाह किया था जानों ने।
छद्दम युद्ध का लिया सहारा, इन कमजात कमिनों ने।।

जब तक भारत नहीं जगेगा, मन में करोगे विचार नहीं।
इस दानवरूपी आतंकवाद से, जीतेगी सरकार नहीं ।।
ऊठो जवानों कमर बॉंध लो, आपस में करो तकरार नहीं।
जगो 'मेवाती', आलस त्यामगो वरना सपना हो सकार नहीं।।

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