सोमवार, 20 अप्रैल 2009

हड़ताल

हड़ताल

श्री एस.पी.चक्रवर्ती
न होने पर काम की बुनियादी शर्तें
अनुकूल और न्यायसंगत,
न खुले रहने पर -प्रेरणा के लिये जरूरी
पदोन्नति के रास्ते ,
श्रम का सही मूल्यांकन न होने पर ,
न मिलने पर -निर्धारित काम का उचित पारिश्रमिक ,
उत्पादन प्रक्रिया के लिये जरूरी-
स्ंसाधन और सुविधाओं के -
न होने पर उपलब्ध
खड़ी हो जाती है एक दीवार,
अविशवास और वितृश्णाकी -
मालिक और मजदूरों के बीच!
उदासीनता से मालिक की होकर विरक्त,
आवेदन,निवेदन और ज्ञापन-
से होकर विफलः
श्रमजीवी मजदूर-
स्ंयम के कगार पर :
थ्दये जाते हैुं जब धकेल!
होकर विवश तब -
लचकदार,रचनात्मक
उनकी वे शिल्पी अंगुलियॉं-
बंध जाती हैं मजबूत मुठ्ठियों में,
फूट पड़ता है विरोध का दावानल,
गूंज उठता है चतुर्दिक -
मॉंगों के बुलंद उद्घोशणाओं से !
और पाने के लिये अपने अधिकार-
जब
जब खींच लेते हैं अपने कर्मठ हाथ -
यंत्र,तंत्र और संयंत्रों से
रूक जाता है - मशीनी कोलाहल,
थम जाता है - उत्पादन का पहिया
हो जाती है - तब
हड़ताल.......

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