सोमवार, 20 अप्रैल 2009

मील का पत्थर

मील का पत्थर

एक
मील का पत्थर
खड़ा अपनी जमीं पर,
सड़क किनारे देख रहा है,
वक्त का नजारा।
दौड़ती दुनियॉं,
भागता हुआ आदमी,
खदेड़ी गई दुनिया,
खदेड़ता हुआ आदमी,
आदमी-आदमी को खदेड़ता है
आदमी ही आदमी को धकेलता है।
आदमी तिकड़म लगाकर -
बन जाता है बड़ा
और दूसरा भौंचक्का होकर
देखता रह जाता है -खड़ा
आदमी-आदमी की बदौलत
बन जाता है बादषाह
बन कर बादषाह
बरगला जाता है आदमी
फिर आदमी होकर भी
नहीं रह जाता है वह आदमी,
बन जाता है वह - जालिम और बर्बर
होती नहीं जिसे आम आदमी की खबर
आदमी के खून-पसीने से -
बुझाती है उसकी प्यास
मेहनत मषक्कत में आदमी का
झुलसा हुआ मॉंस -
मिटता है उसकी भूखी आस।
आदमी जो होता है श्रमिक,किसान-
करता है निर्माण करता है सृजन
भोगता है जिसे बादषाह-
जीते हुए विलासतापूर्ण जीवन
बादषाह की बेतकल्लुफदार जिन्दगी
चढ़ती है महल की परवानगी।

दो

अब वक्त बदल गया है
वक्त के मुताबिक
बादषाह बन गया है लोकषाह
बादषाही अब जाती रही-
आ गई है लोकषाही
जो हुआ करते थे कभी
जमींदार,सूबेदार या जागीरदार
कल तक थे जो साहूकार या ठेकेदार
बन जाते हैं वो भी अब
आमदार या खासदार
और अपने मातहत रख कर -नौकरषाह
बन जाते हैं वे लोकषाह।

तीन

आजकल,लोकषाह -
कोई भी बन सकता है
बस, उसमें होनी चाहियेः
छल-छलावे की कुव्वत,
हॅंसते हुए झूठ बोलने की कला,
काला धन बटोरने की असीम क्षमता,
होनी चाहिए उसके पास
कुछ लठैत, कुछ त्रिषूलधारी
कुछ गुर्गे,कुछ भाई लोग
और एक राजनीतिक मंच!

चार

लोकषाह भी बादषाह की ही तरह
अपनी मन मर्जी का मालिक होता है
उसके षौक बेषकीमती और
आसमान छूने वाले होते हैं
वह वातानुकूलित भवन में रहता
हवाई जहाज से सफर करता है
दूर दराज देष-विदेष की
सैर सपट करता है
उसे आम आदमी की तकलीफ से
बिजली -पानी की किल्लत से
षिक्षा-स्वास्थ्य की दिक्कत से
विधायक कार्य से -तनाव आता है।
बेरोजगारी और महॅंगाई की मार से
पिटे हुए आदमी की चीख से
उसके चिन्तन-मनन में
खलल पड़ती है ।

पॉंच

चुनाव उसके लिए अखाड़ा है,

लुभावने वायदे उसके पैंतरे हैं!

उन पैंतरों में फंसकर

चित हो जाता है आम आदमी
आम आदमी की ÷मुहर÷ पर हो सवार
करता है वह पॉंच सालाना ÷सफर÷
पा जाता है वह पंचवर्शीय ÷सीजन टिकट÷
आम आदमी का हो जाता है जीवन विकट।


छः

लोकषाह बनते :बिगड़ते रहते हैं
दुनियॉं फिर भी चलती रहती है
मील का पत्थर
अपनी जगह गड़ा
वक्त की सड़क पर ÷रामलीला÷ देख रहा है
और कर रहा है- इंतजार
थक आयेगा कोई राम ,कोई कृश्ण
या कोई ÷षिवराया÷
और फिर एक बार करेगा संहार
भ्रश्टाचार रूपी रावण का
दुराचारी कंस का और प्रस्थापित करेगा
सच्चा स्वराज, जो सही मायने में होगा
लोक का, लोक द्वारा, लोक के लिये -लोकषाही
मील का पत्थर, अपनी जगह खड़ा,कर रहा कामना यही।

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