सोमवार, 20 अप्रैल 2009

डब्ल्यू.टी.सी.

डब्ल्यू.टी.सी.

श्री एस.पी.चक्रवर्ती
अमरीकी शहर न्यूयार्क के,
'निचले-मैनहटन' इलाके में,
एटलांटिक महासागर के किनारे -खड़े,
ओ-विश्व व्यापार केन्द्र
तुम्हें हम जानते थे
'डब्ल्यू.टी.सी. के नाम से,
तुम्हारी दोनों गगनचुम्बी मीनारें
आसमान को दर्शाती थीं-
विश्व को दर्शाती थीं
आर्थिक सम्पन्नता,
तकनीकी दक्षता
'बसुदैव कुटुम्बकम्‌' की अवधारणा तले
मुद्रा की विनिमयता और
मानवीय एैक्यबद्धता!


तुम थे - अब तुम नहीं हो!
प्र तुम्हारे-
होने और न होने के बीच
घटी अनेक घटनायें,
दर्शाती हैं-
विघटनकारी शक्तियों का आतंक,
घृणा,तिरस्कार,अमानवीय निष्ठुरता
और विध्वंस की लीला!
निर्दोष, निःसहाय हजारों कर्मी
जो तुम्हारे आगोश में समाये,सहस्त्रों कम्पनियों के कार्यालयों
में सेवारत - अचानक समा गये मृत्यु के आगोश में
अविश्वास, विडम्बना और भय के साथ
छा गई चहॅुं और त्रस्तता,वेदना और विशाद,
दर्शाती हैं-
सवहिष्णुता,मानवीय संवेदना,विश्व सहकार्य की भावना
दर्शाती हैं
उद्विग्न अमरीकी किंकर्तव्यविमूढ़ता,
दर्शाती हैं-



बदले की भावना,धमकी,चेतावनी
और सैन्य कार्यवाही-
अफगानिस्तान पर बमबारी-
मुल्ला ओमर और तालिबान,
ओसमा बिन लादेन और अल-कायदा
जार्ज डब्ल्यू.बुश और अमरीकी प्रशासन
क्या मायने रखते हैं ?
उन हजारों जीवन के लिये-
जो ग्यारह सितम्बर के आतंकवादी हमले से
समा गये धरती के गर्भ में
बिछुड़ गये हमेशा-हमेशा के लिए
अपने परिवार जनों से -
या
उन बे गुनाहों के लिये-
जो मारे जा रहे हैं रोज-रोज,
काबुल,कंधार,जलालाबाद और
हैरात के अनचाहे रणांगण में।

विचार एक आता है-
प्रश्न एक उभरता है-
बनाया किसने था'बिन लादेन' को
सशस्त्र किसने किया था तालिबान को
शह कौन देता था पाकिस्तान को
अर्थ सहाय्‌य कौन देता था-आतंकवादी प्रतिष्ठानों को!



छुपी नहीं ये बाते अब -
दुनिया की नजरों से !
पाप का फल तो भोगना होगा,
जैसा बोया -वैसा ही रोपना होगा,
प्रायश्चित तो करना होगा-
ओ सामा्रज्यवादी अमरीका तुम्हें- चेतना होगा।
मानवीय प्रशासन और विश्वबन्धुत्व की नीति अपनाना होगा,
पुनःनिमार्पण और पुनर्वसन करना होगा!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें