बुधवार, 29 अप्रैल 2009

सीख - संस्‍मरण

सीख






बात उन दिनों की है जब मैं अपनी पढ़ाई पूर्ण कर शासकीय निर्माणी में कनिष्‍ठ हिन्‍दी अनुवादक के पद पर तैनात ही हुआ था । पहली व नई नौकरी थी लिहाजा मैं हर कार्य सम्‍भलकर तथा निष्‍ठापूर्वक करने का प्रयास करता था । मुझे सौंपे गए कार्य को सावधानी करने के साथ- साथ अपने कार्यालय में स्‍वयं को स्‍थापित व सिद्ध भी करना था । अत: सौंपे गए कार्य के त्‍वरित निपटान में लग जाता था और सच तो यह भी था कि मुझमें अनुभव की भी कमी थी । इसी क्रम में मेरे जीवन में एक ऐसा अनुभव आया जिसने मेरी सोच को बदल दिया और शासकीय विभाग में कार्य करने के तरीके को सीखा दिया ।
हमारे हिन्‍दी अधिकारी श्री चन्‍द्रभान मौर्य एक अत्‍यन्‍त सख्‍त एवं ज्ञानी अधिकारी थे जो अपने अनुवादकों से उनकी प्रतिभा का 100 प्रतिशत प्रयोग सुनिश्चित करवाते थे। इसके अतिरिक्‍त वे अधीनस्‍थों से 100 प्रतिशत सही व परिशुद्ध (एक्‍युरेट) उत्‍तर की अपेक्षा रखते थे। मैं चूँकि नया था और अपने अधिकारी के इन गुणों से अपरिचित था और मेरे लिए शासकीय निर्माणी में कार्य मतलब नगरपालिका के कर्मचारियों के कार्य से अलग नहीं था जो कि 'पैसे रूपी ग्रीस' के अभाव में अपनी मेज से फाइलों को महिनों तक हिलने नहीं दिया करते हैं ।
हमारा राजभाषा अनुभाग प्रशासनिक खण्‍ड से करीबन आधे किलोमीटर की दूरी पर स्थित था और कभी -कभार ही हम अनुवादक निर्माणी के अन्‍य अनुभागों में जाया करते थे । एक दिन हमारे हिन्‍दी अधिकारी महोदय ने मुझसे कहा कि '' संतोष FR RULES की किताब दो ।'' इस पर मैंने बिना सोचे जोश में कह दिया कि ''सर , FACTORY RULES की किताब अलमारी में है । इस पर उन्‍होंने अत्‍यन्‍त सहजता से कहा कि संतोष तुरन्‍त प्रशासनिक खण्‍ड स्थित स्‍थापना अनुभाग के फोरमैन से व्‍यक्तिगत रूप से जाकर पता लगाइए कि ''FR '' का फुलफार्म क्‍या है ?
''मरता क्‍या न करता '' मई महिने की गर्मी में मैं तत्‍काल स्‍थापना अनुभाग की चल पड़ा । स्‍थापना अनुभाग के फोरमैन से जाकर मैंने अपनी शंका बतालाई तो उन्‍होंने मुस्‍कुराते हुउ कहा कि ''संतोष , FR का अर्थ FACTORY RULES नहीं बल्कि FUNDAMENTAL RULES होता है ।''
इतना सुनना था कि मेरा जोश सोंडा वाटर के बुलबुले की तरह शांत हो गया । अब मैं भारी मन से राजभाषा अनुभाग की ओर बढ़ चला । अनुभाग में पहुँचते ही मैंने देखा कि मेरे वरिष्‍ठ सहयोगी श्री मिलिंद एल.शेडगे, हिन्‍दी अनुवादक, श्री एन.आर.गुमगांवकर, हिन्‍दी टंकक तथा श्री डी.एस.मुदलियार, अवर श्रेणी लिपिक मंद-मंद मुस्‍कुरा रहें हैं।
मुझे देखते ही हिन्‍दी अधिकारी महोदय ने बैठने का इशारा किया और चतुर्थ श्रेणी कार्मिक को पानी लाने का आदेश दिया । मेरे द्वारा पानी पिने के बाद उन्‍होंने पूछा ''संतोष , FRका फुलफार्म ज्ञात हुआ ? इस प्रश्‍न की अपेक्षा मैं पहले से ही कर रहा था पर उत्‍तर क्‍या होगा मुझे यह सूझ नहीं आ रहा था। प्रश्‍न के जवाब में मैं बस मौन रहा । मेरी मनोदशा उनसे छिपी हुई नहीं थी । डरते-डरते विनम्रतापूर्वक मैंने हिन्‍दी अधिकारी महोदय से पूछ लिया '' सर, यदि आपको FRका फुलफार्म ज्ञात था तो मुझे भरी दोपहरी में स्‍थापना अनुभाग तक क्‍यों भेजा ? आप चाहते तो यहीं मेरी त्रुटि को सुधार सकते थे।''
इस पर उन्‍होंने कहा कि '' इसमें कोई शक नहीं कि मैं यहीं पर बैठे-बैठे तुम्‍हारी त्रुटि को सुधार सकता था , पर यदि मैं ऐसा कर देता तो तुम इस भूल को साधारण तरीके से लते तथा कुछ दिनों बाद इस वाकये को भुला देते और हर बात को सहजता से लेने की तुम्‍हारी प्रवृत्ति कभी गम्‍भीर नहीं होती । ''संतोष , याद रखो कि शासकीय सेवा में कार्मिक की विश्‍वसनीयता , सक्षमता सदैव उसके द्वारा लिखे व बोले गए तथ्‍यों पर पर निर्भर होती है। अत: जो भी कहो उसके बारे में पहले स्‍वयं निश्‍चत (स्‍यूर) हो जाओं ।''
अब हमारे अधिकारी महोदय का स्‍थान्‍नातरंण अन्‍य स्‍टेशन पर हो गया पर उनकी सीख आजीवन मेरे मानस पटल पर उत्‍कीर्ण हो गयी है।

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